Diwali festival in Hindi Horror Stories by आरोही" देसाई books and stories PDF | दिवाली की छुटिया

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दिवाली की छुटिया

में और मेरा परिवार शहर रहते थे। में बीएससी बायोटेक्नोलॉजी का कोर्स कर रहा था। मेरी अच्छी पढ़ाई हो पाए इसलिय मेरे मम्मी पापा मेरे बचपन से गाव को छोडकर सिटी में रहने आ गए थे। मेरा बाकी का परिवार चाचा चाची, मामा मामी और मौसा मोसी सब गाव में थे । मैंने अपने पापा के मुह से अपने गाव के बारे में बहुत कुछ सुना था। गांव में ऐसा होता है और होता है । सब लोग वहा पे त्यौहार बड़े धूमधाम से मनाते हैं। और क्या कुछ नहीं सुना था। बहोत कुछ सुना था।इस्लिये मुजे गांव में जाने का बहुत मन हुआ। मेरी इच्छा प्रबल हो रही थीl
उन दिनों में मेरा दीवाली का वेकेशन चल रहा था तब में अपने चाचा चाची के वहा रहने गया। काफी मस्ती ढोल धमाके से मेरा वेकेशन गुजर रहा था तब दिवाली के दिनो आने लगे।
तब एक दिन भीम एकादशी का आगमन हुआ, दूसरे दिन वाघ बारस थी। वाघबारस के दिन सब गाव वाले अपने अपने गाय जानवर के सिंग को गेरू से कलर करते थे, ये सब देख के मुझे शोक लग गया इसे पहले मुझे पता नहीं था कि वाघबारस के दिन एसा करते हैं और मेने कभी देखा भी नहीं था। मेने कारण पूछा तब काका ने बताया के पहले दादा के जमाने से ये मान्यता हैl फिर तीसरे दिन धनतेरस आई सब लोग हरशो उल्लास के साथ धन की पूजा में लग गए।
तब वहा मुजे एक ओरत दिखी। मैं उसे देखने के लिए थोड़ा आगे चला उसके नजदिक गया तो वो बहुत प्यार से मुझसे बात करने लगी ।

वो आंटी – बेटा मुझे तेहवार बहोत पसंद हैं। में सारी तैयारियां खुद अपने हाथो से करती हूं ।

में– आंटी आपका नाम क्या हैं।

वो आंटी – मेरा नाम कमला हैं।

में–कमला आंटी आप कहा रहती हो और क्या करती हो।

कमला आंटी– में गांव में रहती हूं ये गली में लास्ट में मेरा घर हैं। और में घर पे ही काम करती हु। और मेरा एक बेटा हैं । मगर वो मेरे साथ भी रहता अपने बीवी के साथ सिटी में रहता हैं । यहां पे में अकेली ही रहती हूं।

में– ठीक हैं आंटी।

काली चौदस आई तो गाव वाले सब सुबह जल्दी उठ जाते हैं। यहां मान्यता थी की देरसे उठने पे अपना मुंह काला हो जाता हैं काली चौदस की तरह इसलिए जल्दी उठ के नहा लेते हैं। और रात में सब अपने घरों से कचरा निकल के गाव के बहार एक जगह सब कचरा फेकने जाते हैं..सब गीत गाते गाते धूम थाम से जाते थे...वो गीत था...

"**अरियु मेरियु दीवाली नु पेरीयु, चचर मकड़ अरियु मेरियु दीवाली नु पेरियु.....
चचर मकड़ गंगली घांची न घरे जय अरियु मेरियु दीवाली नु पेरियु..
गाय –भेश चचर मकड़ गंगली घांची न घरे जा..आ वर्से आई वैसी दिवाली आवते वर्सो में जल्दी आवजे।"**.
.
ऐसे गीत गाते हुए गाव के सारे लोग गाव बहार एक जगह सारे गाव वलो का घर का कचरा एक जग पे सब फकते हैं और घर वापस आ जाते हैं.। फिर दूसरे दिन दीवाली थी इसलिये बुजुर्गो के आशीर्वाद लिए और सब उत्साह के साथ जलदी सो गए.. मैं भी सोने ही जा रहा था की वो कमला आंटी फिर से मुझे दिखी..तो थोड़ी देर में उसके साथ में बैठा और बात की। फिर थोड़ी देर बाद वो चली गई और में सो गया। सुबह दीवाली का दिन था। और सब उल्लास के साथ दिवाली मना रहे थे । फिर रात हुई धीरे धीरे ही अचानक से कुछ आवाज आई मगर क्या कहा गया आया वो पता नहीं चला। तो मैंने तब अनदेखा किया फिर हम सब लोग फटाके जलाए और सारे बम जलाए फिर खाना खाके बाते करते करते सो गए। फिरसे वो आवाजे आने लगी। कभी डिब्बों की तकराने की आवाज आ रही थी। मेने देखने की लिए उठा तो मेने देखा की वो आवाज तो चूहे इधरउधर भाग रहे थे उसकी थी और में सो गया फिर सुबह हुई। अब मेरा वेकेशन खतम होने वाला था फिर से मुझे अपने घर जाना था। तो में सबको मिल ने जा रहा था या आशीर्वाद ले रहा था। मैं वो कमला आंटी के घर पे भी गया मगर वहां कोई नहीं था।पूरा घर वीरान पड़ा हुआ था । तो मेने सोचा की ये सब क्या हैं। फिर में अपने चाचा के घर चला गया l

में–चाचा को पूछा वो कमला आंटी का घर में गया था..पर वहा कोई नहीं था । मेरी बात सुनके काका डर गए। और मेने 3/4 दिनों में मेरे साथ जो कुछ भी हुआ सब बताया तो वो सुनके डर गए।

चाचा – ने मुझे बताया कि वो ओरत तो अभी इस दुनिया ने हैं ही नहीं। जब उसका लड़का उसे छोड़ कर चला गया था। थोड़े ही दिनों में वो सब सहन न कर पाई और चल बसी मगर वो ओरत बहुत अच्छी थी। सारे त्यौहार से बहोत प्यार था ।वो सारे त्यौहार की तियारी खुद किया करते थे, और मनाती थी। मगर उसका बेटा उसके साथ चलकापत करके जमीन सारी अपने नाम करवा के उसे छोड़ कर चले गए थे और सदमे में वो चल बसी तबसे उसका घर विरान पड़ा हुआ है।

ये सब सुनके में दंग रह गया। वेकेशन खतम होने वाला था इसलिए में गांव से बस में बैठ के अपने घर सिटी में लोट आया।