Chalo, kahi sair ho jaye - 15 in Hindi Travel stories by राज कुमार कांदु books and stories PDF | चलो, कहीं सैर हो जाए... - 15

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चलो, कहीं सैर हो जाए... - 15

उस असुर की ख़ामोशी देखकर भोले बाबा अंतर्ध्यान होना ही चाहते थे कि वह कुटिल मुस्कान लिए हुए बोल पड़ा, "हे देवाधिदेव महादेव ! ठीक है। मैं आपको सृष्टि के नियमों को तोड़ने के लिए विवश नहीं करूँगा। मैं आपसे अमरता का वरदान नहीं माँगूँगा लेकिन फिर भी यदि आप मुझे कुछ देना ही चाहते हैं तो मुझे यह वरदान दीजिये कि मैं जिसके ऊपर भी अपना हाथ रख दूँ वह भस्म हो जाये।"

कुटिल असुर की चालाकी या तो भोले बाबा समझ नहीं सके या फिर वर देने की उनकी विवशता रही हो, जो भी हो, भगवान ने उसे वर देते हुए ‘तथास्तु ‘ कह दिया।

शंकर भगवान के तथास्तु कहते ही वह असुर उठ खड़ा हुआ और बोला, ”हे महादेव ! देवों ने दानवों का इतना छल किया है कि अब मुझे देवों पर रत्ती भर भी भरोसा नहीं रहा। अब मैं आप का कैसे भरोसा कर लूँ कि आपने मुझे वाकई मेरा मनचाहा वर दे दिया है। तनिक ठहरो मैं आपके दिए वर का परिक्षण तो कर लूँ।" कहते हुए वह असुर महादेव की ओर बढ़ने लगा।

अब महादेव को अपनी भूल का अहसास हुआ। वह असुर महादेव के दिए हुए वर के प्रभाव से शक्तिशाली होकर महादेव के पीछे पड़ गया। भोले बाबा एक विकट परिस्थिति में फँस चुके थे। और कोई उपाय न देख उस असुर से दूरी बनाए रखने के लिए वह आगे आगे भाग रहे थे और वह असुर उनके पीछे पीछे भाग रहा था।

उस असुर से बचने के लिए तीनों लोक में उन्हें कोई सुरक्षित स्थान नहीं मिली तब कहा जाता है कि भोले बाबा ने इस गुफा की निर्मिति की और इसमे छिपे रहे थे। ऐसा बताया जाता है कि इस गुफा से एक रास्ता अमरनाथ गुफा तक भी जाता है जिसे अब बंद कर दिया गया है।

भोले बाबा को किसी असुर की वजह से यूँ भागते देखकर देवताओं में हडकंप मच गया। सभी देवता क्षीरसागर में भगवान विष्णु के पास पहुँचे। उन्हें सभी बात बताते हुए उनसे कुछ करने का अनुरोध किया । भगवान तो अंतर्यामी थे। उन्हें सब कुछ पहले से ही विदित था और क्या करना है वह तय कर चुके थे। सभी देवताओं को आश्वस्त करके भगवान विष्णु वहाँ से अंतर्ध्यान हो गए।

इधर भोले बाबा का पीछा करते हुए वह असुर उनको न पाकर उनकी तलाश में घूम ही रहा था कि उसे सामने से आती हुयी एक बेहद खुबसूरत नवयुवती दिखाई पड़ी।

उसे देखकर वह असुर उस पर मोहित हो गया और उससे विवाह करने की इच्छा प्रकट की।

उस युवती ने मधुर स्वर में अपना परिचय देते हुए बताया, "मैं एक नर्तकी हूँ और मेरा नाम मोहिनी है। मुझे आपसे विवाह करने में कोई ऐतराज नहीं है, लेकिन मैंने प्रण किया है कि मैं उसीसे विवाह करुँगी जो मेरी ही तरह नृत्य में कुशल हो।"

” इसमें कौनसी बड़ी बात है।" कहकर वह नृत्य के नाम पर उल्टा सीधा उछलकूद करने लगा।

तब मोहिनी ने मुस्कराते हुए कहा, "नहीं नहीं ! ऐसे नहीं ! मैं आपको बताती हूँ कैसे नृत्य करते हैं। आप बस मेरा अनुसरण करते जाइये। अगर आपने सफलतापूर्वक मेरा अनुसरण करते हुए नृत्य कर लिया तो मैं आपसे विवाह कर लूँगी।"

मोहिनी के मोहपाश में बंधा वह असुर इसके लिए तुरंत ही राजी हो गया। अब उसे न खुद की चिंता थी और न ही भोले बाबा को पकड़ना याद रह गया था। उसकी निगाहों में बस मोहिनी ही रच बस गयी थी।

इधर मोहिनी ने नृत्य आरंभ कर दिया। असुर उसका कुशलता से अनुसरण करने लगा। कुछ देर तक नृत्य करते हुए वह असुर पूरी तरह से मोहिनी के मोह पाश में जकडा हुआ उसके भाव भंगिमाओं व मुद्रा का अनुसरण करता रहा। मोहिनी की निकटता लगभग मदहोश हो चुका वह असुर नृत्य में पूरी तरह से रम गया था। ठीक उसी वक्त मोहिनी नृत्य में अपनी मुद्रा बदल कर सिर पर हाथ रख कर नृत्य करने लगी। मोहिनी का अनुसरण कर नृत्य करने में तल्लीन उस असुर ने जैसे ही अपना हाथ अपने सिर पर रखा भोले बाबा के वरदान के फलस्वरूप तुरंत ही वह जल कर भस्म हो गया।

पूरी सृष्टि के संरक्षक श्री विष्णु भगवान ने एक बार फिर अवतार लेकर शंकर भगवान और साथ ही पूरी सृष्टि को उस असुर से बचा लिया था। यह असुर पुराणों में भस्मासुर के नाम से जाना जाता है।

साक्षात् श्री महादेव जी के द्वारा निर्मित यह गुफा इसी लिए आज भी श्रद्धालुओं के आकर्षण का केंद्र बना हुआ है। देश विदेश से सैलानी यहाँ आते हैं। यहाँ का कुदरती नजारा भी कम दिलकश नहीं है।

गुफा में उस दालान से आगे बढ़ते हुए थोड़ेे संकरे रास्ते के बाद फिर एक वैसी ही दालान मिली। यहाँ भी कमोबेश वैसा ही नजारा था। यहाँ भी दीवारों पर सप्तऋषी के साथ ही नव ग्रहों की भी स्थापना की गयी है।

सभी जगह हाथ जोड़कर हम लोग गुफा में आगे बढे। कुछ देर तक हम सभी एक बहुत ही पतली सुरंग के रस्ते आगे बढ़ते रहे और शीघ्र ही गुफा से बाहर निकल गए।

यह पहाड़ी के पीछे का हिस्सा था। बाहर निकल कर पहाड़ी के किनारे से होते हुए हम आगे बढे और थोड़ी देर बाद उस मैदान में थे जहाँ से हमने गुफा में प्रवेश करने के लिए सीढियाँ चढ़ी थी। हमारे जुते वगैरह वहीँ थे जहाँ हम रख कर गए थे।

शीघ्र ही हम लोग भगवान भोले बाबा को प्रणाम कर उनका जयकारा लगाकर वापसी के सफ़र पर चल पड़े। उतरना कभी भी अपेक्षाकृत आसान ही होता है। सो हम लोग कुछ तेजी से आगे बढ़ रहे थे।

अभी तीन से कुछ कम ही बज रहे थे, लेकिन हमें ऐसा लग रह था जैसे अब थोड़े ही समय में सूर्यास्त होनेवाला है।


चारों तरफ से पहाड़ियों से घिरा होने की वजह से उस जगह सूर्य की प्रखर किरणें भी नहीं पहुँच पा रही थीं। नतीजतन एक दम शाम हो जाने जैसा अहसास हो रहा था।

वापसी में भी कुदरती सौन्दर्य का निगाहों से रसपान करते हुए बड़ी तेजी से हम लोग अपनी गाड़ी के पास पहुँच गए।

यहाँ आकर अब हमें धूप और गर्मी का अहसास हो रहा था। बिलकुल नजदीक सिर्फ दो किलोमीटर के अंतराल में ही मौसम के बदलते मिजाज से हम लोग अचंभित थे।

लगभग साढ़े तीन बज रहे थे। भूख भी लगी थी सो हम सभी लोग भोजन के फ़िराक में लग गए। लोहे का पुल पार करने के बाद से ही रस्ते के दोनों तरफ छोटे छोटे दुकानों पर भोजनालयों के बोर्ड लगे थे, लेकिन हम लोग ड्राईवर अजीज के बारे में भी फिक्रमंद थे क्योंकि हमें नहीं पता था कि उसने भोजन कर लिया था या नहीं।

अजीज गाड़ी में ही बैठा मिल गया था। भोजन के बारे में पूछने पर उसने बताया वह पहले ही भोजन कर चुका था। अच्छे होटल के बारे में पूछने पर उसने बताया यहाँ लगभग सभी होटल एक जैसे ही हैं फिर भी सामने के होटल को उसने बेहतर बताया। हम लोग उसी होटल में घुस गए।

होटल पूरी तरह से ख़ाली था। हमारे अलावा अन्य कोई भी नहीं था। इस वक्त क्या उपलब्ध है इसकी जानकारी लेकर बेयरे को खाने का आर्डर देकर कुर्सी पर बैठे इंतजार करने लगे। बाहर सड़क किनारे एक घर की दीवार पर उस कसबे का नाम रनसु और जिला रिआसी लिखा देखकर हमें उस कसबे का नाम ज्ञात हुआ।

लगभग आधा घंटे से ज्यादा का समय लग गया हमें भोजन कर बाहर निकलने में।

हम वहाँ से जल्द जल्द निकल जाना चाहते थे। इसके पीछे दो वजहें थी। सबसे बड़ी वजह तो यही थी कि अँधेरा होने पर हम कुदरत के सुन्दर नजारों का अवलोकन करने से वंचित रह जाते जो हम नहीं चाहते थे और दूसरी वजह थी ये खतरनाक रास्ते जिस पर रात में सफ़र करना किसी खतरे से कम नहीं था।

होटल से बाहर निकलते ही भोले बाबा व माँ वैष्णोदेवी को याद कर हम लोग गाड़ी में बैठे और वहाँ से रवाना हो गए।


क्रमशः