Kahani Pyar ki - 13 in Hindi Fiction Stories by Dr Mehta Mansi books and stories PDF | कहानी प्यार कि - 13

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कहानी प्यार कि - 13

किंजल अनिरूद्ध को गुस्से से देख रही थी...और उसके हाथ में अनिरूद्ध का लिखा हुआ कार्ड भी था जिसे किंजल ने मरोड़ दिया था मुठ्ठी मे..

" किंजल तुम यहां कैसे मतलब .. मैंने तो संजना को ये कार्ड .." अनिरूद्ध थोड़ा घबरा गया था.. किंजल को गुस्से में देखकर..

" हा ये कार्ड मैने उठा लिया था.. तो..? तुम्हे कुछ काम था क्या संजना से ? "

" हा वो वो मुझे कुछ कॉन्ट्रैक्ट के बारे में बात करनी थी इसलिए ..? "

" हा तो फिर एसे चोरी छुपी उसे क्यों बुला रहे हो.. चलो वो कमरे में ही है हम वहा जाके उससे बात करते है .."

" नहीं.. कोई बात नहीं मे उससे बाद मे बात कर लूंगा.."

" नहीं नहीं चलो ना.. बाद में वो फ्री नहीं होंगी अभी जाते है.."

" छोड़ो ना किंजल कहा ना मे उससे बाद में मिल लूंगा.."

" तुम मेरे साथ उससे नहीं मिलना चाहते क्योंकि तुम्हे डर है कि संजना को पता चल जाएगा कि वो जिसे प्यार करती थी वो अनिरूद्ध सिन्हा नहीं पर अनिरूद्ध ओब्रॉय था और वो जिसे अनिरूद्ध ओब्रॉय समझ रही है वो एक मुखौटे के पीछे छुपा हुआ धोखेबाज , अनिरूद्ध सिन्हा जिसका कोई वजूद ही नहीं है इस दुनिया में.. क्यों ? " किंजल गुस्से में चिल्लाती हुई बोली..

अनिरूद्ध शॉक्ड था किंजल कि बाते सुनकर .. वो बस चुप खड़ा रहा और सीर जुका कर किंजल कि बाते सुन रहा था।

" इतना बड़ा धोका तुम कैसे दे सकते हो.. और तुम यहां आए क्यों हो अब ? ये सब खेल तुम क्यो खेल रहे हो..? कुछ तो बोलो ! " किंजल बस रोए जा रही थी...

" किंजल मे तुम्हे सब समझाता हूं...प्लीज़ मुझे एक मौका दो..."

" अब और क्या समझाना बाकी है ? वो है कि तुमसे कितना प्यार करती है और तुम .. तुम ने क्या किया सिर्फ उसका फायदा उठाया..! "

" नहीं एसा नहीं है.. मे भी संजना से इतना ही प्यार करता हूं .. उससे भी ज्यादा करता हूं.. तुम मुझे गलत समझ रही हो " अनिरूद्ध कि आंखो से भी आंसू बहने लगे थे..

" नहीं गलत तो पहले समझती थी अब तुम्हे सही समझ रही हूं.."

" प्लीज़ किंजल मुझे एक मौका दो सब कुछ बताने का.."

" अब तुम ये सब कल पुलिस को बताना .. मुझे नहीं.. ये पकड़ो कार्ड.. दुबारा संजना के पास भी जाने कि कोशिश मत करना समझे.. और हा आज अभी से हमारी दोस्ती ख़तम.. गुडबाय.." किंजल ने गुस्से में कहा और जाने लगी..

" किंजल .. अपने देश और प्यार के लिए तुम क्या कर सकती हो ? " अनिरूद्ध ने जोर से कहा..

ये सुनते ही किंजल रुक गई..

वो अनिरूद्ध कि तरफ मुड़ी...

" बोलो ना किंजल अपने देश और प्यार के लिए तुम क्या कर सकती हो ? "

" मे मेरे देश और प्यार के लिए कुछ भी कर सकती हूं मतलब कुछ भी.. और किसी भी हद तक जा सकती हूं.. समझे.."

ये सुनते ही अनिरूद्ध मुस्कुराने लगा..
" अब इस मे भी तुम मुस्कुरा रहे हो..? "

" तुमने कहा कि तुम किसी भी हद तक जा सकती हो तो मैंने भी तो वही किया है.. अपने देश और प्यार के खातिर मुझे ये सब जूठ बोलना पड़ा तो मैने बोला.. तो क्या मे गलत हूं ? "

" मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा है.. तुम कहना क्या चाहते हो ?

" मे भी तो पहले ये ही कह रहा था कि तुम समझ नहीं रही हो .. मेरी बात सुनने से पहले ही तुमने फैसला सुना दिया.. दोस्ती तोड़ दी..बिना ये जाने की मैंने ये सब क्यों किया .. किस हालात मे किया है ! "
ये सुनते ही किंजल एकदम चुप होकर अनिरूद्ध को देखने लगी.. और फिर रोते हुए बोली..
" क्या हुआ था अनिरूद्ध उस दिन ? एसा क्या हुआ की तुम सगाई वाले दिन गायब हो गए .. और तुम्हे अपना नाम भी संजना से छुपाना पड़ा..? "

" किंजल तुम तो जानती हो हमने साथ मे इंटर्शिप खत्म कि थी और फिर मे इंडिया आ गया था.. "

" हा.."

" उससे एक साल पहले मैंने एक रिसर्च शुरू कि थी केंसर कि दवाई के बारे में.. फिर मुझे पता चला कि अमेरिका ने ऐसी दवाई खोज ली है जो काफी हद तक केंसर मे इफेक्टिव है.. इंटर्षिप के बाद मे अमेरिका मे गया और दवाई के बारे में इंफॉर्मेशन इकट्ठी कि.. और अमेरिका कि उस फार्मा कंपनी मे जाकर उनसे भी बात कि.. "

" फिर क्या हुआ.. ? "

" मैंने उनसे ये ' Ibrance' मेडीसीन को इंडिया मे बेचने कि परमिशन मांगी.. तब तो उन्होंने मना कर दिया पर जब उन्हें पता चला कि में ही ओब्रॉय फार्मा इंडस्ट्री का ऑनर हूं तो वो मान गए .. तुम तो जानती हो .. कि इस मेडिसीन कि इंडिया मे क्या कीमत होगी.. ! इतनी महंगी दवाई सिर्फ बड़े अमीर लोग ही खरीद सकते है.. अगर हमारी गवर्नमेंट ये खरीदे तो इंडिया मे ये पचास टका कम दाम में मिल सकती है पर..."

" पर क्या ? "

" मुझे ये विश्वास है कि अगर ये दवाई गवर्नमेंट को मिली तो ये अपनी सही जगह पर नहीं पहोच सकेगी.. भ्रष्टाचारी कर्मचारी इतने है की इसकी कालाबाजारी शुरू हो जाएगी और .. पता नहीं दवाई आम आदमी तक पहुंचेगी या नहीं और पहुंचेगी तो अपने सही दाम मे नहीं.."

" हा ये तो सही है.."

" इसीलिए हमने ये डिसाइड किया कि इस मेडिसीन को हमारी कंपनी खरीदेगी और पचास टका कम दाम में जरूरतमंद लोगों तक पहुंचाएगी.. पर हम ये नहीं चाहते थे कि मेडिसीन जब तक यहां आ नहीं जाती तब तक ये बात किसीको भी पता चले... अगर पता लग गया इन मंत्री और एम एल ए को तो वो ये मेडिसीन इंडिया मे आने ही नहीं देंगे .. और अपने फायदे के लिए उसे इस्तेमाल भी करेंगे.."

" पर अभी भी मुझे सब कुछ समझ नहीं आ रहा इसमें संजना का और इन सब बातो का क्या लेना देना ..? "

" लेना देना है.. पता नहीं कैसे पर उन एम एल ए और मंत्री और कई और भी बड़े लोग है जिनको इस बारे में पता लग गया और फिर उन्होंने साजिश रचनी शुरू करदी.. "

" एम एल ए यानी कि जगदीशचंद्र त्रिपाठी जिनके बेटे के साथ हमारी संजना कि शादी हो रही है! "

" हा.. और फिर ..."
अनिरूद्ध ने सारी बात किंजल को बताने लगा... इस तरफ संजना को किंजल कहीं दिख नहीं रही थी.. वो उसे सब जगह ढूंढ रही थी..

" मा क्या आप ने किंजल को कहीं देखा ? " संजना ने रागिनी जी के पास जाते हुए कहा..

" ना बेटा वो तो तेरे पीछे गई थी फिर यहां आई ही नहीं.."

" क्या ? वो तो अपने कमरे में भी नहीं थी.."

" यही कही होंगी.. आ जाएगी.."

" हा.. " बोलकर संजना ऊपर कि तरफ आने लगी..

किंजल हैरान थी ये सब सुनकर..उसकी आंखो से आसू बहने लगे थे.. उसने तुरंत अनिरूद्ध को गले लगा लिया..

" आई एम वेरी सोरी अनिरूद्ध मैने तुमको गलत समझा.. मुझे ये सब नहीं कहना चाहिए था.. कैसे कर लेते हो इतना सब कुछ कैसे? कोई इतना प्यार कैसे कर सकता है ? "

अनिरूद्ध ये सुनकर मुस्कुराया..
" इसमें तुम्हारी कोई गलती नहीं थी.. तुम्हारी जगह पर में होता तो में भी एसे ही रिएक्ट करता.."

" तुम्हारे साथ इतना सब कुछ हो गया और तुमने किसीको कुछ पता भी नहीं लगने दिया..! और मुझे तो उस एम एल ए और उस हरदेव पर इतना गुस्सा आ रहा है कि मन करता है अभी जाके दोनो को पुलिस के हवाले कर दू.. इतना कैसे गिर सकते है लोग..! "

" ये.. सब पैसे का खेल है.. पर हमे गुस्से से नहीं दिमाग़ से काम लेना है.. उन लोगो को उनकी सही जगह पर पहुंचाना है.. और जो चीज़े उन्होंने बिगाड़ी है उन्हे ठीक भी तो करनी है..और सबसे ज्यादा इंपॉर्टेंट संजना को उनसे बचाना है..."

" हा तुम टेंशन मत लो अनिरूद्ध मे तुम्हारे साथ हूं.. उनकी तो हम एसी बेंड बजाएंगे ना कि उनको अपनी परनानी याद आ जाएगी.."

" हा बिल्कुल.. "

" पर अब संजना को कल सब सच बता देना हा.."

" मे तो आज ही बताने वाला था यहां.. पर.. संजना कि जगह तुम आ गई.."

" अरे ! अब मुझे क्या पता था कि तुम हो ! अब मातारानी कि मरजी होगी.. मुझे यहां लाने में.."

" हा ये तो सही है.. अब मुझे तुमसे छुपना नहीं पड़ेगा " ये सुनते ही दोनो हसने लगे..

" हा.. चलो अब कल आ जाना वो अनिरूद्ध ओब्रॉय बनकर.. और हा उस लॉलीपॉप को भी लेते आना..और चाहो तो अपनी फैमिली को भी.. आफ्टर ओल तुम्हारी हल्दी जो है.."

ये सुनते ही अनिरूद्ध मुस्कुराने लगा..थोड़ा लाल भी हो गया था.. अपनी हल्दी के बारे में सोचकर..

" आय हाय.. तुम तो शर्मा रहे हो..! "

" एसा कुछ नहीं है हा.. वो बस बड़ी खुशी हो रही है.. कि कल मे संजना को हल्दी लगा पाऊंगा.."

" ओह.. मे तेरी हेल्प करूंगी.. तू देख लेना एसा कुछ करूंगी ना कि तुम दोनो एक दुसरे को हल्दी लगा पाओगे.. और वो भी किसी को बिना पता चले.. "

" थैंक यू किंजल.. थैंक यू सो मच.. तुम अब साथ हो तो थोड़ा सुकुन मिल रहा है.."

" अपना थैंक यू अपने पास ही रखो हा.. और अब तुम बिल्कुल टेंशन मत लेना संजना के साथ मे हूं.. "

" हा.."

" अरे अब जाओ अपने घर पूरी रात यही रुकने का इरादा है क्या.."

" ओह हा.. कल मिलते है "

तभी दोनो को किसी के वहा आने कि आवाज सुनाई दी..
" किंजल .. तुम यहां क्या कर रही हो ? " संजना ने वहा आते हुए कहा..

संजना को अचानक वहा देखकर किंजल घबरा गई.. उसे लगा कि आज वो और अनिरूद्ध दोनो पकड़े गए..

" तुझे पूछ रही हूं.. एसे क्या घूर रही है ? "

" वो..वो तो बस हम."

" क्या हम ? और भी था यहां कोई ? "

ये सुनते ही किंजल ने पीछे देखा तो अनिरूद्ध वहा पर नहीं था... अनिरूद्ध जाके टंकी के पीछे छुप गया था..

" नहीं नहीं .. मे ही थी.. बस थोड़ी हवा खाने यहां आ गई थी.."

" बता के तो जाती.. मे कब से तूझे ढूंढ रही हूं.. चल अब नीचे.. "

" हा..."

किंजल और संजना जाने लगी.. तभी हवा का जोका आया और संजना कि चुनरी टंकी के पास उड़ कर गिरि..

संजना उसे लेने के लिए टंकी के पास जाने लगी.. किंजल भी नहीं जानती थी कि अनिरूद्ध वहा पर छुपा हुआ है.. अनिरूद्ध ने जैसे देखा की संजना उस और आ रही है तो वो थोड़ा पीछे हो गया..

तभी संजना ने आके अपनी चुनरी उठा ली और कंधे पे डाल ली हवा के कारण चुनरी अनिरूद्ध के उपर आने लगी.. अनिरूद्ध ने जल्दी से चुनरी पकड़ी और अपने माथे पर से हटा ली.. संजना को यह अहसास हुआ कि जैसे किसीने उसकी चुनरी पकड़ी हो... और ये अहसास भी कुछ जाना पहचाना लग रहा था.. दोनो ही एक दूसरे के इतने करीब होने का अहसास महसूस कर पा रहे थे जैसे उनका प्यार उन्हे खींच रहा हो..


🥰 क्रमशः 🥰