….. some wishes…. in Hindi Short Stories by Anup books and stories PDF | ….. कुछ ख्वाहिशें….

The Author
Featured Books
Categories
Share

….. कुछ ख्वाहिशें….

ज़िन्दगी हर सू एक कहानी सी है , हर पल जाने कितना कुछ कहती है | समझना तो दूर, हम उसे एहसास भी नहीं करना चाहते |

आज ही तो कहा था पत्नी ने कहीं साथ चलने को कहीं साथ घूमने को, मैंने वादा तो किया पर पूरा नहीं | शायद..मैं उसके उस स्पर्श को समझ ही नहीं पाया, क्यूँकि..शायद वो एक बोली मात्र थी जिसे मैं चाहे अपना लू..या सुन के अनसुना कर दू । हाँ..शायद कुछ ऐसा ही रहा होगा।

मगर अक्सर हम इन बातों पर ध्यान नहीं देते और उस इच्छा को तवज्जो नहीं देते, तब शायद..एक मन को हम ठेस पहुँचाते हैं जिसका हमें इल्म मात्र भी नहीं होता।

ऐसी ही है कुछ सुमन और रमन की कहानी। इस कहानी में शब्द ही कम हैं , बस.. ख्वाहिशों को समझ पाने के एहसास मात्र की एक कोशिश है।

नयी नयी शादी हुई, घर में खुशियों का माहौल था। रमन खुश था, सुमन भी खुश नज़र आ रही थी..खुश नज़र आ रही थी!!! पर क्या वो सच में खुश थी?

कुछ तो हुआ था, किसी का दिल टूटा था, कोई रोया था, पर क्या कोई उस उदासी को..उस हलकी हसीं के पीछे से झांकते देख पाया था...नहीं शायद।

कुछ दिन यूँ ही बीत गए,

एक ज़िन्दगी..एक नए सिरे से शुरू होने को थी। एक दिन...

रमन - "अरे सुमन एक कप चाय लाना सर दर्द से फटा जा रहा है"

सुमन- "लाई"

कैसे हैं, क्या हुआ, कोई तकलीफ है जैसी कोई बात नही..तो कुछ कम शब्द नहीं थे? वो कुछ प्यार से भी बोल सकती थी, या उसकी कम बोलने वाली शक्सियत थी।

सुमन- "चाय"

रमन- "You are a saviour" "थोड़ा सर दबा दोगी ?"

सुमन- "हाँ "

रमन- "कुछ हुआ है, कुछ परेशान हो" बोल कर आँखे मूँद लेता है।अपनी नयी नवेली दुल्हन को अपने अधूरे सवाल संग एक शुन्य में छोड़..वो सो जाता है।

सच..कठिन है उस नयी सुहागन के लिए जिसे सब कुछ समझने का मौक़ा भी ना मिला हो और उसका हमसफ़र .. उसे एक मँझी गर्यहस्त समझ बस चिंता मुक्त हो जाता है।

ख़ैर… ये पड़ाव हर नयी दुल्हन की क़िस्मत की एक लकीर है।

उसके अंदर क्या चल रहा है, किसी को क्या फ़र्क़। सच तो ये है की उसका दिल टूटा था, वो ख़ुश नहीं थी, जैसा होता है.. बेटी की इच्छा कौन पूछता है, यही विडम्बना है..

शायद वो एक ख़्वाब है जो सजना चाहता है, शायद वो उड़ना चाहता है… बस..थोड़ा हट के ही तो सोचा उस बेटी ने.. बस.. थोड़ा रुक के माँगा था ये जीवन का बंधन, अपनी राहे चाहत आज़मा के वो वापस आ ही जाती।

बस दिल कुछ भारी सा होता है जब असल ज़िंदगी में ऐसा कुछ सामने आता है। ख़ैर चलो शुरू से शुरू करते हैं, सोचते है कि ये शादी अभी हुई ही नहीं, सुमन को एक मौक़ा दो देते है अपनी ज़िंदगी जीने का, शायद इस बार वो ख़ुश रहे।

यही सोचता हूँ अगर ये शब्द “शायद” इसे उखाड़ फेंके हम सब अपनी ज़िंदगी से.. हम सब की नियत से.. हम सब के हौसलों से.. तो अगला सवेरा कुछ नया हो, हर ख़्वाहिश पूरी हो।

ग़र हम अभी भी नींद से ना जागे तो ना जाने कितनी सुमन अपने ख़्वाबों को बलि चड़ा देंगी और हम हर सू ज़िंदगी को ना समझने की..गलती करते रहेंगे..

…………………..

रास्ते ख़त्म नहीं होते,

मंज़िलों का तय होना लिखा है,

हर ख़्वाहिश रूबरू नहीं होती,

कुछ संग चले जाना लिखा है..

 

 

©अनूप पांडे