Tom Kaka Ki Kutia - 40 in Hindi Fiction Stories by Harriet Beecher Stowe books and stories PDF | टॉम काका की कुटिया - 40

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टॉम काका की कुटिया - 40

40 - स्वततंत्रता का नव-प्रभाव

टॉम लोकर एक वृद्ध क्वेकर रमणी के घर पर शारीरिक यंत्रणा से कराह रहा था। आपने साथी मार्क को गालियाँ दे रहा था और कभी फिर उसका साथ न देने के लिए सौ-सौ कसमें खा रहा था।

 वह दयालु बुढ़िया लोकर के पास बैठी माता की तरह उसकी सेवा-टहल कर रही है। वृद्ध का नाम डार्कस है। सब लोग उसे "डार्कस मौसी" कहकर पुकारते हैं। वृद्ध कद में जरा लंबी है। उसके मुँह पर दया, ममता, स्नेह और धर्म के चिह्न लक्षित होते हैं। उसके कपड़े भी एकदम सादे और सफेद हैं, वह दिन-रात बड़े ध्यान से लोकर के पथ्य-पानी की सार-सँभाल करती है।

 लोकर बिछौने की चादर को इधर-उधर लपेटते हुए कह रहा है - "ओफ! कैसी गरमी है! यह कमबख्त चादर भी खाए जाती है।"

 वृद्ध डार्कस मौसी ने उसे बिस्तर की सलवटों को ठीक करते हुए कहा - "टॉमस बाबा, तुम्हें ऐसी भाषा का व्यव्हार नहीं करना चाहिए।"

 लोकर ने कहा - "मौसी, मेरा शरीर जल रहा है, मुझसे सहा नहीं जाता।"

 डार्कस ने समझाया - "गालियाँ बकना, सौगंध खाना और गंदे शब्दों का व्यव्हार करना भले आदमियों का काम नहीं। इन गंदी आदतों को छोड़ने की चेष्टा करो!"

 लोकर ने कहा - "यह कमबख्त मार्क बड़ा शैतान का बच्चा है। पहले वकालत करता था, इसी से इतना लालची है। ऐसा गुस्सा आता है कि बदमाश को फाँसी पर लटका दूँ।"

 इतना कहकर लोकर ने फिर सारे बिछौने को सिकोड़-सिकोड़कर उलट-पुलट कर डाला।

 क्षण भर के बाद फिर वह कहने लगा - "वे भगोड़े दास-दासी भी यहीं हैं क्या?"

 डार्कस ने बताया - "यहीं हैं।"

 लोकर ने कहा - "उनसे कह दो कि जितनी जल्दी झील के किनारे जाकर जहाज पर सवार हो जाएँ, उतना ही अच्छा है।"

 डार्कस बोली - "शायद वे ऐसा ही करेंगे।"

 लोकर ने सावधान किया - "उन्हें बड़ी होशियारी से जाने को कहना! सेनडस्की के जहाज के आफिस में हमारे आदमी लगे हैं। वे कड़ी पूछताछ करेंगे। मैं यह सब इसलिए बता रहा हूँ कि उस नामाकूल मार्क को कौड़ी भी हाथ न लगे।"

 डार्कस ने कहा - "फिर तुम गंदे शब्द मुँह से निकालते हो!"

 लोकर बोला - "डार्कस मौसी, मुझे इतना कसकर मत बाँधो। बहुत कसने से सब टूट जाएगा। मैं धीरे-धीरे अपने को सुधार लूँगा। लेकिन उन भगोड़ों की बाबत मैं जो कहता हूँ, उसे ध्यान से सुनो। उस औरत से कह देना कि वह मर्दाना वेश बनाकर जहाज पर चढ़े और बालक को बालिका-जैसे कपड़े पहना दे। उन लोगों का हुलिया सेनडस्की भेजा जा चुका है।"

 डार्कस ने कहा - "हम लोग सावधानी से काम करेंगे।"

 टॉम लोकर तीन सप्ताह तक वहाँ बीमार पड़ा रहा। फिर नीरोग होकर घर चला गया। वहाँ पहुँचने के बाद उसने गुलामों को पकड़ने का धंधा एकदम छोड़ दिया और किसी अच्छे धंधे में लग गया। तीन सप्ताह तक क्वेकर परिवार के सत्तसंग में रहने के कारण उसके स्वाभाव में बड़ा परिवर्तन हो गया था। क्वेकर समुदायवालों को वह बड़ी भक्ति और श्रद्धा की दृष्टि से देखता था। डार्कस मौसी की तो वह अपनी माँ से भी अधिक भक्ति करने लगा था।

 लोकर के मुँह से यह सुनकर कि सैनडस्की में उनका हुलिया पहुँच चुका है और वहाँ कड़ी जाँच होगी, उन्होंने विशेष सावधानी से काम लेने का निश्चय किया। साथ जाने से पकड़े जाने का खतरा देखकर जिम और उसकी माता दो दिन पहले चल पड़े। उसके बाद जार्ज और इलाइजा अपने बालक सहित रात को सैनडस्की पहुँचे।

 रात बीच चली थी। स्वतंत्रता का सुख-सूर्य हृदयाकाश में उदित होने को ही था। स्वतंत्रता-आह, कैसा जादू-भरा शब्द है! इसका उच्चारण करते ही हृदय आनंद से नाच उठता है। देवि स्वतंत्रते! तुम साथ रहो तो खप्पर में माँगकर खाना और वृक्षों के नीचे जीवन बिताना भी सुखकर है; परंतु तुम्हारे बिना तो राज-भोग भी उच्छिष्ट-जैसा है। तुम्हें पाने के लिए अमेरिका के अंग्रेजों ने जान की बाजी लगा दी और अपने कितने ही वीरों की रण में आहुति दी। सारा संसार तुम्हारे लिए लालायित है। पर जहाँ वीरता और एकता है, वहीं तुम्हारा निवास होता है। भीरुता, कायरता, स्वार्थपरता तथा फूट के तो तुम पास भी नहीं फटकती हो। इनसे तुम्हें बड़ी नफरत है। इस संसार में निर्बल, भीरु और स्वार्थंध जातियाँ तुम्हारे मुख-दर्शन की आशा नहीं कर सकतीं, और जिस जाति से तुम दूर हो, उसमें जीवन कहाँ? संसार का कोई सुख पराधीन जाति को सुखी नहीं कर सकता। उसके लिए संसार की सब चीजें दुखदायी हैं। परंतु देवि! तुमसे नाता जोड़ते ही स्वार्थपरता का अंधकार और निर्बलता की मार देखते-ही-देखते काफूर हो जाती है। तब हताश और संकीर्ण मानव-हृदय में सार्वभौम प्रेम का चंद्रमा उदय होता है।

 संसार में क्या कोई ऐसी वस्तु है, जिसे कोई जाति तो अत्यंत सुख और प्रिय समझती हो, किंतु कोई मनुष्य उसे प्रिय न समझता हो? स्वतंत्रता जितनी किसी जाति को प्रिय होती है, दूसरे मनुष्य को भी वह उतनी ही प्रिय होती है। जातीय और व्यक्तिगत स्वतंत्रता में भेद ही क्या है? अलग-अलग व्यक्तिगत स्वतंत्रता के समूह को ही जातीय स्वतंत्रता कहते हैं। व्यक्तिगत स्वतंत्रता के बिना जातिगत स्वतंत्रता भी कब संभव है? यह युवक जार्ज हेरिस, जो यहाँ मुँह लटकाए विषाद-मग्न बैठा है, किस तरह स्वतंत्रता के लिए व्याकुल है? यह व्यक्ति कैसा अधिकार चाहता है! केवल इतना ही अधिकार-कि वह अपनी स्त्री को अपनी समझ सके; दूसरों के अत्याचारों से उसकी रक्षा कर सके; अपनी संतान को अपनी समझकर अच्छी शिक्षा दे सके; अपनी मेहनत की कौड़ी को अपनी मशक्कत की कमाई को अपने लिए खर्च कर सके, और अपने धार्मिक विश्वास के अनुसार काम कर सके। बस, इससे अधिक वह और कुछ नहीं चाहता।

 स्वार्थी नर पिशाचो! क्या तुम उसे इतना भी अधिकार नहीं दोगे? क्या इन अधिकारों के बिना भी मनुष्य जीवित रह सकता है? मनुष्य के कुछ स्वाभाव-सिद्ध अधिकारों को पाने के लिए आज जार्ज तुम्हारे देश से भागने का उद्योग कर रहा है। अपनी स्त्री का मर्दाना-वेश बना रहा है- उसके लंबे सुंदर बाल काट रहा है।

 बाल कट जाने के बाद इलाइजा मुस्कराकर बोली - "कहो जार्ज, क्या अब मैं एक सुंदर युवक-सी नहीं दीख पड़ती?"

 जार्ज ने कहा - "तुम किसी भी वेश में हो, मुझे हमेशा बहुत सुंदर लगती हो।"

 इलाइजा ने उसके कंधे पर हाथ रखते हुए कहा - "जार्ज, तुम इतने उदास क्यों हो रहे हो? अब तो कनाडा यहाँ से केवल चौबीस घंटों की दूरी पर है। सिर्फ एक दिन और एक रात का सफर बाकी है और उसके बाद, अहा! उसके बाद..."

 जार्ज ने इलाइजा को अपनी ओर खींचकर धीरे-से कहा - "इलाइजा, मुझे बड़ा डर मालूम हो रहा है। कहीं इतनी दूर आए हुए पकड़े गए, तो सारी मेहनत और सारा किया-धरा मिट्टी में मिल जाएगा। किनारे लगकर भी नाव डूब जाएगी। ऐसा होने पर मैं जीवित नहीं रह सकूँगा।"

 इलाइजा ने उसे धीरज बँधाया - "जार्ज, डरो मत। उस दयामय को यदि हम लोगों को पार न लगाना होता तो वह हमें हर्गिज इतनी दूर न लाता। जार्ज, मुझे लगता है कि वह हम लोगों के साथ है। फिर डरने की क्या बात है?"

 जार्ज बोला - "इलाइजा, तुम देवी हो! तुम ईश्वर का साथ अनुभव करती हो। पर बोलो, क्या जन्म से सहते आए हमारे इन दु:खों का अंत हो जाएगा? क्या हम स्वतंत्र हो जाएँगे?"

 इलाइजा ने कहा - "जार्ज, मुझे तो इसका निश्चय है। मुझे मालूम हो रहा है कि ईश्वर ही हम लोगों को स्वतंत्र करने के लिए यहाँ से जा रहा है।"

 जार्ज बोला - "ठीक है, मुझे तुम्हारी बात पर विश्वास हो रहा है।"

 इसके बाद जार्ज ने इलाइजा को मर्दानी टोपी ओढ़ाकर कहा - "गाड़ी का समय हो चुका हो तो चलें। मुझे आश्चर्य हो रहा है कि मिसेज स्मिथ हेरी को लेकर अब तक क्यों नहीं आईं।"

 इतने ही में दरवाजा खुला और एक अधेड़ अवस्था की महिला बालक हेरी को बालिका के वेश में सजाए हुए, साथ लेकर अंदर आई।

 इलाइजा ने उसे देखते ही क्या - "वाह, क्या खूबसूरत लड़की बनी है। अब हम लोग इसे हैरियट के नाम से पुकारेंगे। क्यों, ठीक होगा न!"

 माता को मर्दाने कपड़ों में, बाल कटाए हुए देखकर, बालक हतबुद्धि हो गया। वह बार-बार ठंडी साँसें लेने लगा। इलाइजा ने उसकी ओर हाथ बढ़ाकर कहा - "क्यों हेरी, अपनी माँ को पहचानता है?"

 बालक शर्माकर उस अधेड़ स्त्री से चिपक गया।

 जार्ज ने कहा - "इलाइजा, जब तुम जानती हो कि उसे तुमसे अलग रखने की व्यवस्था की गई है, तो अब उसे नाहक क्यों अपने पास बुलाने की कोशिश करती हो?"

 इलाइजा बोली - "मैं जानती हूँ। यह मेरी मूर्खता है। लेकिन इसे अलग रखने को मेरा जी नहीं मानता। खैर, लबादा कहाँ है?"

 इसके बाद जब इलाइजा मर्दाना लबादा पहनकर तैयार हो गई तब जार्ज ने मिसेज स्मिथ से कहा - "अब से हम लोग आपको बुआ कहेंगे और लोगों पर यह प्रकट करना होगा कि हम लोग अपनी बुआ के साथ जा रहे हैं।"

 मिसेज स्मिथ ने कहा - "मैंने सुना है कि जो लोग तुम्हें पकड़ने आए हैं, वे टिकटघर में बैठे बाट देख रहे हैं।"

 जार्ज ने कहा - "वे लोग बैठे हैं! खैर, चलो, देखा जाएगा। अगर हम लोगों की उनसे भेंट हो गई तो हम उन्हें बता देंगे।"

 इसके बाद ये लोग एक किराए की गाड़ी पर सवार होकर चले। जिस आदमी ने इन्हें अपने घर में शरण दी थी, वह गाड़ी तक इनके साथ आया और चलते समय उसने इनके उद्धार के लिए ईश्वर से प्रार्थना की।

 इन सब लोगों का छद्म-वेश ऐसा बन गया था कि कोई इन्हें पहचान नहीं सकता था। असल में यह टॉम लोकर के साथ भलाई करने का नतीजा था। कभी-कभी भलाई का फल हाथों-हाथ मिलता है। यदि इन्होंने, वैर चुकाने की नीयत से, लोकर को जंगल में ही रहने दिया होता, उसे ये डार्कस के घर न उठा लाए होते, तो आज अपने सामान्य वेश में आने पर यहाँ जरूर पकड़े जाते। टॉम लोकर के साथ इन्होंने जो भलाई की, इन्हें उसका बहुत अच्छा फल मिला।

 मिसेज स्मिथ कनाडा की एक प्रतिष्ठित महिला नागरिक थीं। वह कनाडा लौट रही थीं। इन लोगों की दुर्दशा देखकर उन्हें दया आ गई और उन्होंने इनकी सहायता करने की ठान ली। दो दिन पहले ही हेरी उनके जिम्मे कर दिया गया था। इन दो दिनों में मेवा-मिठाई और खिलौने वगैरह देकर उन्होंने हेरी को ऐसा मिला लिया था कि वह उनका साथ ही नहीं छोड़ता था।

 इनकी गाड़ी जहाज-घाट के किनारे जा लगी। जार्ज उतरकर टिकट लेने गया, तो उसने दो आदमियों को अपने संबंध में आपस में बातें करते सुना। उनमें से एक दूसरे से कह रहा था - "भाई, मैंने एक-एक करके सब मुसाफिरों को देख लिया, तुम्हारे भगोड़े इनमें नहीं है।" फिर जार्ज ने देखा कि इनमें पहला मार्क है, और दूसरा एक जहाज का क्लर्क है।

 मार्क बोला - "उस स्त्री को तो तुम मुश्किल से पहचान सकते हो कि वह दासी है, क्योंकि वह अंग्रेजों-जैसी गोरी है और पुरुष भी वैसा ही है, पर उसके एक हाथ पर जलने का दाग है।"

 जार्ज उस समय हाथ बढ़ाकर टिकट ले रहा था। उसका हाथ काँप उठा, पर वह सँभलकर धीरे-धीरे वहाँ से हट गया और वहाँ जा पहुँचा, जहाँ इलाइजा और मिसेज स्मिथ बैठी हुई थीं।

 मिसेज स्मिथ हेरी को साथ लेकर स्त्रियों के कमरे में चली गईं।

 जहाज ने जब चलने की सीटी दी और घंटा बजा तो जार्ज के हृदय में आनंद की लहरें उठने लगीं और मार्क ठंडी साँसें लेता हुआ जहाज से उतरकर किनारे आया। वह मन-ही-मन निराश होकर कहने लगा कि वकालत के धंधे में आमदनी की सूरत न देखकर दूसरी तरह से उसी देश के प्रचलित कानून की रक्षा के लिए यह नया धंधा किया, पर इसमें भी कुछ होता-जाता नजर नहीं आ रहा है। यही सब सोचते-सोचते मार्क खिन्न मन से अपने देश को लौट गया।

 दूसरे दिन जहाज ने एमहर्स्टबर्ग जाकर लंगर डाला। यह कनाडा का एक छोटा-सा कस्बा है। जार्ज, इलाइजा आदि सब आकर किनारे पर उतरे। स्वाधीन भूमि पर पैर रखते ही उनका हृदय आनंद से भर गया। आज उन्हें गुलामी से छुट्टी मिली। आज स्त्री और पुत्र को अपना कहने का मानवीय स्वत्व जार्ज को प्राप्त हुआ। लज्जा और स्त्री, दोनों एक-दूसरे के गले से लिपट गए। दोनों के नेत्रों से आनंद के आँसू बहने लगे और घुटने टेककर उन्होंने ईश्वर की प्रार्थना में यह गीत गया-

 विपत्ति-सिंधु में तुम्ही जहाज!

 कौन बचावे दीन-हीन को तुम बिन हे महाराज!

 निपट निराशा अंधकार था मम-हित महा कुसाज।

 उदय हुआ सुख-भानु पूर्व में, तब करुणा से आज।।

 जैसे तुम्हें पुकारा दुख में, वैसा पा सुख-साज।

 ध्यान तुम्हारा ही करते हैं, गाते सुयश दराज।।

 प्रार्थना के बाद सब लोग उठे और मिसेज स्मिथ उन्हें उसी नगर के निवासी एक सज्जन पादरी साहब के पास ले गईं। यह उदार पादरी अपने घर ऐसे ही निराश्रित और भागे हुए दास-दासियों को शरण दिया करता था।

 जार्ज और इलाइजा के आज के आनंद का पारावार नहीं है। भला भाषा के द्वारा इनके इस स्वतंत्रता के आनंद का वर्णन कैसे हो सकता है? आज रात भर उन्हें नींद नहीं आई। सारी रात आनंद की उमंगों में बीत गई। इस आनंद में इन लोगों ने एक बार भी यह सोचने तक का कष्ट न उठाया कि आखिर यहाँ करना क्या होगा, जिंदगी कैसे कटेगी! न इनके घर-द्वार है, न कोई साज-सरंजाम। कल तक के खाने के लिए इनके पास कोई ठिकाना नहीं है। फिर भी यह स्वतंत्रता-प्राप्ति के आनंद में ऐसे फूले हुए हैं कि उन्हें और किसी बात की चिंता ही नहीं है। वास्तव में पूछिए तो मनुष्य-जीवन में स्वतंत्रता की अपेक्षा और अमूल्य वस्तु है ही क्या, जिसकी मनुष्य परवाह करे? जो लोग प्रभुत्व अथवा धन के लोभ से किसी व्यक्ति अथवा जाति-विशेष को ऐसे अनमोल रत्न से वंचित करते हैं, उन्हें अवश्य ईश्वर का कोप-भाजन बनना पड़ेगा - उसके सामने जवाबदेह होना पड़ेगा, पीढी-दर-पीढ़ी उन्हें अत्याचारों का फल चखना पड़ेगा।