28 - प्रेम का चमत्काकर
रविवार का दिन था। दोपहर बीत चुका था। सेंटक्लेयर अपने घर के बरामदे में बैठा सिगरेट पी रहा था। बरामदे के सामनेवाले कमरे में उसकी स्त्री मेरी एक गद्दीदार कुर्सी पर बैठी हुई थी। मेरी के हाथ में एक बड़ी सुंदर भजनों की जिल्ददार पुस्तक थी। मेरी का खयाल है कि रविवार के दिन धर्म-पुस्तक पढ़ी न जा सके तो कम-से-कम हाथ ही में रहे। खुली हुई पुस्तक सामने थी। उस समय मेरी उसे पढ़ नहीं रही थी। केवल कभी-कभी आँख उठाकर देख लेती थी।
इवा को साथ लेकर मिस अफिलिया मेथीडिस्टों के किसी गिरजे में गई थी, अत: अगस्टिन और मेरी के सिवा वहाँ और कोई न था। कुछ देर बाद मेरी ने कहा - "अगस्टिन, मुझे हृदयरोग-सा हो गया जान पड़ता है। मैं समझती हूँ अपने उस पुराने डाक्टर पोसी साहब को बुलवाने से ही काम चलेगा।"
अगस्टिन ने कहा - "उसको बुलाने की क्या जरूरत है? जो डाक्टर इवा की दवा करता है, वह भी तो बड़ा अच्छा जान पड़ता है।"
मेरी बोली - "मैं ऐसी नाजुक बीमारी में नए डाक्टर पर विश्वास नहीं कर सकती। मैं देखती हूँ, रोग दिन-दिन बढ़ता जा रहा है। दिन भर बदन दर्द किया करता है, और कुछ भी अच्छा नहीं लगता।"
"यह तुम्हारा खाली संदेह ही है, मेरी समझ में तुम्हें ऐसा कोई रोग नहीं है।"
मेरी झुँझलाकर बोली - "यह तो मुझे पहले से ही पता था कि तुम्हारी समझ में कुछ नहीं होगा। इवा को जरा-सी खाँसी या मामूली-सा रोग हो जाता है तो तुम घबरा जाते हो, पर मेरा तुम्हें कभी खयाल तक नहीं होता।"
सेंटक्लेयर ने कहा - "यदि तुम चाहकर हृदय-रोग को बुलाना चाहती हो तो मैं उसमें बाधा नहीं डालूँगा। तुम्हारी निगाह में अगर यह रोग बड़े आदर की चीज है तो ठीक है, मेरा इसमें क्या नुकसान है?"
मेरी बोली - "तुम्हें विश्वास हो या न हो, मैं पक्के तौर पर कहती हूँ कि इधर कई दिनों तक इवा की बीमारी की झंझट में पड़े रहने के कारण मेरा यह रोग बहुत बढ़ गया है।"
सेंटक्लेयर कुछ नहीं बोला। वह चुरुट में दम लगाने लगा और मन-ही-मन कहने लगा - "तुम इवा की बीमारी के झंझट में पड़े रहने की कहती हो? कभी एक दिन भूल से भी तो उसकी खबर नहीं ली!"
इसके कुछ देर बाद मिस अफिलिया इवा को साथ लेकर घर लौटी। वह गाड़ी से उतरते ही सीधी अपने कमरे में चली गई। इवा अपने पिता की गोद में जाकर बैठ गई और गिरजे के उपदेश की चर्चा करने लगी।
तभी मिस अफिलिया के कमरे से बड़ा शोर सुनाई दिया।
सेंटक्लेयर ने कहा - "टप्सी ने न जाने आज कौन-सा नया उत्पात कर दिया। बहन बहुत बिगड़ रही है।"
मिस अफिलिया बड़ी गुस्से में भरी टप्सी का गला पकड़कर घसीटती हुई लाई।
सेंटक्लेयर ने पूछा - "कहो, आज क्या मामला है?"
अफिलिया ने कहा - "यह है कि अब मैं इस आफत से अधिक परेशान नहीं होना चाहती, इसे बरदाश्त करना मेरे बूते से बाहर है। कहीं खेलने भाग जाएगी, यह सोचकर इसे भजनों की पुस्तक देकर दरवाजे में ताला लगा गई थी, लेकिन मेरे जाने के बाद इसने मेरी चाबी निकाल ली और मेरे बक्स से रेशमी कपड़े निकालकर उन्हें कूट-कूटकर गुडियों के कपड़े बना डाले। मैंने जिंदगी में ऐसी पाजी लड़की नहीं देखी।"
फिर सेंटक्लेयर की ओर तिरस्कृत दृष्टि से देखकर बोली - "अगर मेरा वश चलता तो मैं इसे बाहर निकलवाकर इतने कोड़े लगवाती कि इसको छठी का दूध याद आ जाता।"
सेंटक्लेयर ने कहा - "मुझे जरा भी संदेह नहीं है। वास्तव में स्त्रियों का शासन बड़ा ही प्रेम-पूर्ण और मृदुल होता है। मैं अपने इस देश में ऐसी दस स्त्रियाँ भी नहीं देखता कि उनका वश चले तो वे एक घोड़े या एक गुलाम को अधमरा न कर डालें। पुरुषों की मैं क्या कहूँ!"
मेरी बोली - "सेंटक्लेयर, तुम्हारी इस बेढंगी प्रणाली से नौकरों को शिक्षा देने का कोई फल न होगा। दीदी बुद्धिमान स्त्री हैं और वह समझती हैं कि मैंने जो कहा, सो ठीक है या नहीं।"
दूसरी स्त्रियों की भाँति अफिलिया को भी कभी-कभी गुस्सा आ जाता था, विशेषत: टप्सी उसे जितना हैरान करती थी, उससे क्रोध आना स्वाभाविक ही था। पर मेरी जब उनकी बुद्धिमत्ता की प्रशंसा करने लगी तब उसे लज्जा मालूम हुई और उसका क्रोध कम हो गया। उसने कहा - "नहीं, इस लड़की के साथ ऐसा कठोर बर्ताव करने की मेरी कभी इच्छा नहीं होगी। पर अगस्टिन, मेरी अक्ल काम नहीं करती। इस लड़की का क्या करूँ? मैंने इसे बहुतेरा सिखाया-पढ़ाया, समझाते-समझाते हार गई। हर तरह से सजा देकर भी देख चुकी, पर यह जैसी-की-तैसी बनी हुई है।"
सेंटक्लेयर ने कहा - "टप्सी, इधर आ!"
टप्सी उसके सामने आकर, काली-काली आँखें निकालकर, टुकुर-टुकुर ताकने लगी। उसकी आँखों से भय और धूर्तता टपकती थी।
सेंटक्लेयर ने कहा - "क्यों री टप्सी, तू इतना पाजीपन क्यों करती है?"
टप्सी बोली - "जान पड़ता है, मेरा मन बड़ा खराब है। मिस फीली तो यही कहती हैं।"
सेंटक्लेयर ने कहा - "तू नहीं देखती कि मिस अफिलिया ने तेरे लिए कितनी परेशानी उठाई है? वह कहती है कि वह जो कर सकती थी, सब-कुछ करके देख लिया।"
"जी हाँ, पुरानी मालकिन भी यही कहा करती थीं। वह मुझे बहुत कोड़े लगाती थीं, मेरे बाल नोच लेती थीं, दरवाजे से मेरा सिर टकरा देती थीं, पर उससे मैं जरा भी नहीं सुधरी। मैं समझती हूँ, अगर मेरे सिर का बाल-बाल नोच लिया जाए तो भी मेरा कुछ सुधार न होगा। मैं बड़ी पाजी हूँ। मैं हब्शी के सिवा और कुछ नहीं हूँ। कोई उपाय नहीं है।"
अफिलिया ने उत्तेजित होकर कहा - "अब मैं इसे सुधारने की आशा छोड़े देती हूँ। जितना सह चुकी हूँ वही बहुत है। अब और क्लेश नहीं सह सकती।"
सेंटक्लेयर ने कहा - "अच्छा, मैं तुमसे एक बात पूछना चाहता हूँ।"
"क्या?"
"यही कि जब तुम्हारे धर्मशास्त्र में इतनी भी ताकत नहीं कि अपने पास रखकर एक अज्ञानी बालिका का उद्धार कर सको, तब ऐसे-ऐसे हजारों अज्ञानियों के उद्धार के लिए बेचारे दो-एक पादरियों के इधर-उधर भेजने से क्या मतलब सिद्ध होता है?"
मिस अफिलिया ने तत्काल इसका उत्तर नहीं दिया। इवा ने, जो वहाँ चुपचाप खड़ी हुई सब बातें सुन रही थी, टप्सी को अपने पीछे-पीछे आने का इशारा किया। फिर वे दोनों पास ही के उस शीशे के कमरे में चली गईं, जिसमें बैठकर सेंटक्लेयर पढ़ा करते थे।
उन दोनों के आँख से ओझल हो जाने पर सेंटक्लेयर ने कहा - "देखना चाहिए, इवा क्या करती है।"
यह कहकर वह आगे बढ़ा और शीशे पर जो पर्दा पड़ा हुआ था, उसका एक कोना उठाकर झाँकने लगा। एक क्षण के बाद उसने अपने होठों पर अंगुली रखकर इशारे से मिस अफिलिया को भी बुलाया। वे दोनों बालिकाएँ फर्श पर आमने-सामने बैठी हुई थीं। टप्सी के चेहरे पर उसकी स्वाभाविक बेपरवाही और अन्यमनस्कता का भाव दिखाई दे रहा है, पर इवा की आँखें आँसुओं से भरी थीं।
इवा बोली - "टप्सी, तेरा स्वाभाव क्यों इतना खराब हो गया? तू सुधरने की कोशिश क्यों नहीं करती? टप्सी, क्या तू किसी आदमी को प्यार नहीं करती?"
टप्सी ने कहा - "मुझे नहीं मालूम, प्यार किस चीज को कहते हैं। मैं चीनी को प्यार करती हूँ और ऐसी ही चीजों को, जो मीठी होती हैं।"
"तू अपने बाप-माँ को प्यार करती है?"
"मेरा कोई नहीं है।"
"क्या तुम्हारा कोई नहीं है - भाई, बहन, चाचा, चाची या..."
"नहीं-नहीं, कोई नहीं। मेरा कभी कोई हुआ ही नहीं।"
"पर टप्सी, यदि तू सुधरने की कोशिश करे तो सुधर सकती है।"
"मैं हब्शी के सिवा और कुछ नहीं हो सकती। अगर मेरी यह काली चमड़ी उतरकर सफेद आ जाए तो मैं सुधरने की कोशिश करूँ।"
"टप्सी, काली होने से क्या हुआ, लोग तुझे अब भी प्यार कर सकते हैं। अगर तू अच्छी बन जाए तो मिस अफिलिया तुझे बहुत चाहेंगी।"
यह बात सुनकर टप्सी ने स्वाभाविक रीति से मुँह फाड़ दिया। इसके माने यह थे कि तुम्हारी इस बात पर विश्वास नहीं होता।
इवा ने पूछा - "क्या तू इस बात पर विश्वास नहीं करती?"
"नहीं मुझे देखकर ही उन्हें घृणा आती है, क्योंकि मैं हब्शी हूँ। मुझे छूने से वह ऐसा चौंकती हैं, जैसे उनपर कोई मेंढक गिर पड़ा है। कोई भी ऐसा नहीं है, जो हब्शियों को प्यार कर सके, और हब्शी भी कुछ हो नहीं सकते, ऐसे-के-ऐसे ही रहेंगे वे। (सीटी बजाना आरंभ करके) उसने कहा: मैं परवा नहीं करती।"
इवा का हृदय द्रवित हो उठा। उसने अपना दुबला सफेद हाथ टप्सी के कंधे पर रखकर कहा - "टप्सी-अभागी टप्सी, मैं तुझे प्यार करती हूँ। मैं तुझे इसलिए प्यार करती हूँ कि तू अनाथ है, तेरे माता-पिता नहीं हैं, न भाई-बहन हैं। मैं तुझे इसलिए प्यार करती हूँ कि तू बड़ी ही दु:खी और सताई हुई है। मैं तुझे प्यार करती हूँ और चाहती हूँ कि तू भली बन जा। टप्सी, मेरी तबियत बड़ी खराब है। मैं अब अधिक दिन नहीं रहूँगी। तेरा यह हाल देखकर मेरा जी बहुत ही दुखता है। मैं अब बहुत थोड़े ही दिनों की मेहमान हूँ। मैं चाहती हूँ कि और न सही, मेरा खयाल करके ही तू सुधरने की कोशिश कर!"
बालिका की आँखें आँसुओं से भर आईं और इवा के हाथ पर टप-टप बड़ी-बड़ी बूँदें गिरने लगीं। उसी क्षण सत्य विश्वास की एक किरण स्वर्गीय प्रेम की एक किरण, उस अज्ञानी अविश्वासपूर्ण बालिका की आत्मा में प्रविष्ट हुई। टप्सी दोनों घुटनों के बीच सिर रखकर रो रही थी और वह लावण्यमयी बालिका झुककर स्नेह-भरे नेत्रों से उसे देख रही थी। मानो कोई ज्योतिर्मय देवदूत झुककर किसी पापात्मा का पाप-पंक से उद्धार कर रहा हो।
इवा ने कहा - "टप्सी, क्या तू नहीं जानती कि ईश्वर हम सबको एक बराबर प्यार करते हैं? वह जितना मुझे प्यार करते हैं, उतना ही तुझे भी। वह ठीक वैसे ही तुझे प्यार करते हैं, जैसे मैं करती हूँ, बल्कि मुझसे अधिक, क्योंकि वे मुझसे बढ़कर हैं। वे सुधरने में तेरी मदद करेंगे। अंत में तू स्वर्ग में पहुँच सकती है और सदा के लिए देवदूत हो सकती है। तेरी काली चमड़ी इसमें बाधा नहीं डालेगी। सफेद चमड़ीवालों के लिए जैसे ये सब बातें हैं, वैसे ही तेरे लिए हैं। टप्सी, इन बातों को सोच! टॉम काका जिन ऊँची आत्माओं के भजन गाता है, तू भी उन आत्माओं की भाँति एक आत्मा हो सकेगी।"
टप्सी ने भरे कंठ से कहा - "मिस इवा, प्यारी इवा, मैं कोशिश करूँगी। मैंने पहले कभी इसकी परवा नहीं की थी।"
सेंटक्लेयर ने पर्दा छोड़कर मिस अफिलिया से कहा - "यह द्रश्य देखकर इस समय मुझे अपनी माता की याद आती है। उन्होंने मुझसे ठीक ही कहा था - अगर हम अंधे को आँख देना चाहते हैं तो हमें ईसा के रास्ते पर चलना पड़ेगा। उन्हें अपने पास बुला लो और अपने हाथ उनपर रखो।"
मिस अफिलिया ने कहा - "हब्शियों से मुझे सदा से एक प्रकार की घृणा-सी है, और यह सच्ची बात है कि मैं कभी इस बालिका से अपना शरीर छुआने के लिए तैयार नहीं हो सकती। पर मैंने नहीं सोचा था कि वह मेरे मन के भाव को ताड़ती है।"
सेंटक्लेयर बोला - "ये बच्चे बड़ी जल्दी मन की बात जान लेते हैं। उनसे मन के भाव छिपाना कठिन है। मेरा दृढ़ विश्वास है कि किसी बालक को यदि तुम मन से घृणा करती हो तो ऊपर से उसके उपकार की चाहे कितनी कोशिश क्यों न करो, उसकी चाहे कितनी भलाई क्यों न करो, वास्तव में जब तक उस पर तुम्हारा स्नेह-भाव न होगा, तब तक वह तुम्हारा रत्ती भर भी कृतज्ञ न होगा।"
अफिलिया ने कहा - "समझ में नहीं आता कि मैं इस भाव को कैसे दूर करूँ। ये हब्शी मुझे अच्छे नहीं लगते, और खासकर यह लड़की।"
सेंटक्लेयर बोला - "मालूम होता है, इवा ने इस भाव को दूर कर दिया है।"
अफिलिया ने गदगद होकर कहा - "हाँ, वह कैसी प्रेममयी है, मानो प्रेम का अवतार ही है। उसने ईसा की-सी प्रकृति पाई है। मेरी इच्छा होती है कि मैं भी उसकी जैसी होती। इवा से मैं बहुत-कुछ सीख सकती हूँ।"
सेंटक्लेयर बोला - "हाँ, बड़े हो जाने से ही आदमी सब बातों का पंडित नहीं बन जाता। बच्चो से भी उसे बहुतेरी बातें सीखने को रह जाती हैं।"