child's irony in Hindi Motivational Stories by आरोही" देसाई books and stories PDF | बच्चे की विडंबना

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बच्चे की विडंबना

एक गांव था । उस गांव का नाम रामपुरा था। वहा सब प्यार से और समर्पण भाव से रहते थे। एक दूसरे के प्रति प्रेमभाव था। उस गांव में छोटा सा परिवार रहता था उस परिवार में माता पिता मोहन भाई और रीना बेन और उन दोनो का बच्चा था। उसका नाम विशाल था। वो बचपन से अपनी माता पिता की बाते सुनते आ रहा था l। जबसे वो थोड़ा समझने लगा था तब से वो अपने आप को एक कमरे में धीरे धीरे बंद कर देना शुरू कर दिया।

वैसे वो गरीब परिवार था। उसकी माता पिता की बाते वो कमरे में से रोज सुनता था। उसके मां बाप हर रोज किसी न किसी बात पे जगड़ा करते थे।और बोलते थे की आज ऐसा हुवा वैसा हुवा। उसकी माता भी कभी कभी उसके पिता बाहर जाते थे तो बोलती रहती थी कब ये दुख खतम होगा ऐसा ही चलता रहता हैं।और मुझे ये सब क्यू सहन करना पड़ता हैं।ये सब सुनके तो वो बच्चे डरा हुवा रहता था। उसके मन में डर सा बैठ गया की बाहरी दुनिया अच्छी नही हैं। कोई किसी से प्रेम नही करता और कोई मदद भी नही करता हैं। और जालिम हैं और उसको लगता था की सब एक दूसरे से मतलब से बात करते हैं और मतलबी हैं दुनिया और वो छोटा बच्चा मतलबी दुनिया से बहुत दूर रहना चाहता था ।ऐसा उसके मन में डर बैठ गया।और वो अपने कमरे में अकेला रहता था डरा हुवा और रोता रहता था । उसके माता पिता उसका दर्द समझ नही पाते थे वो भी हमेशा उसे डाट देते थे। इसलिए उसका मन का डर थोड़ा प्रबल होता चला गया।

थोड़े समय ऐसा चला फिर एक दिन उसके पिता थोड़े गुस्से में थे । गांव में उनका किसी के साथ बनता नही था अब सबको पता था कि उसका लड़का कमरे में अकेला रहता हैं और निकलता नही हैं। तो उस बात पे गांव वालो कभी इसके पिता को बोलते थे की आप अपने बच्चे को समझाते नही है कुछ इसलिए ऐसा कर रहा हैं। वो अपनी जिम्मेदारियां लेना नही चाहता । जिम्मेदारियां से दूर भागता हैं डरपोक हैं ऐसा सब बोलते थे। तो एक दिन उसके पिता बहुत गुस्सा हो गए।

मोहनभाई : तु क्यू इतना डरता हैं और किसलिए किस्से इतना डरते हो। तुम्हारी वजह से मुझे कितना कुछ सुना पड़ता हैं । तू क्यों अपनी जिम्मेदारियां लेना नही चाहता।क्यू उनसे भागता रहता हैं। तू क्यू ऐसा हो गया हैं। तु क्या यही चाहता हैं पूरी जिंगदी में सब सुनता रहूं।

विशाल : रोता हूवा ये सब सुन रहा था और मन ही मन वो भगवान से पार्थना करता रहा था मगर कुछ बोलता नही हैं ओर रोता रेहता हैं। वो समझ नही पाता था की वो क्या करे। वो इतना डर गया था की वो कुछ बोल नहीं पाया। उसके पिता भी समझ नही पाते थे और वो लकड़ा भी नही।

ऐसा ही चलता रहा थोड़े दिन फिर उसके माता पिता उसे कुछ बोलते ही नहीं थे। वो एक दूसरे से बात किया करते थे।
लकड़ा छोटा था मासूम था। ओर इसके माता पिता को लगता था ये अब कभी नही सुधरेगा सब आशाए छोड़ दी थी।

फिर एक दिन उस गांव में एक मेला लगा। मेले में सारी दुकान लगी । वहा आस पास से गांव वालो भी आए। कहीं संत महात्मा भी आए थे। भव्य मेला था। उस मेले में वो संत भी आए थे जो बरसों से तप करते थे। बुद्धिमान और बड़े ही अच्छे थे।वो समझते थे दूसरो का दर्द । ओर गांव में आधे तो आयुवेदिक उपचार भी होता हैं। तो आयुवेदिक चीज़ वस्तु ए की भी दुकान लगी हुई थी। ओर सबलोग मेले में गुमने लगे। चीज़े खरीदने लगे। अपनी जरूरियात की चीज वस्तु ए ले रहे थे।
तब वहा विशाल के माता पिता भी आए वो मेले में तो वो भी अपने हिसाब से वस्तु ए लेने लगे तब उसके पड़ोसी बात करने लगे।

पड़ोसी : यहां पे अच्छे और भले संत महात्मा आए हैं। उससे अपने लड़के के बारे में बात करो। कही कोई रास्ता निकल आए और आपका लकड़ा डरने से बच जाए और सबके साथ हसीं खुशी से रहने लगे।बाबा से बात करो वो ऐसा क्यू करता हैं इसका कारण क्या हैं।

मोहनभाई (मन ही मन में )आज तक में समझ नही पाया की वो ऐसा क्यू करता हैं क्यू ऐसे ना खुश रहता हैं तो ये बाबा क्या बतायेगा।

पड़ोसी : चुप क्यों हैं आप बोलिएना क्या हुवा।

मोहनभाई : हा में सोच में पड़ गया था की सच में ये बाबा कुछ कर पाएंगे। में इतने बरसों में उसे नहीं समझा पाया तो वो क्या समझाए। फिर भी कोशिश करने में क्या हर्ज हैं ऐसा सोचके मोहनभाई ने हिमत जुटाके उस बाबा से बात करना सोचा।
फिर मोहनभाई ने इसके बेटे के बारे में सब कुछ बताया पुरी बात बताई।

बाबा : हा ठीक हैं हम कोशिश करेंगे। आप अपने घर का पता दे दो हम आ जाएंगे मेला खतम होते ही।

फिर मोहनभाई ने वो बाबा को अपने घर का पता दिया। ओर 2 दिनों में मेला खतम हुवा। ओर वो बाबा मोहन भाई के घर जाने की तैयारी करने लगे। फिर मोहनभाई के घर गए।

बाबा : मोहनभाई से बात करने लगे और बोले कहा हैं बच्चा। फिर मोहनभाई ने इशारे करते हुये कमरा दिखाया।
ओर वो बाबा उस कमरे में गए तो विशाल बाबा को देख के बहुत डर गया और कुर्सी के पीछे छुप गया।

विशाल– उस बाबा को पूछा की कोन हैं आप और ऐसे कैसे कमरे में आ गए मेरे माता पिता कहा हैं।

बाबा : तुम्हारे पिता कुछ काम से बाहर गए हैं और आपकी माता रसोई घर में हैं। उन दोनो ने मुझे आपका खयाल रखने बोला हैं।

विशाल : कुछ बोला नहीं डरते हुवे बैठा रहा।

फिर बाबा ने उसे बात करने को कोशिश की कि आप मेले में क्यू नही आए बहोत अच्छा मेला लगा था सबने कितना मजा किया इस बात की शुरुवात की l विशाल फिर भी कुछ नही बोला। फिर थोड़ी देर बाद बाबा कुछ सोच रहे थे और ऐसे ही बडबडा रहे थे। बेटा मुझे एक पहली का जवाब नही मिल रहा हैं। क्या तुम बता सकते हो। फिर बाबा ने उसे पहली पूछी। ओर विशाल ने पहली का सही जवाब दिया। बाबा बहुत खुश हो गए और उसे बाते करने लगे।

बाबा : बेटा आप तो बड़े ही समझदार हो फिर भी डरते क्यू हो। बाहर भी नही निकलते।

विशाल : डरी हुई आवाज में बताया। ये दुनिया मतलबी है। मतलब के लिए हमारे साथ रिश्ता रखती हैं। बड़ी कुर हैं।ओर जालिम हैं। मुझे ऐसी दुनिया को नही देखना हैं इसलिए में अपने कमरे में रहता हु। बाहर नही निकलता।

बाबा : ये सब आपको किसने बताया।??

विशाल : मेने अपने माता पिता के मुंह से ये सब सुना हैं वो हर रोज बोलते हैं। जगड़ते हैं।

बाबा पूरी बात अब समझ गए थे फिर बाबा ने एक युक्ति लगाई बाबा के एक चेले से मिलकर बाबा ने एक प्लान रचा। उसका चेला ऐसे ही डरने का नाटक करते हुवे बाबा के पास आया बाबा मुझे बचा लो सब लोग बोल रहे हैं यह रहना ठीक नही हैं यह से चलो हम निकलते हैं। ये सब विशाल भी सुन रहा था थोड़ी देर बाद वो बोला हम तो यहां बरसो से रहते हैं ऐसा कुछ भी नही हैं यहां आप मत डरिए।
ऐसे ही किसी की बात सुनके उसकी बात को सच मान के डरना गलत बात हैं। पहले सब बात समझ लेनी चाहिए।
ये सब बाबा भी सुन रहे थे।

बाबा :बच्चे तुम कितने समझदार हो। फिर भी तुम खुद भी सबकी बातो मे आ कर डरने लग गए। मगर ऐसा नही हैं। बाहर जूठे लोग हैं वहा पे सच्चे लोग भी हैं । प्यार हैं करुणा भी हैं । यहां दुश्मन हैं तो दोस्त भी हैं। यहां कोई छल करता हैं तो कोई त्याग और समर्पण भाव से भी रहते हैं। तुम खुद इस सब देखोगे नहीं तो कैसे मान लेते रहोगे। इसलिए बाहर निकलो और दुनियां को देखो और समझो।

विशाल ये सब सुन रहा था। अब मन ही मन समझ भी रहा था। उसे अब अपनी गलती का एहसास हो रहा था। वो मन ही मन खुद को कोश रहा था। फिर उसने तय किया की वो अब वो किसी से नहीं डरेगा और सब का अनुभव वो खुद करेगा और तकलीफ आए भी तो वो खुद उसका सामना करेगा।
विशाल : हां में समझ गया मेरी गलती हैं।में अब से ऐसा कभी नही करुगा।

फिर वो अपने कमरे से बाहर आया और अपने माता पिता ने हाथ जोड़कर माफी मांगी l पैर पड़ा और आशीर्वाद लिए। उसके माता पिता बहोत खुश हो गए। खुशी का पार नहीं रहा। उसके पड़ोसी भी ये बात सुनके खुश हो गए।

बाबा : मोहनभाई से कहा आप लोग उसको दोष दे रहे थे मगर आपकी भी गलती हैं आप लोग जो बाते करते हैं। उसका विशाल सुनता हैं तो उसके दिमाग पे असर करता हैं। इसलिए फिर उसके पिता ने बाबा से माफी मांगी ।
और कहा अब से ऐसा कभी नहीं होगा। फिर बाबा और उसका चेला और विशाल और उसकी माता और पिता सब एक साथ खाना खाने का नक्की किया। फिर वो सब खाना खाने बदल और सब ठीक हो गया।
विशाल अब पहले की तरह मस्ती करता था।ओर सब दोस्तो के साथ बाते करता था। हसी खुशी के साथ रहता था। ओर उसके माता पिता भी अब खुश थे।वो बाबा को विदाई दी। ओर बाबा चले गए। ओर सब परिवार खुश रहने लगा।
सिख– ये कहानी से हमे यही सीखना चाहिए हमे ऐसे ही किसी की बात पे भरोसा नही कर लेना चाहिए।हम खुद पहले उसका सामना करना चाहिए फिर उसके बारे में आगे सोचना चाहिए।कभी कभी आखों देखी और कानों सुनी बाते भी गलत होती हैं।