Apanag - 36 in Hindi Fiction Stories by Pranava Bharti books and stories PDF | अपंग - 36

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अपंग - 36

36

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'बड़ी तेज़ लड़की है 'सक्सेना ने सोचा लेकिन वह कुछ कह नहीं सकता था | उसने गर्दन हिलाकर कहा ;

"ठीक है, जैसा आप उचित समझें ---मैं शाम को सब रेकॉर्ड्स भिजवा दूँगा --|"

"जी, बेहतर, शुक्रिया ---" भानु ने सक्सेना का चेहरा पढ़ते हुए कहा |

"चलिए बाबा, काफी देर बैठे आप ---" भानु ने बाबा का हाथ पकड़ा और बाहर जाने लगी |

दरवाज़े तक सक्सेना छोड़ने आया तो बाबा ने उसके कंधे पर हाथ रखकर कहा ;

"ये मेरी इकलौती संतान है --जैसा ये चाहेगी --आफ़्टर ऑल, तुम जानते हो --"

"जी---जी---" सक्सेना के मुख से आवाज़ कितनी धीमी होकर निकल रही थी | भानु ने सोचा, कुछ तो गड़बड़ है |

ड्राइवर बाहर ही खड़ा था | भानु कुछ नहीं बोली | कुछ देर में वे घर पहुँच गए, उसका मन फ़ैक्ट्री में ही अटका हुआ था | उसे लगा, इतने श्रम से बाबा ने इसे संभाला अब उसका ऐसा अव्यवस्थित रूप देखकर उसे अच्छा नहीं ही लगना था |

"बाबा, एक बात पूछूं ?" घर पहुँचकर भानु ने सोचते हुए कहा |

"हाँ, बोल न --"

"मुझे ये सक्सेना कुछ ठीक आदमी नहीं लग रहा---|"

"अब तू ही बता क्या करूँ ? तुम लोग यहाँ होते तो और बात होती | अब किसी पर तो विश्वास करना ही होगा | मैं तो कितने दिनों से अपनी अस्वस्थता की वजह से ध्यान दे ही नहीं पाया--पुराने मैनेजर गुप्ता जी जब अचानक चल बसे तो मुझे तो किसीको व्यवस्था के लिए रखना ही था ---" भानु को लगा जैसे बाबा भी सक्सेना से ख़ुश तो नहीं थे |

"मगर, हमारे प्रोडक्शन मैनेजर थे न --उन्हें क्यों नहीं सौंपा आपने सब कुछ ?"

"वो तो बड़ा खरा आदमी था पर पंडित सदाचारी ने ---|"बाबा चुप हो गए |

"ओह ! यहाँ भी सदाचारी ! ये कहाँ तक पसरा हुआ है ?" भानु के मन में उसका नाम सुनते ही आक्रोश से भर उठा | झुँझलाहट उसके चेहरे पर पसर गई |

"वो ऐसा हुआ न बेटा, जब तेरे बाबा बीमार हो गए तब मुझे कुछ समझ में नहीं आया और मैं भागी-भागी पंडित जी के पास गई --और कोई सूझा ही नहीं मुझे |" फिर कुछ रूककर बोलीं;

"अब कहीं आते-जाते नहीं न वे ---तो ---"

"ज़रुरत क्या है उन्हें ---लेकिन पूरी दुनिया में आपको सदाचारी ही मिला ?" वह भुनभुनाई |

"बस--यही तो बात है इस जेनेरेशन की --थोड़ा पढ़-लिख क्या लेते हैं तो---"

भानु का मन हुआ अपना माथा पीट ले, ये उसकी माँ उसकी बात ही नहीं समझतीं अब तक ? अपने संस्कारों के वशीभूत वह कुछ कहा भी नहीं सकती |उसका मन दुखी हो गया |

"ठीक है, बोलो माँ ---" भानु ने अपने को एक तरफ रखा और माँ की ओर मुखातिब हुई |

"सारा मूड खराब कर दिया ---" वाक़ई माँ का मूड बिफरा हुआ था |

"अब बोलिये, क्या कह रही थीं --प्लीज़ "

"तुम भी न, तुम्हें पहले से ही पता है ये पंडित सदाचारी को पसंद नहीं करती |" बाबा ने भी माँ से गुस्सा होकर कहा |

"पंडित को उसके गुणों से पसंद किया जाता है, सूरत से नहीं ---" माँ नाराज़ ही थीं |

" अब गुस्सा छोडो न माँ, बताओ --"गन तो जानती ही थी उसके, तभी तो ---

वाक़ई उस समय माँ का मूड भयंकर था | भानु उन्हें मानसिक कष्ट नहीं देना चाहती थी } भानु ने माँ की बहुत लल्लो-चप्पो की तो उनहोंने अपना मुँह खोला और जो उनहोंने बताया उसका सार कुछ यूँ था कि बाबा उस समय शनि की चपेट में थे और भानु पर भी कड़ा ग्रह था |पूरा परिवार ही उसकी चपेट में आ सकता था | उनहोंने यह भी बताया था कि प्रोडक्शन ऑफिसर को प्रमोशन देने से स्थिति और भी बिगड़ सकती थी | इसीलिए उन्होंने कुछ पूजा-पाठ करवाया और सक्सेना जी को मैनेजरी के लिए भेजा | अब घर के शुभ के लिए तो करना ही था ---" माँ भुनभुन करती हुई वहाँ से चली गईं |

"पूजा-पाठ भी सदाचारी ने ही करवाया था ?"

"कहाँ बेटी, उनके पास टाइम कहाँ है, जब से एम.एल.ए बने हैं | हाँ, उन्होंने किसी का इंतज़ाम कर दिया था | जनता की सेवा में व्यस्त रहते हैं --"

"हाँ, सो तो है, जनता की सेवा तो करते हैं, खूब!अभी क्या पहले से करते ही आए हैं|"भानुमति मारे आक्रोश के लाल हुई जा रही थी |

"बेटा, मुझे भी कुछ ख़ास पसंद तो है नहीं ये पंडित-वंडित --पर तुझे पता है न तेरी माँ कितनी घबराती हैं --ऊपर से हम बिलकुल ही अकेले पड़ गए थे | "

अब भानु की समझ में पूरी सेटिंग आ चुकी थी | उसने फ़ैक्ट्री का नं डायल किया |