25-मारुति -चरित्र
भगवान राम के अनन्य भक्त वीर हनुमान को भारतीय पौराणिक चरित्रों में उत्तम पद प्राप्त है हनुमान जी को रुद्र का अवतार माना गया है।
हनुमान जी के रोम रोम में राम बसा है। सुन्दर काण्ड में मारुति चरित्र का अदभुत वर्णन है।
हनुमान जी का जन्म मॉं अन्जना की कोख से हुआ है। उनके पिता केसरी है।
वाल्मिकी रामायण किसकिन्धा काण्ड के अनुसार एक बार मां अन्जना ने अद्भुत श्रृंगार किया।पीली साड़ी में उनकी शोभा अपरम्पार थी। वे पहाड़ पर चढ़कर प्रकृति को नीहार रही थी, उसी समय उनके मन में एक सुयोग्य पुत्र प्राप्ति की इच्छा जाग्रत हुई। हवा के हल्के स्पर्श से उनका आंचल ढल गया। वे कुपित होकर वायु को शाप देने को प्रस्तुत हो गयी। उसी समय वायु ने प्रकट होकर कहा- मैं मानसिक संकल्प के द्वारा तुम्हें एक महातेजस्वी, माहधैर्यवान, महाबली, महापराक्रमी पुत्र दे रहा हूॅं।
इसी प्रकार आनन्द रामायण के अनुसार दशरथ ने जब पुत्रेप्ठि यज्ञ किया तो यज्ञ से प्राप्त खीर युक्त चरू को लेकर एक गृघी उड़ गयी। वहीं चरू की खीर तपस्यारत अंजनाकी अंजली में गीरी, अंजना ने इस खीर को ग्रहण कर लिया और हनुमान जी का जन्म हुआ।
शिवपुराण के अनुसार शिवजी ने एक बार विप्णु को मोहिनी रुप में देखने का निवेदन किया। इस रुप को देखकर शंकर मोहिनी पर मोहित हो गये। शिव के वीर्य से अंजना को हनुमानजी की प्राप्ति हुई। इसी कारण शायद हनुमानजी को ग्यारवां रुद्र का अंश कहा गया।
हनुमान जी बाल्य काल से चंचल स्वभाव के थे। वे एक बार सूर्य को पकड़ने चल दिये। हनुमान जी ने सूर्य से शिक्षा दीक्षा ग्रहण की युवावस्था में हनुमान जी पम्पाम्पुर के राजा बाली और सुग्रीव के पास चले गये। बाद में सुग्रीव के सचिव बन गये। रामायण के अनुसार सुग्रीव को राम से मिलने, बालिवध करने और सीता खोज के प्रसंगों में हनुमान जी की सहायता सर्वविदित है।
इसी कारण राम उन्हें अपने अनुज भरत के समान प्यार करने लगे। तुलसीदास जी ने हनुमान चालीसा में लिखा भी है:
सहस बदन तुमरो जस गावे,अस कहि श्री पति कंठ लगावे।
हनुमान के चरित्र में राम ही राम है। सब तरफ उन्हें केवल राम ही नजर आते हैं।
जब अयोध्या से सभी को बिदा करने का वक्त आया और हनुमान को मोतियों की माला दी गई तो हनुमान एक एक मोती को दांत से तोडने लगे। भगवान राम ने पूछा- ‘ये क्या कर रहे हो’ तो हनुमान जी का जवाब था-
मैं इनमें राम को ढूंढ रहा हूं। जब इनमें राम ही नहीं है तो ये मोती किस काम के ?
वास्तव में हनुमान के रोम रोम में राम बसे हुए हैं। द्वापर युग में जब कृप्ण के एक नागरिक की स्योमन्तक मणि खो गई तो भी हुमानजी राम का नाम लेकर ही स्योमन्तक मणि वापस देते है।
द्वापर युग में भी भीम को महाभारत के युद्ध में हनुमान जी आशिर्वाद प्राप्त था।
हनुमान आयुर्वेद के भी ज्ञाता थे। वे लक्ष्मण हेतु संजीवनी लाते हैं। वैद्य को लाते हैं। आयुर्वेद के वात का वे साक्षात अवतार थे। पवन पुत्र होने के कारण वे वात के अधिप्ठाता देव है।
हनुमान युद्ध विशेपज्ञ भी थे। वे कुशल सेनापति, और राजनीतिज्ञ और कूटनितिज्ञ थे। असीम बलशाली होने के बावजूद वे बेहद विनम्र भी थे। वे सब कुछ राम के द्वारा किया गया मानते हैं। बस वे तो स्वयं को निमित्त मात्र मानते हैं। इसी कारण हनुमान को परम् भक्त का दर्जा प्राप्त है और राम सीता उनके हृदय में वास करते हैं।
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