Tom Kaka Ki Kutia - 46 in Hindi Fiction Stories by Harriet Beecher Stowe books and stories PDF | टॉम काका की कुटिया - 46

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टॉम काका की कुटिया - 46

46 - टॉम काका के बलिदान का सुफल

जार्ज शेल्वी ने अपने घर लौटने के कुछ ही दिन पहले अपनी माता को जो पत्र लिखा था, उसमें केवल अपने घर पहुँचने की तारीख के सिवा और किसी बात की चर्चा नहीं की थी। टॉम की मृत्यु का समाचार देने की उसकी हिम्मत न पड़ी। कई बार उसने लेखनी उठाई कि टॉम की मृत्यु के समय की घटनाएँ विस्तार से लिखे, पर कलम उठाते ही उसका हृदय शोक से भर जाता था। दोनों आँखों में आँसू बहने लगते थे। वह तुरंत कागज को फाड़कर फेंक देता था और कलम एक ओर को रखकर आँसू पोंछते हुए अलग जाकर हृदय को शांत करने की चेष्टा करता था।

 जिस दिन जार्ज ने घर पहुँचने को लिखा था, उस दिन घर के लोग बड़ी प्रसन्नता से उसके आने की बाट जोह रहे थे। सबको आशा थी कि आज वह टॉम काका को साथ लेकर लौटेगा।

 तीसरे पहर का समय था। मिसेज शेल्वी कमरे में बैठी हुई थीं। क्लोई पास खड़ी भोजन की मेज पर काँटा-चम्मच सजा रही थी। क्लोई आज बड़ी प्रसन्न थी। पाँच बरस बाद लज्जा के दर्शन होंगे। आज क्लोई एक-एक चीज को पाँच-पाँच बार सजाती थी। मिसेज शेल्वी से वह इस विषय पर बातें करना चाहती थी। मेज के किस तरफ किस कुर्सी पर जार्ज बैठेगा, इत्यादि विषयों पर मालकिन से तरह-तरह की बातें हो रही थीं। अंत में क्लोई बोली - "मेम साहब, मिस्टर जार्ज की चिट्ठी आई है?"

 मेम ने कहा - "हाँ आई तो है, लेकिन एक ही लाइन की है। बस आज पहुँचने की बात लिखी है।"

 क्लोई बोली - "मेरे बूढ़े की कोई बात नहीं लिखी?"

 "नहीं, क्लोई!"

 क्लोई ने उदास होकर कहा - "मिस्टर जार्ज की तो यह पुरानी आदत है। उन्हें ज्यादा लिखना पसंद नहीं। सब बातें सामने ही कहना उन्हें अच्छा लगता है।"

 क्लोई थोड़ी देर को अपने में खो गई। फिर बोली - "मेरा बूढ़ा घर आकर लड़कों को नहीं पहचान सकेगा। लड़की को भी मुश्किल से पहचानेगा। उसको ले गए तब तो यह बहुत छोटी थी। अब कितनी बड़ी हो गई। पोली जैसी भोली है वैसी ही चालाक भी है। मैं भोजन बनाकर इधर-उधर चली जाती हूँ तो वह बैठी भोजन की रखवाली किया करती है। आज मैंने ठीक वैसा ही भोजन बनाया है, जैसा बूढ़े को ले जानेवाले दिन बनाया था। हे परमेश्वर! उस दिन मेरा जी कैसा करने लगा था।"

 मिसेज शेल्वी ने क्लोई की बातें सुनकर ठंडी साँस ली। उसे अपने हृदय पर बड़ा बोझ-सा जान पड़ा। उसका मन उचट गया। जब से उसे अपने पुत्र का पत्र मिला था, उसी दिन से उसके मन से तरह-तरह की शंकाएँ उठ रही थीं। वह सोचती थी कि जार्ज के पत्र में टॉम की बात न लिखने का कोई-न-कोई विशेष कारण होगा।

 क्लोई ने कहा - "मेम साहब, मेरे भाड़े के रुपयों के बिल मँगा रखे हैं न?"

 "हाँ, मँगाए पड़े हैं।"

 "मैं बूढ़े को ये रुपए दिखलाऊँगी।"

 फिर क्लोई ने उल्लास से कहा - "उसे मालूम होगा कि मैंने कितने रुपए पाए हैं। वह मिठाईवाला मुझे और कुछ दिन वहाँ रहने को कहता था। मैं रह भी जाती, लेकिन बूढ़े के आने के कारण मेरा मन वहाँ नहीं लगा। मिठाईवाला आदमी बड़ा अच्छा है।"

 क्लोई अपने कमाए रुपए दिखाने के लिए बड़ा आग्रह करती थी। मिसेज शेल्वी ने उसके संतोष के लिए उसके बिल और उसमें लिखे रुपए वहाँ ला रखे थे।

 क्लोई फिर कहने लगी - "बूढ़ा पोली को नहीं पहचान सकेगा। कैसे पहचानेगा?"

 "ओफ, उसको गए पाँच बरस हो गए। तब तो पोली बहुत छोटी थी। जरा-जरा खड़ा होना सीखती थी। चलने के समय उसे गिरते-पड़ते देखकर बूढ़ा कैसा खुश होता था। तुरंत दौड़कर उसे गोद में उठा लेता था। वाह!"

 इसी समय गाड़ी के पहियों की घड़घड़ाहट सुनाई दी। "मास्टर जार्ज!" कहते हुए क्लोई खिड़की पर दौड़ गई। मिसेज शेल्वी ने शीघ्र बाहर आकर पुत्र को छाती से लगा लिया।

 जार्ज ने वहाँ क्लोई को खड़े देखते ही उसके दोनों काले हाथ अपने हाथों में लेकर कहा - "दुखिया क्लोई चाची! मैं तुमसे क्या कहूँ! मैं अपना सब-कुछ देकर भी टॉम को ला सकता तो ले आता, पर... वह तो ईश्वर के यहाँ चला गया!"

 मिसेज शेल्वी हाहाकर कर उठीं, पर क्लोई कुछ न बोली।

 सबने घर में प्रवेश किया। वे रुपए, जिनके लिए क्लोई बहुत गर्वित थी, उस समय भी मेज पर पड़े हुए थे।

 क्लोई ने उन रुपयों को बटोरकर काँपते हुए हाथों से मेम के सामने रखकर कहा - "मैं अब कभी इन रुपयों को नहीं देखना चाहती हूँ, न इनकी बात ही सुनना चाहती हूँ। मैं पहले से जानती थी कि अंत में यही होना है। खेतवालों ने उसका खून कर डाला!"

 क्लोई यह कहकर घर से बाहर चल दी। मिसेज शेल्वी उठीं और उसे हाथ से पकड़ लाकर अपने पास बिठाते हुए बोली - "मेरी दुखिया क्लोई!"

 क्लोई उसके कंधे पर सिर रखकर रोती हुई कहने लगी - "मुझे क्षमा कीजिए... मेरा दिल टुकड़े-टुकड़े हो गया है।"

 मिसेज शेल्वी ने कहा - "मैं यह जानती हूँ। मेरे पास सामर्थ्य नहीं कि तुम्हारी इस व्यथा को शांत कर सकूँ, पर ईश्वर समर्थ है, वह सब कर सकता है। वह टूटे हुए हृदय को जोड़ सकता है और हृदय में लगे हुए घावों को भर सकता है।"

 कुछ देर बाद वहाँ सभी आँसू बहा रहे थे। अंत में जार्ज उस शोकातुर विधवा के पास आकर बैठ गया और उसके हाथ अपने हाथों में लेकर गदगद कंठ से उसके लज्जा की वीरोचित मृत्यु की घटना सुनाने लगा।

 टॉम ने उसके लिए जो प्रेम-संदेश भेजा था, वह भी कह सुनाया।

 इसके कोई एक महीने बाद एक दिन प्रात:काल शेल्वी साहब के घर के सारे दास-दासी अपने नए मालिक की आज्ञानुसार कमरे में इकट्ठे हुए। कुछ देर बाद सबने बड़े विस्मय से देखा कि जार्ज कागजों का एक बंडल हाथ में लिए हुए वहाँ आया। उसने प्रत्येक के हाथ में एक-एक कागज देकर बताया कि यह उनकी दासता से मुक्ति का प्रमाण-पत्र है। आज उसने सारे गुलामों को गुलामी की जंजीर से मुक्त कर दिया।

 उसने हर एक के सामने उसका प्रमाण-पत्र पढ़कर सुनाया। दास-दासी आनंदमग्न होकर रोने लगे। कोई-कोई शोर मचाने लगे और उनमें से ही कितनों को इस घटना से बड़ी चिंता हुई। वे उस कागज को वापस ले लेने का अनुरोध करने लगे। बोले - "हम जितने आजाद हैं, उससे ज्यादा आजादी नहीं चाहते। हम लोग इस घर को, मेम साहब को और आपको छोड़कर कहीं भी नहीं जाना चाहते।"

 जार्ज उन लोगों को सारी बातें अच्छी तरह समझाने का यत्न करने लगा, पर वे सब उसकी बात को अनसुनी करके कहने लगे - "हम लोग यहाँ से नहीं जाएँगे।" अंत में जब सब चुप हो गए तब जार्ज ने कहा - "गुलामी से छूटकर तुम लोगों को हमारा घर छोड़कर जाने की जरूरत नहीं है। यहाँ पहले जितने नौकरों की आवशकयता थी, अब भी उतनी ही है। घर में जो काम पहले था, वही अब भी है। पर अब तुम लोग पूरी तरह आजाद हो। मैं अब तुम लोगों से तय करके तुम्हें महीने-महीने नौकरी दूँगा। तुम लोगों को आजाद कर देने से तुम्हारा लाभ यह हुआ कि मान लो, अगर मैं किसी का कर्जदार हो जाऊँ या मर जाऊँ, तो तुम्हें कोई पकड़ ले जाकर बेच नहीं सकेगा। मैं अपना काम अपने-आप चलाऊँगा और तुम लोगों को यह बताने का यत्न करूँगा कि इस मिली हुई आजादी का कैसे सदुपयोग करना चाहिए। आशा है कि तुम लोग चरित्रवान बनने का यत्न करोगे और पढ़ाई-लिखाई में मन लगाओगे। मुझे विश्वास है कि ईश्वर की कृपा से मैं तुम लोगों के लिए कुछ कर सकूँगा। मेरे भाइयों, आज के दिन तुमने जो अनमोल स्वाधीनता-धन पाया है, उसके लिए ईश्वर का गुणगान करो, उसे धन्यवाद दो।"

 इसके बाद जार्ज ने निम्नलिखित पद्य में अपनी भावना व्यक्त की :

 रहे अब तुम न किसी के दास!

 परवश जीवन मृत्यु सदृश है, इसमें कौन सुपास?

 किसने कब सुख पाया जग में करके पर की आस।।

 वह भी जीना क्या जीना है, यदि मन रहा उदास।

 इंगित पर औरों के नाचा, सह-सहकर उपहास।

 सुख स्वतंत्रता का अनुभव कर, होगा उर उल्लास।

 बीतेगा जीवन विनोद में, होंगे विविध विलास।।

 भय न रहा अब तुम्हें किसी का, दूर हुआ दु:ख त्रास।

 हो स्वच्छंद सुखी हो विचरो जग में बारौं मास।।

 एक बहुत ही बूढ़ा हब्शी खड़ा होकर अपने काँपते हुए हाथों को उठाकर कहने लगा - "ईश्वर का धन्यवाद है! हम सब आप की दया-दृष्टि से गुलामी की बेड़ी से मुक्त हुए हैं।" इस बूढ़े के साथ दूसरे दास-दासी भी कृतज्ञता सहित बार-बार ईश्वर की प्रार्थना करने लगे।

 प्रार्थना समाप्त होने पर जार्ज ने उन्हें टॉम की मृत्यु के समय की सारी घटनाओं का हाल सुनाकर कहा - "देखो, मुझे एक बात और कहनी है। तुम सब कृतज्ञता के साथ हमारे टॉम काका को याद करो। यह मत भूलना कि इस सौभाग्य का कारण टॉम काका ही थे। उन्होंने अपनी जान देकर आज तुम लोगों को आजादी दिलवाई। उनकी मृत्यु देखकर मेरे हृदय में बड़ी व्यथा हुई थी। मैंने वहीं उनकी समाधि पर बैठकर परमेश्वर के सामने प्रतिज्ञा की थी कि मैं भविष्य में अब कभी दास-प्रथा को आश्रय नहीं दूँगा। स्वयं कभी दास नहीं रखूँगा। मैं ऐसा नहीं करूँगा कि किसी को अपनी संतान से अलग होना पड़े। आज मेरी वह प्रतिज्ञा पूरी हुई। तुम सब स्वाधीन हुए। देखो, जब-जब स्वाधीनता के सुख से तुम्हारे हृदय में आनंद हो, तब-तब मेरे परम बंधु टॉम काका का स्मरण जरूर करना, उसके परिवार पर कृतज्ञता और प्रेम प्रकट करना और जब तक जीते रहो, तब तक टॉम काका की मिसाल सामने रखकर उस पर चलते रहना। टॉम काका का साधु जीवन ही उसका एकमात्र स्मृति-चिह्न है। तुम सब टॉम काका की भाँति चरित्रवान और धर्मपरायण होने की चेष्टा करते हुए अपने-अपने हृदय में उसका स्मृति-मंदिर बना लो!"