Mamta ki Pariksha - 46 in Hindi Fiction Stories by राज कुमार कांदु books and stories PDF | ममता की परीक्षा - 46

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ममता की परीक्षा - 46



मास्टर की बात सुनकर गोपाल का मन मयूर ख़ुशी से झूम उठा। उसका दिल कह रहा था अभी भाग कर जाए अपनी साधना के पास और उसे यह खुशखबरी स्वयं सुनाये, लेकिन अपनी भावनाओं पर काबू पाते हुए उसने खुद को संयत रखा और उसके मुँह से निकला, "बाबूजी, इतनी जल्दी ? आखिर कैसे होगा इतनी जल्दी सब ?"

" क्या कैसे होगा गोपाल ? हम गरीबों की शादी में क्या तैयारी करनी होती है ? परसों शादी है तो गाँव के लाला की दूकान पर से शादी का पूरा सामान, कपडे लत्ते , सब आज ही आ जायेंगे। कल सबके कपडे सिल कर भी आ जायेंगे। मेहमान कौन है ? बस यही गाँव वाले न ?...जो हमेशा हमारे सुख दुःख में काम आनेवाले हैं। कुसुमी नाइन को बुला भेजा है आज ही गाँव में घूम कर सबको परसों की शादी के बारे में बताते हुए न्यौता भी दे देगी। लग्न मंडप में विवाह विधि के लिये लगनेवाली सारी वस्तुएं पंडित जी स्वयं ले आएँगे। गाँव वालों के खाने पीने का इंतजाम गाँव के मित्र गण खुद ही कर लेंगे। अनाज वगैरह सब है ही जो तेल नमक सब्जी वगैरह खरीदनी है सब कल आ जायेगा। और क्या तैयारी करनी है ? ..हाँ, तुम अगर किसी को अपनी तरफ से बुलाना चाहते हो तो बता दो।" मास्टर ने अपनी पूरी योजना समझाने के बाद उससे पूछा।

गोपाल बोला, "नहीं बाबूजी, मेरी तरफ से कोई नहीं। कौन है मेरा ? माँ ?..जिसे यह शादी मंजूर ही नहीं। बाप ?... जिसे मेरी कोई परवाह ही नहीं है। मित्रों को यहाँ इस देहात में बुलाकर मैं उनका और अपना उपहास नहीं उड़वाना चाहता। मेरा अब इस दुनिया में कोई नहीं है बाबूजी। बस आप और आपके आशीर्वाद संग साधना और आप ही इतनी बड़ी दुनिया में मेरे अपने हैं। आप जैसा भी उचित समझें , करें।"

" ठीक है बेटा ! " कहकर मास्टर साहब घर में प्रवेश कर गए।

तभी पड़ोस के घर से चौधरी , परबतिया काकी और चार अन्य पडोसी भी आ गए। शायद मास्टर जी उन्हें अपने घर आने के लिए कह आये थे।

गोपाल ने अपिरिचित होने के बावजूद शीश झुकाकर उन सभी का अभिवादन किया। इससे प्रभावित उन सभी गाँववालों ने दिल खोलकर उसे आशीर्वाद दिया। गोपाल ने तुरंत खटिया बिछाकर उन सभी से बैठने का आग्रह किया। तब तक आहट सुनकर मास्टर जी भी घर से बाहर आ गए।

उनके मध्य जाकर बैठे ही थे कि तभी उनमें से एक ने मास्टर का हाथ पकड़ा और उन्हें बधाई देते हुए बोला, "बधाई हो मास्टर ! दामाद तो तुमने बड़ा बढ़िया खोजा है। कोई और अगर नजर में हो तो बताना अपनी छुटकी के लिए।" मास्टर मुस्कुरा कर रह गए।

कुछ देर इसी विषय पर खुसर पुसर होती रही और फिर उनके बीच परसों होने वाली शादी की तैयारियों के बारे में चर्चा होने लगी। सभी ने अपने अपने विचार रखे और अंत में सभी की जिम्मेदारियाँ भी तय की गईं। खुद को मिली जिम्मेदारी से सभी खुश नजर आ रहे थे। उन सबने मास्टर को आश्वस्त किया कि वो अपनी जिम्मेदारी बखूबी निभाएंगे।

गोपाल वहीँ उनसे कुछ हटकर दालान में बैठा था और उनकी बातें सुनकर और उनकी ख़ुशी को महसूस कर आश्चर्य चकित था। उसने शहरों में पढेलिखे और सभ्य कहलाये जानेवाले समाज को भी करीब से देखा था जिनके पास मरते हुए पड़ोसियों का हाल जानने का भी वक्त नहीं होता और न ही उनकी इच्छा होती है कि किसी के काम आया जाए। उनके मुकाबले ये अनपढ़ और गँवार कहलाने वाले गरीब गाँववाले जिनके पास अपनों के लिए पूरा वक्त ही वक्त होता है। इतना ही नहीं ये तो जिम्मेदारी पाकर खुश हो रहे हैं ऐसे जैसे इन्हें कोई बख्शीस मिल गई हो। वाकई इंसान के इन दोनों रूपों में परिवेश कितना अहम् है। एक तरफ ये हैं गरीब , अनपढ़ , अभावों से जूझते लोग जिनके दिलों में अपनों के प्रति कितनी हमदर्दी , प्यार और स्नेह है कि जिसे महसूस कर इनके लिए श्रद्धा उमड़ आती है और दूसरी तरफ पढ़े लिखे , खुद को समझदार और सभ्य कहलाने वाले लोग जो खुद को इंसान साबित करने में भी विफल रहते हैं।'

वह बड़ी देर तक वह इन्हीं सब बातों पर मनन करता रहा और फिर गमछा ले चल दिया उसी तालाब की ओर जहाँ वह कल नहाकर आया था।

तालाब में नहाकर लौटते हुए गोपाल ने कुछ गाँववालों की नज़रों में अपने लिए सम्मान का भाव देखा, वहीँ कुछ उसे देखकर आपस में कानाफूसी भी करने लगे थे।
एक घर के सामने से गुजरते हुए गोपाल ने एक बुढ़िया को यह कहते हुए सुना, "अच्छा, तो यही मास्टर जी के दामाद हैं। बहुत खूबसूरत हैं।" शायद किसी ने उस बुढ़िया को धीमे स्वर में गोपाल की तरफ इशारा करके उसके बारे में बताया हो लेकिन गाँव के बुजुर्ग धीमे स्वर में कहाँ बोलते हैं ?
उनके प्यार व सम्मान के साथ ही गोपाल को गाँव वालों के बीच मास्टर जी के सम्मान का भी अहसास हो रहा था।

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आखिर गोपाल और साधना की जिंदगी का वह अहम् दिन आ ही गया। आज उनकी शादी थी। सुबह से ही पडोसी उनके यहाँ आ धमके थे। सभी लोग कुछ न कुछ करने में व्यस्त थे। गोपाल भी उनकी मदद करना चाहता था लेकिन उसे बड़े प्यार से समझा बुझा कर एक तरफ बैठा दिया गया था। उसके जिस्म पर सिर्फ बनियान और एक धोती थी जिसे उसने लूँगी की तरह ही कमर से लपेट लिया था। उसके कपड़े और जिस्म पूरी तरह हल्दी से सराबोर थे।

परसों शाम अचानक पंडित जी मास्टर जी के घर आ धमके थे और फिर गोपाल और साधना को एक ही जगह वेदी बनाकर बैठा दिया गया था और फिर पूरे विधि विधान से पूजन वगैरह करके गाँव की छोटी कन्याओं ने गोपाल और साधना को हल्दी लगाने की रस्म पूरी की।
कल भी उसे और साधना को सुबह और शाम दो बार हल्दी लगाई गई थी। दोनों के गोरे जिस्म हल्दी लिपटने की वजह से सुनहरी रंगत लिए हुए और गोरे दिख रहे थे और उनकी चमक बढ़ गई थी।
पूर्व निर्धारित तैयारियों के अनुसार सब कुछ सुव्यवस्थित तरीके से चल रहा था।

सूर्यास्त के बाद वैवाहिक विधियों की शुरुआत हुई। गोपाल को एक दिन पहले ही देखा हुआ सपना याद आ गया। सब कुछ बिलकुल वैसे ही चल रहा था जैसा उसने सपने में देखा था। बस बारात का दृश्य नहीं था। द्वार पूजा के नाम पर गाँव की महिलाओं ने गोपाल का स्वागत किया उसे तिलक वगैरह लगाया। गाँववालो ने सब कुछ सुनियोजित तरीके से पूरी व्यवस्था सँभाली हुई थी। भोजन वगैरह का भी कार्यक्रम शुरू हो गया था। लड़कियों की शरारत और चुहलबाजी से गोपाल भी मन ही मन आनंदित था।

इन्हीं सबके बीच रात दस बजे से वैवाहिक कार्यक्रम शुरू हुए और पंडितों के मंत्रोच्चार के बीच विभिन्न रस्मों से गुजरते हुए साधना और गोपाल अग्नि को साक्षी मानकर सदा सदा के लिए एक दूजे के हो गए। पवित्र बँधन में बँध चुके थे दोनों और उपस्थित जनसमूह उन्हें दिल से तरह तरह के आशीर्वाद दे कर उन्हें अनुग्रहित कर रहे थे। जब तक वैवाहिक विधियाँ पूरी होतीं ऊषा की लालिमा पूरब में बिखर चुकी थी।

क्रमशः