Baate adhuri si - 5 in Hindi Fiction Stories by Priyanka Taank Bhati books and stories PDF | बाते अधूरी सी... - भाग ५

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बाते अधूरी सी... - भाग ५

सिद्धार्थ अभी वही खड़ा कुछ सोच रहा था, की तभी रोहन भी वहा आ गया, रोहन को देख कर सिद्धार्थ अपने ख्यालों से बाहर आया.

सिद्धार्थ, शुक्ला सर ने मुझे एक स्टेज परफॉर्मेंस के बारे में बताया है, ये एक ड्रामा है, लेकिन इसकी खास बात यह है की इसमें डायलॉग्स , नही रहेंगे, रोहन ने सिद्धार्थ से कहा.

अरे.. ये क्या बात हुई?? ड्रामा में डायलॉग्स ही नहीं रहेंगे तो ये भी कोई ड्रामा लगेगा क्या?? तू भी न रोहन कुछ भी बकवास करता है, अरे.. ये ड्रामा है कोई कठपुतली का खेल थोड़े ना है जो इसमें डायलॉग ही नहीं रहेंगे, सिद्दार्थ ने रोहन से चिढ़ते हुए कहा.

अरे मेरे भाई डायलॉग्स नही है, मतलब इसमें इशारों में बाते समझाना है, और इसमें जो भी कैरेक्टर्स रहेंगे उन्हें भी इशारों में ही बात करनी है, मतलब इसमें इशारों में डायलॉग्स रहेंगे, और ये ड्रामा मिस्टर अवस्थी को डेडिकेट किया जाएगा, जो कॉलेज फेस्ट के चीफ गेस्ट है, रोहन ने सिद्धार्थ को बताया.

मिस्टर अवस्थी ये कौन है..?? सिद्धार्थ ने रोहन से पूछा.

मिस्टर अवस्थी बोल और सुन नही सकते, वे समाजसेवी भी है और वे एक आश्रम के संस्थापक भी है, जहा पर जो लोग बोल और सुन नही सकते है उन लोगो को ट्रेनिंग दी जाती है, और उन लोगो को रोजगार भी दिलवाया जाता है, इसलिए ये ड्रामा उन्हें ही डेडिकेट करने के लिए किया जा रहा है, रोहन ने सिद्धार्थ से कहा.

ओह.. अच्छा सिद्धार्थ बोला, सिद्दार्थ रोहन को अभी की सारी बाते बताना चाहता था लेकिन उसे लगा की रोहन उसका मजाक उड़ाएगा इसलिए उसने रोहन को कुछ नही बताया, और खुद ही आकांक्षा के बारे में जानने के लिए सोचने लगा.

अभी रोहन और सिद्धार्थ को कॉलेज में करीब दो घंटे गुजर चुके थे, सिद्दार्थ अपनी फुटबॉल प्रैक्टिस में और रोहन अपने ड्रामा की प्रैक्टिस में बिजी हो गए थे.

ऐसे ही पांच दिन निकल गए एक दिन रविवार को सिद्धार्थ अकेले ही कॉलेज के फुटबॉल ग्राउंड में प्रैक्टिस कर रहा था, काफी देर बाद जब वह थक गया तब वही ग्राउंड में बैठ गया, बारिश का मौसम होने के कारण हल्की फुहारे गिर रही थी और मौसम भी थोड़ा ठंडा ही था, अचानक सिद्धार्थ की नजर ग्राउंड से लगी सीढ़ियों की तरफ चली गई, ये सीढ़िया ऑडियंस के बैठने के लिए बनाई गई थी, सबसे ऊपर वाली सीढ़ी के एक कोन में उसे एक लड़की बैठी दिखाई दी, जो अपनी डायरी में कुछ लिख रही थी, उसने ध्यान से देखा वो लड़की कोई और नहीं बल्कि आकांक्षा थी.

अब तो सिद्धार्थ का दिल जोर जोर से धड़क रहा था, वो उसके बार में जानने के लिए बहुत उत्सुक हो रहा था, आज तो उसने जैसे ठान ही लिया था की आज तो कुछ भी हो जाए लेकिन वो तो आकांक्षा से बात कर के ही रहेगा.

सिद्धार्थ तेजी से दौड़ते हुए आकांक्षा के पास आ गया, उसे यूं अपने पास दौड़ते हुए आते देख पहले तो आकांक्षा थोड़ी घबरा गई, फिर उसने संभलते हुए वापस अपना ध्यान अपनी डायरी में लगा लिया और फिर से कुछ लिखने लगी.

हेलो... आई एम सिद्धार्थ. सिद्धार्थ ने अपना हाथ आगे बढ़ाते हुए कहा.

आकांक्षा ने एक बार उसके आगे बढ़े हुए हाथ को देखा और वहा से उठ कर चली गई, लेकिन जल्दी से उठ कर जाने के कारण उसकी डायरी में रखी पेन वहीं सीढ़ियों पर गिर कर लुढ़क गई और एक सीढ़ी पर जा कर रुक गई.

सिद्धार्थ पहले तो आकांक्षा को आश्चर्य से जाते हुए देखता रहा फिर कुछ देर बाद उसे ध्यान आया कि जब आकांक्षा वहा से उठ कर जाने लगी थी तब उसकी डायरी में से कुछ गिरा था, सिद्दार्थ ने इधर उधर नजरे घुमाई तो उसे तीन चार सीढ़ी नीचे वह पेन पड़ा दिखाई दिया, सिद्दार्थ ने वह पेन दौड़ कर उठा लिया, पहले तो उसने अपना सिर पीट लिया की आखिर उसे इस पेन का क्या करना है?? लेकिन बाद में उसके दिमाग की बत्ती जली की हो सकता है आकांक्षा फिर से ये पेन लेने आ जाए, अगर ऐसा होता है तो शायद हो सकता है की इस तरह उसकी आकांक्षा से बात भी हो जाए.

सिद्धार्थ कुछ देर तो वही सीढ़ियों पर ही बैठा रहा लेकिन करीब बीस मिनट गुजरने के बाद भी आकांक्षा वहा नही आई तब उसने वहा से चला जाना ही ठीक समझा, वैसे भी शाम के पांच बज चुके थे, अब उसे भी घर जाना था.

घर आने के बाद सिद्धार्थ रेडी हो कर उसके फ्रेंड्स के साथ घूमने निकल गया था, जाने से पहले उसने आकांक्षा का वो पेन बड़े ही हिफाजत से संभाल कर अपने कबड
में रख लिया था.

सिद्धार्थ को घर आते आते रात के ग्यारह बज चुके थे, जब वह अपने दोस्तो के साथ घूमने गया था ना तब भी उसका मन आकांक्षा और उसके पेन में ही लगा हुआ था, अरे.... वो तो अपने दोस्तो से ये सब शेयर भी करना चाहता था, लेकिन उसे पता था की उसके दोस्त उसका सिर्फ मजाक ही बनाएंगे और खास कर रोहन वो तो इन सब के बाद हर जगह उसका मजाक बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ेगा, इसलिए उसने चुप रहना ही ठीक समझा.

घर आने के बाद रोहन सीधा अपने रूम में चला गया था, रूम में जाने के बाद उसने अपने कबड में से आकांक्षा का पेन निकाला और अपने बेड पर लेट गया.

वो बड़े ही ध्यान से उस पेन को देख रहा था, पेन दिखने में कोई साधारण पेन नही दिख रही थी, हल्के नीले रंग की पेन पर व्हाइट कलर के छोटे छोटे एक लाइन में कुछ डायमंड्स लगे हुए थे, जो पेन के सिर्फ एक ही साइड लगे हुए थे, पेन के दूसरी साइड में ट्रांसपेरेंट ग्लास लगा हुआ था जिसमे से पेन के अंदर लगी रीफिल भी दिख रही थी, लेकिन जब सिद्धार्थ ने ध्यान से देखा तो वो रीफिल उसे कुछ अजीब दिखाई दी, बहुत ध्यान से देखने पर सिद्धार्थ ने देखा की उस रिफिल के ऊपर पेपर लिपटा हुआ है ये पेपर डार्क ब्लू कलर का था, जो पहली नजर में देखने पर रिफिल जैसा दिख रहा था.

अब तो रोहन को भी दूसरे स्टूडेंट्स की तरह लगने लगा था की आकांक्षा कोई साधारण लड़की नही है, हो ना हो ये एक मिस्ट्री गर्ल ही है और हो सकता है इसके पीछे जरूर कोई न कोई डार्क सीक्रेट हो, कही ये लड़की कोई गलत काम तो नही करती है न??? एक बार तो सिद्धार्थ ये सब सोच कर डर गया, लेकिन अगले ही पल उसने अपने मन को समझा भी लिया की किसी को बिना जाने पहचाने ऐसे किसी नतीजे पर पहुंचना तो गलत है न, और फिर उसे निकिता कही हुई बाते भी याद आई की आकांक्षा अपने पैसे अनाथाश्रम के बच्चो के लिए दान करती है तो फिर वह लड़की गलत केसे हो सकती है, ऐसा भी तो हो सकता है न की किसी ने उसके साथ गलत किया हो, या उसके साथ ऐसा कुछ हादसा हुआ हो जिससे वह अभी पूरी तरह उबर नही पाई हो.

अब तो सिद्धार्थ ने पक्का मन बना लिया था की चाहे कुछ भी हो जाए वो इन सब बातो का पता लगा कर ही रहेगा, अगर उसे आकांक्षा से भी इस बारे में पूछना पड़े तो वह पूछेगा, उससे बात करेगा, उसे समझेगा और उसे समझाएगा भी.

यही सब बाते सोचते हुए उसे कब नींद आ गई उसे पता ही नही चला.

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