कहानी अब तक :- एक बरसात की रात में ठीक दस बजकर बावन मिनट में एक रईस परिवार में एक बच्चे का जन्म होता है, जिसका नाम कुणाल है। लेकिन कुणाल को दर्द नहीं होता,जिसकी वजह से उसकी चिंता में उसकी माँ पागल होती जा रही है, और एक दिन उसे लेकर वो घर से भाग जाती है।
ठीक कुणाल के जन्म के दिन ही, उसी वक़्त ही, उसी शहर में लेकिन दूसरे हिस्से जो कि घाटियों की तरफ़ पड़ता है वहां एक और अजीब सी चीज़ अपने आप ही जन्म लेता है। उसकी बनावट थोड़ी बहुत कुत्ते और बिल्ली से मिलती जुलती है। वो बेहद घिनौना है, और अभी तक उसने घाटी के बहुत से लोगों को मौत के घाट उतार दिया है। घाटी के लोगों ने उसका नाम घिनु रखा है, क्योंकि थोड़े ही दिनों पहले वहां का एक पालतू कुत्ता जिसका नाम घिनु था वो पागल होकर मर चुका था। वो भी अपने पागलपन में लोगों पर घातक हमले करता था। लोगों को लगा कि वो कुत्ते का ही प्रेत है, जो और भयानक रुप में लौट आया है। लेकिन असल में वो क्या चीज़ है, ये एक गहरा रहस्य है।
इसी घाटी में करीब बीस वर्ष पहले एक बंगाली परिवार रहा करता था। पति पत्नी और एक बेटी जिसकी मौत घर में हो रहे पूजा के दौरन कुएं में गिरकर हो गयी थी। संयोग से कुएं से उसकी लाश को निकालते वक़्त उसके कुछ बाल कुएं के सीढ़ियों में फंसा रह गया था और उसकी गुड़िया भी कुएं में ही रह गयी थी। उसके मौत के करीब एक साल बाद उसकी माँ को घर मे, खाने में हर जगह बालों के गुच्छे मिलते है, वे इतने अधिक होते है कि उसकी माँ यानी नीलिमा जी परेशान होकर ख़ुद के ही बाल काट लेती है। लेकिन इसके बावजूद सुब्रोतो दास यानी कि मरी हुई लड़की के पिता को दाल में बालों के गुच्छे मिलते है। इस बात से नीलिमा जी और ज़्यादा हैरान हो जाती है की घर में उन दोनों के अलावे कोई नहीं रहता और उन्होंने ख़ुद ही अपने बाल काट लिए है फ़िर लंबे बालों के गुच्छे घर में अब भी कहाँ से आ रहे है..?
ख़ैर कहानी वर्तमान में आती है जहां फ़िर से लोगों को घाटी में बाल दिखने लगे। यहाँ वहां हर जगह, फ़र्क बस इतना था कि अब इन बालों में छोटे, उड़ने वाले भूरे रंग के कीड़े भी दिखने लगे है, जिस तरफ़ अभी भी लोगों का ध्यान नहीं गया था। लेकिन ये कीड़े बड़ी चालाकी से लोगों के घरों में डेरा जमा रहे थे। घिनु अब पहले से ज़्यादा निडर हो गया है, दिन में वो अक्सर उसी कुएं के भीतर रहता जहां कभी नीलिमा और सुब्रोतो दास की बेटी प्रज्ञा डूबकर मरी थी। लेकिन रात बिरात वो लोगों के बीच दिखने लगा था। ये ख़बर उड़ते उड़ते अगल बगल के कई शहरों में भी जा पहुँची थी। जिसकी वजह से रेस्क्यू टीम और पत्रकारिता के लोग अक्सर इस गाँव मे आ जाते थे। उन्हें अनुमान था कि घिनु जरूर कोई नई प्रजाति का जंगली जानवर था। बेचारे.....सच्चाई से कितने दूर थे।
इसी वक़्त दूर किसी अनजान देश मे कोई बूढा बैठा एक किताब पढ़ रहा होता है जिसका नाम "श्राप" था। बूढा किताब पढ़ने के बाद ख़ुद की बनाई एक कैलेंडर निकालता है, एक तारीख़ ढूंढता। और कहता है कि वे दोनों जन्म ले चुके है।
अब आगे :-
रात के करीब ढाई बज रहे थे। इलाका बेहद सुनसान और हौलनाक नजऱ आ रहा था। दूर दूर तक फैले गन्ने और भुट्टे के खेत सायं सायं बहती हवा में ऐसे लहरा रहे थे, जैसे कोई डर से थर थर कांप रहा हो। ये एक प्राइवेट वेन था, जिसमें चार जने लगभग एक दूसरे से चिपके बैठे थे। अभी अभी खेतों के बीच उन्होंने जो देखा था वो सामान्य तो बिल्कुल नहीं था। वे वेन के भीतर थे, और नाईट विजन्स कैमरे से अपने चारों तरफ़ नजऱ रख रहे थे। लाख रोकने की कोशिश की थी लिली ने लेकिन एक दबी सी डरी हुई चीख़ उसके मुँह से निकल ही गयी। उसने ही तो सबसे पहले उसे देखा था। वो जो खेतो के बीच बैठा रो रहा था। उसकी आँखें लाल थी और आँखों को देखकर ऐसा लगता जैसे वो अंधेरे कालीन को भेदकर उन्हीं की तरफ़ स्पष्ट देख रहा हो।
हवा में बदबू ऐसी फैल रही थी कि कनक ने तो वेन में रखें डस्टबिन में उल्टी तक कर डाली थी। माहौल अजीब सा मनहूस होता जा रहा था। तभी जावेद ने हिम्मत दिखाई उसने अमर से सेफ्टी जैकेट मांगी जो अमर ने ख़ुद पहनी हुई थी। उन्होंने एक दूसरे की तरफ़ देखा और आँखों ही आँखों मे कहा :- " हा वे सब यहां से खाली हाथ नहीं लौट सकते। ये अजीब सी चीज को अगर उन्होंने अपने कैमरे में रिकॉर्ड कर लिया तो उनके सामान्य से चैनल को धडाधड आगे बढ़ने में कोई नहीं रोक सकता। उन्हें ये खतरा मोल लेना ही होगा।
कनक ने कैमेरा संभाला,अमर ने सेफ्टी के तौर पर हाथ मे लाठी और तेज़ रौशनी देने वाले टोर्च ले लिए। जावेद सबसे आगे था, जो वॉइस दे रहा था। लिली अभी भी सदमे में थी इसलिए उसे ड्राइविंग सीट पर बिल्कुल रेडी रहने को बोला गया था, जरां सा भी खतरा दिखता तो वे चारों यहां से भाग जाने वाले थे। जावेद खुसुर पुसुर के लहज़े में बोलता जा रहा था,....
" दोस्तों, हमारे साथ जुड़े रहिये, आज हम आप सबको एक ऐसी चीज़ दिखाने जा रहे है, जिसे आज तक विज्ञान भी नहीं ढूंढ पाया। पता नहीं ये किस हद तक ख़तरनाक हो सकता है..? लेकिन इसे आप सब के बीच लाने की जोहमत सिर्फ़ हमारा चैनल ही ले रहा है, इसलिए बग़ैर हिले और बग़ैर पलकें झपकाएं मोबाइल,लैपटॉप या टीवी के स्क्रीन पर नजरें गड़ाकर रखिये"।
वे सभी आहिस्ते आहिस्ते कदम आगे बढ़ा रहे थे, ज़रा सी भी चूक होती तो तीनों की जान पर बात आ सकती थी। आख़िर गाँव के लोगों से उन्होंने सुन रखा था कि ये चीज़ कितनी खतरनाक है। कनक ने फ़ोकस जावेद पर ही कर रखा था। अमर उधर देख रहा था जिधर कुछ ही देर पहले उन्हें वो दिखा था। हालांकि उसके रोने की आवाज़ अब भी कुछ घुटी घुटी सी सुनाई दे रही थी। लेकिन फ़िलहाल दिखना बंद ही था।
सूखे पत्तियों से भरे खेत के पतले पगडंडियों में सम्भलकर चलना बेहद संघर्षो से भरा था। लाख कोशिशों के बाद भी उनके कदमों की आहट वातावरण में फैल ही जाती थी। रात का अंधेरा, खेतों में बैठे छोटे बड़े जानवरों की आवाज़ से माहौल और भयानक होता जा रहा था। मेढकों की टर्र टर्र और झींगुरों की आवाज़ तो लगता जैसे कान में बस ही गये थे। वे जितनी भी दूर जा रहे थे ये आवाज़ उनके साथ साथ चली जा रही थी।
और तभी कुछ हलचल हुई। खेतों के बीच बना वो एक छोटा सा गढ्ढे जैसा था। कह सकते है एक बेहद छोटी तालाब। जिसमें किसान बारिश का पानी जमा करते है, ताकि गर्मियों में थोड़ी तो राहत मिलें। उसी पानी में कुछ गिरने की आवाज़ आयी। कनक ने कैमरा उधर ही घुमा लिया। जावेद और अमर भी बड़े ग़ौर से उधर देखने लगे। लेकिन काफ़ी देर तक उन्हें वहां कुछ नहीं मिला। तब जावेद ने कहा " लगता है, पानी मे कोई बड़ी मछली होगी जिसके उछलने पर ऐसी आवाज़ हुई। अक्सर पानी में रहने वाली बड़ी मछलियां जब छोटी मछलियों को खाती है तो इसी तरह उनके उछलने की आवाज़ आती है। हमें आगे बढ़ना चाहिए"।
कनक ने कैमरे की दिशा अभी बदली ही थी कि अचानक उसके हाथों से कैमरा छुटकर नीचे जा गिरा। अमर ने जब आगे की तरफ़ टोर्च मारा तो वो अजीब सी चीज यानी घिनु उनसे महज़ चार कदम की दूरी पर खड़ा था। उसकी जीभ बाहर की तरफ़ निकली हुई थी, जिसमें से कुछ बेहद घिनौना सा तरह पदार्थ टपक रहा था। उसकी आंखें बिल्कुल लाल थी। सीने की तरफ़ की चमड़ी जहां लचीला और गीलापन लिए हुए था, वहीं पीछे से वो गंदे बालों से भरा था। चेहरे में नाक नहीं था। होंठ पता नहीं थे भी की नहीं इस वक़्त तो बस उसके लम्बे नुकीले दांत दिख रहे थे।
कनक को कुछ समझ नहीं आया कुछ देर तक तो वो सदमे से घिनु को देखती रही फ़िर अचानक ही वो पीछे की तरफ़ भागने लगी। बस यहीं बात घिनु को पसंद नही आई और वो बिजली की तेज़ी से कनक की तरफ़ दौड़ा और पीछे से उसके कंधे पर कुद पड़ा। कनक पल भर में वहीं ढ़ेर हो गयी। देखते ही देखते चबर चबर की एक घिनौनी आवाज़ आयी और अमर और और जावेद को समझते देर नहीं लगी कि वो घिनु कनक के जिस्म का मांस चबा रहा था।
उन दोनों ने एक दूसरे की तरफ़ देखा, फ़िर मुड़कर अपने वेन की तरफ़ देखने लगे जो अभी उनसे करीब पांच सौ मीटर की दूरी पर था। जावेद ने इशारे से अमर को ना भागने के लिए कहा। लेकिन ख़ौफ़ के मारे अमर ने भी वहीं ग़लती की जो कनक ने की थी। घिनु ने उसके साथ भी वहीं किया, अभी दस कदम भी तो आगे नहीं बढ़ पाया था वो जब पीछे से घिनु ने उसकी गर्दन पर हमला किया था। गर्दन की चटकने की एक जोरदार आवाज़ से जावेद ने अपने कानों पर हाथ रख लिया था।
कई मिनटों तक वो वहीं खड़ा रहा। और अपने दोस्तों को तड़प तड़प कर मरते हुए देखता रहा। वो ईश्वर का शुक्रियादा कर रहा था कि लिली उनके साथ यहां नहीं आयी। ये बात सिर्फ़ वहीं जानता था कि वो दिल ही दिल में लिली को प्यार करता था। अभी वो ख़ुद को मरने के लिए तैयार ही कर रहा था कि एक बार फ़िर घिनु जावेद के करीब आकर खड़ा हो गया। जावेद ने अपनी मुठ्ठियां भींच ली और सख़्ती से आंखें बंद कर ली। उसके अंदर ऐसे अहसास थे कि वो ख़ुद ही घिनु के आगे ख़ुद को परोस रहा हो।
लेकिन तभी एक गुर्राहट से भरी विचित्र आवाज़ में घिनु ने जावेद से पूछा " सुनो..!! मेरी मदद करोगे..?"
जावेद ने आँखें खोली और इस बात पर यकीन करने की कोशिश करता रहा कि ये जानवर बोलता भी है। उसे देखने मात्र से जावेद को ऐसा लग रहा था कि इस घिनौने चीज़ के आगे पल भर टिकने से बेहतर होगा कि वो यहां से भाग जाएं और उसके हाथों ही मर जाये। लेकिन अपनी इस इच्छा को मारते हुए ही सही जावेद ने अपने सर को "हाँ" की दिशा में हिला दिया। घिनु को मदद के लिए हां कहने वाला जावेद पहला इंसान था।
घिनु के चेहरे में एक अजीब सी मासूमियत उतर आई। जैसे कि वो महज़ एक डेढ़ साल का नासमझ बच्चा हो।
क्रमश :_ Deva sonkar