और शादी अच्छे माहौल में हुई।पिताजी ने न जाने क्या जादू चलाया की लड़की के पिता ने थड़े में थाली में 5100 रु डाले थे।यह बात आज से 55 साल पुरानी है।उनका समस्या को हल करने का अपना तरीका था।
मेरे मामा नीरस किस्म के आदमी थे।मै जब पिताजी थे तब उनके साथ जरूर ननसार गया था।पिताजी की मृतुयु के बाद शायद एक या दो बार ही जा पाया था।वो भी कोई शादी होती तभी आते थे।वैसे कभी नही और उनके बच्चे बड़े हो गए तब वो ही आने लगे थे।
समय किसी के न रहने से रुकता नही है।न ही जीवन ठहरता है।जाने वाले के साथ कोई नही जाता।और पिताजी के बिना हमारा जीवन चक्र चलने लगा।पिताजी के गुज़रने के समय मेरी उम्र 19 साल की थी।और फिर सन 70 की अप्रेल में मेरा परमानेंट पोस्टिंग का पत्र आ गया।मैं आर पी एफ में जाना चाहता था लेकिन मुझे कोचिंग क्लर्क के पद पर नियुक्ति दी गई थी।मुझे ढाई महीने की ट्रेनिंग के लिए उदयपुर जाना था।
मैं चाहता था।मां और भाई बहन परीक्षा खत्म होने के बाद गांव बसवा चले जाएं।लेकिन मा बांदीकुई जाना चाहती थी।बांदीकुई में ताऊजी का बड़ा घर था।और पिताजी की मृतुयु के समय ताऊजी कह गए थे।बांदीकुई आ जाना और मेरे उदयपुर जाने के बाद मेरा परिवार क्वाटर खाली करके बांदीकुई चला गया था।
मुझे 9 अप्रेल को उदयपुर जाना था।10 अप्रेल से ट्रेनिंग शुरू थी।मुझे आर पी एफ स्टाफ ने ट्रेन में बैठा दिया था।उदयपुर फोन कर दिया था।रात को ट्रेन उदयपुर पहुंची थी।मुझे आर पी एफ स्टाफ ने रात को उदयपुर स्टेशन पर वेटिंग रूम में रोका था।सुबह तांगा कर के ट्रेनिंग सेंटर भेज दिया।वहाँ पर होस्टल में रूम अलॉट हो गया और किताबे मिल गयी थी।
सुबह 8 बजे से चार बजे तक क्लास लगती थी।हम एक कमरे में चार लोग थे।हमारा बेच काफी छोटा था।इसमें कोई फ्रेश केन्डिटेट नही था।हम 9 लड़के अनुकम्पा पर और 6 प्रमोशन वाले थे।
वहां जाने पर मुझे शाम को फूफाजी के घर जाने का विचार आया।फूफाजी यानी श्री एच एल चौधरी।पिताजी ने सन 69 की ही बात है।उनकी पत्नी रानी चौधरी को अपनी धर्म बहन बनाया था।जब मैं कालेज की छुट्टी में आबूरोड आया तब पता चली थी।लेकिन मेरी मुलाकात नही हो सकी क्योकि वे लोग गांव गए हुए थे। दुबारा इसलिए नही मिल सके क्योकि उनका ट्रांसफर उदयपुर हो गया था।फूफाजी रेलवे में हेल्थ इंस्पेक्टर थे।पिताजी के गुज़र जाने पर वे आबूरोड आये थे।तब पहली बार मैने उन्हें देखा था।
उन्हें क्वाटर ट्रेनिंग सेंटर में ही मिला हुआ था।मैं शाम को गया।उस समय फूफाजी और बुआजी घर पर नही थी।मैने जाकर बड़ी लड़की से जो मेरे समकक्ष थी पूछा था,"मम्मी कहाँ है?"
"आप कौन?"
"मैं और बातो से वह मुझे पहचान गयी।बड़ी लड़की प्रवीणा छोटी सीमा और बेटे का नाम सुरेश।और मैं घुल मिल गया था उनसे।रोज शाम को मैं क्वाटर पर चला जाता और रात को दूध पीने के बाद ही अपने कमरे में लौटता था।उन दिनों रविवार की छुट्टी रहती थी।उदयपुर अजमेर मण्डल में आता था।सिन्हा साहब ए एस ओ थे।वे जब उदयपुर आये तब वाईस प्रिंसिपल से मेरे बारे में बोल गए थे।