IMANDARI in Hindi Motivational Stories by Shwet Kumar Sinha books and stories PDF | ईमानदारी

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ईमानदारी

“हैलो, मिस्टर रमण! मैं इंसपेक्टर मुकुल बोल रहा हूँ। क्या आप कोतवाली आ सकते हैं?”- फोन के दूसरी तरफ से इंसपेक्टर ने कहा।

“कोतवाली! पर क्यूं?”- पैंतालीस वर्षीय रमण ने हड़बड़ाते हुए पुछा।
“आप कोतवाली आयें फिर यही सारी बातें होंगी।”- बोलकर इंसपेक्टर ने फोन रख दिया। पर रमण का मन अशांत हो गया। हालांकि इंसपेक्टर के कॉल करने की वजह का अंदाजा उन्होने लगा लिया था। दरअसल रमण की छोटी बेटी आभा का चयन भारतीय रिजर्व बैंक में अधिकारी पद पर हुआ था और अब केवल पुलिस सत्यापन होना बाकी था, जिसके लिए निकटतम थाने से कोई सूचना आने का वे सभी इंतजार कर रहे थे। पर रमण साहब परेशान इसलिए हुए कि न तो इंसपेक्टर ने उन्हे थाने बुलाने की कोई वजह बतायी और न ही अपने बातों में कहीं से भी पैसे की मांग का कोई जिक्र किया।
“क्या हुआ जीजा जी? आप इतने परेशान क्यूं हो गए! इतने दिनों से इसी प्रतीक्षा में तो थे कि कब थाने से कॉल आए। ये तो अच्छी बात है कि खुद पुलिस ने ही फोन करके आपको बुला लिया!”- रमण के साले रौशन लाल ने उन्हे चिंतित देखकर समझाने की कोशिश की। वह रमण के पास ही बैठा था जब थाने से कॉल आया।
“नहीं रौशन, मैं परेशान इसलिए हूँ कि इस्पेक्टर ने कॉल करने की कोई वजह नहीं बतायी। केवल कोतवाली आने की बात बोलकर फोन काट दिया! अगर पुलिस को आभा के बारे में सत्यापन और जांच-पड़ताल करना रहता तो वह अपने रिकॉर्ड से कर सकती थी या ज्यादा से ज्यादा मुहल्ले में पुछताछ करती। पर मुझे बुलाया है तो जरुर कुछ बात होगी!” – वर्णहीन चेहरे से रमण ने अपने मन की बात बतायी। सच भी है कि यूं अचानक पुलिस थाने में बुलाए जाने से कोई भी आम नागरिक एकबारगी तो जरुर घबरा जाता है, रमण भी वैसे ही हुए।
“आपकी चिंता लाजिमी है, जीजाजी। पर परेशान न हों! अगर पुलिस पैसे की डिमांड करेगी तो मैं हूँ न! आप चलिए मेरे साथ थाने! मिलकर आते हैं इंसपेक्टर से! देखते हैं, क्या बोलता है!”- रौशन लाल ने रमण के कांधे पर हाथ रखकर कहा। तभी भीतर कमरे से निकलकर रमण की छोटी बेटी आभा बाहर आयी।
“मामा जी प्रणाम! कब आये आप? हमें तो पता ही नहीं चला! और....घर पर सब कैसे हैं?”- रौशन लाल का चरणस्पर्श करते हुए आभा ने मुस्कुराते हुए कहा।
“खुश रहो बिटिया! घर पर सब अच्छे हैं! मामी तो तुम्हारी प्रशंसा करते नहीं थकती। सन्नी को हमेशा तुम्हारा उदाहरण देती रहती है कि लड़की होकर, घर के कामकाज करके भी तुमने इतना बड़ा ओहदा हासिल किया! बिटिया, तुमने हम सबका सिर फक्र से उंचा कर दिया! शाबाश, खुब तरक्की करो!”- अपनी भांजी को शाबाशी देते हुए रौशन लाल ने कहा।
“नहीं मामा जी, ऐसे काम नहीं चलने वाला!....”- आभा ने अपनी बात अभी पूरी भी नहीं थी कि पिता रमण ने उसे रोकते हुए कहा – “अच्छा बेटा, अभी हमें थाने जाना है! लौटकर आता हूँ तो इत्मीनान से मामा के साथ जी भरकर बातें कर लेना!”
“थाने जाना है!!!”- भौवें चढ़ाते हुए आभा बोली और उसकी सवालिया निगाहें पिता पर टिक गयी। थाने जाने की वजह तो उसे भी समझ में आ चुकी थी। पर घर की माली हालत अच्छी न होने की वजह से चिंतित थी कि पता नहीं पुलिस सत्यापन के नाम पर थाने वाले कितने पैसे ऐठेंगे।
“हाँ बेटा! थाने से इंसपेक्टर ने फोन करके बुलाया है। जाकर देखता हूँ, क्या बोलता है?”- चिंतित चेहरे से रमण ने कहा।
“ओह...इसमें इतना उदास होने वाली कौन-सी बात है! अच्छी बात है न कि पुलिस वेरिफिकेशन हो जाएगा तभी तो बैंक की तरफ से नौकरी का बुलावा पत्र आएगा। और जहाँ तक रही पैसे की बात तो उसकी चिंता आपलोग मत करो! मैं देख लुंगा! चलिए जीजाजी, थाने से होकर आते हैं!”- रौशन लाल ने कहा फिर आभा से चाय और पकौड़े तैयार रखने को कह रमण को साथ लेकर थाने की तरफ बढ़ गया।
थोड़ी ही देर में एक ऑटो थाने के बाहर आकर रुकी और जीजा-साला की जोड़ी ने भीतर प्रवेश किया।
इंसपेक्टर मुकुल अपने चैम्बर में बैठा साथी पुलिसवालों के साथ किसी केस पर विचार-विमर्श कर रहा था जब रमण ने दरवाजे पर दस्तक दिया।
“सर, मैं रमण हूँ। वो.....आपने मुझे फोन करके मिलने को कहा था।”- दरवाजे पर खड़े रमण ने कहा जिसके शब्दो में झिझक और अंजान भय के मिश्रित भाव थे।
“हाँ…हाँ, मिस्टर रमण! आइए...बैठिए।” – इंसपेक्टर मुकुल ने अपने सामने पड़ी कुर्सी की तरफ इशारा करते हुए कहा। रमण ने अपने साले का परिचय दिया और दोनों कुर्सी पर बैठ गए। कमरे में मौजुद साथी पुलिसवालों को इंसपेक्टर मुकुल ने थोड़ी देर बाद आने को कहा और वे सभी कक्ष से बाहर चले गए। अब कक्ष में इंसपेक्टर मुकुल, रमण और रौशन लाल के अलावा कोई न था।
इंसपेक्टर ने टेबल पर पड़ी एक फाइल उठाकर अपने सामने रखी और खोलकर उसमें देखता हुआ बोला –“ह्म्म.....बधाई हो, रमण साहब! कौन कहता है कि लड़कियां किसी से कम होती हैं! आपकी बेटी ने तो पूरे शहर का नाम रौशन कर दिया! बैंक में इतने उंचे अधिकारी के पद पर चुनी गई है फिर भी आपका चेहरा इतना लटका हुआ क्यूं है! अरे साहब....ये तो खुश होने वाली बात है!”
“हाँ सर! हम गरीब माँ-बाप से जितना बन पड़ा, उसके भविष्य के लिए किया। उसने भी जी-जान से मेहनत की और सफल होकर हम सबका मान बढ़ाया।”- रमण ने कहा और आँसू उसकी आँखो में भरभरा गए।
“अरे अरे...इसमें दुखी होने वाली कौन सी बात है! ये तो फक्र की बात है भई...!! आपकी बेटी ने अपनी मेहनत और लगन से आपके सारे दुख दूर कर दिए!”- इंसपेक्टर मुकुल ने मुस्कुराते हुए कहा।
“जी, पर हमारा कोई बेटा नहीं है, केवल....”- रमण ने बोलना शुरु ही किया था कि इंसपेक्टर ने उसे टोकते हुए कहा – “मुझे मालूम है कि आपका कोई बेटा नहीं है। दो बेटियां ही है। पर दिल छोटा मत करिए साहब! आज बेटा और बेटी में कोई अंतर नहीं। सच तो यह है कि बेटियां रिश्ते और कर्तव्य के प्रति ज्यादा इमानदार होती है!”
इंसपेक्टर की बातो से रमण को वह भला इंसान लगा। पर मन में डर अभी भी बरकरार था कि जब पुलिस ने अपने स्तर से पूरी छानबीन कर ली है तो फिर उसे थाने क्यूं बुलाया? जरुर पैसे की डिमांड करेगा!
“दरअसल रमण साहब, मैने आपको यहाँ केवल क्रॉसचेक के लिए बुलाया है। बाकी पड़ताल तो मैंने अपने स्तर से कर ली है। कोई सपोर्टिंग डॉक्युमेंट आप साथ लेकर आए हैं क्या?” –रमण की तरफ देखकर इंसपेक्टर मुकुल ने पुछा। रमण ने भी साथ लाए डॉक्युमेंट्स की छायाप्रति की फाइल इंसपेक्टर की तरफ बढ़ा दिया। फाइल लेकर इंसपेक्टर ने सारे कागजात देखे और अपने पास ही रख लिया।
रमण और रौशन लाल अभी इसी इंतजार में थे कि कब इंसपेक्टर पैसे के लिए अपना मुंह खोलेगा। पर इससे उलट इंसपेक्टर ने उनकी तरफ देखते हुए कहा- “ठीक है रमण साहब! मैं जल्दी ही अपनी रिपोर्ट बनाकर उपर फॉर्वर्ड किए देता हूँ। आप निश्चिंत होकर घर जाइए और बेटी को नौकरी पर भेजने की तैयारी करिए।” कहकर इंसपेक्टर फाइल में कुछ लिखने में व्यस्त हो गया।
रमण अब बडे उधेड़बून में था। इंसपेक्टर ने पैसे तो मांगे ही नहीं! अब वो क्या करे? उसके मन-मस्तिस्क में पुलिस की जो छवि बनी थी, उसके अनुसार वह यही सोच रहा था कि क्या कुछ पैसे इंसपेक्टर के सामने रखना ठीक होगा! लेकिन डर भी था कि कहीं इंसपेक्टर भड़क गया तो! फिर इंसपेक्टर ने तो उससे काफी अच्छा सलूक किया और कहीं से भी उसमें बईमानी की कोई झलक नहीं दिखी। यही सब सोचते रमण अपने साले रौशन लाल के साथ थाने से बाहर आ गया।
“बड़ा अजीब पुलिसवाला था ये! पैसे तो मांगे ही नहीं इसने! अब क्या करे! जगजाहिर है कि बिना पैसे लिए पुलिसवाले कोई काम नहीं करते! कहीं आभा का रिपोर्ट ऊपर भेजने में कोई अड़चन न आ जाए!”- थाने के बाहर खड़े रमण ने अपने साले रौशन लाल से कहा।
“वही तो मैं भी सोच रहा हूँ जीजा जी! उस पुलिसवाले की बातों से मुझे भी कुछ समझ में नहीं आया। उसने पैसों का तो कहीं भी कोई जिक्र ही नहीं किया और न ही कोई इशारा दिया! एक काम करिए, चलिए फिर से चलते हैं उस इंसपेक्टर के पास और बच्चों को मिठाई खाने के नाम पर कुछ पैसे दे आते हैं!”- रौशन लाल ने कहा और दोनों जीजा-साले इंसपेक्टर मुकुल के चैम्बर की तरफ बढ़ गए।
अपने चैम्बर में बैठा इंसपेक्टर मुकुल अभी भी फाइलों में सिर गड़ाए हुए था। दरवाजे पर खड़े रमण और रौशन लाल पर जब नज़र पड़ी तो उसने पुछा –“कहिए रमण साहब? कुछ कहना है क्या?”
“न...न नहीं, सर! कुछ नहीं कहना है!”- रमण ने अटकते हुए कहा। उसकी हिम्मत नहीं हुई कि वह पैसे के लिए कुछ बोल सके और उल्टे पांव इंसपेक्टर के कक्ष से बाहर गया। लेकिन बेटी की उज्जवल भविष्य का सवाल था। ऐसे कैसे जाने देता! थाने में चिंतित खड़ा वह अभी कुछ सोच ही रहा था कि इंसपेक्टर मुकुल किसी काम से अपने कक्ष से बाहर आया और उसकी नज़र चिंतित खड़े रमण और रौशन लाल पर पड़ी। हालांकि उसने कोई पुछमात न की और हाथो में फाइल लिए वापस अपने कक्ष के भीतर लौट गया।
कुछ ही पल बाद। हाथ में एक लिफाफा लिए रमण इंसपेक्टर के कक्ष के दरवाजे पर खड़ा था।
“एक्सक्युज़ मी, सर!”- रमण ने झिझकते हुए कहा।
“जी, रमण साहब! बताएं? क्या हुआ? मैंने कहा न, आपकी रिपोर्ट जितनी जल्दी हो सके मैं भिजवा दुंगा!”- इंसपेक्टर मुकुल ने रमण को बताया।
“सर, ये बच्चों के मिठाई खाने के लिए कुछ पैसे हैं। प्लीज़, इसे रख लें!”- रमण ने पैसों से भरा लिफाफा इंसपेक्टर की तरफ बढ़ाते हुए कहा।
अपनी कुर्सी से उठकर इंसपेक्टर मुकुल ने रमण को सामने पड़ी खाली कुर्सी पर बिठाया और पानी से भरा गिलास उनकी तरफ बढ़ाता हुआ बोला- “...तो मेरा अंदाजा सही था! आपकी उधेड़बून देखकर मैं आपके मन की बात समझ रहा था।”
“वो....सर! बड़ी मेहनत करके बेटी को सफलता के मुकाम तक लाकर पहुंचाया है। नहीं चाहता कि कहीं भी कोई अड़चन आए। आपने तो पैसे मांगे ही नहीं तो मैं परेशान हो गया कि क्या करूं क्या ना करूं! प्लीज़ सर, आप इन पैसों को रख लिजिए!”- रुंध गले से रमण ने अपने मन की बात कही।
“रमण साहब, मैं समझता हूँ कि कुछ मुट्ठी भर लोगों की वजह से पुरी पुलिस का नाम खराब हो रखा है। पर सारे पुलिसवाले एक जैसे नहीं होते! न तो मैं रिश्वत लेता हूँ और न ही अपने थाने में किसी को लेने देता हूँ। आप निश्चिंत होकर घर जाएं और बेटी को नौकरी पर भेजने की तैयारी करें।”- रमण के कांधे पर हाथ रखकर इंसपेक्टर मुकुल ने उन्हे समझाया।
अबतक रमण यही समझता आया था कि सारे पुलिसवाले घूसखोर होते हैं। पर इंसपेक्टर मुकुल की इतनी इमानदार छवि देखकर उसे अपनी गलती का एहसास हुआ और अनायास ही उसके हाथ इंसपेक्टर के समक्ष जुड़ गए। रमण के जुड़े हाथों को थामते हुए इंसपेक्टर उठा और खुद उसे अपने साथ लेकर थाने के बाहर तक आया और बिना कोई रिश्वत लिए विदा किया।

रिश्वत लेना और देना दोनों अपराध है।”

लेखक: श्वेत कुमार सिन्हा
© SCA Mumbai