आख़िर कुत्तों के वार्तालाप का असर पड़ा। उनके कुछ सियार और लोमड़ी जैसे मित्र कहने लगे- बिल्कुल ठीक बात है, आप लोग चाहें तो कुछ भी कर सकते हैं। आदमी आपको बहुत मानता है। यहां तक कि इंसानों में जो चोर निकल जाते हैं उन्हें पकड़ने के लिए आपकी मदद ली जाती है।
उनकी बात से उत्साहित होकर एक बुजुर्ग से कुत्ते ने लोमड़ी से ही कहा- तुम तो बहुत समझदार हो बहन, तुम्हीं कुछ बताओ कि हमें क्या करना चाहिए?
लोमड़ी इस प्रशंसा से फूल कर कुप्पा हो गई, बोली- भैया, जब इस जंगल में हम जानवरों की दुनिया में पंचतंत्र आ सकता है तो लोकतंत्र क्यों नहीं आ सकता?
- मतलब? उससे क्या होगा? कुत्तों ने कहा।
लोमड़ी बोली- अरे न जाने कितनी सदियों से यहां शेर ही हमारा राजा बना बैठा है, आदमियों की तरह क्या हम भी अब हर पांच साल में अपना नया राजा नहीं चुन सकते? तुम लोग तो आदमी के दोस्त हो, उसके बराबर ही काबिल हो, उसके संग कारों में घूमते हो, तुम्हें भी तो कभी मौक़ा मिले राजा बनने का?
कुत्तों का मन लोमड़ी की बात से बल्लियों उछलने लगा। मन ही मन सबके लड्डू फ़ूटने लगे।
ये बात सबको पसंद आई। सबका यही मानना था कि अबकी बार शेर को राजा के पद से हटाया जाए और उसकी जगह कुत्तों को ही जंगल का राजा घोषित किया जाए।
लेकिन ये इतना आसान न था। पहले तो जंगल में लोकतंत्र को लाना था फ़िर सबकी मर्ज़ी से यहां नया राजा चुनने की व्यवस्था करनी थी।
सब ये भी जानते थे कि शेर इस बात को आसानी से नहीं मानेगा। पहले उसे इस बात के लिए राजी करना ही एक बड़ा काम था।
काफ़ी सोच- विचार के बाद एक नन्हे प्यारे से पामेरियन को ये ज़िम्मेदारी दी गई कि वह किसी तरह शेर को समझा- बूझा कर इस बात के लिए तैयार करे।
सुबह सुबह घर से दूध ब्रेड खाकर एक छोटी सी बॉल मुंह में दबाए नन्हा पॉमेरियन शेर से मिलने चल दिया।
वो उससे डरते भी नहीं थे। बड़े जानवरों को देख कर तो शेर की भूख जाग जाती थी और वो उन्हें मार कर खा जाता था पर नन्हे जानवर आराम से शेर से मिल कर बातें कर लेते थे क्योंकि उन्हें खाने से शेर का कुछ भला भी कैसे होता? पेट तो भरता नहीं! फ़िर उन्हें मारने से क्या लाभ!
यही कारण था कि पंचतंत्र के दिनों में एक चूहे ने ही शेर का जाल कुतर कर उसकी जान बचाई थी। एक खरगोश ने ही उसे बातों में उलझा कर जंगल के सब जानवरों को उससे बचाया था।
तो नन्हा पॉमेरियन पप्पी भी चल दिया राजा जी के दरबार में।
शेर अभी- अभी एक बारहसिंगे को मार कर भरपूर भोजन करके बैठा था। वो नन्हे को देख कर बहुत ख़ुश हुआ। उसके साथ बॉल से खेलने लगा।
लेकिन ये क्या? अलसाए हुए शेर राजा ने एक डकार के साथ उबासी लेते हुए जैसे ही मुंह खोला, बॉल उसके मुंह में जा फंसी।
अब तो राजा का बुरा हाल। घूम -घूम कर, नाच - नाच कर बॉल को निकालने की खूब कोशिश की। मगर जितना वो उसे निकालने की कोशिश करता उतनी ही वो और फंसती जाती। छींकें भी आने लगीं।
थोड़ी देर राजा को बॉल के साथ धींगामुश्ती करते देख कर नन्हे को भी जोश आ गया और उसने शेर के खुले हुए मुंह में छलांग लगा दी। आख़िर अपने पैने दांतों से पकड़ कर वो बॉल निकाल ही लाया।
शेर ने राहत की सांस ली।
शेर नन्हे की इस कोशिश से बहुत खुश हुआ।
बस, नन्हा किसी ऐसे ही मौक़े की तलाश में तो था, जब राजा ख़ुश हो। उसने फ़ौरन कहा- किंग अंकल, आपको बहुत काम करना पड़ता है न, पूरे जंगल का राजपाट हमेशा आप ही संभालते हो!
- हां, करना तो पड़ता है, पर क्या करूं? सबने मुझे राजा बना रखा है तो ज़िम्मेदारी भी उठानी पड़ती है।
नन्हा बोला - पर ये तो ग़लत है न! हमेशा आप ही सारा राजपाट संभालें। दूसरों को भी तो कभी ज़िम्मेदारी लेनी चाहिए।
शेर ने सोचा, ये छुटका बात तो ठीक कहता है। शेर बोला- तो तुम सब मिलकर सब पशुओं को समझाओ कि बारी- बारी से सब राजा बन कर काम करें!
ये सुनते ही नन्हा ख़ुशी से ताली बजाता हुआ वापस घर की ओर भागा। अपनी कामयाबी की ख़ुशी में वो अपनी बॉल भी शेर को ही दे आया। उसे जल्दी से ये खुशखबरी अपने साथियों को सुनानी जो थी।
शेर हमेशा छोटे जानवरों को बहुत प्यार करता था।