Bandh Khidkiya - 13 in Hindi Fiction Stories by S Bhagyam Sharma books and stories PDF | बंद खिड़कियाँ - 13

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बंद खिड़कियाँ - 13

अध्याय 13

अरुणा ने कुछ क्षण उसे घूर कर देखा।

"कोई बहुत बड़ी सोच में डूबी हुई हो आप ऐसे लग रहीहैं। ऐसे क्या सोचती हो दादी?"

अरुणा की उत्सुकता में एक परिहास भी छिपा हुआ है उन्हें लगा।

अरुणा धीरे से मुस्कुराई, "मुझे ऐसा लगता है आपकी यादें बहुत ही दिलचस्प होगी दादी । अम्मा को देखने से ऐसा नहीं लगता।

"ऐसा क्यों ?"

"अम्मा का सभी अनुभव साधारण ही लगता है। बड़ी सरलता से मिला आरामदायक जीवन है उनका। बहुत गहरा सोचने की मेरी अम्मा की आदत नहीं है।"

"मुझे भी क्या, मैं बिना पढ़ी-लिखी, तुम्हारी अम्मा तो पढ़ी लिखी है ।"

"पढ़ने का और दिलचस्पी का कोई संबंध है मुझे नहीं लगता दादी। वह तो आपके स्वभाव के ऊपर निर्भर है। किसी घटना से आपका मन कितना व्यथित हुआ है यह उस पर निर्भर करता है।"

मन में एक हल्का कंपन हुआ। खून में गर्मी आ गई जैसे लगा। अपने को संभालते हुए सरोजिनी मुस्कुराई।

"मुझे यह सब समझ में आ रहा है अरूणा। मेरे जैसे कितनी लड़कियों के जिंदगी में ऐसा हुआ होगा। सभी लोगों को मुंह बंद करके कोल्हू के बैल जैसे ही उस जमाने में रहना पड़ा होगा...." 

अरुणा की निगाहों में एक हिचकिचाहट नजर आई।

"आपको कभी गुस्सा नहीं आया क्या दादी?"

सपने से उठे जैसे सरोजिनी ने धीरे से पूछा "किस पर ?"

"दादाजी पर। आप गर्भवती थी तब भी वे आपको बेल्ट से मारते थे!"

सरोजिनी ने अपना सिर झुका लिया। उनके मन की खिड़की धीरे से खुली। रौद्र रूप में जंबूलिंगम हाथ में काले रंग के बेल्ट के साथ खड़ा था।

"अहंकारीगधी, अहंकारी गधी..."

कितनी बार उसके पीठ पर वह चाबुक सा पड़ा? उसे याद नहीं।

अहंकारी गधी के मुंह से एक शब्द भी नहीं निकला । उससे अपना कोई अधिकार नहीं है ऐसा अपने आप को तैयार कर लिया जैसा.....

फिर से सरोजिनी ने खिड़की से बाहर काले आकाश को देखा।

"गुस्सा करके उस समय कोई फायदा नहीं था बच्ची। जिद्द जरूर कर सकते.."

"आपने ज़िद्द की?"

"खूब ! उसी के लिए मारपीट!"

सरोजिनी के अंदर एक हंसी फूटी।

"किस तरह की जिद्द ?"

"वह सब मुझे याद नहीं....!"

अरुणा ताली बजाकर हंसी। "आप बहुत चालाक हो!"

सरोजिनी ने फिर से अपना सिर झुका लिया।

"कुछ भी समझ में नहीं आ रहा है बच्ची। चालाकी तो धोखा देने वाला शब्द है मुझे लगता है। उससे हम क्या प्राप्त कर लेते हैं मालूम नहीं।"

"क्यों दादी? हमारा भी एक अलग मन है दिखाते हैं ना?"

सरोजिनीने बिना बात किए हुए अरुणा को देखा। यथार्थ में अभी ही जुड़ी जैसे उसके दोनों हाथों को पकड़कर वह हंस दी।

"हां बच्ची ‌। परंतु यह तृप्ति सिर्फ अपने लिए!"

अरुणा ने झुककर दादी के माथे को चूम लिया।

"वह बहुत है दादी!"

उसकी बातों से सरोजिनी को कुछ चुभा। अरुणा के चेहरे से और उसके मन के अंदर जो चोट पहुंची है उसके बीच कोई संबंध नहीं है उसे लगा।

"बैठो। आज क्या हुआ बताओ। क्यों आने में इतनी देर हुई ?"

"काम बहुत इंटरेस्टिंग था दादी। आज कोई फिल्म दिखायी। घर आकर भी क्या करूंगी सोच कर वहीं बैठ कर देख कर आई।"

"ठीक है। एक फोन कर सकती थी ना?"

अरुणा सिर झुका कर कुछ भुनभुनाई।

"भूल गई।"

थोड़ी देर मौन रहने के बाद सरोजिनी बोली "तुम्हारी अम्मा से तुम कितने दिन नाराज रहोगी?"

"सचमुच में भूल गई दादी!"

"उस भूलने के लिए,गुस्सा भी एक कारण होगा। 'कुछ देर परेशान होने दो' ऐसी एक सोच। परंतु तुम भूल गई। इसमें सिर्फ वह ही नहीं तड़पी यह सब के लिए दंड था....."

अरुणा हंसने लगी।

"सॉरी दादी। आज के बाद मैं फोन करना नहीं भूलूंगी।

"शंकर से आज मिली थी क्या?" अचानक पूछते जैसे सरोजिनी पूछी

"नहीं! क्यों? एक हफ्ता हो गया उन्हें देखें!"

"उसकी पत्नी को मैंने नहीं देखा है। लेकर आने को बोलो ना।"

"कहती हूं। पर उनके पास समय नहीं होगा क्योंकि वह डॉक्टर का काम करती है।"

"ओ ! इसीलिए वह उसे यहाँ लेकर नहीं आया!"

"हां। साधारणतः उसके घर आने में रात्रि 7:30 या 8:00 बज जाते हैं। बहुत नजदीक होने के बावजूद भी मैंने उन्हें अधिक नहीं देखा।"

"जितना देखा, वह कैसी हैं?" 

सरोजिनी ने पूछा।

अरुणा की भौंहें थोड़ी ऊपर हुई।

"क्यों? बहुत अच्छी है। बहुत पढ़ी लिखी और पैसा होने के बावजूद भी उसमें घमंड नहीं है और वह बहुत मिलनसार है।"

पूछना चाहिए या नहीं सोचते हुए सरोजिनी ने बड़े सौम्यता से मुस्कुराते हुए पूछा "शंकर और उसके बीच रिश्ता अच्छा ही तो चल रहा है?" 

चौंकते हुए अरुणा ने सरोजिनी को मुड़कर देख फटकर हंस दी।

"दादी, आप भी अम्मा के ग्रुप में शामिल हो गई क्या?"

सरोजिनी में हल्के अपमान की भावना जागृत हुई।

"मैंने तो यूं ही पूछा अरुणा।"

"आपने अपने आप नहीं पूछा। अम्मा ने कुछ बोला होगा ।"

"अम्मा ने कुछ नहीं बोला। मैं ही सोच रही थी।"

"क्या सोच रहीं थी?"

"बोलूं तो बुरा तो नहीं मानोगी ?"

"आपका कैसे बुरा मानूँगी ?"

"कुछ नहीं" सरोजिनी ने थोड़ा खींचा। "उस शंकर की शादी नहीं हुई है ऐसा सोच रही थी। अच्छा लड़का दिखता है। तुम्हारे साथ प्रेम से रहता है, तुम भी उससे शादी कर सकती हो ऐसा सोचा।"

अरुणा प्रेम से सरोजिनी के सिर पर मार कर हंसी।

"ठीक अंधी सोच है। इसी तरह की सोच सारे दिन सोचते रहते हो क्या? अच्छा हुआ ऐसी बात शंकर के सामने नहीं बोली। शंकर और मल्लिका दोनों में बहुत घनिष्ठता है। वे बहुत अच्छे दंपत्ति हैं। शंकर और मेरे बीच सिर्फ मित्रता है आप लोग क्यों नहीं समझ रहे हो?"

"मैं कुछभी नहीं समझने वाली हूं। पर सब लोगों में समझने की शक्ति नहीं है। सब लोगों को कुछ भी सोचने दो ऐसा नहीं रह सकते, तुम्हारी अम्मा कह रही है जैसे!"

"अम्मा दुनिया की बात पर ही विश्वास करेगी। अपनी स्वयं की लड़की की बात नहीं मानेगी!"

"हमेशा अम्मा के ऊपर गुस्सा मत हुआ करो अरुणा। मैं एक बात कह रही हूं उसे सुनो। इस इतवार को उस मल्लिका और शंकर दोनों को अपने घर में खाना खाने के लिए बुलाओ। तुम्हारी अम्मा को संतुष्टि मिलेगी।"

"अम्मा की संतुष्टि के लिए या उनकी तृप्ति के लिए मैं कोई प्रयत्न नहीं करूंगी दादी ! मेरा इस घर में रहना ही उनके लिए संकट की बात है। इस संकट को दूर करने के लिए विदेश में चली जाऊं तो ही ठीक रहेगा मैं सोचती हूं।"

उसकी आवाज में जो दुख और गुस्सा था उसे देख सरोजिनी चौंक गई।

"ऐसे बात नहीं करनी चाहिए बच्ची। तेरी अम्मा को मैं ठीक कर दूंगी। चिंता मत करो। तुम विदेश जाओ, परंतु यहां से संबंध मत तोड़ो । यदि तुमने तोड़ दिया तो तुम किसी कारण से डर कर भाग रही हो ऐसा लोग सोचेंगे? इस बारे में तुम्हें किसी तरह का असमंजस भी नहीं होना चाहिए। परंतु, उसे बाहर दिखाना है इसलिए दूसरों की आंखों में किरकिरी हो ऐसा कोई भी काम मत करना।"

"ऐसा कुछ मैंने किया मुझे नहीं लगता दादी।"

"हमें नहीं मालूम होता अरुणा। वह सब दूसरों को दिखाई देता है। यदि वह बातें अच्छे स्वभाव वाली मल्लिका के पास पहुंचे तो वह भी दूसरी तरह से सोचना शुरु कर देगी । इसीलिए तो कह रही हूं, एक दिन दोनों लोगों को यहां लेकर आओ। तुम लोग साथ में एक दो जगह जाकर आओ।"

"खाने के लिए बुला कर लाती हूं। परंतु उनके साथ बाहर मैं क्यों जाऊं? मल्लिका को शंकर के साथ रहने का समय बहुत कम मिलता है। फिर मैं भी बेमतलब उनके साथ जाऊंगी तो अच्छा लगेगा? दादी आप मुझे छोड़ दो आप लोगों से ज्यादा अच्छी तरह मल्लिका ने मुझे समझा है। शंकर के साथ मेरी जितनी घनिष्ठता है उतनी घनिष्ठता मुझे मल्लिका से भी है। तलाक के लिए मुझेकहने वाली मल्लिका ही थी शंकर नहीं है।तलाक के लिए जल्दबाजी नहीं करनी चाहिए बोलने वाला शंकर था।"

"इन सब के बारे में तुमने विस्तार से कभी कहा ही नहीं है"सरोजिनीधीमी आवाज में बोली।

"यह सब बोलने की क्या जरूरत है?"

बड़े थकान के साथ अरुणा ने कहा "केस के खत्म होने तक मुझे बहुत फ़िक्र लग रही थी। अपने पक्ष में फैसला होना है यह फिक्र थी। प्रभाकर की हैसियत और रुपयों के आगे वह कुछ भी कर सकता था मुझे इसका डर था। उसका मन बहुत गंदा है दादी। वह कुछ भी कर सकता है। वह खराब औरतों से संबंध रखता है। वह मेरे सामने ही यह सब नाटक करता था यह बात मैंने बताया तो इस पर उसे बहुत गुस्सा आ गया इसीलिए उसने शंकर से मेरा संबंध जोड़ दिया। वह किसी भी हद तक जा सकता है वरना एक आदमी ऐसे कैसे बोल सकता है? शंकर ने उसकी कितनी मदद की है! मल्लिका को सब पता था।उसे पता था कि प्रभाकर कितना भयंकर आदमी है । किसी को मरवाने में भी वह नहीं हिचकिचायेगा ।"

सरोजिनी चौंकते हुए अरुणा को देखा। यह शब्द बोलने वाली अरुणा है या सरोजनी ?