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उन्हें ये सुन कर सुखद आश्चर्य हुआ कि अब जानवरों की दुनिया में भी लोकतंत्र आने को है और उसे शेर की मंजूरी भी मिल चुकी है।
हाथी बाबू ने कुत्तों की बात को पूरी गंभीरता से सुना क्योंकि वो जानते थे कि इनकी पहुंच आदमियों की दुनिया में ज़बरदस्त ढंग से है। वो लोग केवल इन्हें अपनी गाड़ियों में ही लिए नहीं घूमते, बल्कि कभी कभी किसी पॉश इलाक़े में तो इनकी पॉटी तक उठाते पाए जाते हैं।
ऐसे में जब एक कुत्ते ने उनसे कहा कि आप अपनी प्रॉब्लम्स बताइए, हम उन्हें दूर करेंगे तो हाथी बाबू ने अपनी पत्नी और बच्चों को भी बुला लिया।
हाथी ने कहा- भाई, अगर आप अपने इंसान दोस्तों को समझा सकें तो उन्हें ये बताइए कि कम से कम हमारे जीते जी हमारे दांत न उखाड़ें। हम जानते हैं कि ये बहुत कीमती हैं और इनसे उन्हें बहुत से रुपए मिलते होंगे पर कम से कम इसके लिए वो लोग हमारे मरने का इंतजार तो करें। हमारे जीते जी हम पर तरह - तरह से आक्रमण करके दांतों को ले जाकर बेचा जाता है तो बहुत दुःख होता है। और केवल हमारे शरीर की किसी मूल्यवान वस्तु को पाने के लिए असमय हमारी जान ही ले लेना तो किसी भी तरह उचित नहीं है।
हम जानते हैं कि आदमियों में बहुत सी अच्छाइयां भी हैं। वो कई बार हमें भी पाल लेते हैं, हमें सजा संवार कर हमारी सवारी भी निकालते हैं। तब हमें अच्छा अच्छा खाना खाने को दिया जाता है।
सर्कस में भी हमें काम दिया जाता है, एक हथिनी ने कहा।
वहां से लौट कर कुत्तों को पूरा यकीन हो गया कि अगर वो इन हाथियों की हत्या रुकवा पाएं तो ये ज़रूर राजा बनाने के लिए हमारा समर्थन करेंगे।
चलो, शुरुआत तो अच्छी हुई, एक थके हुए कुत्ते ने कहा।
आज फ़िर डोर टू डोर कैंपेन पर निकलना था। इंचार्ज डॉगी की लिस्ट के हिसाब से आज जिराफ़ का नंबर था।
आसमान में कुछ ऊंचे पेड़ों को लक्ष्य करके कुत्तों का झुंड जब आगे बढ़ा तो कुछ ही दूरी पर जिराफ़ मियां मिल गए।
इतने कुत्तों को एकसाथ अपनी ओर आता देख कर पहले तो वो कुछ सकपकाए, मगर उनके हाथ में फोटो लगे पोस्टर्स देख कर मुस्कुराते हुए उनका इस्तकबाल करने को खड़े हो गए।
एक कुत्ते ने दुम हिलाते हुए बेहद मीठी आवाज़ में उन्हें अपने आने का प्रयोजन बताया। सुन कर जिराफ़ मियां कुछ सोच में पड़ गए।
वे मन ही मन सोचने लगे कि अगर इन्होंने किसी तरह से शेर को राजा का पद छोड़ने के लिए मना ही लिया है तो फ़िर इनका समर्थन करने की जगह मैं ही क्यों नहीं अपनी दावेदारी पेश करूं? आख़िर मुझमें कमी क्या है? मुझसे बेहतर राजा भला कौन होगा।
यद्यपि जिराफ़ मियां ने अभी- अभी नीम के ढेर सारे कड़वे पत्ते खाए थे फ़िर भी जबान को भरपूर मीठा बनाते हुए बोले- भाइयो, ये तो आपने बहुत अच्छा सोचा है कि जंगल में भी अब लोकतंत्र आए और यहां भी बारी- बारी से हर पांच साल बाद राजा बदला जाए... मगर क्या आपको नहीं लगता कि राजा ऐसा होना चाहिए जो सभा में गर्दन ऊंची रख कर बुलंद तरीके से लोगों के बीच बैठ सके? ऐसा कह कर जिराफ़ मियां ने अपनी लम्बी गर्दन को ज़रा हल्की सी जुंबिश दी।
समूह का एक ब्रिलियंट माना जाने वाला डॉगी तुरंत भांप गया कि जिराफ़ मियां क्या कहना चाहते हैं। उसने झटपट अपना दिमाग़ दौड़ाना शुरू किया ताकि जिराफ़ मियां को कोई माकूल जवाब दिया जा सके।
वह तत्काल बोला- महाशय आपकी बात तो बिल्कुल दुरुस्त है मगर राजा ऐसा भी तो होना चाहिए जिस पर किसी किस्म का दाग न हो।
उसकी बात सुनकर सभी कुत्ते हंस पड़े। सबका इशारा समझ कर जिराफ़ मियां शरमा कर रह गए। बोले- हां हां, मैं तो मज़ाक कर रहा था। राजा तो तुम्हें ही बनना चाहिए। तुमने तो पहले से ही दुनिया भर में अपना सिक्का जमा रखा है। लोग तुम्हें ही पालते हैं, अपने साथ बढ़िया खाना खिलाते हैं, गाड़ियों में घुमाते हैं, हम सब को तो केवल ज़ू में बंद करके रखते हैं। तुम राजा से कहां कम हो?
- पर लोग हमें ज़ंज़ीर से बांध कर भी तो रखते हैं। एक कुत्ते ने कहा।
जिराफ़ मियां बोले- चिंता मत करो, मेरा पूरा समर्थन तुम्हें मिलेगा ताकि तुम ही राजा बनो।
कुत्तों का दिल बाग- बाग हो गया।