Jaadui Tohfa - 4 in Hindi Short Stories by जॉन हेम्ब्रम books and stories PDF | जादुई तोहफ़ा - 4

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जादुई तोहफ़ा - 4

अगले दिन फिर सुबह जल्दी उठकर उसने अनुज से मिलने का सोचा। और वो निकलने ही वाला होता है की उसकी मां उसे रोक लेती है।

"आज राशन मिलने वाला है इसलिए में पड़ोसियों के साथ जा रही हूं,तुम्हे अपनी छोटी बहन का ध्यान रखना है।"

"पर मुझे कुछ काम था।"

"पर वर कुछ नहीं देखो तुम्हारे पिताजी काम पर गए है और राशन लेना भी जरूरी है काम तो होते ही रहेंगे।" और इतना कहकर उसकी मां पड़ोसी के घर चली गई।

उधर अनुज आज फिर वहीं उसका इंतजार कर रहा था। एक दिन में ही दोनो की अच्छी दोस्ती हो गई थी। उधर उसकी टोली भी उसका इंतजार कर रही थी पर जब काफी देर हो गई और वो आया नहीं तो वे खुद उसके पास चले गए।

"मुझे लगता है वो घर पर नहीं होगा।" सारे लोग रास्ते में बातें करते हुए जा रहे थे।

"अरे तुमलोग यहां कैसे।"

"अब अगर तुम ही न हो तो भला हम अकेले क्या करे?" अमन बोल पड़ा।
उसकी नजर तोते पर पड़ी

"तुमने इसे पिंजरे में क्यों बंद रखा है?"

"वो पिताजी ने कहा की ये उड़ जाएगा।"

"वैसे तुम आए क्यों नही।"

"मां को राशन लाने जाना पड़ा और उन्होंने कहा की मुझे अपनी बहन की देखभाल करनी है।"

"इसका मतलब आज तो तुम बिल्कुल भी खाली नहीं रहोगे।"

"सही कहा तुमने"

"पर हम यहां भी साथ बातें कर सकते है,वैसे भी कई दिन हो गए हमें ऐसे मिले।" और फिर सब उसके सामने बैठ गए। और बातें शुरू हो गई। कुछ ही घंटो में उसकी मां राशन लेकर लौट आई।

"अरे तुम सब यहां?" उसकी मां ने सबकी और देखते हुए कहा।

"हां हम बस मिलने आए थे।" अमन ने उसकी मां को बताते हुए कहा।

"अब हमें चलना चाहिए।" और इतना कहकर सब वहां से चले गए।

उधर अनुज सुबह से उसके इंतजार में उसी जगह पर था उसे लगा की शायद अब वो नहीं आएगा और फिर वो खुद से ही बातें करने लगा।

"शायद वो नहीं आएगा बहुत देर हो गई,मुझे अंदर जाना चाहिए वरना मां परेशान हो जाएंगी।" और फिर वो वहां से जाने लगा।
इतने में उसे एक आवाज सुनाई पड़ी।

"रुको! क्या तुम जा रहे हो?"

"तुमने इतनी देर क्यों लगा दी?"

"वो मुझे कुछ काम आ गया था।"
और इतना कहकर वो पेड़ से उसके बगीचे में आ गया।
बातें शुरू हुई प्रदीप ने अपने दोस्तों के बारे में बताया। ये सुनकर अनुज ने कहा।

"मेरे भी कई दोस्त थे पर इस हादसे के बाद मां मुझे उनसे बिलकुल मिलने नहीं देती।"
इसी दौरान उसकी नजर प्रतीक के उस ताबीज़ पर पड़ी।
प्रतीक ने ये भाप लिया और उससे पूछा।

"क्या तुम्हे ये पसंद आया?"

"बढ़िया है…"
उसकी बात सुन उसने अपना वो ताबीज़ अपने गले से उतारा और उसके हाथ में थमाते हुए बोला –

"तुम ये ले सकते हो,पर हां ये जादुई है।"
और फिर दोनो हंस पड़े

"नहीं! मैं कैसे ले सकता हूं ये तो तुम्हारी है।"

"अब तुम मेरे दोस्त हो तो ये दोस्ती का तोहफ़ा समझकर ले लो।"

"अब और कुछ नहीं।"
और इतना कहकर उसने वो ताबीज उसके गले में पहना दी।

"पर हां याद रखना ये जादुई है तुम्हारी जो इच्छा होगी वो बोलकर देखना सच हो जाएगी। और इतना कहकर वो वहां से चला गया।

"कल फिर मिलते है"


– क्रमशः