Apanag - 32 in Hindi Fiction Stories by Pranava Bharti books and stories PDF | अपंग - 32

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अपंग - 32

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उस समय माँ-बाबा भी उसकी बात कहाँ समझ पाए थे | 

माँ को भानु की बात बड़ी नागवार गुज़री थी और उन्होंने बिना यह सोचे कि किशोरी बच्ची के मन पर इस सबका क्या असर पड़ेगा ? उस पर ही अपनी नाराज़गी दिखा दी थी | भानु को उस समय बहुत खराब लगा था | काफ़ी दिनों तक सदाचारी पंडित जी उनके घर पूजा-पाठ करवाने आते रहे, उसके बाद भानु माँ-बाबा के बहुत कहने पर भी कभी पंडित जी के पास पूजा में बैठने नहीं आई थी | माँ-बाबा सोचते, उनकी बच्ची ज़िद्दी है | उन्हें उसकी किशोरावस्था से यौवनावस्था में जाती हुई संवेदना के विषय में गंभीरता से सोचना है, ऐसा कभी उन्होंने नहीं सोचा जबकि भानु को आज तक लगता रहा था कि उसके शिक्षित माँ-बाबा का ध्यान उस महत्वपूर्ण बात पर क्यों नहीं गया था ? कुछ दिन बाद पता चला कि सदाचारी ने पंडिताई छोड़ दी थी और चुनाव में खड़ा हो गया था | अपना पूजा -पाठ का पेशा ही समाप्त कर दिया था | 

"क्या सोचने लगीं दीदी ?" लाखी ने उससे पूछा तो उसका ध्यान भंग हुआ | 

" कुच्छ नहीं --अच्छा फिर तू मिलती रही बद्री से ?" 

" हाँ, दीदी, वो कुम्हारे के पिछवाड़े हम घंटों बैठे रहते थे | वह मुझसे कहता था कि मैं अपने बापू से कुछ समय मांग लूँ फिर वह पैसे जमा करके मेरे बापू को पैसे देकर मुझे ब्याहकर ले जाएगा | वह मुझसे ब्याह कर लेगा और फिर हम दोनों आराम से रहेंगे |" उसने बताया |

"तो फिर क्या हो गया ? तू बापू से बात नहीं कर पाई ?" भानु ने पूछा | 

" दीदी, इतने दिनों बापू शराब के बिना कैसे रह सकता था | माँ तो काम करती ही थी पर उससे किसी तरह घर का काम चल जाता या बापू की शराब आ जाती | वहीं ठेके पर उसे शामू ड्राइवर मिल गया | वह इसे शराब पिलाता और दिन ब दिन इसका दिमाग खाली होता रहता | बस, इसे अपनी शराब के लिए सोने की मुर्गी मिल गई थी | अब इससे अच्छा क्या हो सकता था कि ये मेरा ब्याह उससे कर दे | बापू को तो बस पैसे और शराब से मतलब था, बेटी जाए भाड़ में | उसने वही किया और उस बुड्ढे से मुझे ब्याह कर दिया | सारा खर्चा शामू ने ही किया, बापू की न हींग काजी फिटकरी और उसकी पाव बारा हो गईं | 

एक दिन नशे की झौंक में बापू ने अपनी शेखी बघारते हुए शामू को बता दिया कि उसने अपनी सुंदर और छोटी सी प्यारी बेटी को उसके हाथ में दिया है |वो कुछ दिन रुक जाता तो उसकी बेटी अपनी पसंद के लड़के से बात कर लेती | बस, फिर क्या था, वह हर रोज़ बापू को शराब पिलाकर और उसके साथ पीकर अत और केरी कुटाई करता और मुझ पर ज़ुल्म ढाता, मेरे बदन का कचूमर निकल देता, लात-घूंसे तो रोज़ाना की बात हो ही गई थी |तबसे लेकर आज तक वही सब चल रहा है | वह फिर सुबककर रोने लगी थी | 

भानुमति ने उसे अपनी गोदी में समेत लिया आउट थपथपाकर सांत्वना दी | परन्तु, सच बात तो यह थी कि वह और नही असहज हो गई थी |अब ज़ंदगियों की तुलना उसके समक्ष थी | भारत की संस्कृति और सभ्यता की पैदावार ज़िंदगियां जिनमें जन्मजात भारतीयता थी, जिनमें पुराणों और वेदों का समन्वय था और जिन्हें था गीता का विशवास ! भनु इन सबकी परिभाषा ढूंढने में लग गई अपनी बुद्धि, विश्वास तथा अनुभव के हिसाब से ! 

ये वही भारत और उसकी भारतीयता थी जिसके लिए न जाने कितने यशोगान गए जाते रहे हैं, ये वही भारतीय बौद्धिक स्टार के पंडित (गुरुजन) थे जिनके समक्ष बड़े से बड़े नरेश भी नतमस्तक रहते थे | ये वो ही भारतीय पति थे जो अपनी अर्धांगिनी के मन-सम्मान की रक्षा के लिए प्राणों की बाज़ी लगा देते थे और ये वे ही बार्ट के माता-पिता थे जो बालकों को सदाचारिता की घुट्टी पिलाते थे | अब ये सब कहाँ खड़े थे ? कहाँ ? उस स्थान का नांमधून्ध रही थी भानुमति !उस स्थान की परिभाषा ढूंढ रही थी | उस भारत की वह सौंधी, पावन धरती ढूंढ रही थी जहाँ कहा जाता है राम, कृष्ण जन्मे थे, सीता, गार्गी, मदालसा जन्मीं थीं ---

आज हुई है आँख शर्म से पानी-पानी 

आज फूँक डाली है तुमने हर कुर्बानी 

अपने ही घवालों को नंगा कर तुमने 

आज मोल ले ली है अपनी ही बदनामी ---

आज हुआ क्या ? 

तुम्हें हुआ क्या ?_--