35-बच्चों की छुट्टियों का सदुपयोग करें
शीघ्र ही बच्चों की गर्मी की छुट्टियां शुरु होने वाली हैं। इन लंबी छुट्टियों में मध्यम वर्गीय परिवार के लोग न तो लम्बे समय के लिए पर्यटन पर जा सकते हैं, और नही रिश्तेदारों के यहां लम्बी छुट्टियां व्यतीत कर सकते हैं। ऐसे में बच्चे इधर-उधर फिरते रहते हैं। आलस्य से घर पर पड़े रहते हैं ओर सामान्य कार्यो से भी उनका जी उलट जाता है। कुछ बच्चे सिनेमा, टीवी, वीडियो, ताश तथा अन्य खेलों में स्वयं को व्यस्त कर लेते हैं तो कुछ पास-पड़ोस के बच्चों के साथ मिलकर केवल गप्पे मारते रहते हैं। ये सब चीजें बच्चों को अकर्मण्य बनाती हैं। अतः माता-पिता कुछ ऐसी व्यवस्था करें कि इन छुट्टियों का बचों के लिए सदुपयोग हो सके।
बच्चों के सामाजिक विकास के लिए बच्चों का एक क्लब बनाया जाए। वे अपने अभिभावकों के निर्देशन में उत्सव, वाद - ववाद, खेलकूद, शारीरिक श्रमदान, समसरोह आदि करें।
बच्चे एक बाल पुस्तकालय बनायें और राचक, ज्ञानवर्धक पुस्तकों को पढ़ें।
बच्चे वीडियो पर जानवरों, पेड़-पौधें, र्प्यावरण, स्वास्थ्य, शिक्षा जैसी महत्वपूर्ण फिल्मों का अवलोकन कर सकते हैं।
बच्चे साहित्य, यथा-कवि गोप्ठी, कहानी प्रतियोगिता, चित्रकला प्रतियोगिता आदि का आयोजन कर सकते हैं। इससे उनके व्यक्तित्व का विकास कर सकते है। इससे उनके व्यक्तित्व का विकास तो होगा ही, साथ ही जीवन को देखने का नजरिया भी बदलेगा।
कमजोर स्वास्थ्य के बच्चे अपने शारीरिक विकास के लिए प्रयास कर सकते हैं। तैरना एक अच्छा व्यायाम है। वे जूड़ो-कराटे भी सीख सकते हैं। वे स्थानीय व्यायाम शाला में जा सकते हैं।
बच्चे मोहल्ले, पास-पड़ोस की सफाई व्यवस्था, रोशनी, पानी की व्यवस्था, गलियों के नामकरण, मकान संख्या अंकित करने आदि के कार्यों को भी माहल्ला विकास समिति के माध्यम से हाथ में ले सकते हैं। बच्चे प्रोढ़ शिक्षा के काम में हाथ बंटा सकते हैं। प्रोढ़ शिक्षा मिशन को इस ओर ध्यान देना चाहिए।
अपने शहर की गलियों, बाजारों, प्रमुख स्थलों आदि का भ्रमण भी बच्चे कर सकते हैं। बड़े शहरों में रहने वाले बच्चे अपने ही शहर से अनभिज्ञ होते हैं और उन्हें छुट्टियों में शहर को जानने, समझने का प्रयास करना चाहिए। अपने गांव या शहर का भूगोल, इतिहास तथा प्रमुख व्यक्तियों के बारे में जानकारी प्राप्त होने से उस के प्रति एक प्रकार के अपनत्व का विकास होता है।
यदि बच्चे अपना शहर छोड़ कर अन्यत्र जाते हैं तो उस शहर की बालसभा का पुस्तकालय आदि में जाकर गतिविणियों में भाग ले सकते हैं।
घरेलू खेलों, तथा-कैरम, शतरंज आदि का भी प्रयोग छुट्टियों के सदुपयोग के लिए किया जा सकता है।
जिन बच्चों की हस्तलिपि अच्छी नहीं हैं, वे छुट्टियों का उपयोग उसे सुधारने में कर सकते हैं।
लड़कियों के लिए आजकल कई प्रकार के छोटे-छोटे पाठ्यक्रम चल रहे है। सिलाई, कढ़ाई, बुनाई,खाना बनाना, चित्रकारी, ब्यूटी पारलर आदि पाठ्यक्रमों को सीख कर वे स्वयं का रोजगार तक शुरु कर सकती हैं।
कुछ बच्चे पढ़ने अपक्षाकृत होशियार होते हैं, यदि वे अन्य कमजोर बच्चों को पढ़ाये तो छुट्टियों का बहुत ही सुन्दर उपयोग संभव है।
बच्चों को सामाजिक उत्पादकता के कामों की जानकारी देने के लिए अभिभावकों को प्रयास करने चाहिए। लघु रोजगार के लिए विभिन्न व्यावसायिक कार्य सिखाए जा सकते है।
ग्रामिण बच्चों को खेती बाड़ी, खाद बीज, कृपि उपकरण आदि की जानकारी देने के लिए शिविरों का आयोजन कर सकते हैं।
अध्यापक, अभिभावक व बच्चे आदि मिलकर बच्चों के अवकाश के समय का सदुपयोग करें, तो भावी पीढ़ी सुसंस्कृत व अनुशासित हो सकती है। बच्चे घर पर बोर भी नहीं होंगे। सच में अवकाश को अच्छी तरह गुजारना ही आराम है, और आराम के बाद बच्चे जब वापस स्कूल जाएंगे तो तरोताजा रहेंगे और पाठ्यक्रमों को ज्यादा रुचि से पढ़ेंगे।
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