अध्याय 10
कार्तिकेय और नलिनी इसी बात पर वाद-विवाद कर रहे थे। उसमें मुझे शामिल नहीं होना है ऐसा सोचकर सरोजिनी मौन रही।
"अरुणा के बारे में हमेशा कुछ न कुछ बोलते रहना तुम्हें बंद करना पड़ेगा" कार्तिकेय ने कहां। "उसकी उम्र हो गई है। वह एक अलग औरत है इस बात को ही तुम भूल जाती हो।"
"यह देखिए, इस भीड़ में रहते समय कोई अलग औरत या पुरुष नहीं हो सकता। भीड़ हमारे बारे में क्या सोचती है उसके बारे में डरते रहना चाहिए।"
"अभी क्या करना है कह रही हो ?"
नलिनी सिर झुका कर भुनभुनाने लगी।
"उस शंकर के साथ घूमना बंद करने को बोलो, मैं कुछ बोलूं तो उल्टा सीधा जवाब देती है।"
"तुम ही उल्टी-सीधी बात करती हो नलिनी!" कार्तिकेय गुस्से से बोले। मन में तकलीफ पा रही लड़की से सहानुभूति दिखाने के बदले दुनिया क्या बोलेगी इस बारे में फिक्र करती रहती हो।"
कार्तिकेय वहाँ खड़े ना होकर सीधे ऊपर चले गए। सरोजिनी को दुख हुआ।
उसने जहां तक देखा कार्तिकेय और नलिनी के बीच कभी कोई मतभेद नहीं होता था। आज तक कोई भी वादविवाद उसके कानों तक नहीं आया। अभी नलिनी बिना मतलब का भ्रम पालकर कार्तिकेय को एक संकट में डाल रही है यह देख उसे दुख हुआ।
शंकर और अरुणा सिर्फ मित्र हैं, दोनों में और कोई संबंध नहीं है कहें तो वह विश्वास करेगी क्या।
नलिनी बिना आवाज के रो रही थी। सरोजिनी धीरे से उठ कर उसके पास गई। उसके कंधे पर हाथ रख कर, "यह देखो, मैं तुझसे बड़ी हूं इस हक से कह रही हूं। कुछ दिन अपनी सहेलियों से मिलना और अपने किटी पार्टी में जाना बंद कर दो। हर बार तुम्हारे वहां जाकर आने के बाद तुम बहुत ही परेशान रहती हो।"
फिर से नलिनी की आंखों से आंसू गिरने लगे। "सहेलियों के पास जाना अचानक कैसे छोड़ दूं?"
"तुम्हारी लड़की के बारे में तुम्हारे सामने ही तुम्हारे मन को दुखाने जैसी बात करने वालों को तुम अपनी सहेली कहकर कैसे विश्वास करती हो ?"
थोड़ी देर नलिनी कुछ नहीं बोली। फिर धीमी आवाज में बोली "सहेलियां ही हमें अच्छाई और बुराई बताती हैं।"
सरोजिनी को हंसी आ गई। "फिर मैं और कार्तिकेय तुम्हारे अपने नहीं हैं सोचती हो क्या?"
फिर से नलिनी असमंजस में सिर को झुका कर हाथों में सिर को रख लिया।
"मुझे कुछ भी समझ में नहीं आ रहा है अम्मा" क्षमा मांगने की तरह बोली।
"आपको और आपके बेटे दोनों को अरुणा के ऊपर जो प्रेम हैं उसकी वजह से ही आप दोनों सच्चाई को देख नहीं पा रहें हो | मुझे ऐसा लगता है।"
"ऐसा कुछ नहीं है। तुम जो सच समझ रही हो वह सच नहीं है हम समझ गए। बस इतना ही फर्क है। इसके अलावा किसके लिए फिक्र करनी चाहिए और किसके लिए नहीं यह मालूम होने के बाद हम मन को परेशान नहीं करते हैं।"
संतुष्ट न हुए जैसे नलिनी बैठी रही।
"यह देखो, नलिनी तुम सोच रही हो ऐसा शंकर और उसका कोई रिश्ता नहीं है।"
नलिनी ने जवाब नहीं दिया।
"तुम इस पर विश्वास नहीं करो तो और कोई भी विश्वास नहीं करेगा नलिनी।"
"रिश्ता किसी भी तरह का हो उससे संबंध रखना उसके साथ अकेले जाना ठीक नहीं। तलाक के बाद और भी ज्यादा हिफाजत से रहना चाहिए। क्योंकि शंकर शादीशुदा है। दुनिया वालों के बोलने से उसके परिवार में टूटन हो सकती है।"
सरोजिनी बिना जवाब दिए सोच में पड़ी।
नलिनी की बात में दम है ऐसा उसे पहली बार लगा। शंकर को उसकी पत्नी के साथ अभी तक नहीं देखा उसे याद आया।
"तुम कह रही हो वह ठीक है" धीरे से बोली "परंतु तुम्हारे फिक्र करने से कुछ नहीं होगा। अरुणा के लिए शंकर सिर्फ एक मित्र है इसके अलावा और कोई बात नहीं है।"
"कोई बात है दुनिया ऐसा कहेगी। शंकर की पत्नी भी उस पर अविश्वास कर सकती है। उसकी वजह से बेकार तकरार होगी।"
"इसी बारे में मैं अरुणा से बात करूंगी। वह जिम्मेदार लड़की है । उसका मन काम में लग जाएगा फिर उसको किसी काम के लिए टाइम नहीं मिलेगा। शंकर भी अपना उत्तरदायित्व समझता है मुझे ऐसा लगता है ।"
नलिनी के चेहरे पर थोड़ी शांति दिखी फिर भी चिड़चिड़ाते हुए कुछ बुदबुदाई ।
"यदि जिम्मेदार है तो क्यों वह जहां भी जाएं उसके साथ जाता है ?"
"दोस्त की पत्नी की जो स्थिति हुई उसके लिए उसके मन में दया नहीं होनी चाहिए क्या?" सरोजिनी बोली।
बिना उम्मीद के उसके मन की खिड़कियां धीरे से खुली।
दिनकर मुस्कुराते हुए खड़ा था। "आपकी तबीयत का ख्याल आप रखो नहीं तो यहां कोई आपको पूछने वाला नहीं है मुझे पता है।" वह बोला।
सरोजिनी के होठों पर हल्की मुस्कान आई।
"दया हो तब भी चार लोगों की आंखों में खटकने जैसे व्यवहार नहीं करना चाहिए ना ?"
सरोजिनी की निगाहें और उसका मन उसे देख रहा था।
"आज के जमाने में बच्चे सीधे चलने वाले हैं नलिनी। इसके बारे में संकोच उस जमाने के लोगों को ही होता था ।"
हॉल की घड़ी 5 बार घंटी बजा कर बंद हुई तो वह अपना स्वयं का ध्यान आते ही उठ गई।
"शंकर तुम्हें अच्छा नहीं लगता। उससे संबंध नहीं होता तो अरुणा की शादी नहीं टूटती ऐसा तुम सोचती हो। वही गलत है। किसी भी हालत में यह शादी टूटती, नहीं तो अरुणा ने और कुछ कर लिया होता। अभी तुम इन सब के बारे में सोचते हुए मत बैठो। मैं थोड़ी देर बगीचे में टहलती हूं।"
"ठीक है मैं अब सारी जिम्मेदारी आप पर छोड़ती हूं। आप ही अपनी पोती को संभालो। मैं कुछ दिन मुंह नहीं खोलूंगी।"
"वही ठीक है" कहकर सरोजिनी हंसी। तुम्हें भी शांति औरों को भी शांति।"
सरोजिनी बाहर खड़े रहकर बगीचे में चलने के लिए मुड़ने लगी।
"यह दया, सहानुभूति इन सब पर मैं विश्वास नहीं करती।" नलिनी फिर भी बड़बड़ा रही थी।
"यह मंत्र औरत कमजोर स्थिति में है उस अवसर का फायदा उठाने का है ।"
वह सुनाई नहीं दिया जैसे सरोजिनी वहां से चली गई।
पति के प्रेम के सिवाय, और कोई भी अनुभव नलिनी को नहीं है। सरोजिनी ने सोचा नलिनी अपने अनुभव से यह शब्द नहीं बोल रही है । वह स्वयं भी सोच कर इसे नहीं बोली होगी। यह उसकी सहेलियों के अनुभव हो सकते हैं।
5:00 बज जाए तो बगीचे में ठंडी हवा चलना शुरू हो जाती है। थोड़ी देर में पक्षी अपने घर को वापस आना शुरू कर देते हैं। प्रकृति का हर काम समय पर होता है न समय से पहले न समय के बाद सोचकर सरोजिनी अपने अंदर विस्मित हुई। एक दिन सूरज नहीं निकला ऐसा नहीं होता है सर्दी के दिनों के बाद गर्मी के दिन नहीं आएं ऐसा नहीं होता है ?
आखिर आकाश ने पेड़ों को भी एक नई फुर्ती दी जिससे वे धीरे-धीरे हिलने लगे तो सरोजिनी कुछ नया देख रही हैं जैसे उसे देखने लगी। अपनी इच्छा और सोच मनुष्य में ना हो और इन पक्षियों जैसे रहे तो कोई असमंजस, संकट, लाभ हानि नहीं होगा ऐसा वह सोच रही थी। "हमें जीना नहीं आए तो कोई क्या करेगा" यह विचार उसके मन में आया।
उसके विचार में बाधा आई। एक लड़की संकोच से अंदर आ रही थी।
"तुम कौन हो ?"
"सरोजिनी अम्मा जिसमें रहती हैं वह मकान यही है क्या ?" उस लड़की ने पूछा।
"हां"
"वह आप ही हो क्या ?"
"हां तुम कौन हो ?"
"मेरा नाम श्यामला है। मेरे नाना आपके गांव के हैं। यहां पर अपने चिकित्सा के लिए आए हैं, आपसे मिलना है ऐसा कह रहे थे।"
सरोजिनी का दिल थोड़ा सा धड़कने लगा।
"कौन हैं तुम्हारे नाना ?"
"उनका नाम दिनकर है।" श्यामला बोली।
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