Soi takdir ki malikeyen - 1 in Hindi Fiction Stories by Sneh Goswami books and stories PDF | सोई तकदीर की मलिकाएँ - 1

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सोई तकदीर की मलिकाएँ - 1

सोई तकदीर की मलिकाएँ

 

1

 

 

देशों में प्यारा , न्यारा , सबसे सुंदर देस पंजाब । पाँच पानियों की धरती । गुरूओं पीरों की धरती । इसी पंजाब के सीमावर्ती इलाके में है कोटकपूरा । कोटकपूरा पंजाब का बङे गांवनुमा कस्बा है जिसमें नवाब कपूर खान का बनवाया कोट यानि किला आज भी मौजूद है और इसके नाम को सार्थक करता है । मुगलों को समयसे ही यह आढत की मंडी रही है । इस कोटकपूरा से तेरह किलोमीटर दूरी पर बसा है मोहकलपुर किसी मोहकल सिंह राजा की बसाई हुई नगरी जिसे आज लोग सूफी संत बाबा फरीद के नाम पर फरीदकोट कहते हैं । इस तेरह किलोमीटर के बिल्कुल बीचोबीच , कोटकपूरा से सात किलोमीटर और फरीदकोट से करीब छ किलोमीटर दूरी पर बसा है एक गाँव संधवां जिसे शायद संधु जाटों ने बसाया होगा । अब यहाँ करीब पचास घर बसते हैं जिसमें सभी जातियों के लोग शामिल हैं । आजकल इस गाँव की ख्याति इस बात से है कि भारत के राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह इसी गाँव से थे । अभी भी उनके वंशज इसी गाँव में रहते हैं । उनका घर गुल्लीघङों का घर कहलाता है । गाँव में एक शूगरमिल है । चार पाँच कपास और बिनौले अलग अलग करने की फैक्ट्रियाँ हैं । एक कपास से सूत बनाने की सरकारी फैक्ट्री भी है । गाँव के बाहरवार एक ईंट भट्टा है । एक अदद हाईस्कूल भी है जहाँ हाजरी सिर्फ रजिस्टरों में लगती है । वरना इस गांव के बच्चे या तो स्कूल जाते ही नहीं , दिन भर भैंसों को जोङङ में नहलाने जाते हैं । गलियों में पतंगें उङाते हैं , कंचे या गुल्ली डंडे जैसे खेल खेलते हैं या फिर कोटकपूरा या फरीदकोट के अंग्रेजीदां किसी पब्लिक स्कूल में पढने जाते हैं । हाँ स्टेशन छोटा सा पर खूबसूरत बना है । जहां के बैंचों पर गाँव के बुजुर्ग अधलेटे बतियाते रहते हैं या फिर ताश खेलते हैं ।
सङकें पक्की और साफ सुथरी बनी है । यहाँ तककि गाँव की पगडंडियाँ भी खङोंजा यानि ईंटों की बनी हैं । और हों भी क्यों न आखिर भारत के भूतपूर्व राष्ट्रपति का जन्मस्थान है । गाँव में दो बैंक भी हैं । एक कोपरेटिव और दूसरा सरकारी ।
औरतें सुबह का काम निपटाकर सङककिनारे लगे नीम की छाँव में चरखे अटेरन या कोई काम लेकर आ बैठती हैं । फुलकारी , चादरें , सिरहाने के गिलाफो पर फूल निकालते , पूनियाँ कातते , दाल चुगते , फटकते सारे मौहल्ले की चर्चा की जाती है जो शाम के चार बजे तक जारी रहती है ।
बात बहुत पुरानी है । मेरे जन्म से भी पुरानी । उस दिन भी गली की औरतें दिन भर की कताई , बुनाई और निंदा चुगली करके अपने अपने घरों में घुसी ही थी कि भोले जमींदार के घर के आगे किसी कार के रुकने की आवाज सुनाई दी । जब तक औरतें अपनी छोटी छोटी कच्ची दीवारों के ऊपर से एङियाँ उटाकर , सिर निकाल कर , झांक कर देखें -
ओए भोला ताया विआह करवा के आ गिआ – गली में गुल्ली डंडा खेल रहे बच्चों ने एकदम शोर मचाना शुरू कर दिया । कुछ बच्चे घर भागे घर के लोगों को यह शुभ समाचार देने के लिए और कुछ वहीं कार से दूर सामनेवाली दीवार से सट कर खङे होकर घूंघट में लिपटी उस दुल्हन की एक झलक देखने की कोशिश में लग गये ।
बेबे बेबे , भोला ताया नयी नकोर वहुटी लाया है अभी अभी । - छोटू ने अपनी दादी को जा झकझोरा । बेबे बचनी अपने पीढे पर बैठी चरखा कात रही थी । छोटू के हिलाने से उसकी तार टूट गयी । झुंझलाते हुए उसने टूटी डोर को पूनी से जोङा और छोटू को अपने कंधे से परे हटाया – अरे निखट्टू , पीछे हट । क्या कर रहा है । देखता नहीं , अभी तकला टेढा हो जाना था । ऐसी क्या आफत आ गयी जो आँधी तूफान बने हुए बाहर से उङते चले आ रहे हो । आराम से सांस ले फिर बता – क्या हुआ ?
वो ना अपना ताया है न भोला , अभी अभी उसकी मरूती से एक चूङे वाली इतना बङा घूंघट निकाले उतरी । मैने देखा ।- छोटू ने अपनी बाहें अपनी सामर्थ्य भर फैलाई घूंघट का आकार बताने के लिए ।
बच्चे उनके घर कोई दूर नजदीक की कोई रिश्तेदार आई होनी है । लेने गया होगा बस अड्डे पर जां अपने टेशन पर । तूने फालतू में सांस ऊपर की ऊपर चढा रखी है । चल जा खेल और मुझे दो पूनियां कात लेने दे ।
बेबे ...ताया भी नहा धो के सोहना बना हुआ था , सच्ची ।
अभी वे दादी पोता ये बातें कर ही रहे थे कि पङोस की बहु अमरजीत अपने बेटे बिक्की की ऊँगली पकङे आ खङी हुई ।
माथा टेकती हूँ बेबे । क्या कर रहे हो ।
कुछ नहीं पुत्त । सोचा दो गलोटे उतार लूँ पर ये बच्चे कोई काम करने दे तब न । इस छोटू ने अभी बाहर से आकर मुझे बुरी तरह से हिला दिया । तार तोङ के रख दी । वही ठीक कर रही हूँ ।
वही तो मैं पूछने आई थी बेबे , ये बिक्की भी बाहर खेल रहा था । मैं रात के लिए मूंग साबुत की दाल चुग रही थी कि इसने आकर पता नहीं क्या उलटा सुलटा बकना शुरु कर दिया । मुझे तो इसकी बात पर बिल्कुल यकीन नहीं हुआ ।
तब तक बङी बहु थाली में उङद चने की दाल डालकर चुगने सँवारने के लिए आँगन में चली आई । बुढी बेबे को याद आया – उसने अमरजीत को माथा टेकने पर आशीष अभी तक दी ही नहीं तो बोली – आ बहु बैठ । तेरा सुहाग बना रहे । बाल बच्चे जीते रहे । भाई भतीजे सलामत रहे । जवानी माने । सुखी रहे । तेरा घर अनाज से भरा रहे । करमा सौ साल जिए ।
हाँ भई अमरजीत मुझे भी बताओ , क्या हुआ । क्या देख लिया इन बच्चों ने । सब ठीक है न ।
कुछ नहीं बहन जी । बच्चे है । वैसे ही आलतू फालतू बोलते रहते है ।
होर नहीं तो क्या , सच कहा तूने करमे की बहु । अब भोले की उम्र है भला कोई ब्याह शादी करने की , सत्तावन अट्ठावन साल का हो गया । इस उम्र में शादी करके क्या करेगा और कौन देगा इस उम्र में उसे दुल्हन । कुआरों को तो कहीं से लङकी मिलती नहीं । बंगालनें और बिहारनें खरीदते फिरते हैं । और घर में पहले से बसंत कौर है तो सही ।
हूँ और वह केसरो भी तो है घर में - बङी बहु ने पल्ले का कोना मुँह में डालकर हंसते हुए धीरे से कहा ।