Peshi number 68 - 2 in Hindi Thriller by Laxman gour Gour books and stories PDF | पेशी नम्बर 68 - 2

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पेशी नम्बर 68 - 2

- यह लड़ाई केवल एक हरदेव सिंह की नहीं है,न जाने कितने ईमानदार हरदेव सिंह बेईमान और भ्रष्टाचारों की बलि का बकरा बन जाते हैं। मैं उन सभी ईमानदार ऑफिसर की तरफ से.......

" अचानक से यशोदा अपनी कुर्सी से खड़ी होती है।पूरा खड़ा होने से पहले ही लड़खड़ा जाति है।और उसका एक हाथ हर्षवर्धन बाबू के सामने रखे पानी के गिलास से टकराता है। गिलास नीचे गिरता है। आधा पानी वकील बाबू की गोद में और आधा फर्श पर बिखर जाता है कांच का गिलास भी टूट कर बिखर जाता है। जितने भी व्यक्ति ऑफिस में मौजूद होते हैं। सभी के सभी वकील बाबू और देवकी की तरफ देखने लगते हैं। और सभी के मुँह से एक ही स्वर निकलता है। जरा संभल के संभल के......."" वकील बाबू कुर्सी से खड़े हो जाते हैं और अपने कोट से पानी को झाड़ते हुए "
- कोई बात नहीं - कोई बात नहीं आराम से।

" शर्मिंदगी भरे स्वर "
- सॉरी सर मेरा एक पैर आर्टिफिशियल है आज से 6 महीने पहले एक्सीडेंट में मेरा एक पैर कट चुका था
" अचानक आश्चर्यचकित होकर " -ओ माय गॉड! बैठो आप आराम से बैठो
जसोदा वापिस कुर्सी पर बैठ जाती है।

"इतने में बाहर से आवाज आती है। सर, सर, जमादार बाबू अपने राजीव जी क्लाइंट का नाम अनाउंस कर रहे हैं"

( आवाज लगाते हुए झट से काला कोट पहने हुए एक नौजवान ऑफिस के अंदर प्रवेश करता है।वह काउंटर के सामने आकर खड़ा हो जाता है।)

हर्षवर्धन बाबू अपने हाथ पर बंधी हुई घड़ी की तरफ देखते हैं।और अगले ही क्षण कंप्यूटर पर बैठे हुए गुप्ता जी की तरफ हाथ बढ़ाते हैं।गुप्ता जी बिना बताइए सब कुछ समझ जाते हैं। और एक फाइल खड़े होते हुए उनके हाथों में थमा देते हैं।वकील बाबू फाइल को अपने हाथ में लेते हैं।कोट पर गिरे हुए पानी की तरफ देखते हुए ऑफिस से बाहर निकल कर देखते है।

हाईकोर्ट के सामने काफी चहल-पहल शुरू हो जाती है लोग इधर-उधर अपने काम की भाग दौड़ में लगे हुए होते हैं।कोर्ट के ठीक सामने राइट साइड मे तीन पुलिस की गाड़ियां खड़ी होती है। कुछ पुलिस वाले बाहर तो कुछ अंदर बैठे हुए होते हैं।बीच वाली गाड़ी में पीछे से साफ दिखाई देता है। एक हटा खट्टा नौजवान, भारी-भरकम शरीर,लगभग 6 फुट हाइट, बड़ी-बड़ी आंखें, बाल कंधो तक बड़े हुए, एक हाथ में हथकड़ी लगी हुई और सामने बैठे पुलिस वाले ने एक तरफ से हथकड़ी को पकड़ा हुआ। गाड़ी के बाहर भी हाथों में हथियार लिए हुए पुलिस वाले सिर पर हेलमेट लगाए हुए एकदम मुस्तैद खड़े थे.........

"हर्षवर्धन बाबू कोर्ट के मुख्य दरवाजे की तरफ बढ़ते हैं। तभी सामने से उनके मित्र एडवोकेट रस्तोगी जी मिलते हैं। हाथ में फाइलों का बंडल लिए हुए।"

- नमस्कार, हर्षवर्धन जी आज तो आप बड़ी जल्दी में लग रहे हो।

"रस्तोगी जी की तरफ हाथ बढ़ाते हुए। "
- हाउ आर यू रस्तोगी जी।

" हाथ मिलाते हुए थोड़ा सा मुस्कुरा कर "

-फैंटास्टिक, समय की कीमत के भजन गाने वाला ही आज लेट।
- नहीं-नहीं रस्तोगी जी ऐसी कोई बात नहीं है। एक दिलचस्प केस के बारे में चर्चा कर रहा था।

" आश्चर्यचकित होते हुए"

- यार हर्षवर्धन जी , केस कब के दिलचस्प होने लगे ?
" क्वेश्चन सुनते ही थोड़ी सी जल्दबाजी दिखाते हुए "

- लगता है आपने कभी कोई दिलचस्प केस हैंडल नहीं किया। आप मानोगे नहीं, सुनते सुनते इतना खो गया था।समय का पता ही नहीं चला।

-यह तो अपने रोज का काम है। किसी बेकसूर को बचाने और अपराधी को सजा दिलाने में लेट लतीफ करना तो वकीलों का जन्मसिद्ध अधिकार है ।

" रस्तोगी जी की बात को अनदेखा करते हुए"
-आज आपने बड़ा बंडल उठाया है कोई बड़ा केस लड़ने जा रहे हो क्या?

" बड़े केस का नाम लेते ही चेहरे का एक्सप्रेशन कुछ बदल जाता है। और चुटकी लेते हुए। "

- बड़ा केस कहां? हर्षवर्धन बाबू, बड़े केस तो आप लोगों के पास आते हैं। हम तो छोटे मोटे से काम चला लेते हैं। फिर बड़े केसों में हमारा नंबर ही कहाँ का आता है। राजस्थान मे तो एकमात्र नाम है,तो केवल एडवोकेट हर्षवर्धन बाबू का। आज तो फिर जो सामने बैठा है,
( पुलिस वैन की तरफ इशारा करते हुए) उसी गुर्गे का नंबर लगता होगा।

- हां रस्तोगी जी, नंबर तो इसी का है,मगर यह एक समाज सेवक है।जो पिछले कुछ दिनों से आपने सुना होगा, संविदा कर्मियों का जो मामलाचल रहा था। उसी की आज सुनवाई है।

- समाज सेवक के साथ अपराध का रिश्ता,कुछ जमने वाली बात नहीं लग रही।

"लंबी और गहरी सांस छोड़ते हुए "
-हाँ अपनी इस गूंगी बहरी सरकार को जगाने का काम जो किया था।अपराधी तो बनना ही था।

"सरकार के बारे में कोई कुछ कहे, रस्तोगी जी पीछे रह जाए ,हो ही नहीं सकता।तुरंत सुर मे सुर मिलाने की कोशिश करते हैं । "
- हां हां वकील साहब,इस मामले में तो अपनी सरकार बिल्कुल ही निकम्मी निकली। अबकी बार हद ही पार कर दी।

" थोड़ा सा एक्टिव और जोशीले अंदाज में "
- रस्तोगी! खाकी और खादी का गठजोड़ है। इसमें सब कुछ जायज है।पिछले 3 सालों में संविदा कर्मियों को करोना काल में यूज किया, अब उनको बेसहारा छोड़ दिया। जाएं भी, तो कहां जाए बेचारे। आवाज उठाने वालों को जेल में ठोक दिया।अब इन की कौन सुने,यह सरकार तो अंधी और बहरी है ही। साथ में कानून व्यवस्था को ही अपंग बना दिया।

- इस बात में कोई संदेह नहीं है।आपकी बात सौ टका सही है।
-खैर छोड़ो रस्तोगी यह तो चलना ही है

"ऐसा कहते हुए कोर्ट की तरफ बढ़ने ही वाले होते है। फिर से जमादार बाबू की आवाज कानों में पड़ जाती है। बिना कोई देरी के कोर्ट की तरफ बढ़ना शुरू कर देते हैं।
चलते-चलते फाइल को खोलते है। और फाइल के अंदर डाक्यूमेंट्स को इधर-उधर करते हुए फाइल को वापिस बंद कर देते हैं।ऐसा प्रतीत होता है, मानो कोई आवश्यक दस्तावेज चेक कर रहे हो । पुलिस वाली गाड़ी की तरफ देखते हुए कोर्ट के अंदर प्रवेश कर जाते हैं।

इधर पुलिस वाले इस नौजवान को गाड़ी से उतारते हैं। यह नौजवान कोई और नहीं भूतपूर्व कॉलेज प्रेसिडेंट राजीव शुक्ला था।कुछ दिनों पहले संविदा कर्मियों के धरने प्रदर्शन में अग्रिम नेता की भूमिका निभाते हुए गिरफ्तार हुए थे।इन पर आरोपों की सुनवाई होनी तय है। क्योंकि उनके एडवोकेट हर्षवर्धन बाबू कोर्ट के अंदर प्रवेश कर चुके हैं। अब इन्हें भी पुलिस वाले पेश करने के लिए ही गाड़ी से उतार रहे है।
जैसे ही गाड़ी से नीचे उतारते हैं।इधर-उधर घूम रे पुलिस वाले भी गाड़ी के पास आ जाते हैं। राजीव शुक्ला के चारों तरफ एक घेरा बना लेते हैं। कोर्ट के अंदर जाने के लिए रवाना होते हैं। तभी आसपास खड़ी हुई भीड़ अचानक इकट्ठी हो जाती है। नारेबाजी करना शुरू कर देते हैं।
-राजीव शुक्ला- जिंदाबाद.......
-राजीव शुक्ला - जिंदाबाद....

पुलिस वाले राजीव शुक्ला को कोर्ट के अंदर ले जाते हैं। कोर्ट के अंदर की दलीले शुरू होने ही वाली होती है।
जज साहब के ठीक सामने लगी हुई कुर्सियों में से साइड वाली कुर्सी पर हर्षवर्धन बाबू बैठे होते हैं।जैसे ही राजीव शुक्ला को अंदर प्रवेश करवाया जाता है।हर्षवर्धन बाबू अपनी कुर्सी से खड़े होते हैं।अपने कोट को सही करते हुए राजीव शुक्ला की तरफ देखते हैं। और वापस बैठ जाते हैं। इतने में जज साहब ही अपनी कुर्सी तक पहुंच जाते हैं।जज साहब के आते ही कोर्ट में सन्नाटा सा छा जाता है। सभी लोग न्याय के देवता जज साहब के सम्मान में अपनी-अपनी जगह खड़े होते हैं।जैसे ही जज साहब अपनी कुर्सी पर बैठते हैं। सभी लोग वापस अपनी अपनी कुर्सियों पर बैठ जाते हैं।

जज साहब सामने रखी हुई फाइल को खोलते हैं। उसको कुछ एक आध मिनट के लिए देखते हैं। कुछ लिखकर वापस बंद कर देते हैं।सामने बैठे हुए सभी लोगों की तरफ देखते हैं।एक हाथ से पास में रखा हुआ पानी का गिलास उठाते हैं। दो घूंट पानी की लेकर वापस रखते हुए आदेश देते हैं।

- कोर्ट की कार्यवाही शुरू की जाए।

हर्षवर्धन बाबू खड़े होकर गर्दन को झुकाते हुए न्यायमूर्ति जज साहब को अभिवादन करते हैं। दोनों हाथों से अपने कोट को ठीक करते हुए दोनों कटघरों के बीच चले जाते है।

- योर ऑनर मेरे मुवकील राजीव शुक्ला पर आईपीसी की धारा 504, 354,186,353, 120 बी,153a,और 295a के अनुसार लगाए गये टोटल एलिगेशंस बिल्कुल बेबुनियाद और निराधार है।

" बिना कोई देरी के तत्परता से हर्षवर्धन सिंह जी की दलील का विरोध करना तो लाजमी बनता ही है "

- ऑब्जेक्शन योर ओनर।

सरकारी वकील शर्मा जी अपनी कुर्सी से खड़े होते हैं।और हर्षवर्धन बाबू की तरफ देखते हुए जज साहब के ठीक सामने और दोनों कटघरों के बीच में चले जाते हैं।राजीव शुक्ला जी की तरफ मुंह करते हुए।
- योवर ऑनर! इस मुकदमे में कोई दलील पेश करने की जरूरत ही नहीं है। यह मुकदमा बिल्कुल शीशे की तरह साफ है।

" शर्मा जी अपनी बात पूरी करते, उससे पहले ही मजाकिया अंदाज में पलटवार कर देते हैं।
- योवर ऑनर! मेरे साथी वकील शर्मा जी का का अंदाज काबिले तारीफ है। इनका बस चलता तो इन्वेस्टिगेशन के दौरान ही सजा सुना देते।

" इस बात को सुनते ही कोर्ट में तालियों की गड़गड़ाहट के साथ हल्का शोर शुरू हो जाता है।"

(कोर्ट में जज साहब की टेबल पर लकड़ी का एक (हथौड़ा) गैवेल रखा होता है। हम सब जानते हैं कि कोर्टरूम में जब शोर होता है तो वकीलों को चुप कराने के लिए जज लकड़ी के हथौड़े से अपनी डायस पर रखे एक लकड़ी के टुकड़े को पीटता है। उससे एक आवाज निकलती है जो संकेत होता है कि सभी लोग चुप हो जाएं। )

"जज साहब गैवेल के द्वारा डायस को पीटते हुए।"

- ऑर्डर ऑर्डर! एडवोकेट शर्मा को अपनी बात पूरी करने दी जाए।
क्रमशः.....