Jaadui Tohfa - 2 in Hindi Short Stories by जॉन हेम्ब्रम books and stories PDF | जादुई तोहफ़ा - 2

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जादुई तोहफ़ा - 2

अगले दिन जैसे ही वह सुबह उठा,फौरन अपने तोते के पास चला गया। तोता पहले से ठीक नजर आ रहा था। फिर नाश्ता वगैरा करके वो अपनी टोली से मिलने चला गया। रोज की तरह सब वहां मौजूद थे।

"तो आज क्या करना है?" अमन ने उससे पूछा।

"कल की योजना को पूरी करेंगे। आज जब मैं यहां आ रहा था तो मुझे वो खुसट् माली मिला था शायद वो कोई चीज लाने पास के किसी नगर में गया है और ये एक अच्छा मौका हो सकता है हमारे लिए हम ढेर सारे आम तोड़ सकते है।"

"और मैं कुछ आम अपनी मां को दे दूंगा और वो उसका आचार बना देंगी।"

"अरे हां।" सब एक स्वर में बोल पड़े।

"फिर देरी किस बात की है चलो जल्दी।"
इतना कहकर उसकी टोली वहां के लिए रवाना हो गई।

"आज किसी से डरने की जरूरत नहीं,आराम से सब करेंगे।" प्रतीक ने ऊपर पेड़ पर चढ़कर सबसे कहा।
और फिर आम तोड़ने लगा वो काफी रसीले और मीठे लग रहे थे पूरी तरह पके हुए।
कुछ देर उसने नीचे के आम तोड़े फिर ऊपर जाने लगा। ऊपर से उस नदी के बगल वाले मकान का दृश्य साफ नजर आ रहा था, बाग में कई फूल खिले हुए थे और आस - पास काफी साफ सफाई थी। कुछ देर के लिए वो उसे निहारता ही रहा और मानो जैसे उसी में समा सा गया हो। अचानक इन सबसे हटकर उसकी नजर एक लड़के पर पड़ी जो व्हीलचेयर पर बैठा हुआ था। और आस पास के चीजों को देख रहा था। उसे वो काफी नया लगा इससे पहले उसने कभी उसे नहीं देखा था। उसे देखकर उसका मन भारी हो गया इतने में ही नीचे से उसके दोस्त रमेश ने उसे आवाज लगाई।

"इतना काफी है,नीचे उतर जाओ।"
धीरे - धीरे वो नीचे उतरने लगा। सब काफी खुश नजर आ रहे थे लेकिन प्रतीक का मन ठीक नहीं था। उन सबने कुछ आम चुने उन्हे नदी के पानी में धोया और अपने अड्डे की ओर चलते बने रास्ते भर बातें करते हुए वो उस लड़के के बारे में भूल गया और सबके साथ बातें करते हुए वापस लौटने लगा। उन्होंने आज भी काफी सारे आम खाए और कुछ रमेश आचार के लिए ले गया। शाम हुई सभी लोग जाने लगे। पर प्रतीक कुछ देर वहीं बैठा रहा। अचानक उसे उस लड़के की याद हो आई वो तुरंत उसी नदी किनारे भागते हुए चला गया। और आम के पेड़ पर चढ़कर उसे देखने की कोशिश करने लगा लेकिन वो वहां नहीं था। वो जा चुका था। और जब कुछ देर इंतजार करने के बाद भी उसे वो नजर नहीं आया तो वो अपने घर लौट गया।
घर पहुंचकर उसने तोते को देखा वो चल फिर रहा था और आवाज़ें भी करने लगा था।

"आज इतनी देर कैसे हो गई?" उसके पिता ने रोज की तरह पूछा।

"वो…"

"कोई बहाना नहीं चलेगा,मेने पहले ही कहा था इसे हॉस्टल में डाल देते है दिन भर ऐसे ही घूमता फिरता रहा तो कैसे चलेगा।"

"अजी बच्चा ही तो है, अभी ही तो घूमने फिरने की उम्र होती है।" उसकी मां ने उसके संदर्भ में कहा।

"तुम्ही ने बिगाड़ रखा है।"

"छोड़िए भी,जाओ बेटा जाकर पढ़ाई करो।" उसकी मां ने उसकी और प्यार से देखकर कहा।
पढ़ाई के दौरान भी वो उसी लड़के के बारे में सोचता ही रहा, कैसा होगा? क्या कर रहा होगा? इतने में ही अचानक से बिजली चली गई।

"ये बिजली वाले भी न पूरे दिन रहेगी लेकिन रात को ही काटना होता है इन्हे।" उसकी मां ने मोमबत्ती जलाते हुए चिढ़कर कहा।

"प्रतीक बेटा,बाहर आ जाओ आज यही खुले आसमान के बीच खायेंगे।"
उसकी मां ने आंगन में मोंबती जलाई और खाना परोसने लगी। खाना खाकर सब सोने चले गए सारे लोग बाहर खटिए पर ही सोया करते थे। उस रात आसमान काफी साफ था और तारे पूरे आसमान को रोशन कर रहे थे चांद भी पूरा चमक रहा था। और आस पास ठंडी हवा बह रही थी। उस लड़के के बारे में सोचते - सोचते ही उसकी नींद लग गई।


– क्रमशः