Tom Kaka Ki Kutia - 27 in Hindi Fiction Stories by Harriet Beecher Stowe books and stories PDF | टॉम काका की कुटिया - 27

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टॉम काका की कुटिया - 27

27 - मृत्यु के पूर्व-लक्षण

दो दिन के बाद अल्फ्रेड पुत्र सहित सेंटक्लेयर से बिदा होकर अपने घर गया। जब तक अल्फ्रेड वहाँ था, तब तक सब लोग हँसी-खुशी में भूले हुए थे। इस बीच में इवान्जेलिन के स्वास्थ्य की ओर किसी ने ध्यान नहीं दिया। एक तो वह पहले ही से अस्वस्थ थी, इधर हेनरिक के साथ खेल-कूद में उस पर बहुत अधिक श्रम पड़ने के कारण वह और भी थक गई। उसका शरीर इतना निर्बल हो गया कि उसमें चलने-फिरने की शक्ति न रही। अब तक तो सेंटक्लेयर ने मिस अफिलिया की बातों पर ध्यान न दिया था, पर अब उसने डाक्टर को बुलाकर इवा को दिखलाया और उसके हृदय में भी भाँति-भाँति की आशंकाएँ उठने लगीं।

 सेंटक्लेयर की स्त्री, मेरी, कभी भूल से भी अपनी लड़की के स्वास्थ्य के संबंध में कुछ न पूछती थी। इधर उसने मुहल्ले की स्त्रियों से दो-तीन नए रोगों की चर्चा सुनी थी। बस, अब वह उन्हीं नए रोगों के सब लक्षण अपने शरीर में देखने लगी। वह इन अपने ही कल्पित रोगों में इतनी अधिक उलझी रहती थी कि उसे किसी और के अच्छे या बीमार होने की खोज करने की फुर्सत ही नहीं थी। उसे कन्या की खबर लेने का भी तनिक अवकाश न था। वह तो अपने ही रोगों की चिंता में लगी रहती थी कि कैसे उनसे पिंड छूटेगा। साथ ही एक और बात थी, वह समझती थी कि संसार में किसी भी व्यक्ति को उसके जितनी पीड़ा नहीं हो सकती और रोग जितने होते हैं, उसी के होते हैं दूसरे किसी के रोगों को तो वह एक काम न करने का बहाना और आलस्य भर समझती थी। उसका ख्याल था कि असल रोग उसी को होते हैं।

 मिस अफिलिया ने इवा के रोगों के संबंध में कई बार मेरी की आँखें खोलने की चेष्टा की, पर सब व्यर्थ गई। वह कहती थी - "मेरी समझ में तो उसे कुछ नहीं हुआ है। वह मजे से खेलती-कूदती है।"

 "तुम उसकी खाँसी नहीं देखती हो?"

 "खाँसी के संबंध में आपके कहने की आवशकयता नहीं है। मैं खुद उस विषय में बहुत जानती हूँ। मैं जब इवा के बराबर थी, तब मेरे घरवाले समझते थे कि मुझे तपेदिक हो गया है। रात-रात भर मामी मेरे पास बैठी रहती थी। इवा की खाँसी मेरी खाँसी के मुकाबले कुछ भी नहीं है।"

 अफिलिया कहती - "लेकिन वह दिन-प्रति-दिन कमजोर होती जा रही है।"

 "मैं वर्षों ऐसी कमजोर थी। वह कोई खास बात नहीं है।"

 "रात को रोज उसका शरीर गरम हो जाता है उसे रात को बराबर बुखार चढ़ता है।"

 "वैसा तो मुझे दस साल तक था। बुखार के मारे रात को इतना पसीना आता था कि सारे कपड़े तरबतर हो जाते थे। सवेरे घंटों बैठकर मामी उन्हें सुखाती थी। इवा को कोई वैसा बुखार नहीं है।"

 अफिलिया ने इसके बाद मेरी से इवा के संबंध में कुछ भी कहना बंद कर दिया, पर जब इवा इतनी कमजोर हो गई कि चारपाई से भी नहीं उठ सकती और उसके लिए डॉक्टर बुलाया गया, तब एकाएक मेरी का अपनी बच्ची के लिए प्रेम उमड़ पड़ा।

 मेरी कहने लगी - "मैं तो पहले ही जानती थी कि सेंटक्लेयर की उदासीनता का यह फल मुझे भोगना पड़ेगा। मुझे संतान-शोक देखना पड़ेगा। एक तो मैं अपने ही रोगों के मारे मर रही हूँ, उस पर यह संतान-शोक! आदमी के इससे ज्यादा और क्या फूटे भाग्य होंगे! न सात न पाँच, मेरे यह एक बच्ची है और उसका यह हाल हुआ।"

 ये बातें कहकर वह दास-दासियों पर अपने दिल का गुबार निकालने लगी। मामी ने इवा की देखभाल में लापरवाही की है, यह कहकर उसे खूब कोसा। फिर अभिमान से मुँह फुलाकर मेरी सेंटक्लेयर के सामने रोने लगी।

 सेंटक्लेयर ने कहा - "प्यारी मेरी, ऐसी बातें मुँह से न निकालो। इवा को अवश्य आराम हो जाएगा। उसे ऐसा क्या हुआ है?"

 मेरी बोली - "सेंटक्लेयर, तुम्हें माँ की ममता का क्या पता? तुम मेरा हृदय कभी नहीं समझ सके। अब भी तुम नहीं जान सकते कि अपनी संतान के लिए मेरा जी कितना छटपटा रहा है।"

 सेंटक्लेयर ने कहा - "पर ऐसी बातें मत करो, इस तरह छटपटानेवाली कोई बात नहीं है।"

 मेरी बोली - "यह दशा देख-सुनकर मेरा जी तो तुम्हारी तरह नहीं मान सकता। सब बातों में तुम जैसे पत्थर दिल के हो, मैं तो वैसी नहीं हूँ। संतान के नाम से यही एक लड़की है, इसकी बीमारी देखकर क्या मैं बरदाश्त कर सकती हूँ?"

 "घबराओ मत! इवा का शरीर बड़ा कोमल है, इसी से अधिक गर्मी और हेनरिक के साथ खेल-कूद में अधिक श्रम पड़ने के कारण उसकी तबीयत खराब हो गई है। डाक्टर साहब कहते हैं कि वह शीघ्र ही अच्छी हो जाएगी।"

 मेरी ने कहा - "मेरा यह हृदय इस बात को जानकर भी नहीं समझना चाहता। मैं भी चाहती हूँ कि तुम्हारी तरह बिना घबराए सुख से रह सकती तो अच्छा था, पर क्या करूँ, यह जी तो नहीं मानता।"

 दो-तीन हफ्ते तक इवा को कुछ आराम लगा। वह उठकर फिर चलने-फिरने लगी। कभी-कभी पहले की भाँति बाग में जाकर टॉम के साथ बैठती थी। उसके पिता को यह देखकर बड़ा आनंद हुआ। पर मिस अफिलिया और चिकित्सक की दृष्टि में बीमारी कुछ भी न घटी थी। इवा स्वयं भी मन-ही-मन समझती कि इस पाप और अत्याचारपूर्ण संसार को उसे शीघ्र ही छोड़ना पड़ेगा।

 मनुष्य के हृदय में मृत्यु का संवाद कौन पहुँचाता है? मरणासन्न के कान में कौन कह जाता है कि अब इस संसार में तुम्हारी घडियाँ पूरी हो चुकी हैं? इवा को किसने कहा कि अब शीघ्र ही उसे यह संसार छोड़ना पड़ेगा? यदि कहिए कि मनुष्य के अंदर बैठा हुआ अनंत सुख का अभिलाषी, ईश्वर-सामीप्य का प्रयासी, अमृत का अधिकारी, अविनाशी आत्मा पहले ही से मृत्यु का आगमन जान जाता है, तो फिर सब लोग क्यों नहीं जान लेते? कोई जानता है, बहुत-से नहीं जानते, इसका क्या कारण है? इसके उत्तर में इतना ही कहा जा सकता है कि विषयासक्त सांसारिक जीवों के कान विषय-कोलाहल के बहरे हुए रहते हैं। उनकी आँखें मोहांधकार से ढकी रहती हैं। इस पाप से भरे संसार में रहने की उत्कट इच्छा मृत्यु-चिंता को उनके हृदय में प्रवेश नहीं करने देती; इसी से विषयासक्त जीव पहले से मृत्यु का आगमन नहीं जान सकते। मृत्यु के आगमन की ध्वनि उन्हें कभी नहीं सुनाई देती। किंतु पर-दु:ख-कातर, पवित्र-हृदया इवान्जेलिन के कान सांसारिक कोलाहल से बहरे नहीं हुए थे, अपने सुख की इच्छा कभी उसके हृदय में स्थान नहीं पाती थी। यह संसार उसे दु:खमय जान पड़ता था, इसी से उसे परम पिता जगदीश्वर का, उसके दु:ख-निवारण करने के लिए अपने धाम को बुलाने का संदेशा साफ सुनाई पड़ा। उसे इसका तनिक भी खेद न हुआ कि यह संसार छोड़ना पड़ेगा। उसके हृदय को कुछ आघात पहुँचानेवाली बात थी तो इतनी ही कि उसे अपने स्नेहमय पिता को छोड़ना होगा, और उसकी मृत्यु से उसके पिता शोक में पागल हो जाएँगे।

 एक दिन टॉम को बाइबिल सुनाते हुए इवा ने कहा - "टॉम काका, मैं जान गई कि ईसा ने क्यों हम लोगों के लिए प्राण दिए हैं।"

 टॉम ने पूछा - "कैसे?"

 "ऐसे कि मेरे हृदय में भी उस भाव का अनुभव होता है।"

 "वह अनुभव क्या और कैसा है, मिस इवा? यह बात ठीक से मेरी समझ में नहीं आई।"

 "मैं तुम्हें समझाकर नहीं बता सकती, लेकिन मैंने जब उस जहाज में तुम्हें तथा जंजीर से जकड़े हुए दूसरे दास-दासियों को, जिनमें कोई अपने बच्चो से, कोई अपने पतियों से, और कोई अपनी माताओं से बिछुड़ने के कारण विलाप कर रहे थे, देखा और जब मैंने बेचारी प्रू की बात सुनी ओफ, वह कैसा भयंकर कांड था, तब और अन्य बहुत-से अवसरों पर मैंने इस बात का अनुभव किया कि यदि मेरे मरने से ये सब दु:ख-दर्द से छूट सकें तो मैं आनंद से मर जाऊँ।"

 इवा ने अपना दुबला-पतला हाथ टॉम पर रखते हुए भावावेश में कहा - "टॉम काका, यदि मेरे मरने से इनका दु:ख दूर हो जाए, तो मैं खुशी से मर जाऊँगी।"

 टॉम विस्मित होकर उसका मुख निहारने लगा। पर अपने पिता के पाँवों की आहट पाकर इवा उठकर बरामदे में चली गई।

 थोड़ी देर के बाद टॉम जब मामी से मिला तो उसने कहा - "मामी, अब इवा को इस संसार में रखने का प्रयत्न करना व्यर्थ है। उसके भाल पर विधना का लेख है।"

 मामी ने अपने हाथ को ऊपर उठाते हुए कहा - "हाँ-हाँ, यह तो मैं हमेशा से कहती आई हूँ। वह लड़की बचनेवाली नहीं है। ऐसे होनहार बच्चे बहुत दिन नहीं जीते। वह हम सब लोगों को अनाथ कर जाएगी।"

 इवा अपने पिता के पास आई। उसके पिता ने उसे स्नेहपूर्वक हृदय से लगाकर कहा - "इवा बेटी, आजकल तो तुम अच्छी हो न!"

 इवा ने आकस्मिक दृढ़ता से कहा - "बाबा, बहुत दिनों से मैं तुमसे कुछ कहना चाहती थी। अब अधिक निर्बल होने से पहले ही मैं उन बातों को कह डालना ठीक समझती हूँ।"

 सेंटक्लेयर का हृदय काँप उठा। इवा ने पिता की गोद में बैठकर कहा - "बाबा, अब मेरे यहाँ रहने के सब उपाय व्यर्थ हैं। तुम्हें छोड़ जाने का समय अब बहुत निकट आ रहा है। मैं वहाँ जा रही हूँ, जहाँ से फिर कभी नहीं लौटा जाता।" कहकर उसने ठंडी साँस ली।

 इवा की ये बातें सेंटक्लेयर के हृदय में बरछी की तरह पार हो गईं पर ऊपर से उसने प्रसन्नता का भाव रखकर कहा - "इवा बेटी, तुम्हें झूठा संदेह हो गया है। इन चिंताओं को छोड़ो! यह देखो, मैं तुम्हारे लिए कैसा अच्छा खिलौना लाया हूँ।"

 इवा ने खिलौने को हाथ में रखकर कहा - "बाबा, तुम अपने को धोखे में मत रखो। मैं अच्छी तरह जानती हूँ कि मैं ठीक नहीं होऊँगी। बाबा, मुझे यह संसार छोड़ने में जरा भी कष्ट नहीं जान पड़ता। बस, तुम्हारी और घर के दूसरे लोगों की बात सोचकर बुरा लगता है, नहीं तो मैं यहाँ से जाने में बड़ी खुश हूँ। बहुत दिनों से मैं इस दुनिया को छोड़ने की इच्छा कर रही हूँ।"

 सेंटक्लेयर ने कहा - "प्यारी बच्ची, तेरे इस छोटे से मन में इतनी उदासीनता क्यों भरी हुई है? अपनी प्रसन्नता के लिए तुझे जो चाहिए, वह सब हमारे घर में है और वह तुझे मिल सकता है।"

 "बाबा, मैं स्वर्ग में ही जाकर रहना चाहती हूँ। बाबा, यहाँ ऐसी बहुत-सी बातें हैं, जो मेरे जी को दुखाती हैं, जो मुझे बड़ी भयंकर जान पड़ती हैं।"

 सेंटक्लेयर ने पूछा - "वे कौन-सी बातें हैं, जो तुझे दु:ख देती हैं और भयंकर लगती हैं?"

 इवा ने कहा - "बाबा, नित्य ही तो वे बातें होती हैं। मुझे अपने इन दास-दासियों के लिए बड़ा कष्ट होता है। ये मुझे बड़ा प्यार करते हैं, मुझे बहुत चाहते हैं। मैं चाहती हूँ कि ये सब आजाद हो जाएँ।"

 सेंटक्लेयर बोला - "क्या तुम समझती हो कि वे हमारे यहाँ आराम से नहीं हैं?"

 "हाँ, बाबा, पर तुम्हें कुछ हो जाए तो उनका क्या होगा? बाबा, तुम्हारे सरीखे आदमी दुनिया में कम होते हैं। अल्फ्रेड चाचा तुम्हारे जैसे नहीं है। माँ तुम्हारे जैसी नहीं है। बेचारी प्रू के मालिक की बात सोचो। ओफ, लोग अपने दास-दासियों पर कितना अत्याचार करते हैं, और कर सकते हैं।" इतना कहते-कहते इवा थरथराने लगी।

 सेंटक्लेयर ने कहा - "बेटी, तुम्हारा हृदय कोमल है। दूसरों के दु:ख देखकर तुम्हारे दिल को बड़ी चोट लगती है। मुझे खेद है कि मैंने तुम्हें ऐसी बातें सुनने दीं।"

 इवा बोली - "ओफ बाबा, तुम्हारी इस बात से मेरा कलेजा फटा जाता है। संसार में दूसरे लोग जब केवल कष्ट और दु:ख सह-सहकर ही जी रहे हैं तब तुम मुझे सुखी बनाकर जीवित रखना चाहते हो? ऐसे कष्ट से बचाना चाहते हो कि किसी के कष्ट की कहानी भी नहीं सुनने देना चाहते! यह तो बड़ी भारी खुदगरजी है कि न तो मुझे ऐसी बातें जाननी चाहिए और न ही अनुभव करनी चाहिए कि जो मेरे हृदय में चुभ जाती हैं। इन बातों के बारे में मैंने बहुत सोचा है। बाबा, क्या इन सब दासों को आजाद कर देने का कोई उपाय नहीं है?"

 सेंटक्लेयर ने कहा - "बेटी, यह बड़ा कठिन प्रश्न है। इसमें कोई संदेह नहीं कि यह प्रथा बहुत बुरी है। बहुत-से लोग इसे बुरी-से-बुरी प्रथा समझते हैं। मैं स्वयं इसे बहुत बुरा मानता हूँ। हृदय से चाहता हूँ कि इस पृथ्वी पर एक भी मनुष्य गुलाम न रहे। सब स्वतंत्रता का सुख भोगें पर इसका कोई सरल उपाय मेरी समझ में नहीं आता।"

 "बाबा, क्या लोगों के घर घूम-घूमकर सबको नहीं समझा सकते कि यह प्रथा बड़ी घृणित है, इसे तुरंत उठा देना चाहिए? बाबा, मैं जब मर जाऊँगी, तब तुम मेरा खयाल करके मेरे लिए इसे करोगे? मुझसे यह होता तो मैं ही करती।"

 इवा की बात सुनकर सेंटक्लेयर ने कहा - "इवा, तुम मरोगी! बेटी, तुम मुझसे ऐसी बातें मत कहो। तुम्हारे सिवा इस संसार में मेरा और है ही क्या?"

 इवा बोली - "बाबा, उस बेचारी प्रू के पास उस लड़के के सिवा और क्या था? संतान के शोक में वह पागल हो गई थी। उसके मरने के बाद भी वह उसका रोना सुनती थी। बाबा, तुम मुझे जितना प्यार करते हो, उतना ही ये गुलाम भी अपने बच्चो से करते हैं। ओफ, उनके लिए कुछ करो। हमारे यहाँ मामी है, वह अपने बच्चो को प्यार करती है। जब वह उनकी चर्चा करती है तब मैंने उसकी आँखों से आँसू झरते देखे हैं। और टॉम भी अपने बच्चो को प्यार करता है। बाबा, ये बड़ी भयंकर बातें हैं और मुझसे सहन नहीं होतीं।"

 सेंटक्लेयर ने अत्यंत दु:खित होकर कहा - "इवा बेटी, तुम रो-रोकर अपने जी को परेशान मत करो। मरने की बात मुँह से न निकालो। तुम जो चाहती हो, सो मैं करूँगा।"

 इवा ने तत्काल कहा - "बाबा, तुम मुझसे प्रतिज्ञा करो कि टॉम को मेरी मृत्यु होते ही मुक्त कर दोगे।"

 सेंटक्लेयर ने कहा - "बेटी, जो कुछ तुम कहोगी वह मैं अवश्य कर दूँगा।"

 सेंटक्लेयर इवा को छाती से चिपटाए चुपचाप बैठा रहा। देखते-देखते संध्या का आगमन हुआ। चारों ओर से इवा की प्रशांत मूर्ति और विशाल नेत्रों पर घोर अंधकार छा गया। उसका चेहरा अब सेंटक्लेयर को नहीं दिखाई दे रहा था। पर उसकी सुरीली मधुर वाणी देववाणी की भाँति उसके कर्ण-कुहरों में गूँज रही थी। उसे अपने विगत जीवन की संपूर्ण बातें स्मरण हो आईं, अपनी माता की प्रार्थना याद आई। अपने बाल्य जीवन की बातें, संसार में प्रवेश करने के बाद जगत के हित-साधन की इच्छा के जड़ से उखड़ जाने की बातें, एक-एक करके याद आने लगीं। यों ही देर तक बैठे-बैठे सेंटक्लेयर बहुत-सी बातें याद करता और सोचता रहा, पर मुँह से कुछ न बोला।

 अंत में जब बहुत अँधेरा हो गया तब इवा को गोद में उठाकर अपने सोने के कमरे में ले गया। उसे अपने ही साथ लिटाकर उस समय तक गीत गाकर सुनाता रहा, जब तक कि नींद ने उसे आ नहीं घेरा।