do you know me in Hindi Anything by Saroj Prajapati books and stories PDF | क्या आप मुझे जानती हो!

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क्या आप मुझे जानती हो!

" मम्मी! अगर आज आप मेरे एनुअल डे फंक्शन में नहीं आई तो मैं आपसे कभी बात नहीं करूंगी ।" माधवी की दस साल की बेटी दिशा बोली।
" अच्छा बाबा आज मैं और तेरे पापा ज़रूर आएंगे । छुट्टी ले ली है आज हमने ।"
" सच मम्मा ! " कहते हुए वो उससे लिपट गई । माधवी उसे प्यार करते हुए बोली "अरे चलो अब। नहीं तो स्कूल बस छूट जाएगी ।"
सच बचपन में माता- पिता से बढ़कर बच्चों के लिए और कोई नही। माधवी भी तो स्कूल के हर कार्यक्रम में अपने पैरेंट्स का कैसे इंतजार करती थी ।

माधवी व उसके पति समय पर आयोजन स्थल पर पहुंच गए । थोड़ी ही देर में पूरा हाल खचाखच भर गया । तभी मुख्य अतिथि के नाम के साथ ही उनके आने की उद्घोषणा हुई ।
माधवी की नज़रे उस ओर ही जम गई जहां से मुख्य अतिथि को आना था । " अरे ! यह तो शर्मा अंकल और आंटी है ।" माधवी उन्हें देख खुशी से चहकते हुए बोली ।

" कौन शर्मा अंकल ?" माधवी के पति ने पूछा ।
" बनारस में यह हमारे पड़ोसी थे ।" माधवी ने उत्साहित हो उन्हें बताया ।
"लेकिन मैने तो कभी इन्हे वहां नहीं देखा !" वो बोले ।
" अरे!! अब ये वहां नहीं रहते । मेरी शादी से कुछ दिन पहले ही अंकल की प्रमोशन हो गई थी और वो दिल्ली आ गए थे।"

तभी कार्यक्रम शुरू हो गया । लेकिन माधवी तो जैसे पुराने दिनों में खो गई थी । अंकल ,आंटी और उनके बच्चों के साथ बिताया वक्त उन्हें देखते ही फिर से उसकी आंखों के सामने घूमने लगा ।सच कितने अच्छे दिन थे वो !
" कहां खोई हो ! देखो दिशा है स्टेज पर ।"
कितना अच्छा डांस कर रही थी दिशा। उसकी आंखो को देख माधवी समझ गई थी कि वो उसे ही ढूंढ़ रही है । उसने अपना हाथ हवा में लहरा दिया । पता नहीं उसने देखा या नहीं पर उसे एक तसल्ली ज़रूर मिली ।

कार्यक्रम समाप्त होते ही वह अंकल- आंटी से मिलने दौड़ी। सच मायके की ओर से कोई भी मिल जाए तो उससे मिलने का सुख क्या होता ये शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता । जब वह वहां पहुंची तो अंकल नहीं थे ।
उसने आगे बढ़ आंटी को नमस्ते करते हुए कहा " आंटी , पहचाना क्या !" उन्होंने अजीब तरीके से माधवी की ओर देखते हुए कहा " मैंने आपको पहचाना नहीं!! क्या आप मुझे जानती हो!!" सुनकर माधवी को अजीब लगा। फिर भी वह उनकी मुश्किल आसान करते हुए बोली "मैं माधवी । राधेश्याम जी की बेटी । बनारस में हम पड़ोसी थे ।"
" लगता है ,आपको कोई गलतफहमी हुई है । मैं किसी राधेश्याम जी को नहीं जानती और ना हम कभी बनारस में रहते थे ।" माधवी कुछ ओर कहती । इससे पहले ही वो उठ कर चली गई ।
उनकी बातें सुन उसे इतनी शर्मिंदगी महसूस हुई कि वह अपने पति से आंखे नहीं मिला पा रही थी । माधवी का पति उसकी हालत समझ गया था, इसलिए बात संभालते हुए बोले " कोई बात नहीं माधवी। हो सकता है इतने साल बीत गए हैं , इसलिए वो तुम्हे पहचान ना पाई हो । चलो शर्मा अंकल जी से मिल लो ।शायद वो तुम्हें पहचान ले!"
" रहने दो राजीव ।जब इंसान की आंखों पर घमंड का पर्दा पड़ जाता है तो वो चाहकर भी किसी को नहीं पहचान पाता ।" कहकर भरी नजरों से माधवी अपनी बेटी को लेने चल दी।
सरोज ✍️