मैं गुजरात के माधवपुर मे M. Tech (Aerospace Engineering) की फर्स्ट यर मे था, माधवपुर मैं नया नया बाहर आया था, मैंने B. Tech अपने ही शहर अहमदाबाद से की थी। मैं मेरी कॉलेज से थोड़ी दूर एक पी. जी. मे रहता था,मेरी कॉलेज और पी. जी. के रास्ते में एक बहुत ही भव्य लाइब्रेरी थी, मैं दूर से ही उसे देखता था, एक दिन मुजे जिज्ञासा हुई और मैं उस लाइब्रेरी मे गया, वो एक बहुत ही बड़ी लाइब्रेरी थी जिसमें बहुत सारी शेल थी जिसमें किताबे रखी गई थी, वहां तरह तरह की किताबे थी जैसेकि वुमन स्पेशल, थ्रिलर, हॉरर, हास्य - व्यंग, जासूसी नॉवेल, किड्स ईन सभी विषयों पर किताबे और मेगेझिन थे, खास बात तो ये थी कि विद्यार्थि के लिए एक अलग कमरा था जोकि बहुत बड़ा था और वहा इंजीनियरिंग, मेडिकल, कमपिटीटिव एक्साम की किताबे थी, पूरी लाइब्रेरी घूमने के बाद मे लाइब्रेरीयन के पास गया,
मैं :- सर यहां पर लाइब्रेरी चार्ज कितना है?
लाइब्रेरीयन : 80 rs 1 साल की फीस और 160 rs सिक्यूरिटी डिपॉजिट जोकि आपको 1 साल के बाद रिफंड मिल जाएगी। 1 साल के बाद आप रीन्यू भी करवा सकते हो।
एसा करने मे कुछ बुरा नहीं था, मैंने तुरंत डॉक्युमेंट सबमिट कर दिए और अकाउंट ओपन करवा लिया।
मैं किताबों का बड़ा शौकीन था, उस लाइब्रेरी से मे अक्सर शेरलोक होम्स की किताबे लाकर पढ़ता था, कभी कभी उधर मैं मेरी इंजीनियरिंग की स्टडी के लिए भी जाता था, वहा बहुत ही शांति होती थी, उधर मेरी Aerospace Engineering की बुक्स भी थी इसलिए मुजे किताबों का खर्चा नहीं हुआ था, hamare लाइब्रेरीयन का नाम आदित्य था वे स्वभाव से बहुत ही अच्छे थे वो कभी कभी मुजे भरोसे पर दो किताबे लेने देते थे, मैं बहुत ही खुश था कि नए अनजान शहर में एक अच्छी जगह मिल गई थी।
एक दिन की बात है, मैं उधर मेरी इंजीनियरिंग की स्टडी कर रहा था तभी उधर करीबन 70 साल के एक बुजुर्ग आए, उन्होंने खादी का कुर्ता और पायजामा पहना हुआ था, लाइब्रेरी मे उस कमरे में कोई नहीं था, लाइब्रेरियन भी कहीं बाहर गए हुए थे, वे मेरे पास आए और मुजे किताबों के बारेमे पूछने लगे, मैंने उन्हें जवाब दिया, फिर कहीं जाकर वापिस मेरे पास आए और मुझसे बाते करने लगे।
बातों बातों मे मुजे ये पता चला कि उनका नाम उमाकांत चौधरी थे, वे भी किताबों के शौकीन थे। हम दोनों हर दिन मिलते थे लेकिन वो किसी से भी बात नहीं करते थे और वो तब ही आते थे जब लाइब्रेरी मे कोई नहीं होता था, मैंने एक दिन उनसे एक पूछ ही लिया,
मैं : दादा, आप तब ही क्यु आते हो जब कोई नहीं होता है, मैंने खास नोट किया है।
उमाकांत (हिचकिचाते हुए) : अब क्या बताऊ तुम्हें, यहा मेरा अकाउंट था, तब मैंने एक बुक ली थी, वो बुक मेरे से खो गई थी, ये यहा के हेड ने मुझसे इस बुक का फाइन लिया था, तब से वो मुझसे तिरस्कार से बात करने लगे, इसलिए मैंने अकाउंट बंद करवा दिया। इसलिए मैं यहा कम आता हू।
एक दिन की बात है, मैं लाइब्रेरी में गया वहा मुजे इंजीनियरिंग की एक बुक "Aerodynamics" by Bannet, नहीं मिल रही थी, आखिरी कॉपी कोई पहले ही ले गया था, तभी वहा उमाकांत दादा आए, मैंने उनसे बात बताई, उन्होंने कहा
उमाकांत : कोई बात नहीं, मेरे पास है ये बुक।
मैं : क्या??!! आपके पास कैसे है ये किताब?
उमाकांत ( हंसते हुए) : अरे मेरे पास तो पूरा कलेक्शन है, तू जो मांगेगा वो मिलेगा।
मैं उनकी बाते सुनकर आश्चर्य मे पड गया, फिर जब भी कोई किताब लाइब्रेरी मे नहीं मिलती थी तब वो उनके पास होती थी फिर चाहे वो शेरलोक होम्स की हो या इंजीनियरिंग की। एक दिन वो आना बंद हो गए, मैंने बहुत ढूँढा लेकिन वो नहीं मिले मुजे, एक दिन मैंने उनके बारेमे लाइब्रेरियन आदित्य से पूछा, आदित्य ने कहा
आदित्य : हमारे रिकॉर्ड मे एसा कोई है ही नहीं।
मैं : वे 70 साल के थे और उनके पास सभी तरह की बुक होती थी।
आदित्य : एसा कोई है ही नहीं, लकिन...
मैं : लेकिन क्या!
आदित्य : तुम जो बोल रहे हो एसा एक लाइब्रेरियन पहले के ज़माने में हुआ करता था 1980 के दशक में, वो किताबों के बहुत शौकीन थे, उन्होंने रिटायर्ड होने की बाद भी लाइब्रेरी मे आना जारी रखा था, वे किताबों को पढ़ते थे और एक दिन....
मैं : एक दिन क्या??..
आदित्य: एक दिन किताबों के बीच ही उनका देहांत हो गया, किताब पढ़ रहे थे तभी उन्हें दिल का दोहरा पड़ा था। मैंने जब यहा नौकरी जॉइन की तब मैंने एसी अफवाह सुनी थी कि उनका प्रेत कुछ कुछ लोगों को दिखता है, मैं इन सभी बातों मे यकीन नहीं करता, वैसे तुम अचानक ये सब क्यु पूछ रहे हो, तुम्हें भी उनका प्रेत दिखा क्या?
इतना बोलकर वो हंसने लगे, मेरे दिमाग मे उमाकांत जी घूमने लगे मैंने आगे पूछा,
मैं : उनका नाम बताएंगे जरा?
आदित्य : उनका नाम था... (सोचते हुए).. अम्म.. हाँ, उनका नाम था उमाकांत।