आत्म विवाह - भाग 3( विरोध)
आर0 के0 लाल
विनोद ने एक ऐसे लड़की चित्रा की कहानी बताई जिसने कई साल पहले स्वत: मांग भर ली थी और उसे अपना घर छोड़ना पड़ा था क्योंकि घर वाले उस कार्य के खिलाफ थे। वे कह रहे थे कि बिरादरी में उनकी नाक काट गई है। अरसे बाद उसने अपनी मां को सोशल मीडिया पर एक मैसेज इस प्रकार भेजा था।
"आज दो वर्ष हो गए तुमसे बिछुड़े। कभी ऐसा नहीं हुआ कि आपकी याद न आई हो। मन में आपके साथ बिताए पलों की यादें और आपसे मिलने की व्याकुलता से मन आहत हो जाता है । सोचते सोचते मिनटों में ही हलक सूख जाता है, आंखों से बहती अश्रुधाराएं भी होंठो से आगे नहीं बढ़ पाती। सहन न होने पर पानी पीने रसोई की ओर दौड़ जाती हूं। पानी के साथ आपकी ज्यादातर यादें उदरस्थ हो जाती हैं, जी हल्का जरूर हो जाता है, आंसू थम जाते हैं और मैं फिर अपने काम में लग जाती हूं मगर थोड़ी देर बाद पुनः याद आने लगती है। कई अनुत्तरित सवाल मेरे गले में फांस बन चुभते ही रहते हैं, न निगलते बनता है न उगलते । मैं जानती हूं कि मेरा सवाल बड़ा सीधा सा है जिसका उत्तर स्वयं को ही देना है कि क्यों मैंने आप सबसे विरोध कर यह रास्ता अख्तियार किया। सभी विवाह के विरोधी हो गए थे। चाचा ने भी तो कहा था कि इस तरह की शादी की न कोई सामाजिक मान्यता है और न कोई कानूनी संरक्षण, सब भूल भुलैया में दौड़ है। वास्तव में मैं बुरी तरह से भटक गई हूं, प्रकाश की एकाध किरणें दिखाई तो पड़ती है लेकिन भूलभुलैया से निकलने में असफल महसूस करती हूं"।
उसने आगे लिखा था, "आप लोगों से बिछड़ने से पहले इस यात्रा की कोई तैयारी भी नहीं की थी मैंने , इसलिए सब बेढंगा हो गया है। अब समय ही नहीं कटता, टीवी भी देखने का मन नहीं करता। अगर टीवी खोल भी लिया तो उसमें चल रहे सीरियल में आपका ही चित्र उभरने लगता है। आप उस सीरियल की एक किरदार लगने लग जाती हैं। मन करता है पकड़ कर आपको टीवी से बाहर खींच लूं फिर पूछू कि उस दिन मुझे क्यों नहीं रोका यह सब करने को। सबने विरोध किया था पर आपने मुझे पूरी स्वतन्त्रता दी थी अपने मन की करने की। मैंने घर छोड़ा तो केवल आपको बताया था । वैसे जब कहीं भी मैं जाती थी तो आप मेरी तैयारी कराते हुए समझाती थी कि मुझे वहां क्या और कैसे करना है। मुझे बताइए प्लीज उस दिन आप बुत क्यों बन गई थी"?
सामाजिक प्रथाओं के विमुख किए जाने वाले तरीकों का विरोध तो लाजिमी है। ऐसा सोलोगैमी अपनाने वाले व्यक्तियों के साथ भी संभावित है, विनोद ने अपने विचार व्यक्त किए और बताया कि एक रात 12:00 बज रहे थे, चित्रा सब काम निपटा करके बस सोने जा रही थी। तभी कॉल बेल बजने लगी। इतनी रात कौन आया होगा? मकान मालिक ने प्रथम तल और द्वितीय तल की घंटियां अगल-बगल ही लगा रखी थी जिससे अक्सर लोग मेरे वाली घंटी बजा देते थे। शायद किसी ने गलती से घंटी बजा दी होगी। चित्रा ने इग्नोर मारा लेकिन अगले ही क्षण फिर से घंटी बजने लगी। ऊपर से झांक के देखा तो उसकी खुशी का कोई ठिकाना ही नहीं रहा। उसके बचपन की दोस्त रूपाली खड़ी थी । वह वहीं से चिल्ला पड़ी और दौड़ते हुए नीचे पहुंचकर झट से उसे अपने सीने से चिपका लिया । तुम यहां कैसे ? तूने मेरा पता कैसे पाया ? इतने दिनों बाद मुझे इतनी खुशी मिली है जिसकी मैं कल्पना नहीं कर सकती चित्रा ने मित्रवत स्वागत किया। फिर उसने भाव-विह्वलता में अभिव्यक्त अपने सारे उदगार उजागर करने शुरू कर दिए, " रूपाली मैं तुम्हें बताती हूं कि शादी हेतु काफी दिनों से चल रही खींचातानी को किस तरह मैंने विराम लगाया था। उसने बताया कि मैं बार-बार लड़कों के सामने पेश होते होते तंग हो चुकी थी । एम बी ए के अंतिम वर्ष में ही मेरा चयन एक बड़ी कंपनी में एग्जीक्यूटिव पद पर हो गया था, अच्छी खासी सैलरी मिलने लगी थी। फिर मम्मी पापा ने मेरी शादी ढूंढना शुरू कर दिया । उन लोगों को जो लड़का पसंद आता उनके परिवार वाले मुझे देखने आते और फिर मेरा साक्षात्कार का दौर चलता । मैं इस तरह से शादी तय करने की हमेशा विरोधी रही थी परंतु अपने घर में ही मेरा कोई बस नहीं चल रहा था। ज्यादातर लोग ऐसी लड़की की तलाश में होते थे जो अच्छी कमाई करती हो , खूबसूरत भी खूब हो , खाना भी सब बना लेती हो, घर की सजावट भी करती हो, सभी लोगों की सेवा करती हो और बच्चे भी पालती हो। ज्यादातर साक्षात्कार इन्हीं बातों पर आधारित होते थे। एक देवी जी ने तो प्याज देते हुए मुझे काट कर दिखाने को कहा था। जब मैंने प्याज काट दिया कि उन्होंने कमेंट किया कि मैंने ज्यादा छिलके उतार दिए हैं, इससे प्याज का खर्च बढ़ जाएगा। मेरी तो इच्छा हुई कि उसके भी छिलके उतार दूं "।
चित्रा ने अपनी कहानी जारी रखी, "लगभग 10-12 साक्षात्कार के बाद भी जब कहीं शादी नहीं तय हुई तो मैंने बगावत करने की ठान ली। उसके बाद जब कोई लड़का मुझे देखने आता तो मैं उसका ही इंटरव्यू लेने लगती जो किसी को नहीं भाता था। यहां तक कि मेरे माता-पिता को भी अच्छा नहीं लगता था। सभी नाराज हो गए थे। फिर तो बुआ, मौसी , मामा, फूफा सभी ने मुझ पर इतने ताने मारे कि मैं रात रात भर रोती रहती थी। मोहल्ले वाले भी कम नहीं थे। ऑफिस का भी कार्य नहीं कर पाती थी। आए दिन मुझे ऑफिस में प्रेजेंटेशन देना होता था। ठीक से कार्य न कर पाने के कारण मुझे अक्सर वार्निंग मिल जाएगा करती थी। मेरी सूनी मांग भी मेरे पर ही अट्टहास करने लगी थी"।
फिर अचानक एक दिन मैंने निर्णय कर लिया कि मैं स्वतंत्र रहूंगी, किसी से शादी नहीं करूंगी। मेरी जिद्द देखकर घरवालों से मेरी काफी कहा सुनी हो गई, मेरी पिटाई भी हुई थी । मैंने किसी के साथ घर छोड़कर भाग जाने की भी योजना बनाई लेकिन मुझ में इतनी हिम्मत नहीं आई। इसलिए मैंने अपने आप से ही विवाह करने का फैसला कर लिया और सभी को बता दिया कि मैं सोलोगैमी बनूंगी।
मेरे पिता और चाचा काफी नाराज हुए, पर मैं अपनी जिद पर अड़ी रही। मुझे ओझा और डॉक्टरों के पास भी ले जाया गया कि शायद मेरा दिमाग खराब हो गया हो लेकिन मैं भी अपनी बात पर अड़ी रही।
बचपन से पसंद गुड्डा गुड्डी के विवाह का खेल मेरे मन में गहराई से बस गया था। बस उसी तरह मैं भी सजना चाहती थी। शादी की कोई तमन्ना नहीं थी पर दुल्हन बनने का ख्वाब जरूर था। मैंने मोहल्ले, ऑफिस और रिश्तेदारी में खबर फैला दी, यहां तक कि मीडिया वालों को भी बता दिया। मीडिया वाले सुनते ही हरकत में आ गए और नमक मिर्च लगाकर जंगल में आग की तरह इस खबर को फैला दी। मम्मी पापा ने मुझसे बात करना बंद कर दिया, लोग फोन करके उल्टे सीधे प्रश्न पूछने लगे जिनका उत्तर मेरे पास नहीं था। कुछ लोग तारीफ कर रहे थे मेरी लेकिन ज्यादातर लोग इसका विरोध ही कर रहे थे। बड़ी मुश्किल से मैं मम्मी पापा को तैयार करा पाई थी। लोग कह रहे थे कि मैं संस्कृति का विनाश कर दूंगी।
मैंने शहर की सबसे बड़े पंडित से शादी का मुहूर्त लिखवाया। वह तो बिना लड़के का नाम बताएं मुहूर्त ही नहीं निकाल रहा था लेकिन ज्यादा दक्षिणा लेकर तिथि, समय सब कुछ बता दिया। इतना ही नहीं उसने एक मंदिर में सारी व्यवस्था कराने का वादा करते हुए मंदिर के पुजारी से भी बात करा दिया।
यहां पैसे के लालच में मेरा कोई विरोध नहीं हुआ लेकिन जब कुछ समाज सुधारक हस्तक्षेप करने लगे तो पंडित और पुजारी दोनों ने अपने हाथ खींच लिए। उन लोगों ने भी भरपूर विरोध किया और इस तरह की शादी को रोकने का प्रयास करने लगे। डिनर के लिए जो बैंक्विट हॉल मैंने बुक कराया था उसके मालिक ने मेरा विरोध होते देख मेरे पैसे वापस कर दिए और हाथ जोड़ लिए लेकिन मेरी tसहेली सुशीला ने मेरा साथ नहीं छोड़ा। उसी की मदद से मैंने सारी रीति रिवाज से अपनी मांग भर पाई थी। अपने मोहल्ले में बवाल के अंदेशा से मैं कुछ लोगों को लेकर एक हिल स्टेशन चली गई। जब मैं वापस लौटी तो मेरी मांग में सिंदूर था। मेरी मां तो खुश हुई पर पापा ने अपने को बहुत मुश्किल से संभाला था।
मैंने अपनी नौकरी छोड़ दी तथा बैंगलोर आ गई । यहां मुझे तुरंत दूसरी नौकरी मिल गई थी। अब मैं लॉज में रहने लगी थी । शुरू में तो मुझे किसी ने कुछ नहीं कहा मगर जल्दी ही लोगों ने मुझे पहचान लिया और फिर तरह तरह की बातें करने लगे। मनचले लोग मेरे चारों तरफ चक्कर भी लगाते थे । उन्हें लगता था कि शायद मैं उनसे पट जाऊंगी। वे अपना प्रपोजल भेज रहे थे और परेशान हो रही थी।
मम्मी पापा ने हमें पहले ही छोड़ दिया था, भाई विदेश चला गया था। मेरे घर भी कोई आता जाता नहीं था, इसलिए मुझे सहारा और सलाह देने वाला कोई नहीं था।
मैं अकेले रहते रहते ऊबने लगी थी इसलिए अकेलापन दूर करने के लिए मैंने सोचा कि अनाथालय जाकर किसी बच्चे को गोद ले लूं। मैंने एक बच्चे को पसंद कर लिया, प्रबंधक ने फॉर्म भरवाया और आईडी लगाने को कहा। फॉर्म पर पति के नाम के आगे खाली जगह छोड़ देने का सही कारण जब मैंने बता दिया तो उसने बच्चा देने से मना कर दिया।
चित्रा की आंखें भर आई थी , उसने बताया कि पिछले कोरोना की लहर में वह बहुत बीमार पड़ गई थी और बड़ी मुश्किल से मेरी जान बची थी । कोई देखभाल करने वाला नहीं था।
चित्रा ने रूपाली से पूछा, " समझ में नहीं आता कि मैं कैसे अकेले जिंदगी गुजार पाऊंगी। मुझे किसी ने सुझाव दिया था कि मैं किसी को अपने घर में रूम पार्टनर की तरह रख लूं। मैंने एक वर्किंग वुमन को अपने साथ रखा था जो बहुत प्यारी थी । उसका नाम रेखा था। वह भी शादी नहीं करना चाहती थी। कुछ दिन बाद मुझे पता चला कि वह एक लैसबियन थी। वह मुझसे अक्सर लिपटा चिपटी करती रहती और चाहती थी कि मैं मर्द की तरह उससे प्यार करूं। यह सब मुझे घिनौना लगता था इसलिए मैंने उसे अपने घर से भगा दिया"।
उसने आगे कहा, "मेरा मन बहुत कुछ करने को करता है लेकिन मैं संस्कार की डोर पकड़े हुए आगे बढ़ना चाहती हूं। मुझे लगता है कि मेरी एक छोटी सी गलती पूरे जीवन को कष्टकारी बना दिया है। शायद लोग सही कहते हैं कि जीवन की राह अकेले काटना आसान नहीं होता। जो इस कठिन राह पर अकेले चलने का हौसला करते हैं उनके लिए कई चुनौतियां खड़ी हो जाती हैं विदेशों की बात अलग है जहां लोग अपने ढंग से अकेलेपन का आनंद लेते हैं। इन्हीं मजबूरियों के चलते मैं लिव इन रिलेशनशिप की सोचने लगी थी। बात करते-करते दोनों नींद के आगोश में चले गए।
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