36 - अत्याचारों की पराकाष्ठा
टॉम ने थोड़े ही समय में लेग्री के खेत के काम ढंग और यहाँ का रवैया समझ लिया। कार्य में वह बड़ा चतुर था, और अपने पुराने अभ्यास तथा चरित्र की साधुता के कारण किसी कार्य में भूल अथवा लापरवाही न करता था। उसका स्वाभाव भी शांत था, इससे उसने मन-ही-मन सोचा कि यदि मेहनत करने में हीला-हवाला न किया जाए तो कदाचित कोड़ों की मार न सहनी पड़े। यहाँ के भयानक अत्याचार और उत्पीड़न देखकर उसकी छाती दहल गई। पर वह ईश्वर को आत्म-समर्पण करके धीरज के साथ काम करने लगा। उसका मन कभी एकदम निराश न होता था। उसका दृढ़ विश्वास था कि ईश्वर सदा उसकी रक्षा करेगा। किसी-न-किसी तरह वह मंगलमय पिता मेरा बेड़ा अवश्य पार लगाएगा।
लेग्री साहब टॉम का काम-काज विशेष ध्यान देकर देखने लगा। उसने शीघ्र ही समझ लिया कि काम में टॉम बड़ा चतुर है, पर टॉम के प्रति उसका जो विद्वेष-भाव था, वह किसी तरह न टला। इसका मूल तत्व क्या था, यह लेग्री-सरीखे मनुष्य की समझ के बाहर था। झूठे का सच्चे पर, पापी का पुण्यात्मा पर और अधर्मी का धर्मात्मा पर एक प्रकार का सहज द्वेष-भाव होता है। यही कारण है कि संसार में परम धार्मिक देश सुधारक अपने ही देशवालों की दृष्टि में खटकते हैं। जिनके लिए वे अपनी जान न्यौछावर करने को तैयार रहते हैं, वही लोग उनकी जान के ग्राहक बन जाते हैं।
लेग्री इस बात को भली भाँति समझ गया था कि वह गुलामों के साथ जो कठोर बर्ताव और अत्याचार करता है, उसे टॉम बड़ी घृणा की दृष्टि से देखता है। पर संसार का नियम है कि भले-बुरे सभी प्रकार के लोग दूसरे की प्रशंसा के भूखे रहते हैं। जब तक दूसरे लोग उनके आचरण और मत का अनुमोदन न करें, तब तक उनके जी को संतोष नहीं होता। कभी-कभी ऐसा भी होता है कि एक गुलाम तक का प्रतिकूल मत असह्य हो जाता है। इसके सिवा लेग्री ने यह भी देखा कि टॉम जब-जब दूसरे दास-दासियों पर दया प्रकट करता है, उनको कोई कष्ट होने पर स्वयं दु:खित होता है। लेग्री के खेत में दास-दासियों में परस्पर कभी सहानुभूति के चिह्न दिखाई नहीं पड़े थे। इससे टॉम का आचरण उसे असह्य हो गया। टॉम को परिदर्शक के काम पर नियुक्त करने के लिए ही लेग्री इतने अधिक दाम देकर उसे खरीदकर लाया था; लेकिन जिस आदमी की प्रकृति अत्यंत कठोर न हो वह परिदर्शक के काम के लिए नहीं चुना जा सकता। परिदर्शक को सदा कुलियों की पीठ पर कोड़े लगाने का काम करना पड़ता था। टॉम अन्य सब कामों में पक्का होने पर भी इस अत्यावश्यक गुण से सर्वथा वंचित था। इससे लेग्री साहब ने सोचा कि टॉम का हृदय कठिन और निष्ठुर बनाने के लिए शीघ्र ही उपाय करना होगा। हृदय को निष्ठुर बनाने की नवीन शिक्षा-प्रणाली का उपयोग अविलंब किया गया।
एक दिन प्रात: काल जब सब दास-दासी खेत पर जाने के लिए जुटे, उस समय टॉम ने इस दल में आश्चर्य के साथ एक नई स्त्री को देखा। टॉम का ध्यान उसकी ओर खिंच गया। स्त्री लंबी और कमनीय थी। उसके हाथ-पैर कोमल थे और उसके वस्त्र भलेमानसों के-से थे। उम्र चालीस-पैंतालीस के लगभग होगी। इसके मुख पर ऐसा भाव था कि जिसने एक बार देख लिया, वह सहज ही भूल नहीं सकता था। इसके भाव से ऐसा जान पड़ता था, मानो इसके जीवन का इतिहास अनेक कष्टकर और अदभुत घटनाओं से भरा हुआ है। इसका प्रशस्त ललाट, विशाल उज्ज्वल नेत्र, टेढ़ी और घनी भौंहें मुखमंडल को शोभायमान कर रही थीं। इसके अंगों के गठन से जान पड़ता था कि यह रमणी युवावस्था में बड़ी सुंदर रही होगी। लेकिन शोक और दु:ख के चिह्नों ने अब उस सौंदर्य को बिगाड़ दिया था। उसके चेहरे पर घोर विद्वेष, नैराश्य और अहंकारजन्य एक अद्भुत सहिष्णुता का भाव झलक रहा था। वह स्त्री कहाँ से आई और कौन है, टॉम को इसका कुछ भी पता न था। पर वह स्त्री खेत को जाते समय बराबर टॉम की बगल में चल रही थी। मालूम होता था कि खेत के अन्य दास-दासी इसे भली भाँति जानते थे, क्योंकि उन नीच-प्रकृति के जीर्ण-शीर्ण कपड़ों से ढके कुलियों में कोई उसे देखकर मुस्कराया, किसी ने मजाक उड़ाया, कोई उसे घूरने लगा और किसी-किसी ने बड़ा आनंद मनाया। एक ने कहा - "क्यों बीवी, अंत में आ न गई ठिकाने पर! मुझे बड़ी खुशी हुई।"
दूसरे ने कहा - "अब मालूम होगा, बीवी, कि यहाँ गुलछर्रें नहीं उड़ते हैं।"
तीसरा बोला - "देखना है, कैसा काम करती है। काम न करने पर इसकी भी कोड़ों से खबर ली जाएगी।"
चौथे ने कहा - "इसकी पीठ पर कोड़े लगें तो मैं बड़ा खुश होऊँगा।"
उस स्त्री ने इस सबकी कुछ भी परवा न की। वह अपनी उसी गंभीर चाल से चलती रही, मानो वह कुछ सुनती ही नहीं। टॉम सदा से सभ्यों में रहा था। स्त्री की चाल-ढाल से उसने समझ लिया कि जरूर यह कोई सभ्य स्त्री होगी। पर इसकी यह दुर्दशा क्यों हो रही है, इसका कुछ निर्णय न कर सका। स्त्री यद्यपि बराबर टॉम के पास चल रही थी, पर टॉम से एक शब्द भी न बोली।
टॉम शीघ्र ही खेत पर पहुँचकर काम में लग गया। वह स्त्री उससे बहुत दूर न थी। इससे वह बीच-बीच में आँख उठाकर उसके काम की ओर देखता जाता था। उसने देखा कि वह बड़ी फुर्ती से काम कर रही है। औरों की अपेक्षा वह बहुत शीघ्रता और आसानी से कपास चुनने लगी; पर जान पड़ता था कि वह बड़ी विरक्ति, घृणा और अभिमान के साथ यह काम कर रही है।
टॉम के बगल में ही, नीलामी में उसके साथ खरीदी हुई, लूसी नाम की दासी बैठी कपास बीन रही थी। यहाँ आने के बाद यह स्त्री बहुत ही कमजोर और बीमार हो गई। वह कपास बीनती जाती थी और क्षण-क्षण में मृत्यु को बुलाती जाती थी। कभी-कभी एकदम धरती पर पसर जाती थी। टॉम ने उसके पास सरककर चुपके से अपनी डलिया में से थोड़ी कपास निकालकर उसकी डलिया में डाल दी।
लूसी ने आश्चर्य के साथ देखते हुए कहा - "अरे, नहीं-नहीं, ऐसा मत करो। इसके लिए तुम आफत में पड़ जाओगे।"
ठीक इसी समय वहाँ सांबो आ पहुँचा। लूसी को एक ठोकर मारी। इससे लूसी बेहोश हो गई।
तब सांबो टॉम के पास जाकर उसके मुँह और पीठ पर चाबुक फटकारने लगा।
टाप चुपचाप अपना काम करता रहा। पर लूसी को अचेत हुई देखकर परिदर्शक का एक दूसरा साथी नौकर कहने लगा - "अभी इस हरामजादी को होश में लाता हूँ।"
इतना कहकर उसने जेब से एक आलपिन निकालकर उसके सिर में चुभो दी। इससे लूसी कराह उठी। परिचालक बोला - "उठ हरामजादी, मुझसे यह सब ढोंग नहीं चलेगा। मैं तेरी सब बदमाशी निकाल दूँगा।"
लूसी होश में आकर कुछ उत्तेजित-सी होकर तेजी के साथ कपास इकट्ठी करने लगी।
उस आदमी ने कहा - "देख, अगर इसी तरह जल्दी-जल्दी काम नहीं करेगी तो तुझे यमराज के घर पहुँचा दूँगा।"
टॉम ने सुना, लूसी ने कहा - "जल्दी भेज दो तो जान बचे!" फिर सुना - "हे भगवान, हे परमात्मन्, अब कितना सहना पड़ेगा! क्या इस दुनिया से मुझे नहीं उठा लोगे?"
टॉम जानता था कि यदि शाम तक लूसी डलिया भर कपास न दे सकी, तो इसकी जान की खैरियत नहीं। लेग्री मारे कोड़ों के इसकी चमड़ी उधेड़ देगा। अत: उसके लिए अपनी आफत की कुछ भी परवा न करके उसने अपनी सारी कपास उसकी डलिया में डाल दी।
लूसी ने कहा - "अरे, ऐसा मत करो।… तुम नहीं जानते कि इसके लिए वे तुम्हारी कितनी आफत करेंगे।"
"मैं तुम्हारी निस्बत अच्छी तरह सह सकता हूँ।" इतना कहकर टॉम फिर अपनी जगह पर जा डटा। यह एक क्षण भर की बात थी।
एकाएक पूर्वोक्त अपरिचित रमणी काम करते-करते टॉम के इतने निकट आ गई कि उसने टॉम के अंतिम शब्द सुने, और फिर पल भर अपनी बड़ी-बड़ी काली आँखें उन लोगों पर गड़ाकर देखने लगी। इसके बाद अपनी डलिया से थोड़ी-सी कपास लेकर टॉम की डलिया में डालकर बोली - "तुम अभी यहाँ का कायदा बिलकुल नहीं जानते हो। यहाँ एक महीना तो बीतने दो, फिर दूसरे की सहायता करना तो दूर रहा, तुम्हें अपनी ही जान बचानी मुश्किल हो जाएगी।"
एक परिचालक थोड़ी दूर पर उस स्त्री की यह कार्रवाई देख रहा था। वह चाबुक लिए हुए वहाँ पहुँचा और विजय के स्वर में बोला - "हाँ हाँ, क्या करती हो? मैं तुम्हारी सारी हरकतें देखता हूँ। तुम इस समय मेरे वश में हो, यह सब चाल नहीं चलेगी।"
उस स्त्री ने बड़ी कड़ी नजर से परिचालक की ओर देखा। उसके ओंठ फड़कने लगे और आँखों से चिनगारियाँ बरसने लगीं। वह परिचालक को डाँटकर बोली - "सूअर, पाजी! आ तो एक बार मेरे पास। देखूँ तेरी हिम्मत! अब भी मुझमें इतनी क्षमता है कि शिकारी कुत्तों से तेरी बोटी-बोटी नुचवाकर जिंदा गड़वा दूँ। तू मेरे सामने रौब दिखाने आया है!"
उसकी बातों से सहमकर परिचालक बोला - "शैतान की बच्ची, तब तू यहाँ काम करने क्यों आई है? मिस कासी, तुम मेरा कोई नुकसान न करना।"
रमणी बोली - "तू, यहाँ से दूर हट!"
परिचालक वहाँ से हटकर दूसरी ओर कुलियों का काम देखने चला गया।
वह स्त्री फिर तेजी से अपने काम में लग गई। उसका गजब का फुर्तीलापन देखकर टॉम चौंधिया गया। दिन डूबने के पहले ही उसकी डलिया फिर भर गई और तारीफ यह कि बीच में उसने कई बार अपनी कपास टॉम की डलिया में भी डाल दी थी। संध्या के बाद अधिक अंधकार हो जाने पर सब कुली सिर पर अपनी डलिया रखे हुए कपास के गोदाम पर, जहाँ तौल होता था, पहुँचे। लेग्री वहाँ बैठा दो परिचालकों से घुल-घुलकर बातें कर रहा था।
लेग्री ने कहा - "इस काले गुलाम टॉम को ठीक करना चाहिए। यह जल्दी रास्ते पर नहीं आएगा, बड़ी मेहनत लेगा।"
हब्शी परिचालक खीसें निकालकर हँसने लगा। पर कुइंबो बोला - "हुजूर ही से यह ठीक होगा। आप जिस जोर से चाबुक लगाना जानते हैं, शैतान भी वैसा नहीं जानता।"
लेग्री बोला - "इसे सिखाने का सबसे अच्छा और सीधा उपाय यह होगा कि इसे दूसरी स्त्रियों को कोड़े लगाने का काम सौंपा जाए।"
कुइंबो ने कहा - "हाँ, सरकार, लेकिन यह बात वह कभी मंजूर नहीं करेगा। मार-पीट करने के लिए वह कभी तैयार न होगा। उसका वह धरमपना दूर करना सरल नहीं है।"
लेग्री बोला - "मैं आज ही उसका धरमपना निकाले देता हूँ।"
इतने में सांबो ने कहा - "यह देखिए, लूसी ने कोई काम नहीं किया। दिन भर बैठी रही, यह बड़ी बदजात है। कुलियों में ऐसा और पाजी नहीं है।"
कुइंबो बोला - "खबरदार सांबो, मैं जानता हूँ कि लूसी से तू क्यों खार खाता है।"
सांबो ने लेग्री की ओर देखकर कहा - "सरदार, आप ही ने तो उसे मेरी औरत बनाने को कहा था, पर वह आपकी बात नहीं मानती।"
लेग्री ने बहादुरी से कहा - "मैं मारते-मारते उसकी चमड़ी उधेड़ देता। लेकिन आज-कल काम की भीड़ है, इससे नुकसान होगा।"
"लूसी बड़ी बद है, कुछ नहीं करना चाहती। सिर्फ दिक करती है और यह टॉम उसकी मदद करता है।" कुइंबो ने कहा।
"टॉम ने इसकी मदद की है? अच्छा, तो टॉम ही इसको कोड़े भी लगावे। इससे टॉम खूब सीख जाएगा। यह शैतान यों ही अधमरी हो रही है। तुम लोगों की मार से तो मरने का भी डर है, पर टॉम उतने जोर से कोड़े नहीं लगावेगा, इससे वह भी डर नहीं है।"
यह बात सुनकर सांबो और कुइंबो खीसें निकालकर हँसने लगे।
परिचालकों ने कहा - "लेकिन सरकार, टॉम ने और मिस कासी ने लूसी की डलिया में बड़ी कपास डाली है।"
लेग्री बोला - "मैं अभी तौले लेता हूँ।" वे दोनों परिचालक फिर ठठाकर हँसे।
लेग्री ने पूछा - "मिस कासी ने अपना दिन भर का काम तो पूरा कर लिया है न?"
परिचालक ने जवाब दिया - "सरकार, काम तो वह शैतान की तरह करती है।"
लेग्री ने सबकी कपास तौलने की आज्ञा दी। कुली बहुत थक गए थे। इससे बड़े कष्ट से अपनी-अपनी डलिया उठाकर काँटे पर रखने लगे। लेग्री हाथ में स्लेट लेकर तौल और नाम लिखने लगा।
टॉम की टोकरी का तौल हुआ और उसका काम संतोषजनक पाया गया। अपनी टोकरी तुल जाने के बाद टॉम बड़ी उत्कंठा से लूसी की टोकरी की ओर देखने लगा।
लूसी ने डरते और काँपते हुए अपनी टोकरी लाकर रखी। तौल में वह पूरी थी, पर लेग्री ने उसे धमकाने की नीयत से बनावटी गुस्से से कहा - "यह हरामजादी बड़ी सुस्त है। आज भी कपास कम है। इसे किनारे खड़ा करो, अभी इसकी खबर ली जाती है।" लूसी ने निराशा से एक ठंडी साँस ली और एक तख्ते पर बैठ गई।
फिर उस कासी नाम की स्त्री ने बड़ी अवज्ञा और उद्धतता के साथ अपनी टोकरी लाकर रखी। लेग्री विद्रूप और कौतूहल से उसका मुख देखने लगा।
कासी आँखें गड़ाकर लेग्री की ओर घूरने लगी। उसके होठ फड़कने लगे। उसने फ्रेंच भाषा में लेग्री से कुछ कहा। बात किसी की समझ में न आई, पर लेग्री का चेहरा पिशाच-सा हो गया, और उसने कासी को मारने के लिए हाथ उठाया। रमणी घृणा दिखाती हुई निर्भीकतापूर्वक वहाँ से चल दी।
कुछ देर बात लेग्री ने टॉम को बुलाकर कहा - "टॉम, मैंने तुझे साधारण कुली का काम करने के लिए नहीं खरीदा है। मैं तुझे परिचालक का ओहदा दूँगा और ठीक काम करने पर तू तरक्की पाकर परिदर्शक भी हो सकेगा। कुलियों को किस तरह कोड़ों से पीटा जाता है, यह तूने इतने दिन देख-सुनकर खूब सीख लिया होगा। जा, इस लूसी को कोड़े लगा! यह हरामजादी बड़ी शरारती है।"
टॉम ने कहा - "मुझे माफ कीजिए। कृपा करके मुझे इस काम में मत लगाइए। यह मुझसे नहीं हो सकेगा। न मैंने कभी ऐसा काम किया है, न करूँगा।"
टॉम की बात सुनकर लेग्री क्रुद्ध होकर कहने लगा - "तू जरूर कर सकेगा।"
इतना कहकर और चमड़े का चाबुक लेकर वह टॉम को पीटने और उसके मुँह पर घूँसों की वर्षा करने लगा। करीब पंद्रह मिनट तक लात, घूँसे और कोड़े बरसाकर बोला - "बोल, अब भी इनकार करता है?"
टॉम की नाक से खून बहने लगा। उसे पोछते हुए उसने कहा - "सरकार, मैं दिन-रात काम करने को तैयार हूँ। इस शरीर में जितने दिन तक प्राण हैं, आपकी नौकरी बजाऊँगा; लेकिन इस काम को मैं अनुचित समझता हूँ। सरकार, यह मुझसे कभी नहीं होगा - मैं कभी नहीं करूँगा, कभी नहीं।"
टॉम बोलने में सदा से विनयी था। उसके बोलने का ढंग विशेष सम्मान-सूचक था। लेग्री ने सोचा कि टॉम डर गया है, शीघ्र ही वश में आ जाएगा। पर उसके अंतिम शब्द सुनकर कुली लोग चौंक पड़े। लूसी हाथ जोड़कर बोली - "हे भगवान!"
सब लोग एक-दूसरे का मुँह देखने लगे, सब शंकित मन से आनेवाली विपत्ति की प्रतीक्षा करने लगे।
लेग्री कुछ देर निस्तब्ध-सा और हतबुद्धि-सा रहा, लेकिन थोड़ी देर बाद गरजकर बोला - "क्यों रे हरामी के बच्चे, बोल, तू मेरी बात को अनुचित समझता है? तुझे उचित और अनुचित का विचार करने की क्या पड़ी है? क्यों बे, तू अपने को क्या समझता है? सूअर, तू अपने को बड़ा शरीफ का बच्चा समझता है कि अपने मालिक के सामने उचित-अनुचित करता है! इस छोकरी को कोड़े लगाने को तू अन्याय समझने का बहाना लगाता है।"
टॉम ने कहा - "सरकार, मैं इसे मारना अन्याय समझता हूँ। यह स्त्री रोगी और कमजोर है, इसे मारना निर्दयता है। मैं ऐसा काम नहीं करूँगा। सरकार, मुझे मारना चाहें तो मार डालें। मुझे मरना कबूल है, लेकिन इनमें से किसी को मारने के लिए मेरा हाथ नहीं उठेगा।"
टॉम ने धीमे स्वर में बातें कही थी; पर उसके वाक्यों से उसके हृदय की दृढ़ता और अटल प्रतिज्ञा का पता चलता था। लेग्री क्रोध से काँपने लगा। उसकी आँखों से चिनगारियाँ निकलने लगीं, पर जैसे कुछ भयंकर जंतु अपने शिकार को एकदम न मारकर धीरे-धीरे खिला-खिलाकर मारते हैं, वैसे ही लेग्री ने भी टॉम को तत्काल कोई जबरदस्त सजा नहीं दी। क्रोध के वेग को तनिक रोककर वह उस पर तीव्र व्यंग्य-बाण छोड़ते हुए कहने लगा - "चलो, अंत में हम पापियों के दल में यह एक धर्मात्मा कुत्ता आ गया। यह किसी महात्मा और किसी सज्जन से कम नहीं। हम सब पाखंडी हैं। यह हम लोगों को यहाँ हमारे पापों की जानकारी कराने आया है। वाह, कैसा धर्मात्मा है! क्यों रे बदजात, तू धर्म का तो बड़ा ढोंग रचता है पर क्या तूने बाइबिल से यह बात नहीं सुनी - "अरे नौकरो, अपने मालिक के हुक्म की तामील करो।" मैं क्या तेरा मालिक नहीं हूँ? तेरे इस काले शरीर के बारह सौ डालर नकद नहीं गिने? बोल, इस समय तेरी आत्मा और शरीर मेरा है या नहीं?" उसने टॉम को अपने डबल जूतों की जोर से ठोकर लगाते हुए कहा - "बोल, बोल, बता!"
इस भयंकर शारीरिक यंत्रणा में, इस घोर पाशविक अत्याचार से मुर्दार हुए रहने पर भी, टॉम के हृदय में लेग्री के इस प्रश्न से आनंद और जयोल्लास की धारा बह निकली। वह एकाएक सिर ऊँचा करके खड़ा हुआ। उसके घायल मुख से जो खून की धार बह रही थी, उस खून के साथ आँसुओं की धारा का मेल होने लगा। टॉम आँखें उठाकर विश्वासपूर्वक कहने लगा - "नहीं, नहीं, नहीं, सरकार, मेरी आत्मा आपकी कभी नहीं है। आपने इसे नहीं खरीदा है - तुम इसे नहीं खरीद सकते। यह उसी एक के हाथ बिकी हुई है, जो इसकी रक्षा करने में समर्थ है। कोई परवा नहीं, कोई परवा नहीं! इस शरीर को तुम जितना चाहो, उतना सता लो, आत्मा का तुम कुछ नहीं बिगाड़ सकते।"
लेग्री ने त्यौरी चढ़ाकर कहा - "मैं कुछ नहीं बिगाड़ सकता? देखता हूँ, देखता हूँ। अरे सांबो, कुइंबो, लो, इस सूअर को दुरुस्त करो। ऐसी मार मारो कि महीने भर खाट से सिर न उठा सके।"
दोनों यमदूत-सरीखे नर-पिशाच तत्काल टॉम को बाहर खींचकर ले गए और पीटने लगे। यह देखकर लूसी बार-बार चीखने लगी।