Tom Kaka Ki Kutia - 33 in Hindi Fiction Stories by Harriet Beecher Stowe books and stories PDF | टॉम काका की कुटिया - 33

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टॉम काका की कुटिया - 33

33 - गुलामों की बिक्री के हृदय-विदारक दृश्य

"गुलामों के बेचने की आढ़त?" शायद यह नाम सुनकर ही लगे कि यह बड़ा विकट स्थान होगा और माल गोदामों की तरह न मालूम कितना अंधकार से भरा और मैला-कुचैला होगा। पर नहीं, यह बात नहीं है। सभ्यता की उन्नति के साथ-साथ लोग सभ्य प्रणाली और चतुराई से बुरे काम करना सीखते हैं। दासों का व्यापार करनेवाले इस बात की बड़ी फिक्र रखते थे कि मानव-संपदा, अर्थात जीवात्मा-रूपी माल के दाम बाजार में किसी प्रकार कम न आएँ। वे लोग बिकने के पहले गुलामों को अच्छा खाने और अच्छा पहनने को देते थे। उन्हें कोई रोग न होने पाए, इस ओर भी उनका पूरा ध्यान रहता था। इसी से गुलामी का धंधा करनेवाले आढ़तिए अपने स्थानों को बड़ा साफ-सुथरा रखते थे। इन आढ़तघरों के सामने सजे-सजाए खुले बरामदे होते थे। वहाँ गुलामों को एक कतार में खड़ा किया जाता था। बाहरी आदमी देखते ही समझ लेता था कि इस घर में नर-नारियों का सौदा होता है। खरीदारों को आढ़तिए बड़ी आव-भगत से बुलाकर गुलामों को दिखाते थे। पर अंदर जाकर लोग देखते थे कि लज्जा, स्त्री, पिता, माता, बालक - ये एक-दूसरे से सदा के लिए बिछुड़ जाने की बात सोच-सोचकर बिलख रहे हैं। पति के कंधे पर सिर रखकर स्त्री कह रही है - "हे ईश्वर अब जन्म भर के लिए हम लोगों का बिछोह हो जाएगा। ईश्वर करे, हम दोनों को एक ही आदमी खरीद ले।" कहीं स्त्री का कंधा पकड़कर पति कह रहा है - "मेरा यह जीवन वृथा है। मैंने क्यों यह नर-तन पाया?" बच्चे को हृदय से चिपकाकर माँ बार-बार उसका मुख चूमती है और सिर पीटकर कहती है - "हे भगवान, तूने मुझे संतान क्यों दी? मृत्यु, तू कहाँ छिप गई है?" बच्चे मजबूती से अपनी माताओं के कपड़े पकड़े हुए हैं। सोचते हैं, बस, वे कपड़े पकड़े रहेंगे तो उन्हें कोई अलग नहीं कर सकेगा। इन द्रश्यों को देखकर पत्थर का कलेजा भी पिघल जाता है। पर उन अर्थलोलुप नर-पिशाच अंग्रेज बनियों के हृदय की कठोरता की कोई हद नहीं है।

 जो मानव-आत्मा अमृत की अधिकारी है, विश्वपति की अमृतगोद जिसके लिए खुली हुई है, धन के लोभ से आज उन्हीं आत्माओं के सौदे हो रहे हैं। यह घृणित सौदा करनेवाली वही गोरी जाति है, जो सभ्यता की लंबी-लंबी डींगें हाँकती है और दूसरी जातियों को ठग बताकर स्वयं बड़ी शहंशाह बनती है।

 टॉम और एडाल्फ के सिवा सेंटक्लेयर के और भी आधे दर्जन दास-दासी स्केग नामक आढ़तिए के यहाँ पहुँचाए गए। वहाँ और भी बहुतेरे दास-दासी आए हुए थे। इन सबको हर समय खुश रखने के लिए आढ़त के मालिकों की बड़ी चेष्टा रहती थी। उदास मुख देखने से कहीं ग्राहक कम दाम न लगाएँ, इसी लिए भाँति-भाँति के उपायों से इन्हें हँसाने का यत्न किया जाता था। चारों ओर हँसी-मजाक तथा तमाशे हो रहे थे। पर क्या टॉम-जैसे आदमी को इस दशा में हँसी आ सकती थी? एक तो इवा और सेंटक्लेयर का शोक ही उसके हृदय को साल रहा था, उस पर उसकी यह दुर्दशा हो रही थी! कोई भी, जिसमें आत्मा है, इस दशा में हँस नहीं सकता था।

 टॉम दूसरे दास-दासियों से कुछ दूर घर के एक कोने में, अपने संदूक का सहारा लेकर बैठ गया। वह बहुत ही उदास था, पर आढ़तवाले किसी को उदास बैठने देनेवाले न थे। वे इन्हें खुश रखने के लिए बजाने को बाजा देते और नाचने-गाने का हुक्म देते थे। इनमें जो दु:ख के कारण हँसी-खुशी मनाने में असमर्थ होते, वे "बदमाश" गिने जाते थे। इन सब बदमाशों को नाना प्रकार का दंड भोगना पड़ता था। खरीदारों के सामने जो हँसते हुए खड़े न होते, उनकी जान मुसीबत में कर दी जाती थी।

 स्केग की आढ़त का सहकारी कार्याध्यक्ष सांबो नामक एक हब्शी था। यह सदा सबको खुश करने की फिक्र में रहता था और जिनको उदास बैठे पाता, उनपर कोड़े फटकारता था। पूछा जा सकता है कि हब्शी होकर वह यह अपने स्वजातीयों पर इतना अत्याचार क्यों करता था? बात यह है कि संसार में जो जाति पराधीन और पराजित होती है, उस जाति के लोगों का पतन हो जाता है। वे परम स्वार्थी और नीच हो जाते हैं। स्वयं कोई पद या अधिकार पा जाने से वे भिन्न जातीय मालिक को खुश करने के लिए खुशामद के मारे अपने ही भाइयों को अकारण सताने में अपनी शान और बड़प्पन समझते हैं। इसी से यहाँ सांबो अपने ही भाइयों पर जो अत्याचार करता था, उसके लिए हम उसे अपराधी नहीं समझते।

 सांबो ने जब देखा कि टॉम अलग एक कोने में उदास बैठा है, तो वह फौरन उसके पास पहुँचकर बोला - "तुम क्या कर रहे हो?"

 टॉम ने शांति से कहा - "कल मेरी नीलामी होगा।"

 उसको हँसाने के लिए सांबो खिलखिलाकर हँसते हुए बोला - "हमारी भी कल नीलामी होगा।"

 सांबो ने समझा कि उसने एक बड़े मजाक की बात कही है और टॉम इस पर जरूर हँस पड़ेगा। इसके बाद सांबो एडाल्फ के कंधे पर हाथ रखकर बोला - "इन सब लोगों की कल नीलामी होगी।"

 एडाल्फ ने छिटककर कहा - "मेहरबानी करके मुझसे अलग रहो।"

 इस पर सांबो बोला - "बाप रे बाप! यह तो गोरा हब्शी है। इसे तो तमाखूवाले के यहाँ तमाखू बेचने बैठा दिया जाए, तो बड़ा अच्छा रहे।"

 एडाल्फ ने गुस्से में भरकर कहा - "तुमसे कहता हूँ कि हट जाओ। क्या नहीं हटोगे?"

 "हमारे गोरा हब्शी लोगों को बड़ा जल्दी गुस्सा आता है।" यह कहकर वह हाथ नचा-नचाकर एडाल्फ की नकल करने लगा और व्यंग्य से बोला - "मालूम होता है, यह किसी बड़े आदमी के यहाँ था।"

 "हाँ, मैं जिसके यहाँ था, वह तेरे जैसे छप्पन गुलाम खरीद सकता था।"

 "बाबा, तब तो वह कोई बहुत ही बड़ा आदमी होगा।"

 एडाल्फ ने अभिमान के साथ कहा - "मैं सेंटक्लेयर के परिवार में था।"

 सांबो ने मजाक में कहा - "हाँ, बड़े आदमी न होते तो उस घर की ये टूटी-फूटी चायदानियाँ यहाँ क्यों बिकने आती!"

 इस मजाक से एडाल्फ को बड़ा क्रोध आया। वह सांबो पर तेजी से झपटा। दूसरे लोग यह देखकर तालियाँ बजाने लगे, इससे बड़ा शोर-गुल मचा। शोर सुनकर आढ़त का प्रधान अध्यक्ष हाथ में चाबुक लिए वहाँ पहुँचा। उसे देखकर सब अपनी-अपनी जगह पर जा हटे। सांबो ने उसे देखकर कहा - "सरकार, पहलेवाले लोगों में कोई गुल-गपाड़ा नहीं करता। हमने सबको सीधा कर दिया। ये जो नए गुलाम आए हैं, बड़ा उत्पात करते हैं।"

 इस पर अध्यक्ष साहब बिना पूछताछ के टॉम और एडाल्फ को दो चार लात-घूंसे जमाकर चलता बना। जाते-जाते कह गया कि सब चुपचाप सो जाओ, शोर मत मचाना।

 दासों के घर का द्रश्य देखने के बाद अब दासियों की दशा जानने का कौतूहल हो सकता है। आइए, हमारे साथ इस घर में चलिए। यहाँ आपको बहुत-सी दासियाँ दिखाई देंगी। इनमें बूढ़ी भी हैं, जवान भी; अधेड़ भी हैं, लड़कियाँ भी। सभी तरह की हैं। अस्सी बरस की बुढ़िया से लेकर तीन वर्ष की लड़कियाँ तक यहाँ देखिए, यह एक दस बरस की लड़की किस तरह बिलख-बिलखकर रो रही है। कल इसकी माता नीलामकर दी गई है, आज कोई इसकी ओर आँख उठाकर भी देखनेवाला नहीं। बालिका "माँ-माँ" कहकर चिल्ला रही है, पर कोई उसे पूछनेवाला नहीं।

 और देखिए, यह अस्सी पार किए, कठोर मेहनत के कारण वातरोग से पीड़ित, बुढ़िया बैठी हुई चुपचाप रो रही है। तीन बार इसकी डाक बोली गई, लेकिन बेकाम समझकर किसी ने इसे नहीं खरीदा। इसके पाँच-छह लड़के-लड़कियों को लोग खरीद ले गए हैं। शोक से व्याकुल जननी उन्हीं के लिए आँसू बहा रही है।

 और देखिएगा? चलिए, देखते चलिए। अभी आपने देखा ही क्या है? इधर देखिए, दो स्त्रियाँ साधारण स्त्रियों से कुछ दूर बैठी हैं। ये कपड़े-लत्ते से भलीमानस-सी जान पड़ती है। रंग भी इनका करीब-करीब अंग्रेजों-जैसा है। इनमें एक की उम्र 45 साल की होगी, इसके अंग खूब गठीले हैं। इसके पासवाली दूसरी युवती की उम्र पंद्रह बरस की होगी। इन दोनों के चेहरों से जान पड़ता है कि दूसरी पहली की बेटी है। पहली स्त्री अंग्रेज पिता और हब्शी माता से है। लड़की भी अंग्रेज से ही पैदा हुई जान पड़ती है। इनके कपड़ों के रंग-ढंग तथा हाथों की कोमलता पर ध्यान देने से पता चलता है कि इन्होंने कभी परेशानी नहीं उठाई है। कल इन दोनों की नीलामी होगा।

 न्यूयार्क-निवासी क्रिश्चियन-चर्च के एक धर्मात्मा मेंबर साहब की ओर से ये नीलामी के लिए आई हैं। इनके दाम के हकदार वही धर्मात्मा मेंबर साहब होंगे। पर वह साहब जैसे धार्मिक क्रिश्चियन हैं, उससे इस बात में कोई शक नहीं रह जाता कि इन रुपयों में से वह कुछ तो गिर्जाघर बनाने के लिए और कुछ लार्ड बिशप साहब के खर्च के लिए अवश्य देंगे।

 उन दोनों स्त्रियों में माता का नाम सूसन और कन्या का एमेलिन है। ये न्यू अर्लिंस की एक सहृदय और संभ्रांत महिला की दासियाँ थीं। उसने इन्हें बड़ी लगन से लिखाया-पढ़ाया था। पर फिजूल-खर्ची के कारण उसका इकलौता लड़का न्यूयार्क की बी.एंड-कंपनी का कर्जदार हो गया। उस कंपनी ने नालिश करके उस पर डिग्री करा ली। डिग्री में अचल संपत्ति की कुरकी और नीलामी में बड़ा खर्चा और परेशानी की बात बताकर कंपनी के वकील ने चल संपत्ति कुर्क कराकर नीलाम कराने की सलाह दी। चल संपत्ति में दास-दासी ही सबसे ज्यादा कीमती होते हैं। पर एक बड़ी अड़चन थी। कंपनी के साहब उत्तरी प्रदेश के और एक खास तरह के क्रिश्चियन हैं। वह भला नर-नारियों का सौदा करने की प्रथा का सहारा कैसे लें! इस मामले को लेकर बड़ी लिखा-पढ़ी होने लगी। चल संपत्ति बेचे बिना तीस हजार रुपयों के जल्दी उतरने की संभावना नहीं थी। एक ओर तीस हजार की रकम और दूसरी ओर क्रिश्चियन धर्म; दोनों की होड़ लगी थी। अंत में तीस हजार की ही जीत रही। कंपनी के साहब ने वकील को चल संपत्ति कुर्क कराकर नीलाम कराने का पत्र लिखा। पत्र पाते ही वकील से सूसन और उसकी कन्या एमेलिन को कुर्क करके नीलामी में भेज दिया। उन्हीं दोनों माँ-बेटियों को आप यहाँ गोदाम में बैठी बिलखती देख रहे हैं।

 एमेलिन कहती है - "माँ, तुम जंघे पर सिर रखकर थोड़ा आराम कर लो।"

 "नहीं, बेटी, मुझे नींद नहीं आएगी। जान पड़ता है, हम लोगों के मिलन का यह आखिरी दिन है।" सूसन ने सिसकते हुए कहा।

 एमेलिन ने धीरज से कहा - "माँ, तुम ऐसा क्यों कहती हो? शायद हम दोनों को कोई एक ही आदमी खरीद ले।"

 सूसन आँसू पोंछते हुए बोली - "नहीं बेटी, इसकी कोई उम्मीद नहीं। मैं झूठी उम्मीद दिलाकर मन को भुलाना नहीं चाहती।"

 "क्यों वह नीलामवाला तो कहता था कि हम दोनों एक ही-सी हैं। इससे दोनों की एक ही डाक कर देगा।"

 सूसन की उम्र अधिक होने के कारण उसका अनुभव भी बहुत था। वह आदमियों को देखकर ताड़ जाती थी कि कौन कैसा है। उस आदमी के चेहरे का रंग-ढंग देखकर, उसकी बातें सुनकर, सूसन के होश उड़ गए। उस गोदाम का रक्षक जब एमेलिन का हाथ पकड़कर और उसके सुंदर बालों को हिला-डुला कर देखते हुए कहने लगा कि "यह माल बड़ा बढ़िया है, इसके खूब दाम आएँगे," तभी सूसन की जान निकल गई। सूसन का हृदय बहुत ही धार्मिक था। इससे यह सोचकर उसका हृदय दहकने लगा कि उसके गर्भ से जन्मी हुई कन्या को कोई लंपट पिशाच अंग्रेज खरीदकर उपपत्नी बनाएगा।

 एमेलिन ने फिर कहा - "माँ, तुम रसोई बहुत अच्छी बनाना जानती हो। किसी भले घर में तुम्हें रसोईदारिन का और मुझे दरजिन का काम मिल जाए, तो हम लोगों के दिन बड़े मजे में कटेंगे।"

 सूसन ने कहा - "बेटी, मैं चाहती हूँ कि तेरे सिर के सब बाल पीछे की ओर सीधे-सीधे कर दूँ।"

 एमेलिन ने पूछा - "क्यों माँ, ऐसा करने से तो मैं अच्छी नहीं लगूँगी। क्या कोई भला आदमी ऐसे बाल देखकर खरीदेगा?"

 सूसन ने कहा - "हाँ, खरीद सकता है।"

 "कैसे?"

 "भले आदमी साफ और सीधे-सादे लोगों को अधिक पसंद करते हैं, बनाव-शृंगार और ठाट-बाट उन्हें नहीं रुचता। ठाट-बाट देखकर तो लंपट ही रीझकर खरीदते हैं। बेटी, ये सब बातें मैं तुझसे ज्यादा जानती हूँ। मैं तुझसे कहती हूँ कि अगर हम लोग अलग-अलग बिके तो तू जहाँ रहे, अपने धर्म से रहना। मेरी इस बात को याद रखना कि प्राण दे देना, पर धर्म न खोना। अगर कोई गोरा तेरा धर्म भ्रष्ट करने पर तुल जाए तो आत्म-हत्या करके अपने धर्म की रक्षा करना। मेम साहब के उपदेशों को मत भूलना। अपनी बाइबिल और भजनों की पुस्तक हमेशा साथ रखना। ईश्वर को मत भूलना, वह सदा तेरी रक्षा करेगा।"

 सूसन बड़े निराश-हृदय से कन्या को उपदेश दे रही थी। वह सोचती थी कि कल उसकी परम-सुंदरी पवित्र-हृदया कन्या को वही नीच अंग्रेज खरीद लेगा, जिसके पास धन होगा। वह बार-बार कहने लगी - "मेरी आँखों की पुतली एमेलिन आज यदि सुंदर न होकर कुरूप होती और शिक्षित न होकर मूर्ख होती तो अच्छा था।"

 ऐसे समय में ईश्वर की प्रार्थना करने और उस पर भरोसा रखने के सिवा और किसी तरह धीरज नहीं आ सकता। पर आज-तक इस गोदाम में से न मालूम ईश्वर से ऐसी कितनी ही जीवित प्रार्थनाएँ और पुकारें हुई हैं, जिनका कोई ठिकाना नहीं? क्या ईश्वर इनकी प्रार्थनाएँ नहीं सुनता? क्या वह इन्हें भूल गया? कदापि नहीं। वह परम न्यायी, परम करुणामय, दीनदयाल भगवान किसी छोटी-से-छोटी आत्मा तक को एक पल के लिए नहीं भूलता। अरे पाखंडी, निर्मोही, अर्थपिशाच गोरे बनियों, तुम सबको निश्चय ही इस पाप का फल भोगना पड़ेगा। तुम नहीं तो तुम्हारी संतानें अपने रक्त से इस पाप का प्रायश्चित करेंगी। जिस बाइबिल को तुम लोग अपना धर्मशास्त्र कहते हो, उसी बाइबिल में लिखा है, "गले में पत्थर बाँधकर समुद्र में डूब जाने से जो हानि होती है, उससे भी अधिक हानि उन लोगों को उठानी पड़ेगी, जो एक छोटी-से-छोटी आत्मा का भी अपमान करते हैं।"

 देखते-देखते रात गहरी हो चली। सूसन और उसकी कन्या हृदय के पट खोलकर ईश्वर को पुकारने लगीं। नाना प्रकार के भजन गाने लगीं।

 ओ सूसन, ओ एमेलिन, तुम जन्म भर के लिए एक-दूसरे से बिदा माँग लो। आज की रात समाप्ति के साथ-साथ तुम्हारे भाग्य का सूर्य भी सदा के लिए अस्त हो जाएगा।

 सवेरा हुआ। सब लोग अपने-अपने काम में लग गए। स्केग नाम का साहब आज की नीलामी का प्रबंध करने लगा। बिकने के लिए आए हुए दास-दासियों को वह तरतीब से खड़ा करने लगा। नीलामी बोलने से पहले खरीदारों के अंतिम दिखावे के लिए उसने सबको एक पंक्ति में खड़ा किया।

 स्केग साहब एक हाथ में चुरुट और दूसरे में नीलाम की पुस्तक लिए हुए इधर-से-उधर टहलकर देखने लगा। देखते-देखते सूसन और एमेलिन के पास जाकर बोला - "तेरे वे घुँघराले बाल क्या हुए?"

 एमेलिन ने सकपकाकर उसकी ओर देखा। उसकी माता ने कहा - "मैंने इसे बाल साफ करके जूड़ा बाँधने को कहा था। बिखरे और बलखाए हुए बाल उड़-उड़कर मुँह पर पड़ते थे। जूड़ा उससे साफ और अच्छा दीखता है।"

 स्केग ने चाबुक सँभालकर उसे धमकाते हुए कहा - "जा जल्दी! जैसे बाल थे, वैसे करके ला।" फिर उसकी माता से कहा - "तू जाकर ठीक करा दे। घुँघराले बाल रहने से सौ रुपए ज्यादा मिलेंगे।"

 धीरे-धीरे नीलाम-घर भर गया। खरीदार आपस में तरह-तरह की बातें करने लगे। एक खरीदार एडाल्फ का बदन जाँच कर देख रहा था। तब तक किसी ने कहा - "ओहो, अल्फ्रेड! कहो, तुम कहाँ चले?"

 अल्फ्रेड ने कहा - "भाई, मुझे एक अरदली की जरूरत है। मैंने सुना कि सेंटक्लेयर के गुलाम बिक रहे हैं। इससे यहाँ खरीदने आया हूँ।"

 उस आदमी ने कहा - "सेंटक्लेयर के गुलाम खरीदोगे? मैं तो कभी ऐसा नहीं कर सकता।" सेंटक्लेयर के यहाँ के गुलाम आदर पा-पाकर, बिगड़कर, दो कौड़ी के हो गए हैं।

 अल्फ्रेड बोला - "इसका मुझे डर नहीं। मेरे हाथ में पड़ते ही इनका बाबूपन हवा हो जाएगा। दो दिन में समझ जाएँगे कि मैं सेंटक्लेयर नहीं हूँ। यह आदमी शक्ल-सूरत का अच्छा है, इसी को लूँगा।"

 उस आदमी ने कहा - "यह बड़ा फिजूल खर्च है।"

 अल्फ्रेड ने जवाब दिया - "हमारे यहाँ इसकी दाल नहीं गलेगी। दो बार दंडगृह की हवा खिलाई कि इसके होश ठिकाने आ जाएँगे।"

 टॉम बड़ी विन्रम दीनता से हर एक खरीदार का मुँह देखने लगा। वह देखना चाहता था कि इनमें कोई दयालु खरीदार भी है या नहीं। पर जितने आदमियों को उसने देखा, उनमें कोई अच्छा नहीं जान पड़ा। किसी के चेहरे पर क्रोध झलक रहा था, तो कोई देखने में बड़ा निर्दयी मालूम पड़ता था, कोई कामी दिखाई देता। यों ही सैंकड़ों मुख देखे, पर सेंटक्लेयर की-सी मधुर और शांत मूर्ति कहीं न दिखाई दी।

 नीलामी आरंभ होने ही को थी कि एक मजबूत-सा नाटा आदमी आया और गुलामों को टो-टोकर, बदन में हाथ लगा-लगा कर देखने लगा। इसके चेहरे से मालूम होता था, मानो नरक का द्वारपाल हो। इसे देखते ही टॉम का हृदय भयभीत हुआ और बड़ी घृणा पैदा हुई। इस आदमी ने एक-एक करके सब दास-दासियों को परखा और अंत में टॉम के पास पहुँचकर तथा उसके मुँह में उंगली डाल कर देखने लगा, फिर पैरो की ताकत देखने के लिए उसे कुदवाया। परीक्षा समाप्त होने पर टॉम से बोला - "सबसे पहले तू कहाँ के दास-व्यापारी के यहाँ था?"

 टॉम ने कहा - "केंटाकी में, साहब!"

 "क्या क्या करता था?"

 "अपने मालिक के खेत का काम देखता था।"

 "ठीक है।"

 टॉम से हटकर वह एडाल्फ के पास पहुँचा, पर घृणा से उसके मुख की ओर देखकर वहाँ जा पहुँचा, जहाँ सूसन और एमेलिन खड़ी थीं। उसने अपना व्रज-सा कठोर हाथ फैलाकर एमेलिन को अपने निकट खींच लिया। एमेलिन भय से काँप उठी। उसने एमेलिन के कंधे, छाती और भुजाओं पर हाथ लगाकर उसकी शारीरिक दशा देखी, फिर सतृष्ण नयनों से बारंबार उसकी ओर ताकने लगा। इसके बाद उसे उसकी माता की ओर धकेलकर चलता बना।

 जिस समय वह नर-पिशाच जैसा खरीदार एमेलिन को देख रहा था, उस समय उसकी माता का हृदय भय और शंका से काँप रहा था। एमेलिन स्वयं भी उसका मुख देखकर बहुत डर गई और रोने लगी। उसका रोना देखकर नीलामवाले बहुत बिगड़े और बोले - "यहाँ रोना-झींकना मचाएगी तो डंडे पड़ेंगे।"

 अब नीलाम आरंभ हुआ। नीलाम की चौक पर पहले एडाल्फ खड़ा किया गया। दो-चार डाक बोलने के बाद उसे अल्फ्रेड ने खरीद लिया। यों एक-एक करके सेंटक्लेयर के सब दास-दासियों को भिन्न-भिन्न लोगों ने खरीद लिया। अंत में टॉम की बारी आई।

 नीलाम की चौकी पर खड़ा होकर टॉम इधर-उधर देखने लगा। पाँच-छह डाक होने के बाद वह भी बिक गया। जिस नाटे-से आदमी को देखकर टॉम को भय और घृणा हुई थी, उसी ने उसे खरीदा। दाम चुकाकर उसे नीचे उतारा और गला पकड़कर एक किनारे थोडी दूर बिठा दिया।

 इसके बाद सूसन का नीलाम हुआ। पर नीलाम की चौकी से उतरते समय वह सतृष्ण नयनों से पीछे घूमकर अपनी कन्या की ओर देखने लगी। उसकी कन्या ने उसकी ओर हाथ फैलाया। सूसन ने अपने खरीदार से बड़ी दीनतापूर्वक कहा - "लज्जा, कृपा करके मेरी कन्या को भी आप ही खरीद लीजिए।"

 उसका खरीदार औरों की निस्बत सहृदय जान पड़ता था। उसने कहा - "कोशिश करूँगा। पर इसके दाम ऊँचे जाएँगे। मुझे उम्मीद नहीं कि मैं उतने दाम दे सकूँगा।"

 एमेलिन नीलाम की चौकी पर खड़ी की गई। उसका वह सरलतापूर्ण मुख-कमल डर से पीला पड़ गया, किंतु उसके सौंदर्य में कुछ कमी नहीं आई थी, उलटे एक अनुपम नवीन सौंदर्य का भाव उसके मुख पर छा गया। यह देखकर उसकी माता मन-ही-मन, पछताकर कहने लगी, इससे तो अच्छा था कि यह कुरूप होती। एमेलिन को खरीदने की इच्छा से बहुत लोगों ने डाकें बोलीं। एमेलिन की माँ का खरीदार भी दोन-तीन डाक बढ़ा, पर देखते-ही-देखते डाक इतनी बढ़ी कि उसने अपनी हिम्मत के बाहर दाम बढ़े देखकर मौन साध लिया। यों ही धीरे-धीरे कई खरीदार चुप हो गए। अंत में केवल दो आदमियों की बोली रह गई। इनमें एक वही टॉम का खरीदार था और दूसरा था इस प्रदेश का एक धनी और कुलीन पुरुष। अंत में आखिरी डाक में टॉम के खरीदार ने ही एमेलिन को खरीदा। नर-पिशाच साइमन लेग्री ही उस सरल-हृदय सच्चरित्र पंचदश-वर्षीया बालिका के जीवन का मालिक हुआ। इस दुरात्मा के हाथ से एमेलिन की रक्षा करनेवाला दीनबंधु भगवान के सिवा और कोई नहीं था।

 एमेलिन सावधान! अपनी माता का अंतिम उपदेश सदा याद रखना! प्राण देना, पर धर्म मत खोना।

 एमेलिन के इस प्रकार बिक जाने पर उसकी माता बिलख-बिलखकर रोने लगी। उसकी माता का खरीदार कुछ सहृदय था। इससे वह मन-ही-मन में कुछ दु:खित हुआ। पर ऐसे द्रश्य आठ पहर चौंसठ-घड़ी इन लोगों की आँखों के सामने फिरा करते थे। इससे इनका कलेजा पक जाता था।

 अत: वह आनंदपूर्वक अपनी खरीदी हुई संपत्ति सूसन को लेकर अपने घर ओर रवाना हुआ।

 इस नीलाम के दो-तीन दिन बाद क्रिश्चियन फर्म बी.एंड. के वकील ने सूसन और एमेलिन की बिक्री के रुपयों में से अपना कमीशन और नीलाम खर्च काटकर बाकी रुपए उस कंपनी के क्रिश्चियन मालिक को भेज दिए।