माही की नजर बार - बार घड़ी की ओर जाती और उसे लगता जैसे समय वहीं थम सा गया है। ये बीस मिनट का ऑफिस लंच ब्रेक उसे सदियों सा लगता जब अपने अंतर्द्वंद से निकल सबके सामने खुद को साझा करना पड़ता हो।
"मैं माफी चाहूँगी, पर मुझे थोड़ा काम है।"
हमेशा की तरह लंच ब्रेक में कैंटीन में बैठे सभी सहकर्मियों के बीच उठ माही चुपचाप अपने डेस्क पर वापस आ गई।
किसी ने सुना, किसी ने नहीं सुना और वहाँ चल रहे सबके ठहाकों की गति में कोई अवरोध ना आया।
अनायास ही माही के हाथ फिर अपनी लैपटॉप के मेल बॉक्स की ओर चले गए। आदित्य का भेजा हुआ वो अंतिम ईमेल, कितनी आसानी से एक मेल के सहारे उसने माही के प्रणय निवेदन को अस्वीकार कर दिया और परदेश की नौकरी को स्वीकार लिया था। वह मानती थी कि कैरियर महत्वपूर्ण है पर उसके लिए रिश्तों को यूँ अचानक खत्म ही कर देना? ये उसे समझ नहीं आया। अनसुलझी पहेली मे फंसी वो समझ ही नहीं पाई ये प्रेम था या महज आकर्षण? उसके साथ बिताए सारे सुखद पल क्या किसी भ्रमजाल के हिस्से थे? माही रोज उस ईमेल को खोल कर अपना जवाब तलाशने का प्रयास करती। यह उसका अपना एकांत था। वह कुछ देर आँखे बंद करती और अतीत की स्मृतियों से सुख के वे अमूल्य क्षण, बीन-बीनकर पलकों में दबा लेती। वह जानती थी यह दुख का सघन वन है जहाँ से वो कभी स्वतंत्र नहीं हो सकती। एक गर्म आंसू का टुकड़ा माही की तरह दिशाहीन हो उसके गालों पर लुढ़क आता।
अचानक कन्धे पर अपरिचित स्पर्श पाकर माही चौंक उठी। ये तो उसका सहकर्मी विवेक था।
"अब बस करो माही! किसी के यूँ बीच राह छोड़ चले जाने से जीवन रुकता नहीं है। माना कि तुमने जिसे प्रेम किया वो तुम्हारे पास नहीं है परंतु इसका अर्थ य़ह नही कि तुमसे प्रेम करने वाला कोई नहीं। आदित्य के किये की सजा रोज तुम खुद के साथ मुझे भी दे रही हो। तुम अपने उपर ये अत्याचार नहीं कर सकती हो। देखो माही! अब मेरा सब्र जवाब दे रहा है।"
विवेक ने माही का हाथ पकड़ा और उस ईमेल को डिलीट कर दिया।
माही उसे रोक भी नहीं पाई या रोकना नहीं चाहती थी ये वह समझ ही नहीं पाई।
"अब चाहो तो तुम मेरे निवेदन को अस्वीकार कर सकती हो, और हाँ मैं सिर्फ इस कारण से खुद को अंधेरे में नहीं डुबो दूँगा। याद रखना! जीवन में हर मोड़ पर ये डिलीट बटन का ऑप्शन रहता है। कड़वी यादों से खुद को स्वतंत्र करो और आगे बढ़ो!"
माही के अतीत की कड़वी फाइल लैपटॉप से डिलीट हो चुकी थी, वो जानती थी अपने हृदय पटल से ये करना थोड़ा मुश्किल होगा पर विवेक की बात मे दम है। बेकार पड़ी फाइलों से जब कंप्यूटर भर जाता है तो वह भी हैंग हो जाता है, और धीरे धीरे निष्क्रिय!
कड़वी यादों के सहारे सिर्फ दुख को न्यौता दिया जा सकता है, भलाई इसमे है कि अपनी गलतियों से सीखते हुए और दूसरे की गलतियों को पीछे धकेलते हुए डिलीट का बटन दबाये और आगे बढ़े।
-सुषमा तिवारी