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लाखी का तो भानु के पास से अपने घर जाने का मन ही नहीं होता था लेकिन जाना तो था ही वरना उसका पति मार-मारकर उसका कचूमर बना देता | उसको जाना पड़ा फिर भानु की कई सहेलियाँ आ गईं और भानु उनसे गप्पें मारने में व्यस्त हो गई |
बहुत देर तक चाय-पानी, नाश्ता चलता रहा और कल्चरल कार्यक्रमों में जाने के प्रोग्राम तय होते रहे | मुन्ने की तो कोई चिंता ही नहीं थी भानु को | अब तो मुन्ना उसे देखकर उसकी ओर बाहें भी नहीं फैलाता था |
"अरे ! वहाँ जाकर मुश्किल हो जाएगी, रोएगा बच्चा ---"
"माँ, जब जाऊँगी तब देखा जाएगा | अभी तो नहीं जा रही न !"भानु के मुँह से निकल गया |
"अरे इसका पापा भी है वहाँ, अपने दोस्तों में इसके पापा को मत भूल जाना --" बाबा ने हँसकर कहा |
"हाँ, बाबा --पता है न, आप लोग भी बात को इतना बड़ा ईशू क्यों बना देते हैं |" और खूब ज़ोर से हँस पड़ी |
वह कुछ देर चुप रही फिर बाबा से बोली ;
"बाबा ! एक बात कहना चाहती थी |"
"हाँ, कह न --"
"बाबा, मैं चाहती हूँ कि लाखी कुछ पढ़ ले ---"
"पर तेरे चाहने से क्या होता है ?"
"मेरा मतलब है --"
"मैं तेरा मतलब समझ गया बेटी पर तू जानती है उसका आदमी बड़ा बेहूदा है |"
"इसीलिए तो ---"
"सो तो ठीक है पर क्या वो पढ़ने देगा उसको ?"
"देखिए, बाबा लाखी की पढ़ने की इच्छा है तो क्यों न हम उसका प्राइवेट फॉर्म भरवा दें, सीधे दसवीं का --?"
"देख ले बेटा, सोच ले, तू तो चली जाएगी, कहीं उसकी आफ़त न आ जाए | कहीं ऐसा न हो कि वह लाखी को मारे-पीटे ---"
भानुमति ने कुछ उत्तर नहीं दिया जैसे लाखी की तकदीर वैसे ही उसकी तकदीर ! एकदम चुप्पी भरी !हम अपनी तकदीरें पलटने की सिर्फ़ बातें ही कर सकते हैं किन्तु वास्तविकता तो यह है कि हम सिर्फ़ बातें ही कर सकते हैं | हम डोलते-डालते, लड़खड़ाते हुए उन्हीं रास्तों पर चलते जाएँगे जो हमारे भाग्य में सामने आ जाते हैं | क्रांति करके अपने भाग्य को बदलने का प्रयास नहीं कर सकते ?
भानुमति सोचती, अच्छी-बुराई हर किसी में होती है, कहाँ नहीं होती ?
मनुष्य गलतियाँ करता है, ठीक है पर उन्हें समझना भी तो उसीको पड़ेगा न ! संभलना तो उसको ही होगा, वह कहाँ संभाल पा रही थी किसी को ? अपनी खुद की मिसाल उसके सामने थी | उसके सामने एक तरफ़ उसका पति था जिसके बारे में भानु ने कितना अलग सोचा था और रिचार्ड जिसके बारे में उसने और ही कुछ सोचा था अब उसके बारे में उसकी सोच बिलकुल ही बदल गई थी | यानि दोनों के लिए सोचा गया उल्टा ही निकला न !
रिचार्ड के बारे में 'एज़ ए पर्सन' उसको पता चल गया था कि वह कितना शरीफ़ और संवेदनशील व्यक्ति था !
रिचार्ड से उसकी मानसिक मित्रता थी हालाँकि वह भानु की ओर कितना अधिक आकर्षित था | वह जानता था कि शरीर के रूप में वह भानुमति से कुछ भी नहीं पा सकेगा लेकिन फिर भी वह उसका सही मायनों में 'वैल -विशर ' था, उसका सच्चा मित्र था | भानुमति ने अपने प्रति उसकी आसक्ति महसूस की थी | कभी-कभी उसे खुद से ही डर लगने लगता, अपना झुकाव उसकी और देखकर | कहीं ---? स्वाभाविक भी था | कुछ हो भी जाता तो अनहोनी तो नहीं हो जाती |मनुष्य मन की ये बड़ी स्वाभाविक स्थितियाँ होती हैं | और वह भी एक मनुष्य ही तो थी जिसे प्यार व स्नेह की प्यास थी |उसकी प्रबल इच्छा शक्ति उसे रिचार्ड की ओर ले जाने से रोक लेती | यदि वह राजेश के समय उसकी इच्छा-शक्ति काम करती तो ---? वह इस सबमें न फँसती लेकिन उसका भाग्य !