Baate adhuri si - 6 in Hindi Fiction Stories by Priyanka Taank Bhati books and stories PDF | बाते अधूरी सी... - भाग ६

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बाते अधूरी सी... - भाग ६

सिद्दार्थ की अचानक रात को दो बजे नींद खुली, वो पेन अब भी उसके हाथ की मुट्ठी में लिपटी हुई थी, उसे देख कर वो एकदम चौंक गया, लेकिन फिर उसे याद आया की ही पेन आंचल का है.

उसने नाईट लैंप की रोशनी में उसे एक बार फिर ध्यान से देखा, उसे लगा की उस पेन को खोल कर उसे देखना चाहिए आखिर उस पेपर में क्या है जो उसे आंचल में इस तरह पेन के अंदर लपेट कर रखा है.

सिद्धार्थ धीरे से उस पेन को खोल कर देखता है, एक ब्लू कलर का पेपर जिस पर ब्लैक कलर से एक स्कैच बना हुआ है, एक लड़का और एक लड़की का स्कैच, जिसके आस पास कुछ किताबो के स्कैच भी बने है और दोनो एक दूसरे का हाथ पकड़ कर बैठे है, नीचे लिखा है "कल दो बजे कॉलेज लाइब्रेरी में". और नीचे बारीक अक्षरों में कल की डेट लिखी है.

इसका क्या मतलब है?? ये तो आज की ही डेट लिखी है, मतलब आज दोपहर दो बजे लाइब्रेरी में, आखिर मतलब क्या है इसका?? मुझे कॉलेज में पता लगाना होगा, जरूर आंचल लाइब्रेरी में दो बजे आने वाली होगी, लेकिन ये इस तरह इस पेपर में क्यू लिखा है?? कही ये लड़की पागल वागल तो नही हैं न??

सिद्धार्थ ने उस पेपर को वापस पेन में रख दिया और पेन वापस लॉक कर दी, उसने उस पेन को अपने बैग में रख लिया, सिद्दार्थ ने रोहन को फोन लगाकर सारी बात बतानी चाही, लेकिन इतनी रात को उसे फोन लगाने पर उसे सिर्फ रोहन की गालियां ही मिलनी थी, इसलिए उसने रोहन को फोन भी नही लगाया, काफी देर तक वो आकांक्षा के बारे में सोचता रहा, और सुबह सुबह चार बजे उसे नींद आई.

लेट सोने के कारण सुबह उसकी नींद काफी देर से खुली, रोहन तो उसे छोड़ कर कॉलेज जा भी चुका था, जब वह रेडी हो कर नीचे आया तब उसकी मॉम ने उसे बताया की रोहन आ कर जा भी चुका है, सिद्दार्थ भी जल्दी से कॉलेज के लिए निकल गया.

लगभग दो घंटे फुटबॉल प्रैक्टिस करने के बाद वह लाइब्रेरी में गया, उसे पूरा यकीन था की आकांक्षा उसे यही मिलेगी, और शायद वह अकेली नहीं रहेगी शायद उसके साथ कोई और भी होगा.

सिद्धार्थ जैसे ही लाइब्रेरी में गया वहा उसे ज्यादा स्टूडेंट्स दिखाई नहीं दिए क्युकी बहुत से स्टूडेंट्स अपनी अपनी प्रैक्टिस में बिजी थे और जिन्हे किसी कंपीटीशन में हिस्सा नहीं लेना था वे कॉलेज आने में इंटरेस्टेड ही नही थे इसलिए सिद्धार्थ को वहा ज्यादा स्टूडेंट्स नही मिले, कॉलेज की लाइब्रेरी काफी बड़ी थी, उसने लाइब्रेरी को अच्छे से चेक किया, बीच बीच में वो बुक्स भी ढूंढता रहा ताकि किसी को उस पर शक न हो, लेकिन सिद्धार्थ को वहा आकांक्षा मिली ही नहीं.

अब तक दोपहर के ढाई बज चुके थे इसलिए सिद्धार्थ ने कुछ देर वही रुकने का फैसला किया शायद आकांक्षा आ जाए, अब तक लाइब्रेरी में बैठे सभी स्टूडेंट्स भी जा चुके थे सिवाय सिद्धार्थ को छोड़ कर, लगभग दस मिनिट बाद उसे वहा किसी के आने का आभास हुआ लेकिन जो भी शख्स आया था ना वह में गेट से नही बल्कि पीछे वाले छोटे गेट से आया था, और बुक्स के सबसे लास्ट वाले सेल्फ की तरफ तेजी से बढ़ गया था.

लास्ट वाले सेल्फ पर ज्यादा उसे में आने वाली बुक्स नही रखी रहती थी इसलिए वहा की रोशनी बहुत हल्की थी, सिद्दार्थ ने गौर से देखा सेल्फ के पीछे वाली दीवार से टीक कर आकांक्षा बैठी हुई थी.

सिद्धार्थ आकांक्षा की सारी हरकते देख रहा था, वह दीवार से सिर टिकाए बैठी थी और बार बार अपनी घड़ी में टाइम देख रही थी फिर दरवाजे के तरफ देख रही थी, दरवाजा थोड़ा सा खुला हुआ था, सिद्दार्थ बुक सेल्फ के पीछे छिपा हुआ था, लाइट ज्यादा न होने के कारण आकांक्षा को सिद्धार्थ दिखाई भी नही दिया, कुछ देर ऐसे ही बैठे रहने के बाद आकांक्षा अचानक खड़ी हो गई, और हवा में ही गले लगते हुए बोली- एकांश कितनी देर लगा दी तुमने मेने तुम्हे कहा था ना की ठीक दो बजे आ जाना अब देखो तुम पूरे पैंतालिस मिनट लेट हो इतना बोलकर वह हाथ बांध कर थोड़ा नाराजगी में खड़ी हो गई, फिर बोलने लगी खेर छोड़ो देखो मैं तुम्हारे लिए क्या लाई हूं, इतना बोल कर उसने अपने बैग से एक टिफिन बॉक्स निकाला और उसे सामने की तरफ कर दिया जहा पर सिद्धार्थ के हिसाब से तो कोई नही था, पर आकांक्षा तो जैसे किसी परछाई से ही बाते किए जा रही थी, इतने में आकांक्षा ने चौंकते हुए कहा- पता है एकांश तुमने जो पेन मुझे दिया था ना वो मुझसे कही गुम हो गया अब मैं केसे याद रखूंगी की तुमसे केसे और कहा मिलना है, आकांक्षा ने रूआंसा होते हुए कहा.

आकांक्षा अपनी ही बातो में मग्न थी, सिद्दार्थ उसकी एक एक बाते गौर से सुन रहा था, जैसे ही उसने पेन का जिक्र किया सिद्धार्थ बुरी तरह सकपका गया, सिद्दार्थ ने कुछ सोचा और धीरे से पेन को आकांक्षा की तरफ फर्श पर लुढ़का दी.

पेन धीरे धीरे लुढ़कती हुई आकांक्षा से जा टकराई, आकांक्षा ने उस पेन को हाथ में उठा कर देखा, अरे ये तो वही पेन है, एकांश ये कहा से आई?? बोलते हुए उसने उसी दिशा में देखा जहा से पेन आई थी.

अब सिद्धार्थ आकांक्षा के सामने था और उसे बड़ी गौर से देख रहा था, तुम आकांक्षा हो ना? किस्से बाते कर रही हो तुम? यहां तो कोई नही है, फिर इतनी देर से तुम किस एकांश से बाते कर रही हो? सिद्धार्थ ने आकांक्षा से बड़े ही आश्चर्य से पूछा.

तुम वही हो ना जो कल फुटबॉल ग्राउंड में मिले थे? क्या चाहिए तुम्हे? कल भी तुम मुझसे कुछ बोलना चाह रहे थे, देखा था मैंने तुम्हे, और... और ... मेरा पेन तुम्हारे पास कैसे आया?? आकांक्षा ने सिद्धार्थ को बिना जवाब दिए ही अपना सवाल पूछ लिया.

पहले मैंने जो पूछा है उसका जवाब दो, अब सिद्धार्थ ने थोड़ा परेशान होते हुए पूछा.

तुम्हे क्या प्राब्लम है, तुम्हे क्या मतलब मैं किसी से भी बाते करू, आकांक्षा ने सिद्धार्थ से गुस्से में पूछा.

मैं जानना चाहता हु, सिद्दार्थ ने सख्ती दिखाते हुए कहा.
मैने तुम्हे कुछ दिनों पहले हील स्टेशन पर भी देखा था, तुम अपनी डायरी में कुछ लिख रही थी, मुझे लगा तुम सुसाइड नोट लिख रही हो, वहा हील स्टेशन के सुसाइड प्वाइंट पर बैठ कर आखिर तुम कर क्या रही थी?? मुझे अच्छी तरह याद है वो तुम ही थी, सिद्दार्थ ने जल्दी जल्दी अपनी सारी बाते कही थी, उसे इस तरह बोलते देख आकांक्षा उसे एकदम गौर से और परेशान होते हुए देखने लगी.

कुछ देर ऐसे ही उसे देखते रहने के बाद आकांक्षा ने अपना बैग उठाया, और वहा से तेज़ी से बाहर जाने लगी.

उसे जाता देख सिद्धार्थ भी उसके पीछे पीछे चला गया और एक झटके से उसका हाथ पकड़ कर उसे रोकते हुए बोला- मैं जवाब लिए बगैर तुम्हें यहां से नहीं जाने दूंगा।

आकांक्षा अब बेहद गुस्से में अपना हाथ छुड़ाते हुए, जोर से चिल्लाकर बोली- क्या मतलब है तुम्हे मुझसे? क्यू मेरा पीछा कर रहे हो? तुम्हे उन्हीं लोगों ने मेरा पीछा करने के लिए कहा है ना? अब आकांक्षा रोने लगी थी, वह रोते हुए ही बोली- कह देना उन लोगो से वो कितनी भी कोशिश कर ले मैं उन्हें कुछ बताने वाली नही हूं. इतना कहकर आकांक्षा लाइब्रेरी से दौड़ते हुए बाहर निकल गई.