Tom Kaka Ki Kutia - 34 in Hindi Fiction Stories by Harriet Beecher Stowe books and stories PDF | टॉम काका की कुटिया - 34

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टॉम काका की कुटिया - 34

34 - नाव में

रेड नदी में एक छोटी-सी नाव पाल डाले दक्षिण की ओर बढ़ी चली जा रही है। नाव में कई दास-दासियों के रोने और सिसकने की आवाजें आ रही हैं। टॉम इन्हीं के बीच बैठा है। उसके हाथ-पैर जंजीर से जकड़े हुए हैं, पर उसका हृदय जिस दु:ख से दबा जा रहा है, उस दु:ख का बोझ हथकड़ी-बेड़ियों से भी अधिक है। उसकी सारी आशा-आकांक्षाओं पर पानी फिर गया है। पीछे छूटते हुए नदी-तट के वृक्षों की भाँति उसके सामने जो कुछ था, वह एक-एक करके पीछे छूट गया। अब वे नहीं दीख पड़ेंगे, अब वे नहीं लौटेंगे। केंटाकी का घर, स्त्री, पुत्र, कन्या और उस उदार लज्जा का परिवार आज कहाँ है? सेंटक्लेयर का घर। उस घर की वह विपुल शोभा-समृद्धि, इवा का वह देवोपम मुखचंद्र। वह उन्नतचेता सुंदर प्रफुल्लमूर्ति, कोमल-प्राण सेंटक्लेयर, वह परिश्रम-रहित जीवन, वह सुख के विश्राम दिवस - सब एक-एक करके जाते रहे, अब उनकी जगह रह गई है स्वप्न की-सी स्मृति।

 टॉम ने नए खरीदार लेग्री साहब ने न्यू अर्लिंस की कई आढ़तों से आठ दास-दासी खरीदे थे। इनमें दो-दो को एक बंधन में जकड़ रखा था। लेग्री साहब कुछ दूर नाव पर चलने के बाद, राह में नदी के मुहाने पर, सबको साथ लेकर "पॉट्रेस्ट" नामक जहाज पर सवार हुआ। सब दास-दासियों को सवार करा लेने के बाद वह टॉम के पास आया। सेंटक्लेयर के यहाँ टॉम सदा अच्छे कपड़े पहना करता था। बेचने के पहले आढ़तवालों ने टॉम को अपना सबसे बढ़िया कपड़ा पहनने का हुक्म दिया था। उस समय का पहना बढ़िया कपड़ा अभी तक उसके बदन पर था। लेग्री ने आकर उससे कहा - "खड़ा हो!"

 टॉम खड़ा हो गया।

 अब लेग्री ने उससे वह बढ़िया कपड़ा उतार देने को कहा। टॉम उतारने लगा। पर हाथ जंजर में जकड़े होने से वह झटपट उतार न सका। इस पर लेग्री ने स्वयं जोर से उसके कपड़े खींचकर उतारे। फिर वह सेंटक्लेयर के दिए हुए उसके बक्से की ओर घूमा। इसे उसने पहले ही खोल कर देख लिया था। उसमें से पुराना कोट और पतलून निकालकर टॉम को पहनने को दिया। टॉम इस पतलून को घूड़साल में काम करने के वक्त के सिवा और कभी न पहनता था। इस समय लेग्री की आज्ञानुसार वह फटीपुरानी पतलून उसे पहननी पड़ी। फिर लेग्री ने उसके बूट उतरवाकर एक जोड़ी फटा जूता पहनने को दिया। वह भी उसने पहन लिया।

 इस जल्दी में भी, कपड़ों की अदला-बदली में, टॉम ने अपने कोट की पॉकेट से बाइबिल निकाल ली, नहीं तो उसे इससे भी हाथ धोना पड़ता। कपड़े उतारते ही लेग्री उसकी जेबें टटोलने लगा कि उनमें क्या रखा है। कोट की पाकेट से इवा का दिया हुआ एक रेशमी रूमाल निकला। उसे तुरंत उसने अपनी जेब के हवाले किया। फिर दूसरी जेब से एक प्रार्थना-पुस्तक निकाली। टॉम जल्दी में इसे निकालना भूल गया था। इस पुस्तक को देखते ही लेग्री क्रोध से जल उठा। बोला - "क्यों रे, तेरा गिर्जे से ताल्लुक रहता है?"

 टॉम ने दृढ़ता से कहा - "जी सरकार!"

 लेग्री ने आग-बबूला होकर कहा - "मैं तेरे यह सब पाखंड जल्दी ही निकाल दूँगा। मैं अपने खेत के कुली-कुबाड़ियों को भजन या उपासना नहीं करने देता। इसे अच्छी तरह समझ ले। अब तू अपने मन में जान ले कि मैं ही तेरा गिर्जा और मैं ही तेरा सब-कुछ हूँ। जो मैं कहूँगा, वही तुझे करना पड़ेगा।"

 लेग्री ने बड़ी लाल-पीली आँखें करके टॉम से ये बातें कहीं। उस समय टॉम चुप था, पर उसकी अंतरात्मा कह रही थी - नहीं, कभी नहीं, न तू मेरा गिर्जा है, न कुछ है। इस समय बाइबिल का वह वाक्य, जो सदा इवा उसके सामने पढ़ा करती थी, उसे याद आया - जान पड़ा, मानो उसे धीरज दिलाने के लिए कहीं से आवाज आ रही है - "डरना मत; क्योंकि मैंने तेरा उद्धार किया है।... मैंने तुझे अपना नाम दिया है। तू मेरा ही होगा!"

 पर लेग्री के कानों में यह ध्वनि नहीं पड़ी। पाप-पूर्ण कर्णों में यह ध्वनि प्रवेश नहीं कर सकती थी। टॉम के नीचे किए हुए चेहरे की ओर जरा देर लेग्री देखता रहा, फिर दूसरी ओर को चल दिया। सेंटक्लेयर ने टॉम को कुछ कीमती कपड़े दिए थे। अर्थपिशाच लेग्री ने लोभ में पड़कर टॉम का सब-कुछ नीलाम कर डाला, यहाँ तक कि संदूक भी बेच दिया और जो कुछ मिला, सब हड़प गया। कानून से दासों का किसी चीज पर अधिकार नहीं है। इसी से जब टॉम को लेग्री खरीद चुका तो उसके सारे माल-असबाब का भी वही मालिक हो गया। इस नीलाम के समय टॉम पर क्या बीती, यह वही जानता था।

 माल-असबाब को नीलामकर चुकने पर लेग्री फिर टॉम के पास पहुँचकर बोला - "टॉम, तेरा जो कुछ असबाब का झंझट था, सब मैंने नीलाम में पार कर दिया। अब जो कपड़े तेरे पास हैं, उन्हें सँभालकर रखना। एक बरस के पहले मेरे यहाँ दूसरे कपड़े नहीं मिलेंगे। मैं अपने यहाँ के हब्शियों को साल में बस एक बार कपड़े देता हूँ।"

 इसके बाद जहाँ एमेलिन दूसरी स्त्री के साथ जंजीर में बँधी बैठी थी, वहाँ लेग्री पहुँचा। उसने एमेलिन की ठोड़ी पकड़कर कहा - "मेरी प्यारी, उदासी को छोड़ो!"

 वह सच्चरित्र बालिका भय और घृणा से उसकी ओर देखने लगी। यह देखकर उसने कहा - "इस तरह मुँह बनाने से काम नहीं चलेगा। यह सब छोड़ो। मेरे सामने सदा खुश रहना पड़ेगा। सुनती है न?"

 फिर एमेलिन के साथ जंजीर से बँधी हुई दूसरी स्त्री को धक्का देकर बोला - "अरी बुढ़िया, यह हांडी-सा मुँह बनाए क्या पड़ी है? तुझसे कहता हूँ, जरा हँसकर बोल। यह मुँह बनाना छोड़ दे।"

 दो-चार कदम पीछे हटकर और फिर आगे बढ़कर वह बोला - "मैं तुम सभी से कहता हूँ, मुँह इधर करके एक बार मेरी ओर देखो, ठीक मेरी आँखों की ओर ताको। (जोर से पृथ्वी पर पैट पटककर) एक बार, एक नजर मेरी ओर देखो।"

 मारे डर के सबकी आँखें उसकी ओर लग गईं। फिर वह लोहे का मुग्दर-सा अपना मुक्का दिखाकर कहने लगा - "जरा इस मुक्के की ओर देखो। यह मुक्का लोहे से भी सख्त है। हब्शियों को ठोकते-ठोकते ही हाथ ऐसा कड़ा हो गया है।"

 इतना कहते-कहते अपना वह मुक्का बँधा हुआ हाथ टॉम के मुँह के पास ले गया। टॉम डरकर पीछे सरक गया। फिर लेग्री कहने लगा - "मैं तुम सबको समझाए देता हूँ, मैं खेत में रखवाला नहीं रखता, सब काम खुद ही देखता-सुनता हूँ। तुम सभी को अच्छी तरह काम करना पड़ेगा। जब जो बात बोलूँगा, उसकी तामील तुरंत करनी पड़ेगी। इसी ढंग से मैं काम लेता हूँ। मेरे यहाँ दया-माया से कोई सरोकार नहीं। इसे तुम लोग खूब समझ लो। मुझे वह सब दया-माया दिखलाना पसंद नहीं है।"

 उसकी बातें सुनकर दास-दासियों की जान सूख गई और सब ठंडी साँसें लेने लगे। कुछ देर बाद वह शराब पीने के लिए जहाज के दूसरे कमरे में जाने लगा। उसके पास ही कोई भलामानस आदमी खड़ा था। उससे वह कहने लगा - "मैं अपने हब्शियों के साथ इसी तरह का बर्ताव आरंभ करता हूँ। मेरी यह चाल है कि खरीदकर लाते ही मैं इन्हें सब समझा देता हूँ कि किस तरह से इन्हें मेरे साथ रहना होगा।"

 उस अपरिचित भलेमानस ने बड़े गौर से उसकी ओर इस तरह देखा, मानो कोई पंडित किसी नई वस्तु की जाँच कर रहा हो। फिर कहा - "बेशक!"

 लेग्री ने और आगे कहा - "हाँ, मैं ऐसे नाजुक-नाजुक हाथोंवाला खेतिहर नहीं हूँ कि कुलियों को कोड़े लगाने का काम रखवाले को सौंपूँ। यह देखिए, मेरी मुट्ठी और अंगुलियाँ एकदम फौलाद की मानिंद है। इस जगह का हाथ का मांस पत्थर-सा कड़ा हो गया है। और कोई बात नहीं, यह हब्शियों को ठोकते-ठोकते ऐसा हो गया है।"

 उस अपरिचित ने लेग्री का हाथ देखकर कहा - "बेशक, बहुत कड़ा हो गया है; पर मैं समझता हूँ कि इस अभ्यास से तुम्हारा हृदय इससे भी ज्यादा सख्त हो गया है।"

 लेग्री ने हँसते हुए कहा - "हाँ, क्यों नहीं, यह तो ठीक ही है। मैं काम में दया-माया के चक्कर में नहीं पड़ता।"

 "तुमने बहुत अच्छे दास-दासी खरीदे हैं।"

 "हाँ, अच्छे ही हैं। यह जो टॉम दीख पड़ता है, इसकी सब लोगों ने तारीफ की थी। इसके लिए मुझे कुछ ज्यादा देना पड़ा, पर इससे काम भी खूब लूँगा। लेकिन इसने कुछ बुरी बातें सीख रखी हैं। धर्म की ओर इसका बड़ा झुकाव है, पर यह सब मैं जल्दी ही निकाल बाहर करूँगा। यह अधेड़ दासी खूब सस्ते में हाथ लगी। मैं समझता हूँ, इसे कोई बीमारी होगी। सोचता हूँ, दो बरस तो चलेगी, और दो बरस में मैं खूब मेहनत लेकर अपनी कीमत वसूल कर लूँगा। बहुत-से खेतिहर, बीमार पड़ जाने पर मर जाने के डर से, कुलियों से अधिक काम नहीं लेते। पर मेरा वैसा हिसाब नहीं है। बीमार हो या अच्छा, बँधा हुआ काम करना ही पड़ेगा। थोड़ा काम करके चार बरस जीने से जो नतीजा निकला है, ज्यादा मेहनत करके दो बरस जीने से भी वही नतीजा निकलता है। एक हब्शी से थोड़ा काम लेकर ज्यादा दिन जिलाने से कोई फायदा नहीं होता। ज्यादा मेहनत लेने से जल्दी मर जाए तो फिर उसके बदले में एक और नया गुलाम खरीद लेने से अधिक नफे की उम्मीद रहती है।"

 अपरिचित ने पूछा - "तुम्हारे खेत में गुलाम साधारणत: कितने वर्ष जीते हैं?"

 लेग्री ने जवाब दिया - "इसका कोई हिसाब नहीं। कोई कुछ कम, कोई कुछ ज्यादा! लेकिन मामूली तौर से जवान हो तो छ:-सात बरस और चालीस के पार हो तो दो-तीन बरस से ज्यादा नहीं टिकते। पहले बीमार पड़ने पर मैं भी हब्शियों को दवा दिया करता था और कंबल देता था। लेकिन आखिर में नतीजा कुछ नहीं निकला, नाहक में चीजों की बरबादी होती थी। अब इन अड़ंगों से मैं दूर रहता हूँ। बीमारी में भी काम लेता हूँ। मर जाने पर और नए खरीद लेता हूँ। इससे हर तरह की सहूलियत रहती है।"

 वह अपरिचित आदमी लेग्री के पास से हटकर थोड़ी दूर पर बैठे हुए एक युवक के निकट जाकर बैठ गया। वह देर से इन लोगों की सारी बातें सुन रहा था।

 उस पहले आदमी ने इस युवक से कहा - "दक्षिण प्रदेश के सभी खेतिहर इस आदमी की भाँति सख्त नहीं हैं।"

 युवक ने कहा - "ऐसा न होना ही अच्छा है।"

 पहला आदमी बोला - "यह आदमी तो महानीच और बदमाश है। इसका बर्ताव तो सचमुच ही पशुओं-जैसा है।"

 युवक ने कहा - "पर आपके देश के कानून की यह खूबी है कि वह ऐसे ही निष्ठुर और नीच आदमियों को अनगिनत नर-नारियों के जीवन का अधिकारी बनने का अवसर देता है। ऐसा कोई कानून आपके यहाँ नहीं है, जिसकी रू से ऐसे निष्ठुर आदमियों के अत्याचार से इन बेचारे गुलामों की रक्षा हो सके। खेतवालों में अधिकांश ऐसे ही हृदयहीन होते हैं।"

 पहला आदमी बोला - "खेतवालों में जहाँ बुरे बहुत हैं, वहाँ कुछ भले भी हैं।"

 युवक ने कहा - "दलील के लिए मान भी लिया जाए कि आपके खेतवालों में भले भी हैं, तो भी मैं कहता हूँ कि अत्याचार और निष्ठुरता के लिए वही पूरी तरह दोषी हैं, क्योंकि ऐसे ही दो-चार भलेमानसों के कारण यह घृणित प्रथा अब तक दूर नहीं हुई। यदि सभी खेतवाले लेग्री-सरीखे होते, तो क्या फिर भी यह प्रथा बनी रहती?"

 इधर जब इन दोनों में ये बातें हो रही थीं, उधर जहाज में दूसरे स्थान पर एक जंजीर में जकड़ी हुई एमेलिन और लूसी भी आपस में बातें कर रही थीं।

 एमेलिन ने कहा - "तुम किसके यहाँ रही थी?"

 लूसी बोली - "एलिस साहब के यहाँ थी। तुमने शायद उन्हें देखा हो।"

 "क्या वह तुम्हारे साथ अच्छा बर्ताव करते थे?"

 "बीमार पड़ने के पहले तो वह बहुत ही अच्छा बर्ताव करते थे पर बीमार होने के बाद उनका स्वाभाव बहुत चिड़चिड़ा हो गया, और सबसे रूखा व्यव्हार करने लगे। मुझे रात-रात भर उनकी टहल के लिए जागना पड़ता था। पर एक दिन मुझे नींद आ गई, इस पर उन्होंने गुस्सा करके कहा कि तुझे किसी खूब सख्त आदमी के हाथ बेचूँगा।"

 "तुम्हारे दु:ख-दर्द का कोई साथी है?"

 "मेरा पति है। वह लुहार का काम करता है। मालिक ने उसे एक दूसरी जगह किराए पर दे रखा है। मेरे चार लड़के हैं, लेकिन मुझे ऐसी जल्दी में नीलाम-घर में भेज दिया कि मैं अपने लज्जा या लड़कों से एक बार भी नहीं मिल पाई।"

 यह कहते-कहते लूसी रोने लगी। किसी का दु:ख देखकर मनुष्य के मन में स्वाभावत: उसे धीरज देने की इच्छा होती है। लूसी की दु:खगाथा सुनकर एमेलिन उसे कुछ धीरज दिलानेवाली बात कहना चाहती थी, पर उसकी समझ में न आया कि क्या कहे। इस भयंकर मालिक के डर से वे दोनों इतनी डरी हुई थीं कि हृदय से कोई बात ही न उठती थी।

 घोर संकट के समय मनुष्य को धार्मिक विश्वास बड़ी सांत्वना देता है। लूसी अपढ़ होने पर भी धर्म में बड़ा विश्वास रखती थी। एमेलिन ने भी धर्म के विषय में नियमित शिक्षा पाई थी और उसका हृदय धर्म की भावना से भरा था। पर ये ऐसी दुर्दशा में पड़ गई थीं, ऐसे राक्षस-प्रकृति लंपट अंग्रेज के हाथ में पड़ी थीं कि इस दशा में धार्मिक मनुष्य भी ईश्वर पर भरोसा रखकर सांत्वना प्राप्त कर सकता है या नहीं, इसमे संदेह है।

 जहाज धीरे-धीरे बढ़ने लगा। अंत में एक छोटे कस्बे के पास आकर उसने लंगर डाला। लेग्री अपने दास-दासियों को साथ लेकर वहीं उतर गया।