38 - भभकती यंत्रणा
लेग्री अपने घर में बैठा ब्रांडी ढाल रहा है और गुस्से से आप-ही-आप भनभना रहा है - यह इसी सांबो की बदमाशी है।... इसी का उठाया हुआ सब बखेड़ा है। टॉम एक महीने में भी उठने-बैठने लायक होता नहीं दिखाई देता। इधर फसल का कपास चुनने का समय आ गया। कुलियों की कमी से बहुत नुकसान होगा, कारोबार ही बंद हो जाएगा। सांबो अगर शिकायत न करता तो यह बखेड़ा ही न उठता।
लेग्री की ये बातें समाप्त भी न होने पाई थीं कि पीछे से किसी ने कहा - "असल में यही बात है! इन बखेड़ों में हानि के सिवा कोई लाभ नहीं है।"
लेग्री ने पीछे को घूम कर देखा तो वहाँ कासी को खड़े पाया। लेग्री ने कहा - "क्यों री चुड़ैल, तू फिर आ पहुँची।"
कासी ने कहा - "हाँ, आ तो गई हूँ।"
लेग्री बोला - "तू बड़ी झूठी है, बड़ी कुलटा है। मैं कहता हूँ, मेरा कहना मान, शांति से रहा कर, नहीं तो मैं तुझसे कुली का काम कराऊँगा।"
कासी ने उत्तर दिया - "एक बार नहीं, हजार बार मैं कुली का काम करूँगी। मुझे कुलियों की तरह टूटी झोपड़ी में रहना मंजूर है, पर आगे से मैं तेरी छाया में नहीं रहना चाहती।"
लेग्री बोला - "तू मेरे पैरों-तले तो अब भी है। खैर, जाने दे, झगड़े की जरूरत नहीं (कासी की कमर में हाथ डालकर और उसकी कलाई पकड़कर) मेरी प्यारी, मेरी जान, इधर आ और मेरी जाँघ पर बैठ! सुन मैं तेरे फायदे की बात कहता हूँ।"
कासी ने कड़ककर कहा - "खबरदार! मुझे छूना मत। मुझपर शैतान सवार है।"
कासी की लाल-लाल आँखें और कड़कती आवाज सुनकर लेग्री थोड़ा सहम गया। वास्तव में लेग्री के डरने का कुछ विलक्षण कारण है। पर उसने डरने पर भी अपने मन का भाव छिपाते हुए पहले तो कासी को धमकाया - "जा, जा, चल यहाँ से!" फिर कुछ देर के बाद बोला - "कासी, तू ऐसा व्यव्हार क्यों करती है? पहले जैसे तू मुझपर प्रेम किया करती थी, मित्रता का बर्ताव करती थी, वैसे अब क्यों नहीं करती?"
कासी ने रुखाई से कहा - "क्या कहा? मैं तुमसे प्रेम करती थी!" किंतु इतना कहते-कहते उसका गला रुक गया।
पशुओं-जैसा आचरण करनेवाले पुरुषों को उन्मत्त स्त्रियाँ सहज में दबा सकती हैं। कासी भी जब चाहती, लेग्री को दबा लेती। पर आजकल कासी के साथ लेग्री का झगड़ा हो रहा था। वह एमेलिन को उपपत्नी बनाने की गरज से लाया था, पर वह किसी तरह अपना धर्म छोड़ने को राजी नहीं होती थी। इससे दुराचारी लेग्री एमेलिन पर तरह-तरह के अत्याचार करता था, जब-तब उस पर आक्रमण करने की भी इच्छा करता था। एमेलिन की दुर्दशा देखकर कासी के हृदय की सहानुभूति जाग उठती थी। इससे वह एमेलिन का पक्ष लेकर तरह-तरह की चतुराइयों से उसे लेग्री के आक्रमणों से बचाती थी। इसी लिए कासी और लेग्री का विवाद बढ़ गया था। लेग्री ने कासी को तंग करने के लिए अन्य कुलियों के साथ खेत पर भेज दिया। उसने सोचा, इससे कासी की अक्ल ठिकाने आ जाएगी। पर वह इससे भी उसके वश में न हुई और उसकी उपेक्षा करके खेत का काम करने को तैयार हो गई। यही कारण था कि इसके पहले दिन कासी कुलियों के साथ खेतों पर काम करने गई थी। कासी का यह आचरण देखकर लेग्री के मन में बड़ी बेचैनी पैदा हो गई। पहले दिन खेत में किए हुए काम की जाँच के समय लेग्री ने उसके साथ मेल करने की इच्छा से, कुछ सांत्वना-मिश्रित घृणा के भाव से, उससे बातें की थीं। पर कासी उससे मुँह फेरकर चली गई। आज फिर लेग्री कहने लगा - "कासी, तुम सीधी-सादी होकर रहो, उत्पात मत बढ़ाओ।"
कासी ने जवाब में कहा - "मुझी को क्यों कहते हो? तुम स्वयं क्या कर रहे हो? तुम सिर्फ दूसरों को कहना जानते हो। तुम्हें खुद तो जरा-सी भी अक्ल नहीं है। इन काम के दिनों में तुमने एक परिश्रमी और काम-काजी आदमी को अपनी सनक में आकर पीट-पाटकर निकम्मा बना दिया। इस काम में तुमने कौन-सी अक्लमंदी की?"
लेग्री बोला - "सचमुच मैंने बेवकूफी की है, लेकिन यह भी तो सोचो कि कोई आदमी जिद पकड़ ले तो उसे दुरुस्त भी तो करना चाहिए!"
कासी ने कहा - "मैं कहती हूँ, इस विषय में वह तुम्हारे किए कभी दुरुस्त नहीं होने का।"
लेग्री ने तब क्रोध से उठते हुए कहा - "मुझसे दुरुस्त नहीं होने का? मैं करके देखूँगा, होता है कि नहीं। ऐसा तो आज तक कोई गुलाम मुझे नहीं मिला, जो मेर हाथ से दुरुस्त न हुआ हो। मैं उसकी हड्डी-पसली चूरकर दूँगा!"
उसी समय कमरे का द्वार खोलकर सांबो अंदर आया। वह हाथ में एक काली-सी पोटली लटकाए हुए था। उसे देखकर लेग्री ने कहा - "क्यों बे सूअर, तेरे हाथ में क्या है?"
सांबो ने कहा - "सरकार जादू की पुड़िया!"
लेग्री बोला - "वह क्या होती है?"
सांबो ने उत्तर दिया - "हब्शी लोग जादू की पुड़िया पास रखते हैं। इसके पास रहने से कोड़ों की मार असर नहीं करती। टॉम ने काले डोरे से इसे गले में बाँध रखा था।"
ईश्वर-शून्य हृदय कायरता और कुसंस्कारों के पनपने के लिए उपयुक्त होता है। लेग्री को ईश्वर पर जरा भी विश्वास न था, इसी से उसका मन नाना प्रकार के कुसंस्कारों का घर बना हुआ था।
ज्योंहि उसने पोटली को हाथ में लेकर खोला, त्योंही उसमें से एक चांदी का सिक्का और लंबे-घुँघराले बालों का एक गुच्छा निकला। सुवर्ण की तरह चमकता हुआ वह बालों का गुच्छा, किसी जीवित पदार्थ की तरह, लेग्री की उँगलियों से चिपट गया। वह भय से चिल्लाकर बोल उठा - "चूल्हे में जाए!" उसका तात्कालिक भाव देखकर मालूम हुआ, मानो बालों के इस गुच्छे के छू जाने से उसका हाथ जल रहा है। वह जोर से जमीन पर लात पटककर, अँगुलियों से बालों को छुड़ाकर फेंकते हुए सांबो से बोला - "तुझे ये बाल कहाँ मिले? ले, अभी तुरंत ले जाकर जला डाल?" इतना कहकर सामने जलती हुई आग में उन बालों को फेंक दिया और सांबो से बोला - "खबरदार, जो ऐसी चीजें फिर कभी मेरे पास लाया!"
सांबो आश्चर्य से देखता खड़ा रह गया। कासी भी यह देखकर विस्मय से लेग्री का मुँह ताकने लगी। लेग्री ने कुछ स्थिर होकर सांबो को घूँसा दिखाते हुए कहा - "फिर कभी मेरे सामने यह जंजाल मत लाना!" लेग्री का ऐसा रुख देखकर सांबो वहाँ से नौ-दो-ग्यारह हो गया। उसके चले जाने पर लेग्री यह सोचकर कि ऐसी छोटी-सी बात पर मुझे इतना गुस्सा नहीं करना चाहिए, कुछ लज्जित-सा हो गया और फिर गिलास में ब्रांडी ढालकर गले में उड़ेलने लगा। कासी बाहर आकर चुपके-से टॉम को कुछ दवा-पानी देने चली गई।
यहाँ यह जानने की उत्कंठा होगी कि बालों के इस गुच्छे को देखकर लेग्री का क्रोध इतना क्यों भड़क उठा। वह उन्हें देखकर इतना क्यों डर गया! इसका मूल कारण जानने के लिए लेग्री के पूर्व जीवन की दो-चार घटनाओं का उल्लेख करना आवश्यक है।
इस पापात्मा लेग्री की माता अत्यंत सच्चरित्र और स्नेहमयी थी। अत: कितनी ही बार उत्तम-उत्तम भजनों के शब्द और ईश्वर का नाम लेग्री के कानों में बचपन में पड़ता रहा था। किंतु माता जितनी धार्मिक थी, पिता उतना ही दुष्टात्मा था। लेग्री की उम्र बढ़ने के साथ-साथ उसके स्वाभाव पर उसके दुष्ट पिता के संस्कार गहरे होने लगे। लेग्री की माँ आयलैंड के एक किसान की बेटी थी। उस सहृदय रमणी का भाग्य दैवेच्छा से इस पाशविक प्रकृतिवाले हृदयहीन मनुष्य के साथ बँध गया। युवावस्था शुरू होने के पहले ही लेग्री ने नाना तरह के नीच कर्मों में हिस्सा लिया था और इस विषय में अपनी साध्वी माँ के रोने-झींकने की भी कोई चिंता नहीं की थी। धन कमाकर उसके द्वारा भोग-विलास करना ही उसके जीवन का एकमात्र लक्ष्य था। सत्रह-अठारह वर्ष की उम्र में ही उसने घर छोड़कर अपने को जहाज के काम में लगाया। उस समय से वह जल-मार्ग से जानेवाली महिलाओं पर, समय-असमय घोर अत्याचार करता था। इसके बाद लेग्री केवल एक बार ही अपने घर गया था। उस समय उसकी माता ने उसे घर पर रहकर ही भले लोगों की तरह जीवन बिताने को कहा। माँ के रोने-धोने से लेग्री का मन क्षण भर के लिए पसीजा। उसकी जिंदगी में केवल यही क्षण उसके सुधार के लिए उपयुक्त था। यदि इस क्षण का उपयोग वह कर पाता तो शायद सुधर जाता। पर उसके हृदय पर पाप की ही विजय रही। उसने माँ के वचनों को नहीं माना। तब वह स्नेहमयी जननी बेटे के गले से लगकर रोने लगी, किंतु वह अपनी माँ को पैर से धकेलकर घर से चला आया। उसकी माँ बेहोश होकर जमीन पर पड़ी रही। विदेश जाकर फिर कभी उसने अपनी माँ की खोज-खबर नहीं ली।
एक दिन की बात है। वह अपने ही जैसे दुराचारी मित्रों के साथ बैठकर शराब पी रहा था और दो-तीन अनाथ कुली औरतों की अस्मत को जबरदस्ती बिगाड़ने की तैयारी कर रहा था कि इसी बीच एक नौकर ने आकर उसके हाथ में एक पत्र दिया। पत्र खोलते ही उसमें से बालों का एक गुच्छा निकला। वह बालों का गुच्छा उसकी अँगुलियों से लिपट गया। इस पत्र में उसकी माँ की मृत्यु की खबर थी और लिखा था कि मृत्यु के समय उसने पुत्र के सारे अपराधों को क्षमा करके ईश्वर से उसके कल्याण की प्रार्थना की थी। पत्र को पढ़कर लेग्री के मन में भय का संचार हुआ। अपनी माँ के वे सजल नेत्र उसे याद आए, जब वह उसे अंतिम बार पैर से धकेलकर चला आया था। माता द्वारा मृत्यु के समय की गई प्रार्थना का स्मरण करते ही उसका हृदय काँप उठा। परंतु ब्रांडी की बोतल और कुली युवतियाँ सामने बैठी थीं, यदि जल्दी ही जननी-संबंधी सारी स्मृति को हृदय से दूर नहीं किया तो सारा मजा ही किरकिरा हो जाएगा। उसने तुरंत अपनी जननी के बालों का गुच्छा और वह चिट्ठी आग में डाल दी। पर बालों के उस गुच्छे के जलते ही उसे फिर उसी भयंकर नरक की याद आई। उसका हृदय फिर काँप उठा, किंतु वह सामने रखी हुई बोतल से ब्रांडी ढाल-ढालकर पीने लगा, और किसी तरह इस भयानक चिंता से अपने को बचाने की फिक्र करने लगा। कुछ देर के लिए ब्रांडी ने उसके हृदय से वह स्मृति दूरकर दी। पर तब से प्राय: वह रात्रि के समय अपनी माँ को अपनी चारपाई के पास ही खड़ी देखा करता था। माँ का चेहरा उदास होता और उसकी आँखों में आँसू होते। माँ के वे बाल आकर उसकी अँगुलियों में लिपट जाते और वह भय तथा त्रास से काँप जाता। बाल जलाने के संबंध में लेग्री के जीवन में एक ऐसी ही घटना घट चुकी है, इसी से आज फिर बाल जलाने के समय उसे बड़ा डर लगा। इसी कारण वह सांबो पर इतना गुस्सा हुआ था। सांबो और कासी के चले जाने पर भी वह अपने मन को स्थिर नहीं कर सका। कुछ ही पलों के बाद बोला - "भाड़ में जाएँ ये सब बातें! इनको सोचकर क्या होगा!" वह फिर ब्रांडी के प्याले-पर-प्याले ढालने लगा। फिर मन-ही-मन सोचने लगा - "क्या बात है? वे बाल जैसे अँगुलियों से लिपट गए थे, वैसे ही ये बाल भी क्यों लिपट गए? क्या बालों में भी जान होती है? वे बाल क्या आग में जले नहीं?" वह फिर सोचने लगा - "मैं अब इन चिंताओं को मन में नहीं आने दूँगा। चलता हूँ एमेलिन के पास... बंदरिया मुझसे घिन करती है, पर मैं उसे हत्थे पर लाऊँगा। आज मैं उसे किसी भी तरह नहीं छोड़ने का!"
इतना कहकर लेग्री ऊपर के कमरे में एमेलिन के पास जाने लगा। सीढ़ी पर पाँव रखते ही उसके कानों ने एक गीत की कड़ी सुनी। गीत सुनकर वह ठिठक गया। केशों को जलाने से उसका मन अस्थिर हो गया था, अब गीत सुनकर वह और भी घबराया।
कोई अत्यंत करुण स्वर में गा रहा था :
हाय! कब छूटेगा संसार?
कब तक रोऊँगी अभाग्य पर, पड़कर नरक-मंझार।
शोक-निशा है ग्रसने वाली, हैं पीड़ा अपार।।
हाय! कब छूटेगा संसार?
गीता को सुनकर लेग्री का मन और भी उद्विग्न तथा अस्थिर हो गया। वह मन-ही-मन कहने लगा, भाड़ में जाए वह अभागी! मैं इसका गला घोंटकर मार डालूँगा। इसके बाद जल्दी-जल्दी पुकारने लगा - "एम!एम!" परंतु कहीं से कोई उत्तर न आया। केवल माँ! माँ! की प्रतिध्वनि ही उसे सुनाई पड़ रही थी। गीत अभी चल रहा था :
महाभयंकर वह दिन होगा, हा विधि! हा कर्तार!
जब पापानल में जल-भुनकर, होऊँगी मैं छार।।
हाय! कब छूटेगा संसार?
लेग्री फिर ठहरा। उसके सिर से पसीना निकलने लगा। उसका हृदय काँपने लगा। उसे मालूम होने लगा, मानो उसके सामने आँसू बहाती हुई उसकी माँ ही खड़ी है। तब वह मन में सोचने लगा - यह क्या हुआ? सचमुच ही यह टॉम जादू करना जानता है क्या? चलो, आगे उसे नहीं मारूँगा। लेकिन यह बालों का गुच्छा उसने कहाँ से पाया? क्या वे मेरी माँ के ही बाल थे? वे कैसे हो सकते हैं? उन्हें जलाए तो मुझे कई साल बीत गए! यह बालों का गुच्छा ठीक वैसा ही क्यों जान पड़ता था? अगर उन जले हुए बालों में जान आ गई, तो यह बड़ा मजाक होगा!
अरे ओ नराधम लेग्री! तू इन केशों की महिमा क्या जाने! तेरे-जैसे पापी इसे नहीं समझ सकता। इन केशों ने ही आज तेरे हाथ-पैरों में बंधन डाल दिए। ऐसा न होता तो इसी घड़ी तू उस निर्दोष निर्मल-चरित्र एमेलिन का जीवन-सर्वस्व हरण करके उसके परम पवित्र शरीर को अपवित्र कर देता। उसके निर्मल जीवन में कलंक की कालिमा लगा देता।
आज लेग्री के मन में भभकी हुई यंत्रणा की ज्वाला किसी भी उपाय से शांत नहीं हो रही है। अत: उसने मन-ही-मन निश्चय किया कि आज मैं अकेला नहीं रहूँगा। सांबो और कुइंबो को बुलाकर वह सारी रात उनके साथ शराब-कबाब उड़ाता रहा और हल्ला मचाता रहा। इनके शोरगुल के मारे दूसरे लोगों की नींद हराम हो रही थी। टॉम को पथ्य-पानी देकर कासी रात को एक बजे के बाद घर लौट रही थी। घर में घुसते ही उसे इनका शोर सुनाई पड़ा। उसने देखा कि शराब के नशे में चूर होकर लेग्री, सांबो और कुइंबो तीनों हाथापाई कर रहे हैं। कासी ने बरामदे में आकर, पर्दे को थोड़ा खिसकाकर इन लोगों की ओर देखा। उसकी आँखों में उस समय घोर द्वेष और घृणा के भाव दिखाई पड़े। वह मन-ही-मन सोचने लगी-क्या इस नर-पिशाच से मानव-समाज को मुक्त करने की कोई सूरत निकलेगी? यही सोचते हुए वह सीढ़ियाँ चढ़कर दुमंजिले पर पहुँची और धीरे-धीरे एमेलिन का दरवाजा खटखटाने लगी।