Tom Kaka Ki Kutia - 31 in Hindi Fiction Stories by Harriet Beecher Stowe books and stories PDF | टॉम काका की कुटिया - 31

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टॉम काका की कुटिया - 31

31 - पिता-पुत्री का पुनर्मिलन

समय किसी की बाट नहीं देखता। हफ्तों-पर-हफ्ते, महीनों-पर-महीने और वर्षों-पर-वर्ष निकले जा रहे हैं। संसार भर के नर-नारियों को अपनी छाती पर लादकर काल का प्रवाह अनंत-सागर की ओर दौड़ा जा रहा है। इवा की नन्हीं-सी जीवन-नौका भी अनंत-सागर में समा गई। दो-चार दिन घर-बाहर सभी ने शोक मनाया और आँसू बहाए, पर ज्यों-ज्यों समय बीतता गया, लोग अपने दु:ख को भूलते गए। सब अपने-अपने धंधों में लग गए। गाना-बजाना, खाना-पीना, सभी ज्यों-के-त्यों होने लगे। पर देखना यह है कि क्या सभी एक-से हैं? क्या सेंटक्लेयर के जीवन की गाड़ी भी उसी चाल से चल रही है?

 इस संसार में केवल इवा ही सेंटक्लेयर के जीवन की सर्वस्व थी। इवा के लिए ही उसका जीना, इवा के लिए ही धन-संग्रह करना, इवा के लिए ही काम-काज, और इवा ही के लिए उसका सब-कुछ था। इवा के चले जाने से सेंटक्लेयर का जीवन लक्ष्य-शून्य हो गया। अब वह संसार में किसके लिए जिए और दुनिया के झंझटों में किसके लिए फँसे?

 आशाएँ टूट जाने पर मनुष्य संसार में क्या सचमुच उद्देश्यहीन हो जाता है? क्या सांसारिक तुच्छ आशाओं के अतिरिक्त मानव-जीवन का अन्य कोई महान उद्देश्य नहीं है? नहीं यह बात नहीं। इन्हीं उद्देश्यों से आगे भी बहुत-कुछ है।

 मानव-जीवन के महान उद्देश्य से सेंटक्लेयर अनभिज्ञ न था। इसी से उसका जीवन सर्वथा लक्ष्य-हीन नहीं हुआ, विशेषकर इवा के अंतिम शब्द हर घड़ी उसके कानों में गूँजते थे। सोते-जागते, उठते-बैठते, हर घड़ी इवा का वह सुमधुर वाक्य उसे याद आता। उसे हर समय यही दिखाई पड़ता, मानो इवा अपने नन्हें-नन्हें हाथों की अँगुलियों के इशारे से उसे जीवन-मार्ग का स्वर्गपथ दिखा रही है। पर उसका चिर-सहचर आलस्य और उसका वर्तमान शोक उसे कर्त्तव्य-मार्ग के स्वर्ग की ओर अग्रसर होने में बाधा डालता था। उसमें इन सब विघ्न-बाधाओं को पार करके जीवन के महान उद्देश्य की पूर्ति करने की शक्ति थी। यद्यपि वह देश में प्रचलित किसी प्रकार की धर्मोपासना में योग न देता था, तथापि वह बचपन से ही बड़ा सूक्ष्मदर्शी और भावुक था। उसके मन में सदा नए-नए भाव उठते रहते थे। वास्तव में इस संसार में कभी-कभी ऐसा होता है कि जो लोग लोक और परलोक की तनिक भी परवाह नहीं करते, बल्कि काम पड़ने पर उनके माननेवालों की निंदा तक करने से नहीं चूकते, उन्हीं के मुख से कभी-कभी धर्म के ऐसे गूढ़-तत्व सुनने में आते हैं कि दंग रह जाना पड़ता है। मूर, बायरन और गेटे जन्म भर धर्म पर अपनी अनास्था ही दिखलाते रहे, पर उन्होंने धर्म के कई ऐसे जटिल तत्वों की, जिन्हें बहुत से धर्म-गुरुओं ने भी नहीं समझा, ऐसी सुंदर व्याख्यान की कि देखते ही बनती है।

 धर्म से सेंटक्लेयर को कभी द्वेष न था। पर वह जानता था कि धर्म-पालन खांडे की धार पर चलने के समान है। दुर्बल मन के मनुष्यों के लिए वह सर्वथा असाध्य है। धर्म को ग्रहण करके उसका पालन न करने की अपेक्षा तो यही अच्छा है कि धर्म के पचड़े में ही न पड़ा जाए। यही सोचकर वह सदा इन धर्म-चर्चाओं से अलग रहता था। पर अब उस धर्म के अनुसरण के सिवा उसके जीवन का और लक्ष्य ही क्या रह गया? अब वह इवा की छोटी बाइबिल को बड़े प्रेम से पढ़ने लगा। और दास-दासियों के विषय में अपने कर्त्तव्य की बात भी सोचने लगा। उसने इस बात को अच्छी तरह समझ लिया कि इवा का कहना बिलकुल सच था कि इन दास-दासियों को गुलामी की जंजीर से मुक्त कर देना ही ठीक है। अपने नगरवाले मकान में आते ही उसने सबसे पहले टॉम को दासत्व से मुक्त करने का पक्का निश्चय किया। इसके लिए उसने अपने वकील से मुक्तिपत्र का मसविदा बनाने को कहा। टॉम आजकल हर समय उसी के साथ लगा रहता था। टॉम इवा को बड़ा प्यारा था, इसलिए उसे देखकर जितनी जल्दी सेंटक्लेयर को इवा का स्मरण होता था, उतना और किसी को देखने से नहीं। इसी से टॉम को इवा के स्मृति-चिह्न की भाँति सेंटक्लेयर हर घड़ी अपने साथ रखता था।

 एक दिन सेंटक्लेयर ने कहा - "टॉम, मैं तुम्हें दासता की बेड़ी से मुक्त कर दूँगा। तुम केंटाकी के लिए तैयार रहना। अपना सामान ठीककर रखना।"

 यह बात सुनते ही टॉम का चेहरा प्रफुल्लित हो गया। वह हाथ उठाकर बोला - "भगवान आपका भला करें!"

 पर टॉम की इस प्रसन्नता के भाव से सेंटक्लेयर मन-ही-मन दु:खी हुआ। उसने यह नहीं सोचा था कि टॉम उसे छोड़कर जाने के लिए इतनी खुशी दिखाएगा।

 उसने शुष्क स्वर में कहा - "टॉम, तुम्हें तो हमारे यहाँ कभी कोई तकलीफ नहीं हुई, फिर हमारा घर छोड़कर जाने की बात पर इतने खुश क्यों हुए?"

 टॉम ने गंभीर होकर कहा - "प्रभु, यह आप का घर छोड़कर जाने की प्रसन्नता नहीं है। यह प्रसन्नता इस बात की है कि मैं स्वाधीन हो जाऊँगा।"

 सेंटक्लेयर बोला - "स्वाधीन हो जाने की अपेक्षा क्या इस समय तुम यहाँ अधिक सुखी नहीं हो?"

 टॉम ने कहा - "कभी नहीं!"

 "टॉम," सेंटक्लेयर बोला - "जैसा अच्छा तुम यहाँ खाते-पीते हो और जिस आराम से रहते हो, उतने आराम से रहने के लिए तुम स्वाधीन होकर कमाई नहीं कर सकोगे।"

 टॉम ने कहा - "लज्जा, किंतु स्वाधीनता स्वाधीनता ही है।... स्वाधीनता में मोटा-महीन, बुरा-भला जो कुछ मिले, सब अच्छा है। पराधीनता की मेवा-मिठाई भी किस काम की! इसी से कहा है, "पराधीन सपनेहु सुख नाही।" यह मनुष्य का स्वाभाविक भाव है।"

 सेंटक्लेयर ने कहा - "मैं मानता हूँ, यही बात होगी; पर तुम्हें अभी यहाँ एक महीना और ठहरना होगा।"

 "लज्जा, मैं आपको कष्ट में छोड़कर नहीं जाऊँगा। आप जब तक रखना चाहें, यह दास आपकी सेवा में रहेगा। यदि मेरा यह शरीर आपके किसी काम आ जाए, तो इससे अधिक सौभाग्य की बात मेरे लिए और क्या होगी?"

 सेंटक्लेयर ने उदासीनता से बाहर की ओर नजर डालते हुए कहा - "टॉम, तुम मेरे इस कष्ट के दूर होने पर जाना। मेरा यह कष्ट कब मिटेगा?"

 "जब ईश्वर में आपकी भक्ति होगी और धर्म में मन लगेगा।"

 "तब तक तुम यहाँ ठहरना चाहते हो? नहीं-नहीं, मैं तब तक तुम्हें यहाँ नहीं रोकूँगा। तुम्हें शीघ्र ही छुट्टी दे दूँगा। तुम अपने घर पहुँचकर बाल-बच्चो से मिलना और उन्हें मेरा आशीर्वाद कहना।"

 टॉम ने अश्रुपूर्ण नेत्रों से कहा - "लज्जा, मेरा अटल विश्वास है कि वह दिन शीघ्र ही आएगा और आप के हाथ से ईश्वर अपना कोई काम कराएगा।"

 सेंटक्लेयर ने गद्गद होकर कहा - "मुझसे, ईश्वर का काम! अच्छा टॉम, बताओ, तुम्हारी समझ में वह कौन-सा काम है?"

 "लज्जा, मैं तो निपट मूर्ख हूँ, किंतु परमेश्वर ने मुझे भी अपना काम करने को सौंपा है। फिर आप तो बहुत होशियार हैं, ऐश्वर्यवान हैं, बंधु-बांधवोंवाले हैं - चाहें तो ईश्वर के कितने ही प्रिय कार्य कर सकते हैं।" टॉम ने बड़ी भावना से कहा।

 सेंटक्लेयर मुस्कराते हुए बोला - "टॉम, तुम्हारी समझ में क्या ईश्वर को अपने कुछ काम मनुष्य से कराने की जरूरत पड़ा करती है?"

 "जरूर। हम जब किसी मनुष्य के लिए कुछ करते हैं तब वह ईश्वर के लिए ही करते हैं, क्योंकि सभी मनुष्य उसी प्रभु की संतान हैं।"

 सेंटक्लेयर यह सुनकर अभिभूत हो उठा। बोला - "टॉम, तुम्हारा यह धर्म-शास्त्र हमारे यहाँ के पादरियों के मत से कहीं अच्छा जान पड़ता है।"

 तभी कुछ लोग सेंटक्लेयर से मिलने आ गए। इससे उसकी और टॉम की बातें यहीं रुक गईं।

 इवा के शोक में मेरी बड़ी ही अधीर हो गई थी। पर उसमें एक बहुत बड़ी बुराई थी कि जब वह किसी शोक के कारण दु:ख से स्वयं अधीर होती थी, तब दास-दासियों को उससे सौगुना अधीर कर देती थी। इवा जीते-जी इस अत्याचार से दास-दासियों की रक्षा करने की चेष्टा किया करती थी; पर अब इन बेचारे निस्सहायों की रक्षा कौन करेगा? इसी से इवा के लिए दास-दासी बहुत दु:खित होते थे, विशेषकर मामी अपने बाल-बच्चो से अलग पड़े रहने के दु:ख को इवा के कारण भूली हुई थी। अब इवा की मृत्यु के बाद वह दिन-रात चुपचाप रोया करती थी। इस दशा में उससे कभी-कभी मेरी की टहल में कुछ चूक हो जाती तो उसके लिए मेरी उसे सदा डाँटा करती थी।

 मिस अफिलिया को इवा की मृत्यु बहुत दु:ख दे रही थी; पर वह चुपचाप गंभीर-भाव से उस दु:ख को सहन कर रही थी। वह पहले की भाँति सदा काम में लगी रहती थी। वह पहले की अपेक्षा अब अधिक यत्न से टप्सी को पढ़ाने-लिखाने लगी। वह अब टप्सी को अपनी कन्या की भाँति प्यार करती है, हब्शी जानकर उससे घृणा नहीं करती। टप्सी का चरित्र भी धीरे-धीरे सुधरने लगा। यह नहीं कि वह एक ही दिन में भली बन गई हो। हाँ, इवा के आचरण से उसका मन बहुत-कुछ पलट गया था। पहले उसकी मानसिक जड़ता इस प्रकार की थी कि उस पर कोई उपदेश असर ही नहीं करता था, पर अब यह भाव दूर हो गया।

 एक दिन, जब वह तेजी से अपने कपड़ों में कोई चीज छिपाए चली आ रही थी, रोजा ने तत्काल उसे पकड़कर कहा - "बोल इसमें क्या है? लगता है, तूने कोई चीज चुराई है! कपड़ों में जल्दी-जल्दी क्या छिपा रही थी?"

 टप्सी अपनी छिपाई हुई चीज को दोनों हाथों से मजबूती से पकड़े हुए थी। हाथ छुड़ाने के लिए रोजा जोर से उसे खींचने लगी, पर टप्सी ने हाथ नहीं छोड़ा। वह जमीन पर लोटकर चिल्लाने लगी और साथ ही रोजा को एक लात जमा दी। टप्सी की चीख सुनकर अफिलिया और सेंटक्लेयर दोनों नीचे आए तो रोजा ने बताया कि इसने कुछ चुराया है। टप्सी ने सिसकते हुए कहा - "मैंने कुछ भी नहीं चुराया।"

 मिस अफिलिया ने दृढ़ता से कहा - "तेरे हाथों में जो कुछ है, मुझे दे दे।"

 पहले तो टप्सी ने देने में आनाकानी की, पर दुबारा माँगने पर उसने अपने कपड़ों में से एक फटे हुए मोजों की पोटली निकालकर उसके हाथ में पकड़ा दी। उसमें इवा की दी हुई एक छोटी-सी पुस्तक और इवा के बालों की एक लट निकली। ये चीजें देखकर सेंटक्लेयर की आँखें भर आई।

 टप्सी रो-रोकर कहने लगी - "मेरी ये चीजें मुझसे मत छीनिए!"

 सेंटक्लेयर की आँखों से आँसू बहने लगे। वह टप्सी को सांत्वना देकर बोला - "तेरी ये चीजें कोई नहीं लेगा।" इतना कहकर और वे चीजें उसे लौटाकर अफिलिया सहित वह तेजी से चला गया।

 उसने अफिलिया से कहा - "बहन, मुझे जान पड़ता है कि अब तुम टप्सी का चरित्र सुधारने में सफल होवोगी। जिस हृदय में शोक और आघात लगता है, उसे सहज ही अच्छे रास्ते पर लाया जा सकता है। तुम्हें अब इसके साथ खूब कोशिश करनी चाहिए।"

 अफिलिया ने कहा - "पहले से टप्सी बहुत सुधर गई है। मुझे अब इसके विषय में पूरी आशा हो गई है, पर मैं तुमसे एक बात पूछती हूँ कि यह है किसकी? तुम्हारी या मेरी?"

 "क्यों? मैं तो इसे तुम्हें सौंप चुका हूँ!" विस्मय से सेंटक्लेयर ने कहा।

 अफिलिया बोली - "नहीं, कानूनन वह मेरी नहीं है। मैं कानूनन उसे अपना बनाना चाहती हूँ।"

 "बहन, तुम इसे कानूनन लेना तो चाहती हो, पर तुम्हारे यहाँ का दास-प्रथा विरोधी दल इसके लिए तुम्हारी निंदा करेगा।"

 "इसमें क्या है, मैं वहाँ जाकर इसे स्वाधीन कर दूँगी। मैं इसके लिए इतना परिश्रम कर रही हूँ, यदि इसे अपने साथ न ले जा सकी तो मेरी सारी मेहनत बेकार चली जाएगी।"

 "बहन, बाद को अच्छा नतीजा हासिल करने के लिए पहले एक बुरा काम करने का मैं तो अनुमोदन नहीं कर सकता।" सेंटक्लेयर ने विनोद भाव से कहा।

 अफिलिया बोली - "हँसी-मजाक छोड़कर जरा सोचो! यदि उसे गुलामी से छुटकारा न दिया जा सके तो सारी धर्म-शिक्षा देना व्यर्थ है। तुम अगर इसे सचमुच मुझे देना चाहते हो तो एकदम पक्की लिखा-पढ़ी कर दो।"

 सेंटक्लेयर ने कहा - "अच्छा-अच्छा, कर दूँगा।" यह कहकर उसने समाचार-पत्र पढ़ना आरंभ कर दिया।

 अफिलिया बोली - "मैं चाहती हँ, यह काम अभी हो जाए।"

 "तुम्हें इतनी जल्दी क्या है?"

 "जो काम करना है, उसके लिए यही उचित समय है। उसमें फिर देर का क्या काम? कहा भी है - "काल्हि करै सो आजकर आज करै सो अब। पल में परलय होवेगी, बहुरि करेगा कब?" यह लो कलम-दवात और लिखना है सो अभी लिख दो।"

 सेंटक्लेयर का स्वाभाव आलसी था। उसने कुछ आना-कानी की, पर अफिलिया के सामने उसकी एक न चली। उसने तुरंत एक दान-पत्र लिखा और मिस अफिलिया को सौंपकर कहा - "लो, कहो, अब तो कुछ करना बाकी नहीं रहा?"

 पर, इस पर किसी की गवाही भी तो होनी चाहिए।

 "ओफ, मुसीबत का पार नहीं।" इतना कहकर सेंटक्लेयर ने दरवाजा खोलकर पुकारा - "मेरी, बहन तुम्हें गवाह बनाना चाहती है। जरा यहाँ आकर इस कागज पर दस्तखत तो कर देना।"

 मेरी ने उस कागज को पढ़कर कहा - "यह कैसी मजाक की बात है! इसकी भी लिखा-पढ़ी! लेकिन मैं समझती थी कि दीदी अपनी धर्मभीरुता के कारण दास रखने जैसा बुरा काम नहीं करेंगी। पर खैर, अगर इसके लिए इनकी इच्छा है तो हम लोग बड़ी प्रसन्नता से इनके मन की बात पूरी करेंगे।"

 इतना कहकर मेरी ने कागज पर हस्ताक्षर कर दिए और चली गई।

 सेंटक्लेयर ने वह कागज अफिलिया को सौंपते हुए कहा - "आज से टप्सी के शरीर और आत्मा पर तुम्हारी मिलकियत हुई।"

 अफिलिया बोली - "वह तो जैसी तब थी वैसी ही अब भी है। ईश्वर के सिवा और किसी की क्षमता नहीं कि उसे मुझे दे सके, पर अब मैंने उसकी रक्षा करने का अधिकार हासिल कर लिया है।"

 "खैर, अब वह बनावटी कानून के अनुसार तुम्हारी चीज हुई।" यह कहकर सेंटक्लेयर अपने कमरे में चला गया। मिस अफिलिया उस कागज को यत्न से अपने संदूक में बंद करके सेंटक्लेयर के कमरे में चली गई। उसे मेरी के साथ देर तक बैठकर बातचीत करना अच्छा नहीं लगता था।

 वहाँ जाकर मिस अफिलिया बुनने का सामान लेकर बैठ गई। उसने सहसा सेंटक्लेयर से कहा - "अगस्टिन, तुम्हारे बाद तुम्हारे गुलामों की क्या स्थिति होगी, इसका भी तुमने कोई बंदोबस्त किया है?"

 "नहीं।"

 "तब तुम्हारा उन्हें इस समय यह सब आराम देना व्यर्थ है, उल्टा यह उनके साथ बदसलूकी करना है।"

 सेंटक्लेयर प्राय: इस विषय को स्वयं सोचा करता था; पर अभी तक उसने कोई बंदोबस्त नहीं किया था। उसने कहा - "मैं, इन लोगों के लिए कोई प्रबंध करूँगा।"

 "कब?"

 "इसी बीच में किसी दिन।"

 "मान लो, यदि पहले ही तुम चल बसो तो?"

 सेंटक्लेयर ने अपने हाथ का अखबार रखकर उसकी ओर देखते हुए कहा - "बहन, आखिर ऐसा क्या हुआ है? मेरे शरीर में क्या तुम्हें हैजे या प्लेग के लक्षण दिखाई दे रहे हैं, जो तुम मेरे बिलकुल अंतिम समय का बंदोबस्त किए जा रही हो?"

 सेंटक्लेयर उठा और अखबार को किनारे रखकर धीरे-धीरे बरामदे की ओर चला गया। उसे ऐसी बातें अच्छी नहीं लगती थीं। इसी से वह उठ गया था। लेकिन आप-ही-आप यंत्र की भाँति उसके मुँह से "मृत्यु" शब्द निकलने लगा। वह सोचने लगा कि जगत में कोई ऐसा आदमी नहीं, जिसकी मृत्यु न होगी। यह एक साधारण बात है फिर भी हम मृत्यु को भूले हुए हैं, यह बड़े आश्चर्य का विषय है। आज मनुष्य बड़ी-बड़ी आशाओं के पुल बाँध रहा है, घमंड से पागल हुआ जा रहा है। कल ही उसे मौत ने आ दबोचा, तो सदा के लिए छुट्टी। सारे विचार यों ही रखे रह जाएँगे।...

 यह सब सोचते हुए जाते-जाते उसने बरामदे के दूसरी ओर टॉम को देखा। अपने सामने बाइबिल रखे हुए टॉम बड़े ध्यान से उसका एक-एक शब्द पढ़ रहा था। सेंटक्लेयर ने अलमस्त की तरह टॉम के पास बैठकर कहा - "टॉम, कहो तो मैं तुम्हें बाइबिल पढ़कर सुनाऊँ?"

 टॉम ने कहा - "यदि प्रभु कृपा करके पढ़ें तो बहुत अच्छी बात है। आपके पढ़ने से बहुत साफ-साफ समझ में आएगी।"

 सेंटक्लेयर ने पुस्तक उठा ली और उस स्थल को पढ़ने लगा, जहाँ टॉम ने बड़े-बड़े निशान लगा रखे थे। विषय था: "सारे देवदूतों से घिरे हुए ईश्वर-पुत्र जब सिंहासन पर बैठकर विचार करने लगेंगे, उस समय सब जातियाँ उनके सामने इकट्ठी होंगी। तब वह पुण्यात्माओं में से पापियों को छाँटेंगे। फिर उन पापियों को समुचित दंड लेकर कहेंगे, "मुझसे दूर हो जाओ। मुझे प्यास लगने पर तुमने पानी नहीं दिया, भूखे होने पर अन्न नहीं दिया, नंगे होने पर वस्त्र नहीं दिया और जेल में पड़े रहने पर मेरी सुध नहीं ली।" यह सुनकर पापी लोग कहेंगे, "भगवान, हमने कब आपको भूखे, प्यासे, नंगे और जेल में पड़े देखकर आपकी सुध नहीं ली?" यह सुनकर वह कहेंगे, "हमारे इन अत्यंत दीन-हीन भाइयों पर तुम लोगों ने जो अत्याचार किए हैं, सख्तियाँ की हैं, वे सब मुझपर ही हुई हैं।"

 बाइबिल से ये बातें पढ़ते हुए सेंटक्लेयर का मन द्रवित हो उठा। उसने इन पंक्तियों को मन-ही-मन पढ़ा और एकाग्रता से सोचने लगा। फिर बोला - "टॉम, मेरे ही जैसे आनंद और सुख के जीवन बितानेवाले लोग, जो स्वयं मौज में हैं, मस्त हैं और भूख-प्यास से तड़प-तड़पकर मरनेवाले अपने दीन बंधुओं की ओर आँख उठाकर भी नहीं देखते, वही तो ईश्वर के विचार से दंड पाएँगे?"

 टॉम ने इसका उत्तर नहीं दिया।

 सेंटक्लेयर चिंता में डूबा हुआ बरामदे में इधर-उधर टहलने लगा। वह विचारों में इतना खो गया कि उसे चाय की घंटी की आवाज भी सुनाई नहीं दी। टॉम ने दो बार घंटी की याद दिलाई, तब जाकर वह चाय पीने गया। चाय पीने के समय भी वह चिंता-मग्न था। चाय के बाद वह, उसकी स्त्री और मिस अफिलिया चुपचाप बैठक में आए।

 आते ही मेरी पलंग पर लेट गई और देखते-देखते सो गई। अफिलिया बुनने में लग गई। सेंटक्लेयर पियानो के पास जाकर धीरे-धीरे एक करुण धुन बजाने लगा। वह उस समय भी चिंता-शून्य न था। उसे देखकर जान पड़ता था, मानो वह बाजे के अंदर बैठकर स्वयं बोल रहा है। कुछ देर बाद उसने दराज से एक पुरानी पुस्तक निकाली और उसके पन्ने उलटते-उलटते मिस अफिलिया से बोला - "इधर आओ, यह मेरी माँ की पुस्तक है। यह देखो, मेरी माताजी के हस्ताक्षर हैं।"

 अफिलिया उठकर उसके निकट आई।

 सेंटक्लेयर ने कहा - "माँ यह गीत प्राय: गाया करती थी। ऐसा जान पड़ता है, मानो इस समय मैं माँ का गीत सुन रहा हूँ।" इतना कहकर सेंटक्लेयर ने एक पुराना, बड़ा गंभीर, लैटिन गीत गाया।

 टॉम बरामदे में बैठा था। गाना सुनकर वह दरवाजे के पास आकर खड़ा हो गया। गाने का अर्थ कुछ भी उसकी समझ में नहीं आया, पर गाने और बजाने की धुन पर उसका हृदय रीझ उठा, विशेषत: उस समय जब सेंटक्लेयर उस गीत का करुण अंश गाने लगा। फिर तो वह एकदम मोहित हो गया।

 गीत समाप्त होने पर सेंटक्लेयर सिर पर हाथ रखकर स्थिर चित्त से कुछ सोचने लगा। कुछ देर बाद उठकर घर में टहलने लगा। फिर मिस अफिलिया के पास आकर बोला - "बहन, परलोक-संबंधी विश्वास मनुष्य के हृदय में कैसी अनोखी शांति ला देता है। केवल शांति ही नहीं, यह विश्वास मनुष्य को संसार के अत्याचार, अन्याय और सब प्रकार के कष्ट सहने में समर्थ बनाता है। इस विश्वास के बल पर आशा लगी रहती है कि कभी तो एक दिन आएगा जब सारे दु:खों का अंत होगा।"

 अफिलिया ने कहा - "पर, हम लोगों-जैसे पापियों के लिए यह भयंकर वस्तु है।"

 सेंटक्लेयर बोला - "हाँ, मेरे लिए तो सचमुच ही भयंकर है। मैं आज टॉम को बाइबिल से परलोक के विचार के संबंध में पढ़कर सुना रहा था। पढ़ते-पढ़ते मेरा कलेजा थर्रा उठा। मेरा खयाल था कि बुरा काम करना ही पाप है, और बहुत बुरे कामों के फल से ही लोग स्वर्ग से वंचित रहते हैं, पर बाइबिल का यह मत नहीं है। वास्तव में अच्छे काम न करना ही घोर पाप है, इसी पाप के लिए परलोक में दंड भोगना पड़ता है।"

 अफिलिया ने कहा - "मैं समझती हूँ कि जो अच्छा काम नहीं करता, उसे बुरा काम करना ही पड़ेगा। सत् और असत्-दो ही मार्ग ठहरे, तीसरा कोई मार्ग ही नहीं है। इच्छा हो, सन्मार्ग से जाओ, नहीं तो असन्मार्ग से जाना ही पड़ेगा।"

 सेंटक्लेयर व्याकुल-चित्त से आप-ही-आप कहने लगा - "तो-तो जिस आदमी ने समाज के अभावों को जानने और जोरों से उनका बखान करते हुए भी अपने मन और अपनी उच्च शिक्षा को समाज की भलाई में नहीं लगाया, जिसने बिलकुल उदासीन दर्शक की भाँति सैकड़ों मनुष्यों की यंत्रणा और दुर्दशा देखकर भी कार्य-क्षेत्र में पैर नहीं रखा, और जो स्वप्न-सागर में बह रहा है, उसके संबंध में क्या कहा जाएगा?"

 अफिलिया ने कहा - "मैं तो कहती हूँ कि उसे अपनी पिछली बातों को भूलकर इसी क्षण कर्म में लग जाना चाहिए।"

 सेंटक्लेयर ने मुस्कराकर फिर कहा - "बहन, तुम ठीक-ठिकाने पर असल काम की बात को कहती हो। तुम मुझे सोचने-विचारने का जरा भी समय नहीं देना चाहती। तुम मेरी भावी चिंता के प्रवाह को घुमा-फिराकर वर्तमान की ओर ले आती हो, तुम्हारी आँखों के सामने एक विराट वर्तमान पड़ा हुआ है।"

 अफिलिया बोली - "मेरा तो यह मत है कि जो कुछ करना हो, वह अभी कर डालना चाहिए। जो घड़ी सामने है, उसके सिवा और किसी घड़ी पर मनुष्य का अधिकार नहीं है।"

 सेंटक्लेयर ने धीरे से कहा - "उस प्यारी नन्हीं इवा ने, मुझे काम में लगाने के लिए, मेरी भलाई के लिए, जी जान से यत्न किया था।"

 इवा की मृत्यु के संबंध में सेंटक्लेयर ने कभी अधिक चर्चा नहीं की थी; पर आज अत्यंत गहरे शोक को बलपूर्वक दबाकर ये बातें कह ही डालीं। फिर कहा - "धर्म के विषय में मेरा यह मत है कि कोई मनुष्य उस समय तक धर्मात्मा कहलाने का अधिकारी नहीं हो सकता, जब तक कि वह सब प्रकार के सामाजिक और राजनैतिक अत्याचारों, दु:खों और कष्टों को दूर करने के लिए अपना उत्सर्ग नहीं करता, जब तक देश में प्रचलित सारी कुरीतियों को जड़ से उखाड़ फेंकने का यत्न नहीं करता और संसार का दु:ख-दारिद्रय दूर करने की चेष्टा नहीं करता। मनुष्य तभी धर्मात्मा कहा जा सकता है, जब वह संसार के समस्त नर-नारियों को समान अधिकार दिलाने के संग्राम के लिए कमर कस ले और उस संग्राम में जीवन की मोह-ममता छोड़कर प्राण-विसर्जन करने को तैयार हो जाए। पर यहाँ तो जो धर्म-प्रचारक कहलाते हैं, जिन्होंने लोगों को धर्मात्मा बना देने का बीड़ा उठा रखा है, वे निर्बलों पर सबलों के अत्याचारों एवं अन्यायों की तथा सारी सामाजिक बुराइयों की उपेक्षा करते हैं। यही कारण है कि समझदारों को उनके कार्यों पर आस्था नहीं रहती।"

 मिस अफिलिया बोली - "यदि तुम यह सब जानते-बूझते हो, तो फिर तुम्ही ये सब काम क्यों नहीं करते?"

 सेंटक्लेयर ने कहा - "मैं जानता-बूझता सब हूँ, पर मेरी सहृदयता यहीं तक है कि मैं स्वयं कुछ करूँगा-धरूँगा नहीं। दूध से सफेद बिस्तर पर पड़ा रहूँगा और पादरियों की, चाहे वे सब-के-सब धर्मवीर ही क्यों न हों, चाहे वे सत्य के लिए प्राण ही देनेवाले क्यों न हों, निंदा करता रहूँगा और उनपर वाक्य-बाण बरसाता रहूँगा। दूसरों को कर्त्तव्य के पीछे, धर्म के पीछे, प्राण तक दे डालने चाहिए, इसे मैं खूब समझता हूँ; और जो अपना कर्त्तव्य-पालन नहीं करते, उनकी निंदा भी खूब करना जानता हूँ। पर कुछ भी कहो, मुझसे वह नहीं होने का।"

 अफिलिया ने कहा - "अब आगे से क्या तुम्हारे जीवन का दूसरा ढंग होगा?"

 सेंटक्लेयर बोला - "आगे की भगवान जाने! हाँ, पहले से अब साहस बढ़ गया है, क्योंकि अब सोने-खाने को कुछ रहा नहीं, सब कुछ हार चुका और जिसका हाथ खाली है उसे विपत्ति का क्या डर?"

 "तो तुम क्या करना चाहते हो?"

 "मैं अपने दास-दासियों को दासता से मुक्त करके उनकी उन्नति की चेष्टा करूँगा। फिर धीरे-धीरे ऐसा उपाय सोचूँगा जिसमें देश भर से यह बुरी प्रथा उठ जाए।"

 "क्या तुम सोचते हो कि पूरा देश अपनी इच्छा से इस प्रथा को छोड़ देगा?"

 "यह तो मैं नहीं कह सकता, लेकिन हाँ, आजकल स्वेच्छा से त्याग और नि:स्वार्थ प्रेम के दृष्टांत बहुत जगह देखे जाते हैं। उस दिन यूरोप में हंगरी के जमींदारों ने लाखों की हानि सहकर प्रजा का कर माफ कर दिया। उनकी प्रजा बिलकुल पराधीन थी। उसे स्वाधीनता दे दी गई। क्या हमारे देश में ऐसे दो-चार सहृदय मनुष्य नहीं मिलेंगे, जो जातीय गौरव और न्याय के लिए अर्थ की हानि को सहर्ष सहन कर लें?"

 मिस अफिलिया ने गंभीर होकर कहा - "मुझे विश्वास नहीं होता। अंग्रेज जाति बड़ी अर्थ-पिशाच होती है, बल्कि फ्रेंच इनसे अधिक सहृदय होते हैं।"

 सेंटक्लेयर बोला - "न मालूम क्यों, मुझे बार-बार अपनी माता की याद आ रही है। ऐसा लग रहा है, मानो वह मेरे बहुत पास है।"

 यह कहकर वह कुछ देर घर में टहला, फिर हाथ में टोपी लेकर यह कहता बाहर निकल गया - "जरा बाहर घूम आऊँ और आज की खबरें भी सुनता आऊँ।"

 टॉम तुरंत उसके पीछे-पीछे हो लिया। सेंटक्लेयर ने उसे देखकर कहा - "तुम्हारे साथ जाने की जरूरत नहीं है। मैं जल्दी ही लौटूँगा।"

 टॉम बरामदे में आकर बैठ गया। उस समय रात के नौ बजे थे। चांद की शीतल चांदनी धरती पर चारों ओर छिटकी हुई थी। टॉम वहीं बैठा-बैठा सोचने लगा - अब उसकी गुलामी की बेड़ी टूटने में ज्यादा देर नहीं है। वह दस-पाँच दिनों में ही घर चला जाएगा। सोचते-सोचते उसे अपने स्त्री-पुत्रों की याद हो आई, मन में नई-नई आशाएँ उठने लगीं। सोचने लगा कि अपने शरीर की मेहनत से धन कमाकर वह अपने पत्नी और बच्चो को भी गुलामी से छुड़ा लेगा। इस विचार के आते ही उसके हृदय में आनंद की लहरें उठने लगीं। फिर अपने मालिक सेंटक्लेयर की सहृदयता का स्मरण करके उसका हृदय कृतज्ञता से भर गया। इसके कुछ देर बाद उसे इवा की याद आई। जान पड़ा, मानो स्वर्ग की देव-बालाओं से घिरी हुई इवा उसके सामने खड़ी है। यों ही सोचते-विचारते टॉम को नींद ने आ घेरा। स्वप्न में उसे दिखाई पड़ने लगा कि नाना प्रकार की पुष्प-मालाएँ धारण किए इवा उसके पास आ रही है। उसका मुख-कमल चमक रहा है, उसकी दोनों आँखों से अमृत की वर्षा हो रही है, पर ज्योंहि उसने उसके मुख की ओर देखा, वह स्वर्ग की ओर उड़ी, उसके कपोलों पर लालिमा छा गई। उसकी आँखों से दैवी ज्योति निकलने लगी और पल भर में वह अंतध्यान हो गई।

 तभी उसकी आँख खुल गई। जागते ही उसने घर के द्वार पर बहुत से लोगों का शोरगुल सुना। उसने सपाटे से जाकर दरवाजा खोला। देखा, कुछ लोग कपड़ों से ढकी हुई एक लाश लिए खड़े हैं। मृत व्यक्ति के मुख की ओर दृष्टि जाते ही टॉम निराशा और दु:ख के मारे चीख उठा। जो लोग उस व्यक्ति को कंधे पर लादकर लाए थे, उन्होंने घर में जाकर, जहाँ अफिलिया बैठी थी, वहाँ से उतारकर लिटा दिया।

 संध्या के समाचार-पत्र पढ़ने के लिए सेंटक्लेयर किसी चाय-खाने में गया था। वहाँ बैठकर जब वह पत्र पढ़ रहा था तो उसने देखा कि दो भलेमानस शराब के नशे में मतवाले हुए आपस में मार-पीट कर रहे हैं। सेंटक्लेयर तथा और दो-एक अन्य व्यक्ति उन्हें छुड़ाने की चेष्टा करने लगे। इनमें से एक के हाथ में तेज छुरा था। वह छुरा एकाएक सेंटक्लेयर की बगल में घुस गया। वह तत्काल मूर्च्छित होकर गिर पड़ा। कुछ लोगों ने उसे कंधे पर उठाकर उसके घर पहुँचा दिया।

 सेंटक्लेयर की यह दशा देखकर घर के सारे दास-दासी रोने-चीखने लगे। सबकी बुद्धि चकरा गई। कोई जमीन पर लोट-लोटकर रोने लगा। कोई पागल की तरह चीखता हुआ इधर-से-उधर दौड़ने लगा। केवल मिस अफिलिया और टॉम मन को साधकर सेंटक्लेयर को होश में लाने के लिए भाँति-भाँति के उपाय करने लगे। अफिलिया के कहने से टॉम ने तत्काल बिस्तर बिछा दिया और सेंटक्लेयर को उस पर लिटाकर दवा दे दी। कुछ देर के बाद सेंटक्लेयर को चेत हुआ। वह आँखें मलकर एक-एक करके सबको देखने लगा। अंत में कमरे में टँगी अपनी माता की तस्वीर पर जाकर उसकी दृष्टि अटक गई। वह एकटक उसी की ओर देखने लगा।

 शीघ्र ही डॉक्टर आया और घावों की जाँच करने लगा। डाक्टर के चिंतित चेहरे को देखकर लोगों ने समझ लिया कि उसके जीने की कोई आशा नहीं है। डाक्टर घावों पर पट्टी बाँधने लगा। टॉम और मिस अफिलिया दोनों बड़े धीरज से सेंटक्लेयर की सहायता करने लगे। सब दास-दासी वहीं बैठे-बैठे रोते रहे। डाक्टर ने कहा कि बीमार के पास शोरगुल नहीं होना चाहिए। इन दास-दासियों को कमरे से बाहर करके इसको एकांत में रखना चाहिए।

 इसी समय सेंटक्लेयर ने फिर आँखें खोलीं। जिन दास-दासियों को डाक्टर और अफिलिया ने बाहर चले जाने को कहा था, उनके चेहरों की ओर देखते हुए ठंडी साँस लेकर उसने कहा - "अभागे गुलामों!"

 ये शब्द मुँह से निकलते समय ऐसा जान पड़ता था, मानो उसके हृदय में आत्मग्लानि की आग धधक रही है। एडाल्फ नाम का दास वहाँ से किसी तरह जाने को राजी न हुआ, वहीं धरती पर लोट गया। दूसरे दास-दासियों को जब मिस अफिलिया ने बहुत समझाया, तब वे अनिच्छापूर्वक वहाँ से हटे।

 सेंटक्लेयर की बोली एकदम रुक गई। वह आँखें बंद किए पड़ा रहा। उसके चेहरे से मालूम हो रहा था, मानो दु:सह अनुताप की आग में उसका हृदय जल रहा है। टॉम उसकी बगल में घुटने टेककर बैठा हुआ था। सेंटक्लेयर ने कुछ देर बाद टॉम के हाथ पर हाथ रखकर कहा - "टॉम! दु:खी टॉम!"

 टॉम ने बड़ी व्याकुलता से कहा - "लज्जा, क्या चाहते हैं?"

 सेंटक्लेयर ने उसका हाथ दबाते हुए कहा - "मेरे जाने का समय आ गया है। प्रार्थना करो।"

 यह सुनकर डाक्टर ने कहा - "किसी पादरी को क्यों न बुला लिया जाए?"

 सेंटक्लेयर ने सिर हिलाकर असहमति प्रकट की और टॉम से फिर कहा - "टॉम, प्रार्थना करो।"

 परलोकगामी आत्मा के कल्याण के लिए टॉम भारी हृदय से बड़ी व्याकुलतापूर्वक प्रार्थना करने लगा। टॉम की प्रार्थना समाप्त होने पर भी सेंटक्लेयर उसका हाथ पकड़े हुए उसकी ओर देखता रहा, पर कुछ बोल न सका। धीरे-धीरे उसकी आँखें मुँदने लगीं, लेकिन टॉम का हाथ वह थामे ही रहा। अंतिम साँस तक स्नेह के साथ वह काले हाथ को पकड़े रहा।

 उसका शरीर एकदम निस्तेज हो गया, मृत्यु की मलिन छाया ने उसके मुख-मंडल को ढक लिया, किंतु इस मलिन छाया के साथ-साथ उसके मुख पर मधुर कांति छा गई। ऐसा जान पड़ा मानो स्वर्ग से किसी दयालु आत्मा ने अकस्मात् उतरकर शांति की मृदुल प्रभा से उसके मुख-मंडल को अनुरंजित कर दिया है।

 अंतिम समय सेंटक्लेयर के मुँह से कोई बात नहीं निकली। बस "माँ" कहते ही उसके प्राण निकल गए। लगा, जैसे अपनी माता को सामने देखकर दुधमुँहा बच्चा उसकी गोद में कूद पड़ा।