Bandh Khidkiya - 6 in Hindi Fiction Stories by S Bhagyam Sharma books and stories PDF | बंद खिड़कियाँ - 6

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बंद खिड़कियाँ - 6

अध्याय 6

"क्यों मां आज नहाना, पूजा ऐसा कुछ भी नहीं है क्या?"

दूसरी बार पास में आकर नलिनी को पूछने आई सरोजिनी ।

सामने खड़ी नलिनी के चेहरे पर चिंताओं की रेखाएं दिखाई दे रही थी।

"आपकी तबीयत ठीक नहीं है क्या?" उसने पूछा।

सरोजिनी हल्के मुस्कुराते हुए उठी।

"ऐसा कुछ नहीं है। तबीयत बिल्कुल ठीक है।"

"रोज इस समय तक नहाकर आप पूजा पूरी कर लेते हो!"

"उसके बाद रोज चुपचाप बैठी रहती। आज शुरू में ही बैठ गई: वही अंतर है ना कोई काम ना कुछ? कुछ नहीं। कुछ भी करो मेरे लिए एक जैसा ही है।"

"कभी भी कुछ करो, मुझे कुछ नहीं है" नलिनी बोली। फिर चलते हुए धीमी आवाज में बोली "पोती के बारे में सोच रहे होंगे आप "

सरोजिनी ने जवाब नहीं दिया। “दुखी होने के लिए इसमें क्या है।” 

"बिना दुखी हुए कैसे रह सकते हैं?" नलिनी अपने मन में कुछ सोचते हुए बोली ।

सरोजिनी एक क्षण चुप रही।

"वह कह रही है वह सच है। इसमें दुखी होने की जरूरत नहीं।"

"आपको मैं समझ नहीं सकी" निष्ठुरता से बोली।

"यह देखो। तलाक लेने के सिवाय कोई दूसरा रास्ता नहीं है ऐसी सोचने में ही साल भर निकल गया। डाइवोर्स मिलने के बाद किस बात का दुख? अभी तक यह ढका हुआ मामला था एकदम से उघड़ गया उससे तुम्हें संकोच हो रहा है।"

नलिनी कुछ देर चुप रही। फिर धीरे से बोली: संकोच तो होगा मेरी सहेलियों के घरों में उनकी लड़कियों के साथ ऐसा नहीं हुआ!"

"उसके लिए हम क्या कर सकते हैं? वह प्रभाकर इस तरह का आदमी होगा हमने सोचा था क्या?"

"वह अच्छा है, यही ठीक नहीं है ऐसी ही बात लोग कर रहे हैं!"

"हां, बोलेंगे" सरोजिनी सहन ना कर सकी । "यह ठीक; यह गलत बोलने के लिए किसमें योग्यता है? यह देखो नलिनी, अपनी लड़की पर हमें विश्वास नहीं है तो दुनिया भी विश्वास नहीं करेगी।"

फिर अपने स्वयं से बोल रही जैसे बोली:

"यह एक बेवकूफ दुनिया है।"

अपने कमरे के अंदर घुसने के पहले दोबारा खड़ी होकर नलिनी से बोली "मन को जो पसंद नहीं आ रहा हो उसके साथ रहना ही गलत है। उस समय मन, मन नहीं रहेगा, बंदर का खेल हो जाएगा। वह कुछ भी कर सकता है, क्या सही क्या गलत क्या ठीक उसे समझ में नहीं आएगा।"

नलिनी ने असमंजस में उन्हें दिखा।

"अभी इस शंकर के साथ घूमना ठीक है बोल रहे हो क्या?"

सरोजिनी को बड़ा अजीब लगा। "अरुणा एक बार धोखा खाई हुई है। वही समझ जाएगी क्या सही है क्या गलत है। उसकी अभी तक शादी नहीं हुई है ऐसा ही हमें सोचना चाहिए।"

“इसकी शादी टूटने का कारण ही वह है।“ 

"नहीं। उसके आने के पहले ही शादी टूट गई। तुमने ही ध्यान नहीं दिया।"

वह आगे वहां खड़ी ना रहकर अंदर चली गई।

'इसको मैं कुछ भी बोलूं समझ में नहीं आएगा।' वह स्वयं से बोली।

गीजर के नल को खोलने से गर्म पानी आया। शरीर के लिए वह बड़ा सुहा रहा था। "अब इस शरीर को आराम की आदत पड़ गई।" सोचते हुए उसे हंसी आई। जनवरी जैसे ठंड के महीने में भी सरोजिनी कुएं के पानी से नहाती थी। जबकि और लोग गर्म पानी से नहाते थे। वहां बड़े सारे भगोने में बाहर आंगन में चूल्हा जलाकर पानी गर्म होता रहता था। परंतु उसको तो सास के उठने से पहले नहाना पड़ता था तो फिर गर्म पानी कैसे तैयार होता?

अंधेरा दूर भी नहीं होता बाहर खड़े होकर दांत साफ करना पड़ता जल्दबाजी में सिर पर पानी डालकर पूजा के कमरे में भागकर जाकर पूजा की तैयारी करती बस अभी उसे सब पिक्चर जैसे दिखाई दे रहा है।

"उस समय मेरे बारे में किसी ने सोचा क्या? मेरी सुविधा-असुविधा के बारे में किसी को पता था? किसी ने एक शब्द भी पूछा?"

जल्दी से किसी ने पकड़ कर उसे हिलाया जैसे पानी ऊपर डालते समय उसका हाथ रुक गया। पुरानी यादें भयंकर रूप से उन्हें याद आ रही थी।

एक बार जंबूलिंगम को घर आने में बहुत देर हो गई। वह 1:00 बजे तक इंतजार करती रही फिर थकावट के कारण सोने के कमरे के पास ही चांदनी रात में नीचे लेट कर सो गई। सुबह आंख खुली तो वह बिस्तर पर सोई हुई थी और पास में जंबूलिंगम सोए हुए थे इसे उसने महसूस किया तो उसे आश्चर्य हुआ। घोड़ा-गाड़ी कब आई ये अंदर कब आए और मुझे किसने उठा कर ऊपर डाला यह सब मुझे कैसे महसूस नहीं हुआ और लकड़ी जैसे मैंने इन सब को महसूस कैसे नहीं किया उसको सोचते ही उसे शर्म आई।

रोज जैसे वह आंखें खोलते ही अपने मंगलसूत्र को आंखों में लगाया और उसके पैरों को छू कर बाहर आई तो उसे कुछ समाधान हुआ। उसे लगा पत्नी आंगन में सो रही है ऐसी प्रज्ञा थी तभी तो उसने उसे उठाकर पलंग पर डाला?

इस सोच ने उसके सारी नाड़ी और नसों में इस खुशी का तूफान सा आया । 

हमेशा से अधिक समय तक कुएं के पानी से नहा कर गीले साड़ी पहनकर बाहर आते समय कोई कुएं के पास खड़ा दिखाई दिया। उसे अजीब सा लगा। अभी अंधेरा पूरा गया नहीं। वह जल्दी से फिर कमरे में जाकर सूखी साड़ी को पहन कर बाहर आई।

कुएं के पास अपने चेहरे को धोता हुआ दिनकर खड़ा था। यह क्या कर रहा है सोचकर आश्चर्य से उसने देखा। वह अपने रुमाल से चेहरे को पोंछते हुए उसकी तरफ देख हल्का सा मुस्कुराया।

"कल रात को आते समय देर हो गई। बहुत थकावट होने के कारण यही सो गया। अच्छा मैं चलता हूं" बोला।

"आप कहां सोए थे? मैंने नहीं देखा" वह आश्चर्य से बोली। "बाहर आंगन में" दिनकर बोला।

उसका चेहरा लाल हो गया। अपने को संभालते हुए बोली "सोठ की कॉफी बना देती हूं पीकर जाइए" वह बोली।

"नहीं देर हो जाएगी" वह बोला फिर हिचकिचाते हुए उसे देखा।

"सर्दी के दिनों में खुली आंगन में चांद के चांदनी में लड़कियों का अकेला सोना ठीक नहीं। इतनी जल्दी उठ कर ठंडे पानी को सिर पर डालने से ठंड लग जाएगी!"

शर्म से उसकी आंखें लाल और गर्म हो गई। मुझे नहाते हुए इसने देखा होगा क्या ? ऐसे डर से उसका दिल धड़कने लगा। परेशानी से उसे देखा। उसकी निगाहों में एक हंसी, व्यंग्य और एक मित्रता दिखाई दी जिसे देख कर उसे कारण का पता ना चलते हुए भी हंसी आ गई।

"इस शरीर को जुकाम भी नहीं पकड़ेगा" कहकर वह हंसी तो एक बार उसने उसे ऊपर से नीचे तक देखा।

"बहुत लापरवाही मत करिए। आपकी तबीयत खराब हो जाए तो यहां आपको देखने वाला कोई नहीं है मुझे पता है।"

ऐसा कह कर जल्दी से बिना मुड़े वह पिछवाड़े से ही बाहर चला गया।

वह आश्चर्य के साथ रसोई के चौखट पर गई और उसी समय उसने काम शुरू कर दिया। उसके सामने खड़ा होना, उससे बात करना और उसको जवाब देना एक गलत काम है ऐसा उसके मन को बुरा लगने लगा। फिर भी उसका अपनत्व वाला भाव, दया वाली दृष्टि मन को एक आराम देने के साथ अच्छा भी लग रहा था।

वह अचानक हड़बड़ा कर अपने स्वयं की स्थिति में आ गई।

"मेरी बुद्धि खराब हो गई। इसी ने मुझे उठा कर छूकर कल पलंग पर डाला है। आज नहाते समय मुझे देखा होगा क्या? उसे मन में रखकर ही मुझसे आराम से बात कर रहा था क्या? मैं एक बेवकूफ हूं, यहां जो परेशानियां है वह कम है क्या?"

जल्दी-जल्दी उसके हाथ चलने लगे और दिमाग से सोचने भी लगी। आज समय मिलने पर जरूर पूछ लेना चाहिए। यह सब तुम्हारे लिए अच्छा है क्या पूछना है। शरीर, मान, रुपया सब कुछ जा रहा है। कोई भी आकर हमारे सोने के कमरे में घुसता है आप बिना होश में रहे आपकी तबीयत की वजह से आपकी पत्नी के शरीर को कोई छूएं आपको सही लगता है क्या पूछना पड़ेगा.....

उस दिन बिना आदत के दोपहर को खाना खाकर जंबूलिंगम घर पर ही था। वह खाना खा के रवाना होगा उस समय उसे अच्छी तरह से समझाऊँगी ऐसा उसने पक्का इरादा किया। उसकी सास उनके पास ही ना जाने देकर हमेशा की तरह स्वयं ने ही खाना परोसा। उसके बाद वे दोनों हाथ धोकर ही रवाना हो गए।

लंबी बैलगाड़ी में घुंघरू की आवाज सुनकर उसे पता चला। उनके साथ सास भी क्यों गई उसे पता नहीं चला। किसी घर में कोई मौत हो जाए या कोई काम हो तो दोनों साथ जाते हैं। परंतु कहां जा रहे हैं सास बोल कर जाती।

आज तो उसका होना भी याद नहीं जैसे चले जाना उसे दुखी किया।

"मैं इस घर में सब लोगों के लिए खाना बनाने, पति बुलाए तब उसके दीवानेपन की इच्छा की पूर्ति के लिए ही हूं।" उसका मन ऐसा सोच-सोच कर दुखी हुआ। आज रात को इसके बारे में भी पूछ लूंगी। शादी होकर दस साल हो रहे हैं। पीछे आंगन से बाहर के दरवाजे तक घर की पूरी जिम्मेदारी मैंने संभाली हुई है। एक दिन भी रसोई में ना हो तो घर ही हिल जाएगा। आपके चेहरे पर कोई बदलाव न आए सास के चेहरे पर कोई बदलाव न आए इस तरह से मैं हमेशा चलती हूं। आपकी पत्नी होने के कारण ही तो मैं यह सब कुछ खुशी से करती हूं? आपको ऐसा महसूस नहीं होता है क्या ?" ऐसा पूछना चाहिए।

उस दिन रात देर से आया। परंतु दिनकर नहीं आया। नशा भी ज्यादा नहीं था।

भूख और नींद की स्थिति में था।

"खाना खाओगे ?" सरोजिनी ने पूछा।

"नहीं खाना खा लिया।" वह बोला।

"थोड़ा जल्दी आ जाओ तो ठीक है?" वह बोली। "आपके लिए मैं भूखी इंतजार करती हूं।"

"फिक्र मत करो! अब तुम्हें मेरे लिए इंतजार करने की जरूरत नहीं पड़ेगी क्योंकि इस काम के लिए एक दूसरी आने वाली है" वह व्यंग्य से बोला..."

नलिनी के आवाज को सुनकर सरोजिनी वर्तमान स्थिति में आई।

*****