Golu Bhaga Ghar se - 21 in Hindi Children Stories by Prakash Manu books and stories PDF | गोलू भागा घर से - 21

Featured Books
  • રાશિચક્ર

    આન્વી એક કારના શોરૂમમાં રિસેપ્શનિસ્ટ તરીકે નોકરી કરતી એકત્રી...

  • નિતુ - પ્રકરણ 31

    નિતુ : ૩૧ (યાદ)નિતુના લગ્ન અંગે વાત કરવા જગદીશ તેના ઘર સુધી...

  • લવ યુ યાર - ભાગ 65

    સાંવરી તો આ સમાચાર સાંભળીને જાણે પાગલ જ થઈ ગઈ અને તેમાં પણ પ...

  • બુદ્ધિ વગરનું અનુકરણ

      એક દિવસ એકનાથતા ઘરમાં ચોર ચોરી કરવા ગુસ્યા ને પોતે લઈ જાવા...

  • મથુરા, વૃંદાવન

    મથુરા, વૃંદાવનમથુરા શ્રીકૃષ્ણ જન્મસ્થાન, વૃંદાવન કસી ઘાટ, પ્...

Categories
Share

गोलू भागा घर से - 21

21

वह आलीशान नीली कोठी

डिकी नाम का वह आदमी गोलू को सचमुच एक भव्य, विशालकाय नीली कोठी में ले आया। इतनी आलीशान कोठी...कि वह हर ओर से बस चमचमा रही थी। सामने एक से एक खूबसूरत कारें।

कोठी में प्रवेश करते ही एक लकदक-लकदक करता रिसेप्शन। बालों में सुर्ख गुलाब का फूल लगाए एक सुंदर-सी लड़की रिसेप्शन पर फोन अटैंड कर रही थी। कतार में रखे चार या पाँच फोन। उनमें से कोई न कोई बजता ही रहता।

गोलू के साथ डिकी के अंदर प्रवेश करते ही रिसेप्शनिस्ट ने मुसकराकर कहा, “गुड नाइट डिकी सर!”

डिकी ने परिचय कराते हुए कहा, “माई न्यू फ्रेंड गोलू...उर्फ गौरव कुमार।...एंड गोलू, शी इज कमलिनी...कमलिनी सेठ।”

अंदर एक बड़ा-सा हॉल था जिसमें कई सोफे पड़े थे। डिकी गोलू के साथ एक सोफे पर बैठ गया। बोला, “गोलू, यही हमारा ऑफिस है। यहीं अंदर वाले कंपार्टमेंट में हम रहते हैं! क्यों, अच्छा है न!”

“हाँ, बहुत!” गोलू अचरज से इस कोठी की चमचम चमकती, वार्निश पुती दीवारों पर नजर डालते हुए बोला। सोचने लगा, ‘यह तो ऐसी जगह है, जहाँ हर चीज अपनी जगह सही सुरुचिपूर्ण है। मैं पता नहीं, यहाँ टिक पाऊँगा भी या नहीं? फिर यहाँ तो हर कोई अंग्रेजी बोलता है। मैं तो इतनी अच्छी अंग्रेजी नहीं बोल सकता।’

फिर थोड़ी देर में चाय आ गई। गोलू डिकी के साथ बैठकर चाय पीने लगा। डिकी ने गोलू को चाय बनाना सिखाया—ऐसे ही टी-बैग डालो, ऐसे मिल्क...शुगर...!

चाय पीने के बाद डिकी ने कहा, “गोलू, तुम यहीं बैठकर अखबार और पत्रिकाएँ देखो। मैं अभी थोड़ी देर में आता हूँ। तुम्हें अभी पॉल साहब से भी मिलवाना है। मिस्टर विन पॉल, हमारे बिग बॉस!

डिकी चला गया तो गोलू ने निगाहें घुमाकर इधर-उधर देखा। हॉल में बहुत से लोग थे...पर हर आदमी अपने काम में लगा था। कोई टाइप कर रहा था, कोई नोट्स ले रहा था। कोई किसी को कुछ समझा रहा था...कोई फोन कर रहा था। हर आदमी व्यस्त था, साथ ही हर आदमी चौकन्ना भी था। आपस में लोग एक-दूसरे से बहुत-कम बात कर रहे थे।

गोलू ने सामने की मेज पर पड़ा ‘हिंदुस्तान टाइम्स’ उठा लिया और खबरों की दुनिया में डूब गया। उन्हीं में एक खबर भारत की रक्षा तैयारियों के बारे में हो रही जासूसी की थी। भारत की सुरक्षा से संबंधित गोपनीय जानकारियाँ दूसरे मुल्कों तक कैसे पहुँच रही हैं? भारत के उच्च सैन्य अधिकारी इस बात को लेकर चिंतित थे और खोजबीन में जुटे थे।...तो क्या थोड़े से फायदे के लिए अपने देश के ही लोग ये सूचनाएँ विदेशों तक पहुँचा रहे हैं? गोलू हैरान होकर सोच रहा था।...वह बड़ी उत्सुकता से पढ़ने लगा।

कुछ ही देर में डिकी आया। बोला, “चलो गोलू, तुम्हें मिस्टर पॉल बुला रहे हैं...!”

इस हॉल के अंदर एक और काफी लंबा-चौड़ा कमरा था। वहाँ मिस्टर विन पॉल एक बड़ी-सी आराम कुर्सी पर बैठे थे—किसी शान-शौकत वाले राजा की तरह।

मिस्टर विन पॉल के ठाट-बाट देखकर गोलू मन ही मन कुछ आतंकित-सा हो गया। डिकी बार-बार उनके आगे सिर झुकाकर बात करता था और ‘सर...सर...!’ कहकर कुछ समझाने की कोशिश कर रहा था।

मिस्टर पॉल सीरियस थे, पर बीच-बीच बीच-बीच में कभी-कभी मुसकरा भी पड़ते थे और ‘वैल डन...वैल डन’ कहकर डिकी को शाबाशी देने लगते थे।

गोलू सोचने लगा, यह गंजा आदमी जिसके आगे डिकी भी झिझकता हुआ ‘सर...सर...’ कहकर बात कर रहा है, कितना बड़ा आदमी होगा।