care in Hindi Moral Stories by Saroj Prajapati books and stories PDF | परवाह

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परवाह

"क्या सिर्फ दो परांठे! एक और ले!!" मीनल की मां उससे आग्रह करते हुए बोली।
" क्या मम्मी पहले भी तो दो ही पराठे खाती थी। अब शादी हो गई ।इसका मतलब यह तो नहीं कि मेरी भूख बढ़ जाएगी!! आप मम्मियां भी ना शादी के बाद कुछ ज्यादा ही प्यार लुटाती हो हम बेटियों पर बिल्कुल नानी की तरह कर रही हो आप!! चलो ठीक है। रख दो आप मानोगे थोड़ी ना लेकिन अब लंच में कुछ हल्का सा ही बनाना 1 हफ्ते के लिए आई हूं। आप तो सोच रहे हो कि मुझे महीने भर का एक हफ्ते में ही खिला दो!!
अरे मेरी प्यारी मम्मी मेरी ससुराल और सासू मां टिपिकल सास नहीं। बहुत ध्यान रखती है वह भी मेरा। कोई रोक-टोक नहीं इसलिए आप बेफिक्र रहो!!" मीनल हंसते हुए बोली।
सुनकर मीनल की मम्मी सुमन जी, बस मुस्कुरा भर दी और मन ही मन यह सोचने लगी कि बेटा जब तू भी मां बन जाएगी तब तुझे अपने बच्चों के लिए एक मां की परवाह समझ आएगी। वह भी तो शुरू शुरू में अपनी मां से ऐसे ही कहा करती थी।

मीनल नाश्ता करके उठी ही थी कि तभी उसका फोन फोन बज उठा। देखा तो उसकी सासू मां का फोन था। कुछ देर मीनल ने अपनी सास से बात की और उसके बाद फोन रख दिया ।
जब सुमन जी किचन से बाहर आई तो देखा मीनल कुछ मुंह सा बना कर बैठी हुई थी।
"क्या बात है मीनल!!ऐसी क्या बात हुई तेरी अपनी सास से जो तू यूं ही तू लटका कर बैठी है!"

"मम्मी सही कहते हैं सब। सास, सास ही होती है। कुछ ना कुछ ऐसा कर कर ही देती है जिससे बहू चैन से ना बैठ सके।" मीनल गुस्से से बोली।

" अरे ऐसा भी क्या कह दिया उन्होंने!! तू खुद ही तो कहती है कि वह बहुत अच्छी है और जहां तक मैंने भी उन्हें देखा समझा है बहुत ही सुलझे और खुले विचारों की महिला है।"
" क्या खुले विचार!! अभी फोन आया था तो कह रही थी आज शादी में जाना है। घर की शादी है इसलिए मेरा जाना जरूरी है!!"
" हां तो अच्छी बात है ना। इससे ही तो तेरी ससुराल वालों से जान पहचान होगी । इसमें परेशान होने की कौन सी बात है।"
" मम्मी, मैं शादी में जाने से परेशान नहीं हूं लेकिन सासू मां ने कहा है कि शादी में साड़ी पहनकर आऊं और उसके साथ गोल्ड ज्वेलरी कैरी करूं!!"

" हां सही तो कह रही है वो।"

" मम्मी आप भी उनके सुर में सुर मिलाने लगी। क्या शादी में साड़ी और ज्वेलरी पहन कर जाना जरूरी है।। उनका यह पहली बार का नहीं। हमेशा एक ही बात...
बहू, क्या पूरा दिन टी-शर्ट लोअर में रहती है। कभी-कभी साड़ी सूट पहना करो। लिपस्टिक बिंदी लगा अच्छे से तैयार हुआ करो। देखो तो जब भी तुम थोड़ा मेकअप करती हो तो कितनी प्यारी लगती हो !! यही तो सजने संवरने के दिन है। बाद में बच्चे और घर गृहस्थी में उलझ कर रह जाओगी। अपने ऊपर चाह कर भी ध्यान नहीं दे पाओगी।
बताओ, क्या मैं उनकी खुशी के लिए घर में साड़ी सूट पहन, लिप पुतकर बैठ जाऊं। कहती हैं बेटा नई शादी हुई है इसलिए जब भी किसी फंक्शन में जाओ तो जो साड़ियां मैंने या तुम्हारी मम्मी ने चढ़ाई है, उन्हें पहनो। यही तो दिन है पहनने ओढ़ने के बाद में रखी रह जाएंगी वो साड़ियां!!
नहीं अच्छा लगता मुझे इतनी भारी साड़ी पहनकर शादियों में जाना । अरे कंफर्टेबल नाम की भी तो कोई चीज होती है।। सच मम्मी इन मामलों में बहुत टोका टाकी करती है मेरे सास!" मीनल तुनकते हुए बोली।

" बेटा जिसे तू अपनी सास की टोका टाकी समझ रही है वह तेरी सास का तेरे लिए फिक्र व प्यार है!!वरना कितनी सास है जो अपनी बहू के लिए यह सब सोचती है।। सच ही तो कहती हैं, यही तो दिन है पहनने ओढ़ने, सजने संवरने के वरना बाद में घर गृहस्थी में ऐसे लगोगी कि चाह कर भी अपने लिए समय नहीं निकाल पाओगी।
अरे तू तो खुश किस्मत है जो तेरी सास तेरे लिए सोच रही है वरना मैं तो जब शादी करके आई थी। उसी दिन से मुझे रसोई में धकेल दिया गया था। काम बस काम!! कभी उन्होंने यह नहीं कहा बहू तेरा मन कुछ खाने का है या तू अपने पर भी थोड़ा ध्यान दिया कर। थोड़ा सज संवर कर रह। आज तू सुंदर लग रही है!! अरे यह रंग तुझ पर खिलेगा!! चल तुझे करवा चौथ पर तेरी पसंद की साड़ी दिला दूं!!यह सब मेरे लिए सपना भर बनकर रह गया।। शादी से पहले कभी सजी संवरी नहीं क्योंकि सबका एक ही कहना था ।‌
साज शृंगार शादी के बाद अच्छा लगता है और शादी के बाद तो कामों में ही उलझ कर रह गई। कुछ करना भी चाहती तो तेरी दादी कहती... क्या साज श्रृंगार में ही लिपटी रहती है। इसे कोई नहीं देखता। अरे गृहणी को तो घर के कामों में निपुण होना चाहिए। इसी में उसकी बड़ाई है और तेरे पापा को तो इन सबसे कोई मतलब ही ना था।। मेरी तो मन में ही रह गई कि कोई कहे आज तू बहुत सुंदर लग रही है। अरे थोड़ी बड़ी बिंदी लगाती। लिपस्टिक डार्क लगाया करो!!
हां तेरे बड़े होने पर कुछ कुछ मन की करने लगी थी।।
....तो बेटा बता!! तेरी सास कहां गलत है। रोज रोज तो नहीं कहती तुझे साड़ी सूट पहनने के लिए। कोई रोक-टोक नहीं तुझे कैसा भी पहन।। घर के कामों में तेरा बराबर हाथ बंटाती है। तू ही तो कहती है तुझे लगता ही नहीं कि वह तेरी ससुराल है या वह सास। यहां जैसा ही आराम है तो उनकी बातों का मान रखने के लिए इतना नहीं कर सकती।। इतनी स्वार्थी भी मत बन बेटा।। परिवार में कुछ काम दूसरों की खुशी के लिए भी किए जाते हैं और यह तो तेरे भले के लिए ही है।"

मीनल अपनी मां की बातों को बहुत ध्यान से सुन रही थी। उनकी बातों पर विचार करते हुए बोली " आप सही कह रहे हो मम्मी! सच में, मैंने तो इस नजर से सोचा ही नहीं!! क्या बचपना करने जा रही थी मैं!! हे भगवान! कब बुद्धि आएगी मुझमें!! वह मेरे भले के लिए कहती हैं और मैं बेवकूफ भलाई में भी बुराई ढूंढती हूं!!"

" चलो जब जागो तब सवेरा मेरी बुद्धू बिटिया!! हर सास या बहू, बुरी नहीं होती!! बस हमारा देखने का नजरिया बदल जाता है शादी के बाद !! अगर हम छोटी-छोटी बातों को ज्यादा दिमाग से ना सोच दिल से सोचे तो जीवन आसान बन जाएगा!!" सुमन जी अपनी बेटी के सिर पर प्यार से चपत लगाते हुए बोली।
सरोज ✍️