Tom Kaka Ki Kutia - 5 in Hindi Fiction Stories by Harriet Beecher Stowe books and stories PDF | टॉम काका की कुटिया - 5

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टॉम काका की कुटिया - 5

5 - एक हृदयविदारक दृश्यट

टॉम और इलाइजा के पुत्र को बेचकर शेल्वी साहब रात को अपने सोने के कमरे में जाकर दुखित चित्त से कुर्सी पर पड़े चिट्ठी-पत्री पढ़ रहे थे। उनकी मेम आईने के सामने खड़ी होकर कपड़े बदल रही थी। शेल्वी साहब को इस प्रकार उदास देखते ही उसे इलाइजा के पुत्र के विक्रय की बात याद आ गई। उसने अपने पति से पूछा - "आर्थर, वह कौन था, जो आज अपने यहाँ बड़े ठाट-बाट से आया था?"

 "उसका नाम हेली है।"

 "हेली! यह कौन है? यहाँ क्यों आया था?"

 "नेसेज नगर में उससे मेरा कुछ काम पड़ा था, उसी संबंध में आया था।"

 "बस, एक ही दिन के काम पड़ने में उसने तुमसे इतनी घनिष्ठता पैदा कर ली कि यहाँ आकर घरवालों की तरह खाया-पिया?"

 शेल्वी ने कहा - "कुछ हिसाब था, उसी को साफ करने के लिए मैंने उसे यहाँ बुलाया था।"

 "क्या वह दास-व्यवसायी है?"

 यह प्रश्न सुनकर शेल्वी साहब ने और भी अधिक चिंतायुक्त होकर कहा - "तुम यह क्यों पूछ रही हो?"

 मेम बोली - "दोपहर को इलाइजा ने बहुत घबराहट के साथ आकर मुझसे कहा था कि तुम उसके लड़के को बेचने के विषय में उस आदमी से बातचीत कर रहे थे। इस पर मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ। वास्तव में इलाइजा बड़ी भोली है।"

 यह बात सुनकर शेल्वी साहब विचलित होकर बोले - "क्या इलाइजा ऐसा कह रही थी?"

 "हाँ, उसने यही कहा था, लेकिन मैंने उसे समझा दिया कि वह बड़ी बेवकूफ है, यों ही बका करती है।"

 "एमिली, मैं ऐसे आदमियों के हाथ दास-दासी बेचना हमेशा बड़े अन्याय का काम समझता था, पर आज इस संकट की हालत में बिना बेचे काम नहीं चल सकता। हेली जैसे निर्दयी मनुष्य के हाथ अपने किसी दास-दासी को अवश्य बेचना पड़ेगा।"

 "हेली के हाथ! असंभव है! तुम हँसी तो नहीं कर रहे हो?"

 "मैं हँसी नहीं करता। मुझे बड़ा दुःख है कि टॉम को बेचना पड़ा।"

 "क्या! हमारे टॉम को बेचोगे? ऐसे प्रभु-भक्त विश्वासी दास को? तुमने तो उसकी प्रभु-भक्ति के पुरस्कार में उसे कभी आजाद कर देने का वचन दिया था न? तुम और मैं दोनों उसे गुलामी की बेड़ियों से मुक्त करके स्वाधीनता देने की हजारों बार आशाएँ दिला चुके हैं। उसे कैसे बेच रहे हो? तुम्हारी इस बात से मुझे मालूम होता है कि तुमने इलाइजा के बच्चे को भी बेच दिया है!"

 "एमिली, अब तुमसे ये सब बातें छिपाना व्यर्थ है। मैंने सचमुच इलाइजा के लड़के और टॉम को बेचना स्वीकार कर लिया है, पर महज इतने के लिए तुम मुझे निर्दयी क्यों ठहराती हो? यह तो सभी करते हैं।"

 "तो और किसी को न बेचकर टॉम और इलाइजा के पुत्र को ही क्यों बेचा?"

 शेल्वी ने कहा - "टॉम और इलाइजा के लड़के का मूल्य सबसे अधिक मिलने के कारण ही उन्हें बेचना पड़ा। हेली इलाइजा को इससे भी अधिक मूल्य पर लेने को तैयार था, पर इन दोनों के बदले क्या इलाइजा को देना तुम्हें स्वीकार होता?"

 "वह पापी राक्षस मेरी इलाइजा को भी खरीदना चाहता था?"

 "तुम्हारे दुःख की बात सोचकर ही मैंने इलाइजा को बेचना स्वीकार नहीं किया। इससे तुम मुझे उतना दोष नहीं दे सकती हो।"

 "आर्थर, मुझे क्षमा करो। एकाएक तुम्हारे मुँह से ऐसी बातें सुनकर मैं तो दंग रह गई। तुम जरा विचार करके तो देखो, जिसके पास दिल है वह टॉम जैसे ईश्वर-परायण दास को कैसे बेच सकता है? काले होने पर भी टॉम का दिल बड़ा उजला है। वह बात-की-बात में तुम्हारे लिए जान दे सकता है।" श्रीमती शेल्वी ने हैरानी से भरकर कहा।

 "एमिली, यह मैं खूब जानता हूँ, पर करूँ क्या! मैं कर्ज में बुरी तरह फँस गया हूँ... और कोई उपाय भी नहीं सूझता।"

 "हम लोगों की और जो कुछ जायदाद है, वह सब क्यों नहीं बेच डालते? धन-संपत्ति की मोह-ममता मैं अनायास छोड़ दूँगी। सब तरह की असुविधाएँ सह लूँगी। गरीबी से जो दुःख होगा, वह हँसते-हँसते उठा लूँगी। तुम्हें मेरे दिल की व्यथा का पता नहीं। मैंने किस तरह से दास-दासियों को पाला-पोसा है, उन्हें धर्म सिखाया, उनके सारे अभाव दूर करने की कोशिश की है और उनके साथ हमेशा धर्म-चर्चा की है। पर आज यदि मैं उन्हें अपने स्वार्थ के लिए बेच डालूँ, तो मैं उन्हें कैसे मुँह दिखाऊँगी? मैंने हमेशा उन्हें स्वामी के साथ स्त्री; स्त्री के साथ स्वामी, संतान के साथ माता-पिता और माता-पिता के साथ संतान के कर्तव्य की शिक्षा दी है। पर यह शिक्षा देकर फिर मैं ही संतान को माता की गोद से और स्वामी को स्त्री के साथ से सदा के लिए अलग करने पर तैयार होऊँ? मैंने कितनी ही बार इलाइजा को समझाया होगा कि संतान को सदाचारी और सुशिक्षित किए बिना माता का कर्तव्य पूरा नहीं होता। मैं इलाइजा को अपनी संतान के भले के लिए ईश्वर से बार-बार प्रार्थना करने को कहती आई हूँ। आज मैं कैसे उसी इलाइजा की छाती से उसके बच्चे को हमेशा के लिए अलग करने दूँगी? मैं इन दास-दासियों से बराबर कहती आई हूँ कि संसार की सारी धन-दौलत से मनुष्य की आत्मा का मूल्य कहीं अधिक है। इससे धन-दौलत के लिए मनुष्यता को नीचे गिराना या नष्ट करना एकदम अनुचित है। पर हाय, आज मैं स्वयं ही धन के लिए उसी मनुष्यात्मा का विनाश करने को आमादा हुई हूँ। ऐसे नीच निर्दयी नर-पिशाच दास-व्यवसायी के हाथ में सौंपकर भी क्या इनकी किसी प्रकार की नैतिक या आध्यात्मिक उन्नति की आशा की जा सकती है?"

 "प्यारी, तुम्हारा दुःख देखकर मुझे भी बड़ा दुःख हो रहा है। तुम्हारा दुःख मुझसे सहा नहीं जाता। पर देखो, मेरे पास और कोई चारा नहीं है। इन दोनों को बेचकर कर्ज न चुकाऊँ तो निर्दयी हेली डिग्री जारी कराकर हमारे घर-बार और सारे दास-दासियों को नीलाम करा लेगा। दो को बेचकर सभी की रक्षा करना मुनासिब समझता हूँ।"

 शेल्वी साहब की ये बातें सुनकर उनकी स्त्री बार-बार लंबी साँसें ले-लेकर कहने लगी - "गुलामी की इस घृणित प्रथा को आश्रय देने के कारण सचमुच ही ईश्वर हमपर नाराज है। इसमें शक नहीं कि यह प्रथा बहुत ही बुरी है। मालिक या दास, किसी के लिए लाभदायक नहीं है, यह दोनों को घोर नरक में डुबोती है, दोनों के ही दिलों को कलंकित करती है। मेरी यह बड़ी भूल थी, जो मैं समझती थी कि दास-दासियों के साथ अच्छा व्यवहार करने भर से ही गुलामी की इस प्रथा का कलंक धुल जाएगा। इस प्रथा से संबंधित देश का मौजूदा कानून हद से ज्यादा घृणित और नीति-विरुद्ध है। इन कानून को मानकर दास-दासी रखना घोर अन्याय है। दास-दासियों से अच्छा व्यवहार करने पर भी इस प्रथा का कलंक दूर नहीं हो सकता। अच्छे बर्ताव से इस कुप्रथा की गंदगी कुछ अंश भले ही दूर हो जाएँ, पर इसका भीतरी कलंक जड़ से नहीं जा सकता। मैं समझती थी कि दास-दासियों से अच्छा बर्ताव करके और धर्म की शिक्षा देकर मैं उनकी दशा-सुधार लूँगी, पर यह समझकर मैंने कितनी बड़ी मूर्खता की। दासत्व-प्रथा को बिलकुल आश्रय न देना ही बेहतर था।"

 शेल्वी साहब ने अपनी मेम का यह पश्याताप सुनकर कहा - "प्यारी, मुझे बड़ा आश्चर्य होता है। तुम तो गुलामी की प्रथा के विरोधी दल की एक सदस्य बन बैठी हो।"

 "आर्थर, मैं इस प्रथा को कभी न्यायसंगत नहीं समझती थी, और न कभी दास-दासी रखने की मेरी इच्छा ही होती थी।"

 शेल्वी ने कहा - "पर बड़े-बड़े पादरियों ने इस प्रथा का समर्थन किया है। अभी उस दिन हम लोगों के पादरी ब्रांसन साहब ने गिरजे में जो उपदेश दिया था, उसे तो तुमने सुना था न?"

 "मैं तुम्हारे बड़े पादरी का उपदेश नहीं सुनना चाहती। मैं अब ब्रांसन का उपदेश सुनने के लिए कभी गिरजे में नहीं जाऊँगी। पादरी और ख्रिस्तान पुजारी खुशामद के मारे धनी व्यापारियों की हाँ-में-हाँ मिलाने के लिए उनकी इच्छा के अनुकूल उपदेश देते हैं। क्या उनमें से कोई स्वतंत्र विचार प्रकट करने का भी साहस रखता है? अर्थ ही सारे अनर्थों की जड़ है। धन के लोभ से इस घृणित, अन्यायपूर्ण देशाचार का समर्थन करते हुए इन महात्माओं को लज्जा नहीं आती। केवल धनी व्यापारियों को खुश करने और पापी पेट को भरने के लिए वे ऐसे घृणित मतों का प्रचार करते हैं।"

 "लो, अब आगे फिर कभी धर्म-धर्म की बहुत दुहाई मत देना! देख लिया न कि ये धर्म-प्रचारक समय-समय पर कैसे ऊटपटांग मतों का प्रचार करते हैं? उनके ये सब मत तो हमारे जैसे पापियों को भी घृणित मालूम होते हैं। धर्म का तत्व समझना बहुत कठिन है। मुझपर कर्ज का बोझ न होता तो मैं कभी ऐसा काम न करता। अब तुमने समझ लिया होगा कि कैसे संकट में पड़कर मैंने यह काम किया है। अब तुम्हीं देख लो कि मेरा यह काम उचित है या नहीं।"

 श्रीमती शेल्वी ने कहा - "हाँ, ठीक है, तुमने सब परिस्थिति के अनुसार ही किया है, किंतु खेद है कि मेरा कोई ऐसा मूल्यवान गहना नहीं है, जिसे बेचकर इलाइजा के हृदय-रत्न, उस दुःखिनी के जीवन-सर्वस्व की रक्षा कर सकूँ। अच्छा, क्या मेरी इस घड़ी को बेचकर उसके पैसे से इलाइजा के बच्चे की रक्षा हो सकती है!" इलाइजा के बच्चे के लिए मैं अपना सब-कुछ देने को तैयार हूँ।

 "एमिली, तुम्हारी ऐसी शोचनीय दशा को देखकर मुझे बड़ा दुःख होता है। लेकिन बिक्री की पक्की लिखा-पढ़ी हो चुकी है। हेली ने बिक्री के दस्तावेज पर मेरे दस्तखत करा लिए हैं। अब कोई उपाय नहीं है। हेली के हाथ में मेरे सर्वनाश की बागडोर थी। इलाइजा के बच्चे को बेचकर ही मैंने उससे छुटकारा पाया है।"

 "हेली क्या बिल्कुल ही निर्दयी है?" श्रीमती शेल्वी ने आवेश में कहा।

 "निर्दयी तो नहीं कह सकता। लेकिन वैसा लोभी और अर्थ-पिशाच तो शायद ही दूसरा हो। वह धन के लिए अपनी स्त्री तक को किराए पर दे सकता है और अपनी माता तक को खुशी से बेच सकता है।"

 "यह जानते हुए भी तुमने ऐसे नराधम के हाथ टॉम और इलाइजा के बच्चे को सौंप दिया! ओफ, कितने दुःख की बात है!"

 "क्या करूँ? बिना बेचे गुजर न थी। मैं स्वयं ही ऐसे कामों से बड़ी नफरत करता हूँ, पर लाचारी है! हेली कल ही आकर इन लोगों को ले जाएगा। मैं सवेरे ही घोड़े पर सवार होकर दूसरी जगह चला जाऊँगा। टॉम को ले जाने के समय मुझसे नहीं रहा जाएगा। तुम भी इलाइजा को साथ लेकर कहीं चली जाना। हम लोगों के पीछे हेली का इन लोगों को ले जाना अच्छा होगा।"

 "मैं यों कपट रचकर इलाइजा को किसी दूसरी जगह नहीं ले जा सकूँगी। मैं ऐसे निष्ठुर काम में कोई सहायता नहीं करूँगी। टॉम को ले जाते समय मैं उससे मिलूँगी। उसे आशीर्वाद भी दूँगी। पर जब मुझे इलाइजा की बात याद आती है तो मेरी छाती फटने लगती है। मुझे चारों ओर अंधकार-ही-अंधकार दिखाई पड़ता है। तुम्हें नहीं मालूम कि गोद से शिशु के छीने जाने पर माता को कितनी वेदना होती है।"

 शेल्वी साहब और उनकी मेम में जिस समय ये बातें हो रही थीं, इलाइजा पासवाली कोठरी में बैठी थी और उनकी सब बातें सुन रही थी। उनकी बातचीत समाप्त होने पर इलाइजा धीरे-धीरे, दबे-पाँव, अपने घर की ओर चली। डर से उसका हृदय धड़क रहा था। उसने रोते हुए - "हे ईश्वर, हे दयामय, रक्षा करो!" कहकर घर में प्रवेश किया। खाट पर सोए हुए बालक को गोद में उठा लिया और उसका मुँह चूमकर कहने लगी - "दुखिया के धन, तू दूसरों के हाथ बिक गया है। पर यह दुखिया माँ प्राण रहते तुझे नहीं छोड़ेगी।" डर के मारे उसकी आँखो का पानी सूख गया। जब हृदय बिल्कुल सूख जाता है तो आँखों में पानी नहीं रहता। उस समय हृदय कटकर आँखों से खून बहने की तैयारी हो जाती है। इस समय इलाइजा का यही हाल था। उसका हृदय विदीर्ण होने की नौबत आ गई थी, परंतु निराशा भी कभी-कभी मनुष्य के मन को ढाढ़स बँधा देती है। इस समय इलाइजा केवल साहस के बल पर खड़ी थी। वह एक कागज और पैंसिल लेकर लिखने लगी:

 "माता, मुझे अकृतज्ञ मत समझना। बाबा के साथ शाम के समय तुम्हारी जो बातें हो रही थीं, वे सब मैंने आड़ में बैठकर सुन ली हैं। मैं अपनी संतान की रक्षा के लिए भागने को मजबूर हूँ। मंगलमय प्रभु तुम्हारा मंगल करे!" इस आशय का झटपट एक पत्र लिखकर उसने वहीं खाट पर छोड़ दिया।

 बालक को सर्दी से बचाने के लिए कुछ कपड़े, एक चादर और एक शाल साथ ले कर, लड़के को हृदय से लगाए, वह घर से बाहर हो गई। पहले वह प्रभु-भक्त टॉम के घर की ओर गई। वहाँ पहुँचकर उसने टॉम के दरवाजे की कुंडी खटखटाई। टॉम बहुत रात गए तक भजन-ध्यान किया करता था। इससे उस समय वह जाग रहा था। टॉम की स्त्री क्लोई ने द्वार खोल दिया। इस समय इलाइजा को देखकर वह चकित रह गई। इलाइजा ने बड़े करुण शब्दों में कहा - "टॉम, मैं हेरी को लेकर भाग रही हूँ। बाबा ने हेरी को और तुम्हें एक व्यापारी के हाथ बेच डाला है।"

 टॉम और क्लोई, दोनों ही इस आकस्मिक घटना को सुनकर चौंक पड़े। टॉम निस्तब्ध-सा रह गया। उसके मुँह से कोई बात न निकली। किंतु क्लोई ने कहा कि हम लोगों ने ऐसा कौन-सा अपराध किया था, जो इस तरह बेच दिया? इस पर इलाइजा ने मेम और शेल्वी साहब में जो बातें हुई थीं, वे कह सुनाई और बोली - "कर्जदार होने के कारण बेचा गया है, न कि किसी अपराध के लिए। पर माँ इससे अत्यंत दुःखित हुई हैं। उनका हृदय सचमुच ही दया-ममता से भरा है। मैं बड़ी कृतघ्न हूँ, इसी से माँ को छोड़कर इस प्रकार भागने को तैयार हो गई हूँ, पर भागने के सिवा मेरे पास कोई उपाय नहीं है। बिना भागे हेरी की रक्षा नहीं हो सकती।"

 इस पर क्लोई ने टॉम से कहा - "तुम भी क्यों नहीं भाग जाते? मैं तुम्हारे कपड़े-लत्ते ला देती हूँ... तुम्हें तो दूसरी जगह जाने का पास भी मिला हुआ है।"

 टॉम बोला - "मैं कभी नहीं भागूँगा। मेरे बेचने से अगर दूसरे दास-दासियों की रक्षा होती है तो मेरा बिकना अच्छा ही है। भगवान सर्वव्यापी है। कहीं क्यों न रहूँ, वह मेरे साथ है। मै कभी विश्वासघात नहीं करूँगा। भला मै धोखा देकर भागने में इसका उपयोग कैसे कर सकता हूँ?"

 भागने की अनिच्छा दिखाकर टॉम चुप रह गया और मुँह लटकाकर आँसू बहाने लगा। खाट पर सोए हुए बच्चों की ओर देखकर वह बारंबार आहें भरने लगा। फिर क्लोई चाची से इलाइजा कहने लगी कि आज संध्या को जार्ज मेरे पास आए थे। उनका मालिक उनपर घोर अत्याचार करने लगा है। सताए जाने के कारण वह भी भागने का उद्योग कर रहे हैं। भेंट होने पर मैं उनसे अपने भागने का वृत्तांत कहूँगी। उन्हें भली प्रकार समझाऊँगी कि यदि इस लोक में उनसे भेंट न हुई तो परलोक में अवश्य मिलना होगा। मरते-मरते वही मेरी एकमात्र गति और एकमात्र आधार है।"

 इलाइजा की ये बातें पूरी होने पर क्लोई ने अश्रुपूर्ण नेत्रों से उसका मुँह चूमा और रोते हुए उसे विदा किया।

 विकट अँधेरी रात थी। चारों ओर सन्नाटा था। उसी भयंकर अँधियारी रात में बच्चे को गोद में लिए उन्नीस साल की युवती अकेली कदम बढ़ाए जा रही है। उसके लिए चारों दिशाएँ समान हैं, कहीं कोई खतरा दिखाई नहीं पड़ता, पर क्या सचमुच इलाइजा निस्सहाय और शरणहीन है? नहीं, इलाइजा सर्वथा अनाथ नहीं है। अनाथों के नाथ, दीनानाथ, दीनबंधु भगवान अब भी उसके साथ हैं। लोभी गोरे व्यापारी कालों से भले ही घृणा करें, पर सर्वसाक्षी परमात्मा के महान दरबार में कालों और गोरों में कोई भेद नहीं है। वहाँ सभी बराबर हैं।