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नीला लिफाफा
तभी किसी ने उसके कंधे पर हाथ रखा। गोलू ने अचकचाकर आँखें खोल दीं। उसने देखा, एक अजनबी आदमी उसके पास खड़ा है—खासा लंबा और पतला। कोई छह फुट का तो जरूर होगा। बड़ा रोबीला।...पर मुसकराती हुई आँखें।
उस आदमी ने इशारे से गोलू को अपने पीछे-पीछे आने के लिए कहा। गोलू एक क्षण के लिए तो कुछ कह नहीं सका, पर फिर जैसे जादू की डोर से बँधा खुद-ब-खुद उसके पीछे-पीछे चल दिया।
कुछ दूर जाकर उस अजनबी ने जेब से एक नीला लिफाफा निकाला। उसे गोलू को देते हुए कहा, “तुम मुझे अच्छे बच्चे लग रहे हो। मेरा एक काम करो। बाहर एक आदमी काली पैंट सफेद कमीज पहने खड़ा है। अभी जाकर उसे यह दे देना। बहुत जरूरी पत्र है।”
गोलू कुछ समझ पाता, इससे पहले ही उस आदमी ने सौ रुपए का एक नोट उसकी ओर बढ़ाते हुए कहा, “लो, यह रख लो।”
“यह...यह किसलिए? रहने दीजिए अंकल। इसे छोटे से काम के लिए सौ रुपए क्यों दे रहे हैं?” गोलू ने झिझकते हुए कहा।
“नहीं-नहीं, यह तो वैसे ही है।” उस आदमी ने हँसकर कहा, “इन पैसों से तुम चॉकलेट ले लेना। असल में जो लिफाफा तुम्हें दिया है, वह बहुत जरूरी है। उस आदमी को मदद की जरूरत है।...मैं खुद चला जाता, पर मेरी गाड़ी छूटने का टाइम हो गया है। तुम मुझे जिम्मेदार लड़के लग रहे हो। इसीलिए तुम्हीं पर यह जिम्मा छोड़ रहा हूँ।...तुम उसे दे जरूर देना। नहीं तो बेचारा परेशानी में फँस जाएगा।”
गोलू ने एक बार फिर कोशिश की कि सौ रुपए का वह नोट उस अजनबी को वापस कर दे। पर उसका बार-बार एक ही आग्रह था, “यह तो एक छोटी-सी भेंट है तुम्हारे लिए।...तुम मुझे बड़े भले भले और जिम्मेदार लड़के लग रहे हो। इसीलिए तुम्हीं को यह जिम्मा सौंप रहा हूँ।”
और जब गोलू लिफाफा लेकर बाहर चलने लगा तो उस लंबे आदमी ने फिर याद दिया, “हाँ, भूलना नहीं। सीढ़ियों से उतरोगे तो गेट के ठीक सामने काली पैंट, सफेद कमीज पहने एक आदमी नजर आएगा। उसके पास चमड़े का थैला होगा। उसी को देना यह लिफाफा। उसकी को—किसी और को नहीं। और हाँ बता देना कि रफीक भाई ने यह दिया है, रफीक भाई ने!”
गोलू ने उसे भरोसा दिलाया और तेजी से चलता हुआ झटपट सीढ़ियाँ उतरकर रेलवे स्टेशन से बाहर आ गया।