निया ने लगभग सारी बातें चंचल और सुनील को बता दी।
"तुम्हें उम्मीद है की ये सब सुनने के बाद भी, हम तुम्हें यहाँ रुकने देंगे?", सुनील ने निया से पूछा।
"हाँ.. मैंने किसी का बुरा थोड़ी किया है, मैंने तो सिर्फ नीतू मै'म को चंचल मै'म के काम के बारे में भी सोचने को कहा था।", निया ने तुरंत से जवाब दिया।
"ठीक है, तुम अभी हॉल में रुको, हम वो दूसरे कमरा साफ़ करके आते है।", चंचल निया को ये बोलते हुए, सुनील के साथ दूसरे कमरे में जाती है।
"तुम ये क्या कह रही हो? हम उसे यहाँ कैसे रहने दे सकते है?", सुनील ने चंचल से पूछा।
"देखो.. वैसे भी रात बहुत हो गयी है, आज तो उसे यहाँ रुक जाने दो, फिर कल देखते है। तुम अपना सामान उठा कर, मेरे साथ ही आ जाओ, वैसे भी अब जब कम्पटीशन खत्म हो गया है, तो हमारा भी अलग रहना ज़रुरी है क्या?"
"हहम्म..", सुनील बोला और अपना समान उठा कर रखने लगा।
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कई बार बज रही घटी का जवाब देते हुए जब रिया दरवाज़ा खोलती है, तो दरवाज़े पे खड़ा कुनाल पूछता है।
"ओए.. क्या चल रहा है?"
"कुछ नहीं मूवी, देख रही थी।"
"ओ.. ये फिल्म तो कॉमेडी है, पर तेरी आँखों से बहती हुई ये धाराएं तो कुछ और ही कह रही है।", दरवाज़े से गर्दन टेड़ी करके देखते हुए कुनाल ने बोला।
"अ.अ.. तुझे पता तो है मेरा, की कुछ भी देख कर रो देती हूँ।"
"अच्छा, चल अब मुझे देख ही खुश हो ले फिर।"
"क्यों, तेरे में कोई हीरे मोती जड़े हुए है, जो तुझे देख कर खुश हू।"
"नहीं, वो तो नहीं है, पर उससे भी अच्छा कुछ है।"
"क्या?"
"रबड़ी जलेबी"
"मतलब सच्ची में?"
"हाँ.. सच्ची में।"
"निकाल फिर, इंतज़ार किसका कर रहा है!"
"वैसे बात क्या है, ये तो बता दे..", चम्मच प्लेट लेकर आई रिया से कुनाल ने पूछा।
"निया चली गयी।"
"क्या बिना पार्टी दिए?"
कुनाल को हल्का मारते हुए रिया बोली, "आ जाएगी शनिवार तक.. शनिवार को पहली बारिश है, और उसे लगता है, की इस बार चंचल और सुनील का ब्रेकअप हो सकता है, कयोंकि चंचल को सब पता है।"
"लो हमारा एक और जवान, इस पहली बारिश के झमेलों में शहीद हो गया। मुझे नहीं लगा था, की वो इतनी जल्दी इन सब में मानाने लग जाएगी।"
"पर हर्ज़ क्या, मानने में.. मैं तो साक्षात् प्रमाण भी हूँ उसका।"
"ओह.. साक्षात् प्रमाण, खाने पे ध्यान दे", रिया की कमीज़ पे गिरती हुई रबड़ी को देख कर कुनाल बोला।
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"वाह मेरे शेर.. एक बार थोड़ा भगाया क्या, सब सिख गया। अब चाबी अपने पास ही रखने लगा है।", गोल छोटा सा चेहरा, छोटी आंखे, हल्की दाढ़ी, बड़ी नाक, कालें हल्के लंबे बाल और उसे में खाती काली हल्की सी जैकेट पहने हुए शुभम ध्रुव का भाई, उसके ऑफिस के बाहर खड़े होकर, उससे चाबी लेते हुए बोला।
"गट्टर में डालने के लिए उठाई थी आज तो।", ध्रुव ने चीड़ कर बोला।
"तो बेटा.. उसी गट्ठर से ले कर आता तू फिर, मेरे मेहनत की कमाई है।", ध्रुव को ये बोलते ही शुभम आगे बड़ कर उसे गले लगा कर फिर बोला। "भाई इतने दिनों बाद आया है, ये नहीं की उसे गले ही लगा लूं।"
"शादी करके आया है या शादी करने आया है?", ध्रुव ने छूटते ही पूछा।
"ओहो मेरा छोरा.. सब पता है तुझे।"
"अब इतने सालों से वापस बुला रहे है तुझे तो तू आ नहीं रहा था, अब अचानक से आया है, तो यही कुछ होगा।"
"हां..", शुभम ने हंसते हुए बोला। "शादी करनी है, और उसके लिए लड़की से रजामंदी इस सैटरडे को लूंगा।"
"हह?"
"उसे प्रपोज करूंगा", शुभम ने माथे पे हाथ रखते हुए बोला।
"बढ़िया है, गुड लक। जैसे तेरे आसार है, मुझे तो कम ही चांसेज लगते है, की तुझे कोई हां कहेगा।"
"कोई ना देखते है, अभी तो मैं चलता हूं।", अलविदा लेते हुए शुभम जहां अपने रास्ते चल दिया, वहीं ध्रुव भी वापस अंदर जा रहा था, जब उसे, बिल्डिंग के बाहर सिर पकड़ी बैठी निया अपनी उबासियां छुपाती हुई दिखी।
"कुछ देखा तुमने, डेटा में?", उसके साथ जाकर बैठते हुए ध्रुव बोला।
"नहीं.. कुछ खास नहीं, पर मुझे तुम्हें एक बहुत ज़रूरी बात बतानी है।",एक दम से ध्रुव की तरफ़ अपना चेहरे बढ़ाते हुए निया बोली।
"एक काम करते है, फूड कोर्ट चल के कॉफी और कुछ खाने का लेकर आते है।", निया उठते हुए बोली।
ऑफिस के फुडकोर्ट में खाने बैठे वो दोनों अनजाने में चंचल और सुनील की पीछे वाली सीट पे जा कर बैठ गए।
"तुम यकीन नहीं मानोगे की मुझे क्या लगता है...", निया ये बोल ही रही होती है, की पीछे से आवाज़ आती है।
"तुम कभी भी मेरी बात क्यों नहीं मानते हो, उस फालतू सी चीज़ पे तुमने इतने पैसे लगाने की क्या ज़रूरत थी?"
"क्या?", निया के जवाब ना देने पे ध्रुव आतुरता से पूछता है।
"शश..", ध्रुव को ये बोलते हुए निया उसे आती हुई आवाज़ सुनने का इशारा करती है।
"फालतू का खर्चा, मैंने वो सब हमारा घर अच्छा दिखे इसलिए किया था.. हमारा.. ध्यान से सुनना इस शब्द को।"
"सुनील.." , ध्रुव ने बस अपने होठ हिलाते हुए बोला, और वो दोनों उठ कर थोड़ी दूर जा कर बैठ गए।
"ये दोनों... मुझे इस बार पहली बारिश के शिकार ये लग रहे है।", निया हल्के से बोली।
"हेलो गाइस..", एक दूसरे से बात करते हुए खोये, निया और ध्रुव ऐसे टेबल पे बैठे होते है, जहाँ नीतू और दीवेश ने पहले ही सीट ले रखी थी।
"लेट मी गेस.. यही ये वो लोग जिनका तुम मुझे उस दिन बता रही थी?", दीवेश ने उन दोनों को देखते हुए बोला, जिसपे नीतू ने भी हाँ में इशारा कर दिया।
"आप दोनों की बातचीत शुरू हो गयी?", निया ने ख़ुशी के मारे पूछा।
"हम दोनों ही तुम्हें मिल कर काम दे रहे थे ना, तो यकिनं हमारी बात तो होती होगी।" दीवेश ने तुरंत से बोला।
"अरे नहीं.. वैसे वाली नहीं... ये डेट वाली बातचीत।"
"हह?"
"मुझे लगता है, की हम फालतू ही इनकी कंपनी को पैसे दे रहे है.. काम तो कुछ करते नहीं हो तुम लोग।", दीवेश थोड़ा चीड़ के बोला।
"निया, तुमने वो पहले मॉड्यूल की टेस्टिंग शुरू कर दी क्या?", ध्रुव ने बात घुमाते हुए बोला।
"हां..", निया ने बिना सोचे जवाब दिया।
"अरे उसमें एक चीज़ थी जो मुझे तुमसे डिस्कस करनी थी..."
"सॉरी सर.. सॉरी मै’म", ये बोलते हुए ध्रुव उठा और निया को हाथ पकड़ कर बाहर ले गया।**************************
पहली बारिश का दिन....
"आज दिन कितना सुहाना है ना?", हॉल में बैठे कुनाल को ध्रुव अपने कमरे से आता हुआ बोला।
"हां.. बहुत अच्छा है।"
"बिल्कुल बाहर घूमने वाला।"
"हां..पर कुछ लोग अपना लैपटाप छोड़ते ही नहीं है, की कहीं घूमने जा सके।", रूम से लैपटॉप हाथ में लेकर आए हुए ध्रुव को ताना मारते हुए कुनाल बोला।
"तूने मेरे लैपटॉप का क्या करना है? तू जा ना, शिपी को लेकर.."
"हह.. हां जाऊंगा, पर अभी नहीं थोड़ी देर में।", वही बैठ कर गेम खेलता हुआ कुनाल ध्रुव की बातों को नजरंदाज करता हुआ सा बोला।
कुछ देर बाद भी जब कुनाल टस से मस नहीं हुआ, तो उसकी तरफ बढ़ते हुए ध्रुव बोला।
"तेरे को एक मैसेज किया मैंने देख जरा।"
"हहह.. क्या है ये?", मैसेज पढ़ते हुए कुनाल बोला।
"तेरे और शिपी के लिए लंच का रिज़र्वेशन।"
"पर क्यों?"
"ऐसे ही.. मेरी तरफ से एक गिफ्ट समझ।"
"गिफ्ट? सच में? मुझे तो कुछ गड़बड़ लग रही है, गिफ्ट तो तू मुझे मेरे बर्थडे पे नहीं देता, तो आज कैसे?" कुनाल ने छोटी शक भरी आंखों से पूछा।
"हां.. तो आज दे रहा हूं ना, ले ले। नहीं चाहिए, तो बता?"
"तू कहीं भाग वाग तो नहीं रहा ना?", कुनाल ने फिर से सवाल किया।
"चुपचाप चला जा ना.. तू सारा दिन मेरा दिमाग खाता रहता है, और आज मुझे अपना सारा काम खत्म करना है, इसलिए तुझ से छुटकारा पाने के लिए कर रहा हूं मैं ये।"
"चल ठीक है, तू इतनी विन्ती रहा है तो चला ही जाता हूं", कुनाल ने खुश भरा चेहरा बनाते हुए कहा।
ध्रुव ने रिजर्वेशन पास एक ही एक रेस्टरो में कराई थी, तो कुनाल ने शिपी को फ़ोन करके अपने सोसाइटी तक बुला लिया।
"आज आसमान कितना साफ़ है?", कैब से उतर के शिपी जब कुनाल के पास आई, तो आसमान की तरफ देखता हुआ कुनाल उसे बोलता है। हल्के रेड कलर की लॉन्ग ड्रेस पहने हुए शिपी, कुनाल की क्रीम टी-शर्ट और हल्की ब्लू जीन्स को देख कर मुस्कराई और आगे बढ़ कर गले लगाते हुए बोली।
"हेलो... कोई मिले तो ऐसे मिलते है उससे.... ना की मौसम का हाल सुनाने लगते है।"
"तुम्हारे हाथ में ये छाता देख कर बोलै मैंने.. ध्यान से देखो, एक भी बादल नहीं है ऊपर।"
"पर मौसम विभाग की भविष्यवाणी है, की आज बारिश आने के 70% से भी ज्यादा आसार है।"
"अच्छा.. देखते है।"
"कैसे हो? कोई मुझसे से तो पूछता नहीं है, तो मैंने सोचा में ही पूछ लूँ। "
"ओह.. सॉरी, कैसी हो तुम?"
कुनाल की इस बात पे शिपी मुस्करा दी, और उससे पूछा।
"फिर आगे कैसे चलेंगे हम?"
"मैं कैब करा रहा हूँ।"
वो थोड़ी देर में रेस्ट्रो पहुंचे, तो देखा की ध्रुव ने जहाँ की बुकिंग की है, वो एक रूफटॉप का रेस्ट्रो था।
"तुम्हें क्या लगता है, यहाँ गर्मी तो नहीं लगेगी?", कुनाल ने शिपी को पूछा।
"नहीं... मुझे तो लग रहा है, मज्जेदार जगह है ये", शिपी ने बोला और आगे बढ़ कर वेटर से अपनी सीट की बारे में पूछने लगी।
उनके निकलते समय बेशक आसमान साफ था, पर जब वो कैब से उतरे, तब तक आसमान अपना रंग थोड़ा थोड़ा बदल चूका था, कुछ काले बादलों ने वहां अपना आसरा बना लिया था।
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"निया.. निया..", सोफे पे सो रही निया को उठाते हुए चंचल बोली।
"अ..अ..", हल्के से उठते हुए निया बोली। "सॉरी चंचल.. वो तबियत ठीक नहीं लग रही मुझे..आप दोनों कहीं जा रहे थे क्या?", चंचल और सुनील को तैयार हुआ देख कर वो बोली।
"हां.. घर में सब कुछ खत्म हो गया है, तो वहीं लेने जा रहे है। तुम्हें कुछ चाहिए? दवाई ला दू मैं कोई?"
"नहीं.. ऐसे तो कुछ नहीं चाहिए, मुझे।", निया धीरे धीरे बोली।
आगे बढ़ कर निया के माथे पे हाथ रख कर चंचल बोली।
"माथा तो गरम लग रहा है।"
चंचल अंदर से थर्मामीटर ले कर आई और उसने निया के मुंह में थर्मामीटर डाला, और उससे शांत रहने को कहा। जैसे ही टी टी की आवाज़ आई, चंचल ने निया के मुंह से थर्मामीटर निकला और उससे पढ़ते हुए बोली।
"104.."
"ऐसा क्या हो गया? जो तुम इतनी बीमार हो गयी?", साथ खड़े सुनील ने हैरानी से पूछा।
"पता नहीं.. बस रात से अच्छा सा नहीं लग रहा था", धीरे से निया ने बोला।
"रुको मैं अंदर से दवाई लेकर आती हूं।", चंचल ये बोल कर, अंदर से अपना फर्स्ट एड बॉक्स लाती है।
"निया ये ले लो और सो जाओ, देखना तुम्हें आधे घंटे में ही ठीक लगने लग जाएगा।" निया को दवाई देते हुए चंचल बोली।
"चंचल, मुझे ऐसे दवाइयों से एलर्जी हो जाती है.. क्या आप प्लीज मेरे साथ डॉक्टर के पास चलेेगी?", थोड़े रुक कर दवाई के लिए हाथ से ना का इशारा करते हुए निया बोली।
"हाँ.. फटाफट चलो, हम तुम्हें दिखा कर आते है।", सुनील ने उठने का इशारा करते हुए निया को बोला।
"अ.अ.. सुनील अगर मैं सिर्फ चंचल के साथ चली जाऊ, तो ठीक रहेगा क्या?" सुनील और चंचल की तरफ बड़ी बड़ी आँखों से देखती हुई निया बोली।
"ठीक है.. अगर तुम्हें ऐसे सही लगता है, तो ऐसे ही ठीक सही।", वो दोनों बोले।
बिना ज्यादा देरी किए, चंचल निया को बैठा कर पास की अपने रेगुलर वाले क्लिनिक में ले गयी।
"सवेरा क्लिनिक..", क्लिनिक का नाम पढ़ते हुए निया अंदर चली गयी। वो एक बहुत छोटा सा क्लिनिक था, अंदर जाते ही 3-4 लोगों के बैठने के लिए छोटे से दो स्टूल पड़े थे। एक पारदर्शी शीशा लगा हुआ था, जिसके अंदर बैठी डॉक्टर को देखते ही चंचल ने धीरे से नमस्ते कहते हुए, अपनी गर्दन हिलायी, और चंचल को देख वो भी मुस्कराई और नमस्ते में गर्दन हिलाई। वो महिला डॉक्टर भी लगभग चंचल जितनी उम्र की थी। कुछ देर में, बाहर बैठे दो लोगों के डॉक्टर को दिखा के आने के बाद, निया की बारी आई तो वो धीरे से चंचल से बोली।
"चंचल आप बुरा ना माने, तो मैं अकेले जा कर दिखा कर आऊ?"
"हाँ.. कोई दिक्कत नहीं है। तुम ठीक हो ना? अगर कमजोरी लोग रही हो, तो अंदर तक छोड़ के आऊ तुम्हें?"
"अ.. अ नहीं मैं ठीक हूँ।", निया उठ कर डॉक्टर के कमरे तक जाते हुए बोली।
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स्नैक्स ऑर्डर करती शिपी को निहारते हुए कुनाल से शिपी ने पूछा।
"कुछ कहना था तुम्हें?"
"नहीं.. नहीं तो।"
"क्या खाओगे?"
"जो तुमने ऑर्डर किया है, उसी से ले लूंगा मैं भी।", कुनाल ने जवाब दिया, और दोबारा शिपी को देखने लग गया।
"पता है, ये सबका पसींददा पनीर इंडिया का नहीं है, बाहर से आया है, यहां..."
कुछ देर बाद आए स्नैक्स को खाते हुए शिपी कुनाल से बोल ही रही थी, की इतने झमाझम बारिश शुरू हो जाती है।
वैसे तो वो रेस्ट्रो शेड से ढका हुआ था, पर फिर भी वहां बैठे ज्यादातर लोगों ने वहां से जगह बदल कर, अंदर कवर्ड जगह में जाने की मांग कर ली थी।
कुनाल जहां बड़े ध्यान से देख रहा था की क्या चल रहा है, वहीं उसके पास बैठी शिपी अपनी कोल्ड ड्रिंक के ग्लास में स्ट्रॉ डाल कर, बारिश और ड्रिंक दोनों का आनंद उठा रही थी।
"तुम्हें नहीं जाना यहां से?", उसे बेफिक्री से बैठा हुआ देख कुनाल बोला।
"अअ.. नहीं, ऐसे ही मज़ा आ रहा है।", शिपी ने बोला और अपना ध्यान बारिश पे लगा लिया।
कुछ देर में एक वेटर उनके पास आया और बोला।
"सर.. मैंने अंदर आप लोगों के लिए टेबल खाली करा दिया है। चलिए मैं आपको दिखा दू।"
"नहीं भैया.. रहने दीजिए.. हम यही ठीक है, वैसे भी बारिश इतनी तेज़ थोड़ी है।"
"सर.. हमे बोला है, की सब खाली करा दो। फालतू में हमे बाद में डांट पड़ जाएगी, चलिए ना।"
"ठीक है फिर.. चलो।", कुनाल और शिपी वहां से उठे तो, वेटर ने उनके अंदर जाने के लिए अपना छाता खोला, पर वो थोड़ा सा फट गया था।
"सर.. आप मुझे दो मिनट दीजिए बस, मैं नया छाता लेकर आता हूं।", ये बोलते ही वेटर वहां से चला गया।
"मैं निकालू क्या छाता?", शिपी ने कुनाल की तरफ़ देखते हुए पूछा।
"नहीं..ऐसे ही चले क्या, यहीं तो है?", कुनाल ने मस्ती भरी आंखों से पूछा।
"चले?" शिपी ने भी वैसे ही मस्ती से बोला और दोनों हाथ पकड़ते हुए अंदर की ओर भागे।
बारिश की कुछ बूंदों से हल्के हल्के भीगे उन दोनो को वेटर ने देखा तो बोला।
"अरे सर.. आप रुकते ना.. मैं बस आ ही रहा था, छाता लेकर।"
"कोई नहीं भैया.. इसका भी अपना अलग मज़ा है। आप बस प्लीज हमारा खाना लगवा दीजिए टेबल पे।"
कुछ देर बाद उनका वो खाना जब दोबारा से टेबल पे लग गया, तो खाने का पहला निवाला उठाते हुए शिपी बोली।
"सुनो.. मुझे तुमसे एक ज़रूरी बात करनी थी।"
"हां.. बोलो।", उसे प्यार से देखते हुए कुनाल ने कहा।
"यार.. इतने प्यार से बोलोगे, तो मैं कैसे बोल पाऊंगी कुछ भी।"
"तो फिर.. गुस्से से बोलूं?", कुनाल ने शिपी की तरफ देखते हुए बोला।
"हां. जो मैं बोलने जा रही हूं, उसके लिए तो तुझे गुस्से से ही देखना चाहिए।"
"बोलो क्या बोलना है? मैं फिर सोचूंगा, की गुस्सा करना है या नहीं।", नकली सी हंसी हंसता हुआ कुनाल बोला।
"तुझे क्या लगता है, हमारे बीच सब कैसा चल रहा है? ये जो हमने फैसला लिया था, की एक दूसरे को जान कर समझ कर ही, सोचेंगे की आगे बढ़ना है, इस रिलेशनशिप में या नहीं। क्या विचार है तेरे उसके लिए?"
"मुझे.. मुझे, पता नहीं.."
"ठीक है, अगर तू नहीं बोल पा रहा है, तो मैं ही बोल देती हूं।"
"हां बोल..", गर्दन नीचे करते कुनाल बोला।
"मुझे नहीं लगता, की मैं इस रिलेशनशिप को आगे बढ़ाना चाहती हूं। देख मुझे गलत मत समझियों, तो एक बहुत अच्छा लड़का है, बस हम दोनों शायद एक दूसरे के लिए ठीक नहीं, तू समझ रहा है ना?"
"हम्म.. सुन रहा हूं मैं, समझ भी जाऊंगा ही शायद।"
कुछ देर शांति में खाना खत्म करते हुए उन दोनों के पास वेटर का आकर पूछता है।
"सर.. मीठे में कुछ लाऊ?"
"नहीं भैया, यहां सब इतना मीठा था ना, की ब्रेकअप का भी स्वाद आ गया।"
"हह?", वेटर ने शिपी को हैरानी से देखते हुए बोला।
"भैया.. एक केसर फालूदा ले आइए।", शिपी ने जवाब दिया।
"कमाल है ना, हम इतनी बार बाहर आए.. पर आज पहली बार केसर फालूदा आ रहा है, नहीं तो हमेशा कोई नया अंग्रेजी डेजर्ट ही आता था।"
"जानती हूं.. सॉरी, मैंने पहले कभी ध्यान ही नहीं दिया की हमारी पसंद इतनी अलग अलग है।"
"फिर अब भी नहीं देना चाहिए था..", कुनाल ने धीरे से बोला।
वेटर ने डेजर्ट ला कर टेबल पे रखा ही था, की कुनाल बोला।
"तो ये पक्का है, की तू अब और टाइम नहीं देना चाहती हमारी रिलेशनशिप को?"
"हां.."
"भैया.. ", वेटर को बुलाते हुए कुनाल बोला। "ज़रा ये तीनों भी ले आओ।"
"अब आप जा सकती है, मैं अपने आप घर जाना पसंद करूंगा।", शिपी की तरफ़ देखता हुआ कुनाल बोला।
"नहीं कोई नहीं, मैं इंतजार करती हूं.. तू खा ले, आराम से, मेरे पास टाइम है।"
"कोई नहीं, तू जा।"
"देख मैं ऐसे जाऊंगी तो लोग क्या कहेंगे।", शिपी ने कुनाल की तरफ छोटी छोटी आंखों से देखते हुए कहा।
"कौन से लोग, ना तो ये तुझे जानते है, ना मुझे.. प्लीज़ चली जा, मैं कुछ देर अकेले रुकना चाहता हूं।"
"पर तू ठीक है ना?"
"हां.."
"ठीक है, मैं बिल भर के आई, फिर ये ले जाती हूं।", शिपी अपना बैग सीट पे रख के उठते हुए बोली।
"नहीं.. मैं भर दूंगा। बुलाया भी मैंने था, बारी भी मेरी थी, तो तू क्यों भरेगी? क्योंकि तूने ब्रेकअप कर लिया। इतना भी बेकार नहीं हूं मैं।", कुनाल ने शिपी को रोकते हुए कहा।
"ठीक है.. मैं चलती हूं फिर.. बाय।", धीरे से बोलती हुई शिपी उठी और गेट की और बढ़ गई।
गुलाब जामुन, ब्राउनी और आइस क्रीम ले कर रखते हुए वेटर ने पूछा, "सर.. मैडम कहां गई?"
"चली गई..", कुनाल ने हल्के गुस्से में जवाब दिया।
"क्या सर.. इतना मीठा खाओगे तो मैडम गुस्सा तो होंगी ही।"
"कोई नहीं भैया.. मीठा सबसे ऊपर..", खाना शुरू करते हुए कुनाल बोला।
कुछ देर बाद खाना खा कर खत्म करते हुए, कुनाल वहां से बाहर से निकला, तो देखा आसमान फिर से साफ दिख रहा था।
"ध्रुव.. आसमान बहुत साफ है ना।", ध्रुव को फोन करके कुनाल बोला।
"हह.. तो मैं क्या करूं?"
"मुझे साफ़ आसमान पसंद नहीं है, बारिश करा दे।"
"क्या बोले जा रहा है?"
"मेरा ब्रेकअप हो गया.. और अब जब भी ये साफ आसमान देखूंगा तो उसकी याद आएगी।"
"कहां है तू?"