अहमदाबाद...💞💞💞💞
राठौड़ पैलेस...💞💞💞💞
दिव्या कि कार एक मेन गेट सामने जाके रुकती है। और वो अपने हैंड बैग से एक छोटा सा रिमोट निकालती है , और उसे वो गेट के सामने कि तरफ़ करके उसका एक बटन प्रेस कर देती है , जिस से वो गेट अपने आप ही खुल जाता है । और कुछ ही सेकंड में अपने आप ही बंद हो जाता है।
ये रिमोट specially घर के फैमिली मेंबर्स के लिए ही बनवाया गया है । जो उनके पास ही होता है और किसी के पास नहीं । पूरे पैलेस मे बोहोत ही टाईट सिक्योरिटी है । जिस कि वज़ह से किसी भी बाहर वाले सक्स का अंदर जाना इंपॉसिबल है ।
दिव्या कि कार गेट के अंदर से होते हुए , एक बड़े से फाउंटेन को क्रॉस करके सीधे पार्किंग एरिया में जाके रुकती है ।
दिव्या कार से नीचे उतरती है , तो सारे एम्पलॉइज रिस्पेक्ट के साथ उसे ग्रिट करते हैं । दिव्या भी सब को स्माइल के साथ अपना सर हिलाते हुए घर के अंदर चली जाती हैं।
अंदर जाते ही उसे सबसे बड़ी और घर कि हेड अपनी दादी सा ( मृणाली देवी राठौड़ ) , बड़े पापा ( वीरेंद्र प्रताप राठौड़ ) , बड़ी मा ( देवियानी राठौड़ ) हॉल में ही बैठ दिखते जो किसी सीरियस टॉपिक पर बात कर रहे थे । उसे कुछ सुनाई तो नहीं दे रहा था , पर उनके चेहरे के रिएक्शन से उसे समझ आ रहा था कि जरूर कोई सीरियस बात है।
वो धीरे धीरे चल कर अपनी दादी सा के पीछे जाके अपने दोनो हाथों से उनकी आंखे बंद कर देती हैं । और अपने बड़े पापा ,बड़ी मा को चुप रहने का इशारा करती हैं ।
दादी सा ने उन्ही हाथों पर अपने हाथ रखकर टटोलते हुए कहा , " अरे कौन है...? जो ऐसे बच्चों कि तरह हरकते कर रहा है...?...
दिव्या अपना गला साफ करके अपनी आवाज थोड़ी सी बदलते हुए कहती है , " आप पहचानिए कि में कौन हूं ..?..
दादी अपने दिमाग़ पर ज़ोर लगाते हुए कहती हैं , " अ...कहीं आप...हमारी दोस्त सरिता कि बेटी कि बेटी मल्लिका तो नहीं ...?"
दिव्या ने मुंह बनाके कहा , " नहीं , में वो नहीं हूं ।" आप फिर से guess कीजिए ।
दादी फिर से अपने दिमाग पर जोर देते हुए , " अ...आप.. अरे हा आप जरूर हमारे मैनेजर डॉक्टर कैलाश कि बेटी अपर्णा है ...?
अब तो दिव्या पूरी तरह से चीड़ गई , वो दादी सा के आंखो पर से अपने हाथ हटाकर , उनके सामने जाके खड़ी हो जाती है , दादी सा दिव्या को अपने सामने खड़े देखकर बोहोत खुश होती है , वो कुछ बोलती उससे पहले ही ....
दिव्या अपने दोनों हाथ अपनी कमर पर रख कर , मुंह बनाकर केहती है , " आप को तो दुनिया भर के बच्चो के बच्चे तक याद आ गए , लेकिन आपको अपनी ही घर कि पोतीयों का ख्याल एक बार भी नहीं आया ..?... आप तो हमेशा केेहती रहती हैं , कि हम अपनी दोनों पोतीयों से बोहोत प्यार करते हैं , तो फिर आप को एक बार भी हमारा या फिर दी का ख्याल क्यों नहीं आया , कि हम मे से कोई एक हो सकता है.?.."
ऐसे कहकर दिव्या अपना मुंह फुलाए अपने बड़े पापा और बड़ी मा के पास जाके प्यार से उन्हे हग करती हैं , वो भी उसे हग करके उसके सर पर प्यार से हाथ फेरते है ।
दिव्या अपने बड़े पापा को हग किए हुए ही दादी को देखकर नौटंकी करते हुए कहती हैं , " हमसे प्यार तो सिर्फ हमारे बड़े पापा और बड़ी मा ही करते हैं , बाकी सब तो बस कहने को केहते है , कि वो हम से प्यार करते हैं 😏
I love you बड़े पापा और बड़ी मा " दिव्या अपनी नज़रे दादी से हटा कर अपने बड़े पापा और बड़ी मा को देखते हुए कहती है ।"
"I love you too बेटा हमभी आप से बोहोत प्यार करते हैं " , बड़े पापा दिव्या के गाल पर अपना एक हाथ रख कर केहते है।
दादी सा दिव्या कि नौटंकी देखकर उसे एक टेढ़ी स्माइल करते हुए , " आप से किसने केह दिया की हमने आप को पहचाना नहीं "
दादी सा कि बात सुनते ही दिव्या उनकी तरफ पलटकर अपनी आंखे बड़ी बड़ी करके हैरानी से उन्हे देखती है ।
दादी सा अपनी बात आगे कंटिन्यू करते हुए , " हमने तो आप को तभी पहचान लिया था , जब हमने आप के हाथों को अपने हाथों से छुआ था ।
दिव्या उनके पास जाके कंफ्यूज होकर दादी सा से , " सिर्फ हमारे हाथों को छूकर , आपने हमे पहचान लिया , पर वो कैसे ...? "
दादी सा ने दिव्या का राइट हैंड ऊपर उठा कर एक खूबसूरत डायमंड रिंग कि तरफ़ इशारा करते हुए , " इस कि वजह से " दिव्या भी उस डायमंड रिंग को देखती है ।
दादी सा अपनी बात आगे कंटिन्यू करते हुए , " आप को याद है , हमने हमारे घर कि दोनों प्रिंसेस के लिए specially ऑडर देके ये डायमंड रिंग बनवाई थी , और इसे छूते ही हमे समझ आ गया कि ये आप ही हो सकती है , क्योंकि सिमरन तो अभी मुंबई में है , और उनका अभी यहां होना , तो पॉसिबल है नहीं । "
दिव्या हैरानी से अपना एक हाथ अपने गाल पर रखकर नौटंकी करते हुए केहती है , " हो... दादी सा आपने हमे पहले ही पहचान लिया था , फिर भी आपने हमसे झूठ बोला , अगर आप ही झूठ बोलने लगोगे , तो फिर आपके बच्चे आप से क्या सीखेंगे भला...?"
दादी सा दिव्या के कान खींचकर कहती हैं , " शैतान...
"अरे दादी सा please , please बोहोत दर्द हो रहा है , please हमारा कान छोड़ दीजिए ।" , दिव्या दर्द से करहाते हुए रिक्वेस्ट करती है ।
दादी सा दिव्या कि रिक्वेस्ट को इग्नोर करते हुए वैसे ही कान को खींचती हुई , अपनी बात आगे कंटिन्यू करते हुए कहती है ।
"जैसे आप ने तो कभी झूठ बोला ही ना हो , आप कब , कहां और क्यों जाती है । किसी को कुछ पता भी होता है...?, अगर हम आपसे कभी कुछ पूछ भी ले , तो भी हमे कभी ढंग का जवाब तक नहीं मिलता । और फिर भी आप अपने आप को सत्य वादी राजा हरिश्चंद्र समझती है...? , जो आप हमे सच और झूठ पे ज्ञान दे रही है । क्या आप भूल गई के हम यहां कि राजमाता है...?"
दिव्या दर्द से करहाते हुए रिक्वेस्ट करती है , " अरे हमसे ग़लती हो गई , हमारी प्यारी , स्वीट सी दादी सा हम आपको तो क्या हम तो आपकी परछाई को भी अपनी पूरी लाईफ मे कभी कोई ज्ञान नहीं देंगे । प्लीज़ हमे माफ़ कर दीजिए । "
दिव्या कि इतनी बार रेक्वस्ट करने से दादी सा का दिल पीगल जाता है , और वो उसके कान को छोड़ देती है ।
दिव्या अपने कान को हल्के हाथ से रब करते हुए मुंह बना कर दादी सा से , " आज तो आपने हमारे कान कि बैंड ही बजा दी ।"
लेकिन जल्दी ही उसके चेहरे पर स्माइल आ जाती है । और वो जट से दादी सा को गले लगा कर केहती है , " आप हमारे कान खींचो के थप्पड़ मारो लेकिन हम फिर भी घर में सब से ज्यादा प्यार आप ही से करते हैं , क्योंकि आप हमारी दादी सा से ज्यादा हमारी दोस्त हैं । मोम , डेड के जाने के बाद आप ही ने तो हम तीनों भाई बहनों को संभाला था । जब हम तीनों ही छोटे थे । ये कहते वक्त दिव्या का गला रूंध जाता है , और उसकी आंखे भी नम हो जाती हैं । यही हाल दादी सा का भी था ।
To be continued..........