44 - टॉम की महायात्रा
इसके दो दिनों के बाद एक छोटी गाड़ी पर चढ़कर एक नौजवान लेग्री के यहाँ आया और झटपट गाड़ी से उतरकर वहाँ के लोगों से बोला - "मैं इस घर के मालिक से मिलना चाहता हूँ।"
यह जार्ज शेल्वी था। पाठकों को स्मरण होगा कि टॉम के नीलाम में भेजे जाने के पहले, मिस अफिलिया ने शेल्वी साहब की मेम के पास टॉम को छुड़ाने के लिए एक पत्र भेजा था। पर विधि की विडंबना देखिए, डाकखाने की गलती से वह पत्र इधर-उधर मारा-मारा फिरा और दो महीने बाद श्रीमती शेल्वी को मिला। वह टॉम के भावी अमंगल की बात सोचकर बहुत घबड़ाई।
पर इस समय उसके हाथ में टॉम की सहायता का कोई उपाय न था। उसके पति रोग-शय्या पर पड़े थे, उन्हीं की सेवा शुश्रूषा एवं काम-काज के झंझट में वह बेतरह फँसी हुई थी। कुछ दिनों बाद शेल्वी साहब इस दुनिया से कूच कर गए। इतने सारे काम का बोझ उसी के कंधों पर आ गया। उसके पति पर बहुत ऋण था, उसे चुकाने की उसे बड़ी चिंता हुई। पर उस सुशिक्षिता, सहृदया नारी का हृदय केवल स्त्री-सुलभ कोमलता, स्नेह, दया और धर्म का ही आगार न था, बल्कि काम-काज सँभालने में भी उसने अपनी असाधारण बुद्धिमत्ता का परिचय दिया। उसने कुछ हिस्सा खेत का और घर की बहुत-सी फालतू चीजें बेचकर बहुत शीघ्र ही अपने पति का सारा ऋण चुका दिया और सारे कामों का सिलसिला ठीक कर लिया। उसका तरुण पुत्र अपनी माता के सब कार्यों में हाथ बँटाने लगा।
जब सब ठीक-ठीक हो गया, तब माता और पुत्र दोनों मिलकर टॉम के उद्धार का उपाय सोचने लगे। जिस वकील ने सेंटक्लेयर के दास-दासी एवं घर का माल-असबाब बेचने का भार उठाया था, बुद्धिमती मिस अफिलिया ने अपने पत्र में उसका नाम-पता लिख दिया था। इससे टॉम के पते के लिए पहले पत्र लिखा गया, पर वह वकील टॉम के वर्तमान खरीदार का ठिकाना नहीं जानता था।
इस संवाद से माता और पुत्र को बड़ी चिंता हुई। इसके छ: महीने बाद माता के किसी काम से जार्ज शेल्वी को दक्षिण की ओर जाना पड़ा। इस अवसर पर उसने स्वयं नवअर्लिंस में आकर टॉम की खोज करने का निश्चय किया। दो महीने तक तो कहीं कुछ पता न लगा, पर अकस्मात् एक दिन एक आदमी से भेंट हो गई। उससे मालूम हुआ कि लेग्री नाम का एक आदमी उसे खरीद ले गया है। यह संवाद पाकर वह तुरंत रेड नदी में खड़े हुए एक जहाज पर सवार हो लिया और आज यहाँ पहुँचा।
लेग्री से भेंट होते ही जार्ज शेल्वी ने कहा - "मुझे पता चला है कि नवअर्लिंस से आपने टॉम नाम के एक दास को खरीदा है। वह पहले मेरे पिता के खेत में काम करता था। मैं उसे फिर खरीदने आया हूँ।"
उसकी बात सुनकर लेग्री का मुँह फीका पड़ गया। वह खीझकर बोला - "हाँ, मैंने इस नाम के एक आदमी को खरीदा है। बड़ा अच्छा सौदा निकला! ऐसा बेअदब, हठी और पाजी तो किसी ने कभी न देखा होगा। हमारे गुलामों को भड़काकर भगाता है, अभी दो दासियाँ उसकी सलाह से भाग गई हैं, जिनका दाम 800 रु या 1000 रु से कम न होगा। कहता है, उसने उन्हें भागने की सलाह दी थी। उसी की सलाह से वे भागी हैं, पर जब पता बताने को कहा गया तो उसने साफ इनकार कर दिया। इतनी मार खाने पर भी, जितनी और किसी गुलाम ने नहीं खाई होगी, उसने पता नहीं बताया। मालूम होता है, अब वह मरने बैठा। मैं नहीं कह सकता कि मरेगा या नहीं।"
ये बातें सुनकर जार्ज का चेहरा सुर्ख हो गया। उसकी आँखों से आग की चिनगारियाँ बरसने लगीं। पर झगड़ा करने में कोई अक्लमंदी न समझकर उसने केवल इतना ही पूछा - "वह कहाँ है? मैं उसे देखना चाहता हूँ।"
बाहर जो गुलाम जार्ज का घोड़ा पकड़े हुए खड़ा था, वह बोल उठा - "टॉम इसी कुटिया में है।"
लेग्री ने उस गुलाम को एक लात जमाई, पर जार्ज ने वहाँ पल भर की भी देर न की और झट से कुटिया की ओर बढ़ा।
टॉम दो दिन से इस कुटिया में पड़ा था। शारीरिक कष्ट अनुभव करने की उसकी शक्ति चली गई थी। आत्मा जीवनमुक्त हो गई थी। पर शरीर पहले खूब हष्ट-पुष्ट था, इस कारण देह-पिंजर से आत्मा सहज में बाहर नहीं होने पाती थी। इसी से अब भी उसमें प्राण बाकी था। टॉम सदा लेग्री के भूखे दास-दासियों की सहायता किया करता था, कभी-कभी स्वयं भूखा रहकर अपना आहार उन्हें दे देता था। इससे टॉम की इस दशा के कारण सब बड़े दु:खी हो रहे थे। लेग्री के डर के मारे टॉम को देखने जाने की उनकी हिम्मत न होती थी, पर रात को वे छिपकर उसकी कुटिया में जाते और यथा-शक्ति उसकी सेवा-शुश्रूषा करते थे। अधिक इनसे और क्या होता, जब-तब दो बूँद जल उसके मुख में डाल देते थे।
कासी को टॉम की विपत्ति का सब हाल मालूम हो गया। उसके दु:ख की बात जानकर उसका हृदय शोक से भर गया। टॉम ने उसके और एमेलिन के लिए ही यह अलौकिक त्याग स्वीकार किया था। यह सोचते-सोचते उसके हृदय में कृतज्ञता की लहरें उठने लगीं। वह सारी आफतों को तुच्छ समझकर पहली रात को टॉम को ही देखने के लिए उसकी कुटिया में पहुँची। टॉम अपने उस अंतिम समय में अस्फुट स्वर से कासी को स्नेहपूर्वक जो धर्मोपदेश करने लगा, उसे सुनकर उसके हृदयाकाश से निराशा का अंधकार सर्वथा दूर हो गया। वह शोकदग्ध वज्रसम कठोर हृदय पसीजकर नरम पड़ गया। वह रोती हुई प्रार्थना करती चली गई।
टॉम की कुटिया में प्रवेश करते ही उसकी दुर्दशा देखकर जार्ज को चक्कर आने लगा। उसके हृदय में गहरी चोट लगी। वह टॉम के बगल में घुटनों के बल बैठकर जोर से बोला - "क्या यह संभव है? क्या मनुष्य मनुष्य के साथ इतना अत्याचार कर सकता है? टॉम काका! मेरे दु:खी टॉम काका!"
मृत-प्राय टॉम के कानों में इस कंठ-स्वर से अमृत-सा बरस गया। वह संज्ञाशून्य-सा पड़ा था, पर यह स्वर सुनकर धीरे-धीरे उसने सिर हिलाया, होठों पर जरा हँसी आई। अस्फुट स्वर से बोला - "ईश-कृपा से क्या संभव नहीं है? मृत्युशय्या भी सुख से भर उठती है!"
जार्ज सिर झुकाए एकटक टॉम के मुँह की ओर देख रहा था। आँखों से आँसुओं की धारा बह रही थी। शोक से रुँधे कंठ से कहने लगा - "प्यारे टॉम काका! उठो, एक बार बोलो! आँखें ऊपर उठाकर देखो। तुम्हारा मास्टर जार्ज आया है, तुम्हारा प्यारा मास्टर जार्ज आया है। क्या तुम मुझे नहीं पहचानते हो?"
टॉम ने आँख खोलकर क्षीण कंठ से कहा - "मास्टर जार्ज! मास्टर जार्ज!" ... वह चौकन्ना होकर इधर-उधर देखने लगा। फिर बोला - "मास्टर जार्ज!" ... मानो धीरे-धीरे अंत में यह बात उसकी समझ में आई। उसकी शून्य आँखें क्रमश: चमकने लगीं, उसका मुख प्रफुल्लित हो गया। नेत्रों से अश्रु-धारा बह निकली। वह हाथ जोड़कर क्षीण स्वर में कहने लगा - "धन्य भगवान! अंत में मेरी इच्छा पूर्ण कर दी। वे मुझे भूले नहीं। इससे मेरी आत्मा को संतोष मिल गया। धन्य भगवान! धन्य भगवान! अब मैं सुख से मरूँगा।"
जार्ज ने कहा - "तुम्हें मरना नहीं होगा। तुम नहीं मरोगे। इस बात का विचार भी मन में मत लाओ। मैं तुम्हें खरीदकर घर ले चलने के लिए आया हूँ।"
टॉम ने कहा - "ओह, मास्टर जार्ज, तुम बड़ी देर से आए। अब समय नहीं रहा। मैं तो ईश्वर के हाथ बिक चुका हूँ। वह मुझे अपने साथ अमृत-धाम को ले जाएगा। वहाँ जाने को जी चाह रहा है। केंटाकी से स्वर्ग कहीं अच्छा है।"
जार्ज बोला - "टॉम काका, ऐसा मत कहो। तुम्हारी बातें सुनकर मेरी छाती फटी जाती है। हाय, तुम्हें कितना सताया गया हे! कैसे मैले में डाल रखा है हाय, तुम्हारी दशा देखकर मेरे प्राण मुँह को आ रहे हैं! ओफ!"
टॉम ने मुस्कराते हुए कहा - "मुझे दु:खी मत कहो। मैं दु:खी था, पर अब वे सब बातें गई-गुजरी हो गईं। मैं पिता की गोद में जा रहा हूँ। जार्ज, यह देखो स्वर्ग का द्वार खुला हुआ है। धन्य ईसा! धन्य परमेश्वर!"
जार्ज टॉम के इन सच्चाई से भरे, विश्वास-पूर्ण तेजोमय वाक्य सुनकर स्तंभित रह गया। वह अवाक् होकर उसके मुख की ओर देखने लगा।
टॉम ने जार्ज का हाथ पकड़कर कहा - "तुम रोओ मत! छोई से मेरी इस दशा का हाल कहना। ओफ! उसे कितना दु:ख होगा। लेकिन तुम उससे कहना कि मेरी मृत्यु शांति से हुई है। मेरे लिए कोई दु:ख न करे। उससे यह भी कह देना कि भगवान सर्वत्र मेरे साथ थे। उन्होंने सदा मुझे दु:खों पर विजय दी है। मुझे बच्चो के लिए सदा दु:ख होता था। उन्हें मेरे मार्ग पर चलने को कहना। अपने माता-पिता और घर के हर आदमी को मेरा प्रेम कहना। मेरे दिल में हर जीवधारी के लिए प्रेम है। मैं जहाँ गया, वहाँ प्रेम के अलावा और कुछ नहीं किया। ओह, मास्टर जार्ज, प्रेम भी क्या ही अनोखी चीज है! वाह, धर्म के रास्ते पर चलने में कितना आनंद है!"
इसी समय लेग्री वहाँ कुटिया के द्वार तक आया और एक बार अंदर की ओर देखकर घृणा प्रकट करते हुए लौट गया।
जार्ज उसे देखकर क्रोध से बोला - "शैतान कहीं का! ईश्वर एक दिन इसे अपने किए का फल देगा।"
टॉम ने कहा - "जार्ज, ऐसी बातें नहीं कहनी चाहिए। वह बड़ा अभागा जीव है। उसकी बातें सोच-सोचकर दु:ख होता है। अब भी अगर वह पश्याताप करे तो ईश्वर इसे क्षमा करेंगे। पर यह कभी पश्याताप नहीं करेगा।"
जार्ज बोला - "उसका पश्याताप न करना ही अच्छा है। उसे स्वर्ग न मिले, यही मैं चाहता हूँ।"
टॉम ने बड़े दु:ख से कहा - "जार्ज, ऐसी बातें मत कहो। मुझे हैरानी होती है। मन में ऐसा भाव मत रखो। उसने मेरा कोई बिगाड़ नहीं किया। मेरे लिए स्वर्ग के राज्य का द्वार खोल दिया।"
जार्ज को देखकर टॉम आनंद से उत्तेजित हो गया था। उसी उत्तेजना से उसका शरीर और भी सुस्त पड़ गया। आँखें बंद हो गईं। साँस जल्दी-जल्दी चलने लगी और उसकी आत्मा संसार से विदा हो गई। मृत्यु के समय उसके मुँह से ये शब्द निकल रहे थे - "ईसा के प्रेम से हम लोगों को कौन वंचित करेगा!"
जार्ज स्तब्ध होकर एकटक उसके मुख की ओर देख रहा था। उसे जान पड़ने लगा कि टॉम का यह मृत्यु-गृह पवित्र स्थल है। उसने घूमकर देखा तो लेग्री को अपने पीछे खड़ा पाया।
टॉम का अंतिम वाक्य सुनकर जार्ज का उत्तेजित भाव कुछ मंद पड़ गया था, नहीं तो आज वह लेग्री की अवश्य खबर लेता। पर लेग्री का मुँह देखकर उसके हृदय में घृणा उत्पन्न हो गई। जार्ज तुरंत वहाँ से उठ जाने को तैयार हुआ और उससे बोला - "तुमसे जो बन सका तुमने कर लिया, अब मैं इस मृत शरीर को साथ ले जाना चाहता हूँ। बोलो, इसकी मृत देह के लिए तुम्हें क्या देना है? मैं अच्छी तरह से इसका क्रिया-कर्म करूँगा।"
लेग्री बोला - "मैं मुर्दे हब्शी नहीं बेचता। जहाँ और जब तुम्हारा जी चाहे, इसे ले जाकर दफन करो।"
वहाँ दो-तीन दास खड़े हुए लाश की ओर देख रहे थे। जार्ज ने उनसे कहा - "तुम लोग मेरे साथ आकर इस लाश को गाड़ी में रखवा दो और मुझे एक कुदाल लाकर दो।"
लेग्री की आज्ञा की कोई अपेक्षा न करके उनमें से एक कुदाल लाने के लिए दौड़ा, और दो ने उस लाश को गाड़ी पर रखवा दिया। लेग्री भी गाड़़ी के पास जाकर देखने लगा।
जार्ज ने अपना लबादा खोलकर गाड़ी में बिछाया और उस पर टॉम की मृत देह को लिटा दिया। उसके बाद गाड़ी हाँकते समय लेग्री से कहा - "तुमने जो नर-हत्या की है, इसकी सजा पाओगे। यह मत समझना कि मैं तुम्हें यों ही छोड़ दूँगा। मैं मजिस्ट्रेट के सामने जाकर अभी बयान दूँगा।"
यह सुनकर लेग्री ने ताने से हँसकर कहा - "जाओ, जहाँ तुम्हारा जी चाहे, बयान दो। ओफ, मुझे तो अब डर के मारे नींद ही नहीं आएगी! पर अंग्रेज गवाह तुम कहाँ से पाओगे। ऐसे मुकदमे में गुलामों की गवाही नहीं मानी जाती।"
जार्ज ने मन-ही-मन सोचा - "यह ठीक कहता है। देश के कानून के अनुसार गोरों के विरुद्ध कालों की गवाही नहीं मानी जाती।" यह सोचकर जार्ज को बड़ा कष्ट हुआ।
लेग्री आप-ही-आप कहने लगा - "मेरी तो कुछ समझ में नहीं आता कि एक मुर्दे हब्शी के लिए एक पढ़ा-लिखा अंग्रेज इतना बखेड़ा क्यों करता है? कितने ही कुली पुरुष और स्त्रियाँ यों ही मारे जाते हैं। यह मुकदमा चलाने चला है! कोई समझदार अंग्रेज-विचारक तो ऐसे तुच्छ विषय को सुनेगा ही नहीं। कौन भारी अपराध किया है, बस एक कुली ही न मारा है!"
आग लगने से जैसे बारूद का गोदाम भभक उठता है, वैसे ही लेग्री की यह बात सुनकर जार्ज का क्रोध भभक उठा। जार्ज वकीलों की तरह कानून के पन्ने उलटकर कर्त्तव्य निश्चय नहीं किया करता था। उसमें बड़ा तेज और बल था। उसने कानून नहीं पढ़ा था कि मनुष्यता से विहीन हो जाए। वह तुरंत गाड़ी से कूदकर लेग्री के मुँह पर जोर-जोर से घूँसे जमाने लगा। लेग्री की नाक से खून की नदी बह निकली। कायर लेग्री अधिक न सह सका और मुर्दे की भाँति जमीन पर गिर पड़ा। जार्ज ने अकेले होते हुए भी वह वीरता दिखाकर प्रात: स्मरणीय जार्ज वाशिंगटन का नाम सार्थक कर दिया।
संसार में कुछ मनुष्य ऐसे होते हैं कि लात खाने पर ही सीधे रहते हैं, ठीक से व्यव्हार करना सीखते हैं। लेग्री उन्हीं व्यक्तियों में से था। अब उसने भलमनसी अख्तियार की, धूल झाड़कर उठ बैठा और जब तक जार्ज का गाड़ी आँखों से ओझल न हो गई, तब तक अपना मुँह नहीं खोला।
लेग्री के खेत से हटकर एक वृक्ष-लता से आच्छादित सुंदर स्थान में जार्ज ने कुलियों को कब्र खोदने की आज्ञा दी। कब्र तैयार हो जाने पर कुलियों ने जार्ज के पास आकर कहा - "हुजूर, यह लबादा खोल लिया जाए?" जार्ज ने कहा - "नहीं-नहीं, इसी के साथ इसे दफना दो!" फिर टॉम की मृत देह को संबोधित करके कहने लगा - "हाय टॉम काका, मेरे पास इस समय और कोई अच्छा कपड़ा नहीं है, जिसे तुम्हारे साथ दूँ। यही मेरी श्रद्धा का अंतिम चिह्न है।"
टॉम को मिट्टी दे दी गई और कब्र पर फूल बिछा दिए गए। तब जार्ज ने कुलियों को कुछ पैसे देकर कहा - "अब तुम लोग जा सकते हो।" वे जार्ज से कहने लगे - "हुजूर, हम लोगों को खरीद लीजिए। हम दिन-रात जी-जान से आपका काम करेंगे। यहाँ हम लोगों को बड़ी तकलीफ है।"
जार्ज ने कहा - "मैं यहाँ किसी को नहीं खरीद सकता। यह असंभव है। तुम लोग लौट जाओ।"
वे निराश होकर धीरे-धीरे चलते बने।
जार्ज टॉम की समाधि पर घुटनों के बल बैठकर आँखें और हाथ ऊपर करके कहने लगा - "हे अनंतस्वरूप परमात्मन्! मैं आपके सामने प्रतिज्ञा करता हूँ कि देश से इस घृणित दास-प्रथा को दूर करने के लिए, मैंने आज से अपने तन-मन को समर्पित कर दिया है। आप मेरे इस सत्संकल्प में सदा सहायक हों!"
टॉम के समाधि-स्थल पर कोई स्मृति-चिह्न नहीं बना, पर उसका जीवन ही उसका एकमात्र उज्ज्वल स्मृति-चिह्न था।
टॉम के लिए दु:खित होने का कोई कारण नहीं है। ऐसे जीवन और मृत्यु पर तरस खाने की कोई आवशकयता नहीं है। टॉम दया का पात्र या दु:खी व्यक्ति नहीं था। वह जिस धन का धनी था, वह धन बड़े-बड़े महाराजाओं के भंडार में भी नहीं मिलता।
टॉम के हृदय की सत्यप्रियता, न्यायपरता, धर्म-जिज्ञासा, प्रेम, भक्ति और उसका सतत्-विश्वास क्या संसार के और सारे धनों से अधिक मूल्यवान न था!