अपने पिता के बारे में कुमुद का प्रश्न सुनते ही तिलक ने तुरंत ही कहा, "नहीं-नहीं, हैं वह इस दुनिया में हैं लेकिन मुझे अपना बेटा नहीं मानते।"
"लेकिन क्यों?"
"जानना चाहती हो?"
तभी ट्रे में चाय की दो प्याली लेकर रागिनी वहाँ आ गई। वैसे भी बेचैन रागिनी कान लगा कर उनकी बातें सुन रही थी। जानना चाहोगी सुनते ही रागिनी के तो होश ही उड़ गए। रागिनी का हाथ ट्रे पकड़े हुए काँप रहा था। उन्होंने टेबल पर चाय रखते हुए कहा, "तिलक अंदर आओ।"
"नहीं माँ "
"तिलक शांत रहो, तुम कुछ नहीं बोलोगे।"
कुमुदिनी दंग होकर उन दोनों के चेहरे की तरफ देख रही थी। उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था कि आख़िर चल क्या रहा है?
"नहीं माँ आज मुझे बोल लेने दो। यदि ज़रुरी नहीं होता तो मैं हरगिज़ नहीं बोलता।"
"क्या ज़रूरी है तिलक और क्यों?"
"माँ वह सब मैं आपको बाद में समझाऊँगा।"
"अभी आप आओ," तिलक ने रागिनी का हाथ पकड़ कर उन्हें बिठाते हुए कहा, "माँ बैठो हमारे पास।"
फिर तिलक ने कहा, "कुमुद यह मेरी माँ हैं जिन्होंने पूरी दुनिया से लड़ कर मुझे जन्म दिया है क्योंकि मेरे पिता मेरी माँ को धोखा देकर भाग गए थे। पाँच साल तक प्यार के वादे करके, विवाह के वादे करके मेरी माँ के प्यार का उन्होंने गला घोंट दिया था, अपनी निशानी के रुप में माँ के पेट में मुझे छोड़ कर। इसलिए मेरे नाम के पीछे पिता का नाम नहीं मेरी माँ का नाम तिलक रागिनी गुंजन आता है। लालच में आकर उस इंसान ने किसी लखपति की बेटी से विवाह कर लिया। उसने जिससे भी विवाह किया उसमें उस स्त्री की कोई ग़लती नहीं थी।"
"लेकिन तिलक तुम यह सब मुझे क्यों बता रहे हो? मेरा इस सबसे क्या लेना देना है?"
"कुमुदिनी मुझे देखकर क्या तुम्हें कभी किसी और चेहरे की याद नहीं आई?"
कुमुदिनी उठ कर खड़ी हो गई। उसकी आँखों में एक रील चलने लगी। कभी उसे उसके पिता दिखाई देते, कभी तिलक, कभी पिता, कभी तिलक। उसकी आँखें इस समय झरना बन गई थीं। जिसमें से आँसू प्रस्फुटित हो रहे थे।
तिलक ने उसका हाथ पकड़ कर उसके सर पर हाथ फिराते हुए उसे फिर से बिठाया और कहा, "कुमुद मैंने माँ को वचन दिया था कि यह राज़ मैं किसी को नहीं बताऊँगा क्योंकि मेरी माँ चाहती है कि आज भी समाज और परिवार के सामने उस इंसान की नज़र ना झुके। इस उम्र में अपमान का कड़वा घूंट उसे ना पीना पड़े। लेकिन तुम्हें यह बात बताना ज़रूरी था और इसका कारण तुम ख़ुद जानती हो।"
"कुमुदिनी मैं तुम्हारा भाई हूँ और तुम मेरी बहन। कुमुद क्या अब भी तुम कहोगी कि मैं चुनाव से अपना नाम वापस ले लूँ। मैं जानता हूँ वरुण को जिताने के लिए वीर प्रताप का बहुत सपोर्ट है वह उसे राजनीति में लाना चाहते हैं और उसकी शुरुआत तो कॉलेज लाइफ से ही हो जाती है। मेरा सपना भी यही है मैं वीर प्रताप को दिखाना चाहता हूँ कि उनके बिना भी मैंने अपना अस्तित्व बनाया है।"
रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)
स्वरचित और मौलिक
क्रमशः