42 - पलायन की योजना
पहले बताया जा चुका है कि बहुत धनी और बड़े जमींदार के दिवालिया हो जाने पर लेग्री ने बहुत सस्ते में उसका यह मकान और खेत खरीद लिया था। यह मकान बहुत बड़ा था, इसमें बहुत पुरानी कोठरियाँ थीं। जमींदार के शासन में यहाँ अनजान लोग रहते थे; पर जब से यह मकान लेग्री के हाथ में आया है, तब से इसके चार-पाँच सहन तो बिलकुल सूने पड़े रहते हैं। लेग्री का व्यापार कोई बहुत लंबा-चौड़ा न था, और न वह वैसा संपन्न ही था। कुछ दिनों पहले, जब वह जहाज का कप्तान था, उसने इधर-उधर से लूट-खसोट तथा चोरी-जारी करके दो-चार हजार की पूँजी बना ली थी और उसी से बड़े सस्ते में यह घर और खेत खरीदकर काम चालू कर दिया था। पहले मालिक के पास इतने बड़े खेत में काम करने के लिए पाँच सौ के लगभग कुली थे, पर अब उसी खेती का काम लेग्री केवल 50 गुलामों से कराता है। इसी से लेग्री के खेत में काम करनेवाले कुल दो-तीन वर्ष से अधिक जीवित नहीं रहते थे।
मकान में जो 5-6 कमरे खाली पड़े थे, उनमें उत्तर की ओर एक बड़ा कमरा था। यह कमरा कासी के सोने के कमरे से सटा हुआ था। कासी के कमरे के बाईं ओर लेग्री का शयनागार था। उस मकान में रहनेवाले सब लोगों के मन में यह खयाल जमा हुआ था कि लेग्री के उत्तर दिशावाले कमरे में भूत रहता है। रात की कौन कहे, दिन में भी लोगों की उस कमरे में जाने की हिम्मत नहीं होती थी। कई वर्ष हुए, लेग्री ने इस कमरे में एक कुली स्त्री-मजदूर को तीन सप्ताह तक भूखी-प्यासी रखकर उसकी जान ले ली थी। तभी से सबको विश्वास हो गया था कि यह कमरा भूतों का अड्डा है। इसी घटना से भूत-कथा का सूत्रपात हुआ। स्वयं लेग्री की भी कमरे में घुसने की हिम्मत न होती, लेकिन वह अपना भय किसी के सामने जाहिर नहीं करता था।
एक दिन कासी, बिना लेग्री से पूछे-ताछे ही, बड़ी घबराहट में सारा माल-असबाब उठाकर अपना कमरा बदलने लगी। दास-दासियों को बुलाकर उसने सारा सामान उठाकर दूसरे कमरे में ले जाने को कहा। कुली लोग बहुत डरते-काँपते हुए वहाँ की सब चीजें उठाकर दूसरे कमरे में जाकर रखने लगे। उस समय लेग्री घूमने गया हुआ था। जब वह लौटा तो यह उलटफेर देखकर उसने पूछा - "कासी, क्या बात है? इस कमरे की चीजें उठाकर वहाँ क्यों लिए जा रही हो?"
कासी ने कहा - "मुझे इस कमरे में नींद नहीं आती।"
लेग्री ने पूछा - "क्यों, क्या बात है?"
कासी ने कहा - "मैं वह सब कहना नहीं चाहती।"
लेग्री बोला - "कहने में क्या हर्ज है?"
तब कासी ने कहा - "इस उत्तरवाले कमरे में ऐसी-ऐसी विचित्र आवाजें आती हैं कि मुझे बड़ा डर लगता है और इसी से नींद नहीं आती।"
लेग्री ने फिर पूछा - "क्या आवाज आती है? वह कैसी आवाज है?"
कासी ने कहा - "क्या तुम्हें मालूम नहीं, वह किसकी आवाज है, कैसी आवाज है?"
इस बात पर लेग्री आपे से बाहर हो गया और जमीन पर जोर से पैर मारकर उसने कासी के मुँह पर चाबुक चलाई। इस कमरे में कुली स्त्री की मौत हुई थी, इस बात को लेग्री किसी पर प्रकट नहीं होने देता था। इसी से कासी पर बहुत क्रुद्ध हुआ। चाबुक खाकर कासी एक किनारे हट गई और जोर-जोर से कहने लगी - "लेग्री, तुम्ही एक रात इस कमरे में सो कर देखो। देखती हूँ, तुम डरते हो कि नहीं।"
कासी की इस बात से लेग्री के मन में भय जमकर बैठ गया। असल में जिन अशिक्षित लोगों में धर्म के प्रति विश्वास का भाव नहीं होता, उनके मन में ऐसे कुसंस्कार-मूलक भय का भाव बड़ी जल्दी पैदा हो जाता है।
कासी ने अच्छी तरह जान लिया कि लेग्री के मन में भय समा गया है। इससे वह मन-ही-मन बहुत प्रसन्न हुई। इसके बाद कासी उस उत्तरवाले कमरे के पास की एक कोठरी में अपना बिछौना वगैरह तथा सात दिन तक की खाने-पीने की सामग्री रख आई। बीच-बीच में वह ठीक आधी रात को वहाँ जाकर छिपे-छिपे लेग्री के कमरे का दरवाजा खटखटाती और विचित्र प्रकार की आवाज करती। इससे लेग्री का कुसंस्कारमूलक भय दिन-ब-दिन बढ़ता गया। इस संबंध में कासी दास-दासियों के मन में अधिक भय पैदा करने की नीयत से नित्य नए-नए उपद्रवों के किस्से गढ़कर सुनाती। इससे उन सबका डर बढ़ते-बढ़ते यहाँ तक बढ़ गया कि रात को वे उस कमरे की ओर आँख उठाकर देखने में भी भय खाने लगे।
तीन-चार दिन में जब कासी ने देख लिया कि अब भूत-संबंधी संस्कार सब के मन में खूब गहरे जम गए हैं तो वह भागने की तैयारी करने लगी। बिछौने आदि तो पहले ही रख आई थी, अब अपने और एमेलिन के कपड़े भी ले जाकर वहाँ रख आई थी।
तीसरे पहल लेग्री बहुत देर से अपने किसी पड़ोसी के यहाँ गया था। यह सुअवसर पाकर, संध्या के बाद, जब चारों ओर अँधेरा छा गया, कासी ने एमेलिन से कहा - "चल, झटपट उठकर चल। भागने का इससे अच्छा दाँव फिर नहीं मिलेगा।"
वे दोनों घर से निकलकर दलदल की ओर चलीं। पहले उन्होंने निश्चय किया था कि पश्चिम की ओर दलदल में चलेंगी, पर यह सोचकर कि वहाँ रहने से लेग्री उन्हें शिकारी कुत्तों द्वारा पकड़वा मँगाएगा, उन्होंने कुछ दूर पश्चिम और फिर उत्तर जाकर, वहाँ से पूर्व की ओर मुँहकर कुछ बढ़ने पर, सामने की खाई पार करके, भुतहे घर में पहुँचकर पाँच-छह दिन वहीं रहने का निश्चय किया और सोचा कि अपने भागने के बाद लेग्री संभवत: चार-पाँच दिन उन्हें दलदल में ही इधर-उधर खोजेगा अथवा शिकारी कुत्तों से खोज कराएगा; परंतु जब चार-पाँच दिन में वह खोजकर थक जाएगा तब मौके से किसी दिन रात को निकलकर चल देंगी। चलते-चलते जब वे दोनों दलदल के पास पहुँची, तब उन्हें पीछे से "पकड़ो! पकड़ो! दासी भागी जा रही हैं!" का शोर सुनाई दिया। कासी ने पहले तो अनुमान किया कि सांबो चिल्ला रहा है, पर पीछे उसे आवाज से मालूम हुआ कि वह आवाज सांबो की नहीं, स्वयं लेग्री की है। इस चिल्लाहट से एमेलिन बहुत डरी और कासी का हाथ पकड़कर बोली - "कासी माँ, मुझे तो बेहोशी आ रही है।"
कासी बोली - "यदि इस समय तुझे बेहोशी आ गई तो मैं तेरी जान ही ले लूँगी, नहीं तो चुपचाप मेरे पीछे दौड़ती चली आ!"
कासी के भय से एमेलिन जी-जान से दौड़ने लगी और शीघ्र ही लेग्री की आँखों से ओझल हो गई। लेग्री ने देखा कि अब इस अंधेरे में बिना शिकारी कुत्तों के इनको पकड़ने की कोई सूरत नहीं है, अत: वह कुत्तों तथा लोगों को साथ लेने के लिए खेत की ओर लौटा और सांबो, कुइंबो तथा अन्य दास-दासियों, शिकारी कुत्तों और बंदूकों को लेकर उन्हें फिर पकड़ने चला।
लेग्री मन-ही-मन जानता था कि वे दोनों सहज ही भागकर नहीं निकल सकेंगी। उसके सह हब्शी गुलाम चारों दिशाओं में फैलकर उनकी खोज करने लगे।
सांबो ने लेग्री से पूछा - "अच्छा, कासी को देख पाऊँ तो क्या करूँ?"
लेग्री बोला - "कासी को गोली मार सकता है, पर एमेलिन को जान से मत मारना। और जो इन दोनों को जीवित पकड़कर ला सके, उसे पाँच सौ रुपया इनाम दूँगा।"
इधर कासी और एमेलिन अपने निश्चय के अनुसार रास्ता तय करके उस ठिकानेवाले कमरे में जा पहुँची। घर में पहुँचने पर, जंगले के पास खड़ी होकर, एमेलिन ने कासी को बुलाकर कहा - "वह देख, शिकारी कुत्तों को साथ लिए कितने आदमी चले जा रहे हैं। चल, हम लोग चलकर किसी अँधेरी कोठरी में छिप जाएँ।"
कासी बोली - "डर क्या है? यहीं बरामदे में बैठ कर दोनों तमाशा देखेंगी। वे इधर कदापि नहीं आएँगे।"
सारे दास-दासियों तथा कुत्तों को साथ लिए लेग्री दलदल की ओर निकल गया। घर एकदम सूना पड़ा था। एमेलिन को साथ लेकर कासी धीरे से दक्षिण दिशावाला दरवाजा खोलकर लेग्री के सोने के कमरे में घुस गई। वहाँ उसे लेग्री के संदूक की कुंजी बिस्तर पर पड़ी हुई मिली, जिसे वह जल्दी में वहीं पड़ी छोड़ गया था। कुंजी पाकर कासी को बहुत खुशी हुई। उसने तत्काल संदूक खोला और उसमें से तीन-चार हजार रुपयों के नोट निकालकर अपने कपड़ों में छिपा लिए। यह देखकर एमेलिन बहुत डरी। उसने कहा - "ओ कासी माँ, यह तुम क्या कर रही हो? ऐसा बुरा काम मत करो।"
इस पर कासी ने कुछ झुँझलाकर कहा "चुप रहो! बिना पैसों के जहाज का भाड़ा और रास्ते का सफर-खर्च कहाँ से आएगा? क्या दलदल में सड़कर मरना है?"
एमेलिन बोली - "जो भी हो, लेकिन यह तो चोरी ही है।"
कासी ने बड़ी घृणा के साथ कहा - "चोरी है? जो मनुष्यों की आत्मा और शरीर-सब कुछ चुरा लेते हैं, वे हमसे क्या कह सकते हैं? लेग्री ने ये रुपए कहाँ से पाए हैं? इन कुलियों का खून चूस-चूसकर ही तो ये रुपए बटोरे हैं। यह दास-दासियों का खून है। चोर का माल ले जाने में क्या दोष है? यह सारे-का-सारा माल चोरी का है।"
इसके बाद कासी एमेलिन का हाथ पकड़कर से उत्तर के कमरे में ले गई। वहाँ जाकर बोली - "मैंने काफी रोशनी का प्रबंधकर रखा है और समय बिताने के लिए कुछ पुस्तकें भी लाकर रख दी हैं। मुझे निश्चय है कि वे हम लोगों को खोजने यहाँ नहीं आएँगे। हाँ, यदि आ ही गए तो सचमुच उन्हें भूतों का तमाशा दिखाकर डराऊँगी।"
एमेलिन ने पूछा - "क्या तुम्हें निश्चय है कि वे लोग हम दोनों की खोज में यहाँ न आ सकेंगे?"
कासी बोली - "मैं तो चाहती हूँ कि लेग्री एक बार यहाँ आए, पर वह यहाँ नहीं आएगा और न दास-दासी ही आना स्वीकार करेंगे।"
एमेलिन ने सीधी-सादी तौर पर पूछा - "अच्छा, तुमने उस समय मुझे मार डालने की धमकी किस मतलब से दी थी?"
कासी ने बताया - "जिससे तुम्हें मूर्च्छा न आ जाए। यदि उस समय तुम्हें मूर्छा आ जाती, तो फिर वे सब तुम्हें पकड़ लेते।"
यह सुनकर एमेलिन काँप उठी। कुछ देर के बाद वे दोनों चुप हो गईं। फिर कासी एक पुस्तक पढ़ने लगी और पढ़ते-पढ़ते उसे नींद आ गई।
आधी रात के वक्त लेग्री जब अपना दल-बल लिए निराश होकर घर लौटा, तो बड़ा शोरगुल होने लगा। शोर-गुल होने से कासी और एमेलिन की नींद टूट गई। एमेलिन जागते ही चीख उठी, लेकिन कासी ने उसे धीरज बँधाकर कहा - "कोई भय की बात नहीं है। वह दलदल में हम लोगों को खोजकर लौट आया है। वह देखो, लेग्री के घोड़े के बदन पर कितना कीचड़ लगा हुआ है। लेग्री के बदन पर भी कीचड़ लिपटा है। कुत्ते कैसे थके हुए जीभ लपलपा रहे हैं!"
एमेलिन ने कहा - "धीरे-धीरे बातें करो। चुप रहो, कोई सुन लेगा।"
किंतु कासी ने और जोर से बोलते हुए कहा - "ऐसा क्या डर पड़ा है? हम लोगों की बात कोई सुनेगा तो भूत के डर से और भी डरेगा।"
धीरे-धीरे अधिक रात बीत गई। लेग्री बहुत थक गया था, अत: वह अपने भाग्य को कोसता हुआ सोने के कमरे में चला गया।