Mamta ki Pariksha - 51 in Hindi Fiction Stories by राज कुमार कांदु books and stories PDF | ममता की परीक्षा - 51

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ममता की परीक्षा - 51



जमनादास को पानी और एक कटोरे में गुड़ की डली देने के बाद साधना भी वहीँ उनके सामने ही जमीन पर बैठ गई। जमनादास उसको देखता ही रह गया।
शहर में उसने जिस साधना को देखा था उससे काफी हद तक लगी उसे गाँव में मिली यह साधना। कहाँ वह सलवार सूट और करीने से दुपट्टा लिये हुए, किताबें सीने से लगाए एक कॉलेज की छात्रा और कहाँ सुदूर गाँव में साड़ी में जमीन पर बैठी ठेठ देसी पहनावे के साथ मिट्टी के साथ ही अपने संस्कारों से भी गहराई से जुड़ी एक ग्रामीण बाला का रूप। इस देसी पहनावे में उसकी सुंदरता और निखर गई थी। गजब की खूबसूरत लग रही थी। करीने से सँवारे गए बाल और गूँथी हुई चोटी के साथ ही सिर के मध्य से निकाली गई माँग की खूबसूरती सिंदूर की वजह से कई गुना बढ़ गई थी।

साधना शायद जमनादास की निगाहों को देखकर उसके मन में उठनेवाले सवालों का अनुमान लगा चुकी थी। उसको अपनी तरफ देखते पाकर आखिर उसने टोक ही दिया, "कैसे हो जमना ? और इस तरह क्या देख रहे हो ? मैं वही हूँ जिसे तुम जानते थे ...साधना !"
झेंपते हुए जमनादास ने अपनी निगाहें घुमा लिया, "हाँ .. हाँ ..म.. मैं ...ठीक ..हूँ ! क.. क .. कैसे नहीं पहचानूँगा तुम्हें साधना ?.. लेकिन ....!" जानबूझकर जमनादास ने अपनी बात अधूरी छोड़ दी।

" लेकिन क्या...जमना ?.. लेकिन क्या ..?" साधना जमनादास के मुँह से लेकिन सुनकर कुछ सशंकित हो उठी थी। तभी अचानक जैसे साधना को उसके निगाहों की भाषा समझ में आ गई हो। मुँह पर रहस्यमयी मुस्कान के साथ वह बोली, "अब मैं समझी।.. तुम ये कहना चाहते हो कि अब मैं बदली हुई सी दिख रही हूँ ! तो भाई मेरे तुम सही सोच रहे हो। तुमने आज से पहले गाँव की साधना को कॉलेज की छात्रा के रूप में देखा था और आज की साधना गाँव की एक युवती के रूप में तुम्हारे सामने है। बदली हुई तो रहेगी ही न ?" कहने के साथ ही साधना खिलखिलाकर हँस पड़ी।

उसके साथ ही गोपाल और जमना भी हँस पड़े। साधना की निश्छल हँसी जमना के मन को अंदर तक भेद गई। कुछ देर तक तीनों आपस में बातें करते हुए कॉलेज के दिनों की यादें ताजा करते रहे। बात बात में ही गोपाल ने अपनी और साधना की शादी के बारे में उसे बताने के बाद कहा, "सचमुच जमना ! मैं तेरा अहसानमंद हूँ। तूने मेरी कितनी सहायता की थी ..!" कहते हुए वह हँस पड़ा और अगले ही पल गंभीर होकर बोला, "और साथ ही खुशकिस्मत भी कि मुझे साधना जैसी खूबसूरत , शालीन, नेक और समझदार लड़की पत्नी के रूप में मिली है। मैं बहुत खुश हूँ जमना, सचमुच मैं बहुत खुश हूँ !"
" खुश है तू ? ..तेरी ख़ुशी खोखली है गोपाल ! ऐसा क्या है यहाँ जिसके सहारे तू अपनी जिंदगी बिता देना चाहता है ? कुछ भी तो नहीं ! ..ये गाँव है तेरा शहर नहीं जहाँ की हर सुख सुविधा का तू आदि है.. और यहाँ गाँव में ? ..गाँव में क्या तू वो सुविधाएँ पा सकेगा जिनका तू अभ्यस्त है ? ..नहीं !..कदापि नहीं। ये गाँव है और तू गाँववालों के साथ ज्यादा दिन कीड़े मकोड़ों की जिंदगी नहीं जी सकता गोपाल, वाकई तू ज्यादा दिन यहाँ नहीं रह सकता।..और फिर यहाँ न बिजली है न तफरीह की कोई जगह , और न मनोरंजन की ही कोई जगह तो फिर क्या है यहाँ जिसके सहारे जिया जा सके ?" जमना बोलते बोलते थोड़ा तैश में आ गया था।

साधना को उसकी बात बिलकुल नागवार गुजरी थी। वह कुछ बोलने ही जा रही थी कि तभी गोपाल की आवाज सुनकर चुप रह गई जो जमना से बड़ी शांति के साथ बोल रहा था, " तू नहीं समझेगा जमना !..क्योंकि तूने कभी प्यार नहीं किया है। ..तू जानना चाहता है न कि क्या है यहाँ ?.. तो सुन ..यहाँ मेरी जिंदगी मेरा प्यार मेरी धड़कन मेरा सबकुछ मेरी पत्नी साधना मेरे साथ है जिसका मोल दुनिया की पूरी दौलत भी नहीं हो सकती। फिर उस अदने से शहर की क्या बिसात है जिसकी गलियों में भटकते हुए अपनी जिंदगी के बीस कीमती वर्ष हमने मुफ्त में गँवा दिए। अब तो अफसोस होता है उस बीती हुई जिंदगी पर। सचमुच मैं यहाँ बड़ा खुश हूँ। सुंदर समझदार पत्नी के अलावा पिता तुल्य बाबूजी भी मिल गए हैं मुझे यहाँ। पूरे गाँव का लाडला दामाद हूँ मैं। इतनी इज्जत जिसके बारे में तू सोच भी नहीं सकता ये गाँववाले मेरी करते हैं। आज इस घर से ही नहीं इस पूरे गाँव से मैं रिश्ते की एक अदृश्य डोर से इस तरह जकड़ गया हूँ कि इस प्रेम की डोर को तोड़ने का ख्याल भी मन में नहीं ला सकता। ये बहुत बड़ा पाप होगा ! इतने लोगों के स्नेह और साधना के प्यार के साथ भगवान ने अगर मुझे कुछ दिनों की ही जिंदगी भी बख्श दी तो मैं उनका शुक्रगुजार रहूँगा। वो गाना तो तुमने सूना ही होगा 'सौ बरस की जिंदगी से अच्छे हैं, अच्छे हैं,.. प्यार के दो चार दिन ! ' बस ईश्वर से यही प्रार्थना है कि मुझे सौ बरस की जिंदगी की बजाय प्यार के वही दो चार पल मुहैया कराते रहें। ..खैर ये तो हुई मेरी बात ! चल अपनी बता।"

जमनादास भी मुस्कुराते हुए बोला, "अरे, मुझे क्या होना है गोपाल ? ठीक हूँ ! ..बस मुझे तो तेरी ही कमी महसूस हो रही थी, लेकिन मेरे अलावा भी कोई है जो तुम्हें प्यार करता है और तुम्हें याद भी करता है।" कहकर वह एक पल को रुक गया। वह इस बात पर गोपाल की प्रतिक्रिया देखना चाहता था, लेकिन गोपाल तो निर्विकार था, बिल्कुल भावहीन चेहरा। ऐसा लग रहा था जैसे उसने कुछ सुना ही न हो।
कुछ देर बाद जमनादास ने आगे कहना शुरू किया, "..और वो और कोई नहीं,.. तेरी माँ है पगले ! तुझे अपनी माँ की बिलकुल याद नहीं आई ? कम से कम फोन पर बात ही कर लिया होता। उन्हें तो पता भी नहीं कि तू यहाँ चैन की बंसी बजा रहा है। वह ममता की मारी माँ बेचारी रो रो कर इस फ़िक्र में अपना हाल बुरा कर चुकी है कि पता नहीं उसका लाडला कहाँ होगा, किस हाल में होगा ? खाना खाया होगा कि नहीं ? पिछले पंद्रह दिनों से वह पलंग पर ही लेटी हुई है। डॉक्टरों की तमाम कोशिशों के बावजूद उसकी तबियत ठीक नहीं हो रही है। मुझसे उसकी दशा देखी नहीं गई इसलिये मैंने हॉस्टल जाकर वहाँ के वार्डेन से साधना के गाँव का पता लिया और गाड़ी लेकर निकल पड़ा। किसी तरह यहाँ तक पहुँचा हूँ। गाड़ी गाँव के चौराहे से पहले ही खड़ी कर आया हूँ। इन तंग गलियों में गाड़ी लाना मुनासिब नहीं था इसलिये।"

कुछ पल के लिए वह पुनः रुका। समीप ही रखे लोटे से पानी पीने के बाद उसने साधना की तरफ देखा जिसके चेहरे पर चिंता की लकीरें साफ़ दिख रही थीं और गोपाल के कंधे पर हाथ रखते हुए धीमे से बोला, "चल यार, अपनी माँ को बचा ले ! डॉक्टर का कहना है कि तेरे जाने से उन्हें जो ख़ुशी मिलेगी वही उनके लिए सबसे बढ़िया दवाई साबित होगी। चल फटाफट तैयार हो जा। मैं तुझे लेने आया हूँ !"

" तू मेरा जिगरी दोस्त है यार जमना ! मैं तेरी बात कभी नहीं टाल सकता, लेकिन इस बात के लिए मुझे माफ़ कर दे यार ! मेरी इतनी बड़ी परीक्षा न ले। मुझे इतना भी मत आजमा कि मैं टूट ही जाऊँ या मैं मैं ही न रह पाऊँ। अव्वल तो मुझे इस कहानी पर यकीन नहीं कि मेरी माँ मेरे लिए बीमार है। वह बीमार होगी इससे इंकार नहीं क्योंकि मैं भगवान के बाद तुम्हारा ही यकीन करता हूँ, लेकिन यह भी तो हो सकता है कि तुम्हें कोई गलतफहमी हो गई हो कि वह मेरी वजह से बीमार है। बचपन से जिसने कभी एक माँ की तरह प्यार से मेरे सिर पर हाथ न फेरा हो, मैंने खाया कि नहीं यह न पूछा हो , आज उसे मेरे खाने पीने की फ़िक्र हो रही है और वो भी इस कदर कि बीमार हो गई सुनकर ठहाके लगाने का जी कर रहा है। इससे बड़ा मजाक और क्या हो सकता है यार ! लेकिन मैं तेरी भावनाओं की कद्र करता हूँ। तूने इतनी जहमत उठाकर साधना का पता ढूंढा और इतना मुश्किल रास्ता तय करके यहाँ तक पहुँचा इसके लिये मैं तेरा अहसानमंद रहूँगा। ..लेकिन चाहे जो हो जाय मेरा यहाँ से जाना अब बिलकुल भी संभव नहीं है। सुना तुमने जमनादास ! मैं किसी भी हाल में अब 'अग्रवाल विला ' की सीढ़ियों पर दुबारा कदम नहीं रखूँगा, यह मेरा प्रण है।" कहते हुए गोपाल की साँसें तेज हो गई थीं।

क्रमशः