Vo Pehli Baarish - 42 in Hindi Fiction Stories by Daanu books and stories PDF | वो पहली बारिश - भाग 42

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वो पहली बारिश - भाग 42

“हहम्म.. ठीक है, जैसे भी हो, मुझे बता देना।", चंचल ने ये बोलते हुए फोन काटा ही था, की सुनील ने पूछा।
“क्या हुआ है?”
“एक मिनट..” सुनील को रुकने का कह के चंचल दोबारा से फोन करने लग जाती है।
“हाय निया.. कैसी हो?”, चंचल ने फोन पे बोला।

“.... ठीक है.. कोई बात नहीं।", चंचल की बातें सुन कर निया बोली।
“क्या हुआ?”, निया के साथ खड़े ध्रुव, रिया और कुनाल ने आतुरता से पूछा।

“कुछ खास नहीं, वो आहना है ना, मेरी टीममेट जो चंचल के साथ यहाँ रहने वाली थी, उसको किसी ईमर्जन्सी की वजह से छुट्टी लेनी पड़ रही है, तो चंचल का कहना है की, उसकी जगह कुछ दिन के लिए मैं ये काम कर लूँ। उन्होंने सॉरी कह कर ये भी कहा की उन्हें पता है इसकी वजह से घर मिलने को लेकर कुछ परेशानी भी हो सकती है, और ये भी की मैं बेझिजग उनसे इस बारे में बात कर सकती हूं।"

“मतलब तू अभी कहीं नहीं जा रही ना?”, रिया ने खुशी से पूछा।

अपनी गर्दन हाँ में हिलाते हुए निया बोली, “हाँ.. चंचल की बातों से लग तो यही रहा है।"

“बढ़िया.. कल मेरी रात की शिफ्ट थी, मैं तो चली सोने फिर।", चेन की सांस लेते हुए रिया ने कहा।

“ओए.. सोने कहा.. एक बार जो पार्टी करने की बात तय हो गई, सो हो गई।", अपने कमरे में जाती रिया के पीछे भागते हुए कुनाल ने बोला।

“हाँ.. तो कर ले ना पार्टी.. तुझे किसने मना किया है, मेरी जगह, अपनी शिपि को ले जा।", रिया ने आराम से अपने पलंग पे बैठते हुए कहा।

“वो भी आ जाएगी.. पर तू भी चलेगी, तेरा बिना वो मज़ा नहीं आएगा।", कुनाल ने कमरे के दरवाज़े पे खड़े हो कर कहा।
वहीं दूसरी ओर, बाहर हॉल में खड़े निया और ध्रुव एक दूसरे को ही देखे जा रहे थे।

“क्या हुआ? तुम खुश नहीं हो, ये सुन कर?”

“हहम्म..”, ध्रुव ने निया को देखते हुए जवाब दिया। "अच्छा है, तुम कुछ दिन यहीं हो अभी, तुम्हें मेरे बड़ी सारी मदद करनी थी, जो सब छोड़ के तुम जा रही थी।", अपना ध्यान निया पे रखते हुए ही ध्रुव अपनी आँखें छोटी छोटी करते हुए बोला।

“ओए.. तू सो कर दिखा, मैं पानी डाल दूंगा तेरे पे...”, कमरे से कुनाल की आवाज़ आ रही थी।

“तू पीट जाएगा..”, रिया की ये बात सुनते ही, निया बोली।

“हम दोनों और इन दोनों में, ये ज्यादा बड़े बच्चे है, है ना?”

“हहम्म.. देखा जाए तो वैसे कभी किसी ने बताया नहीं, की दूध फेकने और पानी फेकने में से ज्यादा बचपना किस में होता है।", ध्रुव हँसते हुए बोला।
“तुम कौनसे कम हो वैसे..”, ये बोलते ही निया भी कमरे की तरफ भागी।

“ये मुझे क्या हो गया है.. मैं क्यों इतना खुश हो रहा हूँ, वो गले लगने वाली बेवकूफी कम थी क्या, जो अब ऐसे खुशी हो रही है मुझे, जो फूले नहीं समा रही।", ध्रुव खुद से बोला। "ध्रुव अपने आपे में वापस आ.. कुछ खास थोड़ी है, सिर्फ इतनी ही तो बात है, की निया यही रुकेगी.. और कुछ भी नहीं है।", ध्रुव धीरे से खुद से बोला।

"वहीं तो ध्रुव.. निया यहां रुक रही है।", उसके पीछे से आया कुनाल उसके पास आते हुए बोला। ध्रुव ने जैसे ही पीछे मुड़ कर उसे देखा, तो अपनी बोहे ऊपर नीचे करता हो वो बोला, "आज खुश तो बहुत होगे तुम..ह.. ह..", हल्की कोहनी मारते हर कुनाल ने ध्रुव को छेड़ा।

"आजकल शिपी कहीं दिखाई नहीं देती?", ध्रुव ने कुनाल के छेड़ने का जवाब देते हुए बोला।

"तूने पूछा.. और आ गई वो।", अपने फ्लैट के बाहर खड़ी काली लॉन्ग ड्रेस में खड़ी लड़की पे इशारा करते हुए उसने कहा।

"मुझे पता था.. की तू उसे इतना याद करेगा.. इसलिए पहले ही बुला लिया था मैंने..", बाहर जाते हुए कुनाल खुश होते हुए बोला।

***********************
"तो मतलब निया तुम्हारे साथ ही रहेगी..", अपने से दूर बैठी हुई चंचल से सुनील ने पूछा।

"हां.. लगता तो यही है।"

"सही है, किसी की किस्मत तो उनके साथ है।", सुनील ने आगे से बोला।

"तुम्हें पता है ना, की ये किस्मत वगरहा की बकवास.. सिर्फ वो लोग करते है, जो खुद कुछ नहीं करते।"

"मुझे पता है, की तुम्हें ये सब बकवास लगता है.. पर देखो ना.. अभी जो हुआ.. उसमें हम क्या कर सकते थे.. या तो तुम, या मैं, ये हमने थोड़ी मांगा था, ये तो बस हो गया।"

"पर फिर हमने कुछ किया भी तो नहीं.. बस चुप चाप मान के बैठ गए, और दो लोगो के आगे रो लिए।", चंचल ने रूखे अंदाज में जवाब दिया।

"तुम कुछ खाओगी?", चंचल की बातों को नजरंदाज करते हुए सुनील ने पूछा। बदले में चंचल ने भी उसे नजरंदाज करके टीवी की आवाज़ बढ़ा ली।

**********************

"एक फोन तो कर सकती हूं.." अपने घर में बैठी नीतू, उसके साथ सोफे पे पड़े फोन में खुले दीवेश के नंबर को देखते हुए खुद से बोल रही थी।

"कर ही लेती हूं.. कह दूंगी कुछ काम का पूछना है, वैसे भी वो दीवेश है, पूरे हफ्ते काम लेकर बैठने वाला।", खुद से ये बोलते हुए नीतू ने फोन उठा लिया।

वो हिम्मत करके कॉल वाले बटन को दबाने ही वाली थी, की इतने में उसका फोन बज पड़ा।

स्क्रीन पे दीवेश का नाम फ्लैश हो रहा था, जिसे देखते ही उसने एक दम से इधर उधर देखा, "मेरी जासूसी तो नहीं कर रहे ना ये!"

"हेलो..", नीतू ने फोन उठाते ही बोला।

"अरे.. ये कहां फोन लग गया।", सामने से दीवेश की आवाज़ आई, "ओह.. नीतू तुम हो.. सॉरी वो मैं बाहर आया था, और अपनी डेट को फोन कर रहा था, पर लगता है गलती से तुम्हें लग गया।"

"हह.. ऐसे कैसे?"

"वो क्या है ना, की तुम दोनों के नंबर आगे पीछे है, मेरे फोन में, तो गलती से ऊपर वाले की जगह नीचे वाला लग गया।", दीवेश नीतू को समझाते हुए बोला।

"ठीक है..", ये बोलते ही नीतू ने गुस्से में फोन काट दिया।

कुछ देर वहीं बैठी नीतू कुछ सोच ही रही होती है, की इतने में उसका फोन दोबारा से बजता है।

स्क्रीन पे फिर से दीवेश का नाम आ रहा था।

"देखिए दीवेश.. मैं नीतू हूं, आपकी डेट नहीं.. जो आप बात बार मुझे परेशान करे जा रहे है.. इस तरह ऑफिस के कॉलीग को इतनी देर रात में फोन नहीं कर सकते।", नीतू ने एक सांस में सब बोल दिया।

"एक्सक्यूज मी.. सॉरी मैंने गलत जगह फोन कर दिया शायद..", एक अनजान आवाज़ ने नीतू को कहा।

******************************************

"हाय, मैं नीतू.. आपसे फोन पे बात हुई थी।", नीतू पास की पार्क में पहुंच कर, वहां खड़े उस अनजान इंसान से बोली।

"हाय.. ये बैठे वो, मैंने पानी तो दे दिया है इन्हें, बाकी आप देख लेना।"

"जी.. शुक्रिया।", नीतू ने उसे अनजान इंसान को बोला और वहीं पास ही बेंच पे बैठे दीवेश के पास गई।

"बाहर हूं.. डेट पे हूं.. ये कैसी डेट है आपकी, की लो शुगर के कारण आप बेहोश हो गए, और उसे पता भी नहीं लगा।", दीवेश को चॉकलेट जैसा कुछ देते हुए नीतू बोली।

"हह.. मैं ठीक हूं।", दीवेश ने नीतू को देखते हुए कहा।

"चुप चाप खा लो इसे पहले, उसके बाद ही वापस जाना है।", दीवेश की इस परेशानी से अच्छे से वाकिफ नीतू ने गुस्से में बोला।

हल्के से हाथ बढ़ा कर चॉकलेट लेते हुए, दिवेश बोला।

"अच्छा लग रहा होगा ना तुम्हें ये देख कर, उतनी ही बेकार हालत में हूं, जितनी में तुम छोड़ कर गई थी.. चले अब?"

कुछ देर बाद साथ चल रहे दीवेश को हैरानी से देखते हुए नीतू बोली।

"क्या कह रहे थे आप बेकार.. आप और बेकार! आपको पता है, आप मेरे लिए तो कुछ परफेक्ट लोगों में से एक है, आपकी नॉलेज, ड्रेसिंग सेंस सब एकदम बढ़िया है।"

"हहह.. और फिर भी तुमने मुझे छोड़ना सही समझा।"

"वो.. वो तो मैं थी.. आपको पता है, अभी कुछ दिन पहले ही मुझे किसी ने क्या बताया।", नीतू ने बातों का टॉपिक चेंज करनी की कोशिश की।

"क्या?", दीवेश ने पूछा।

"बारिश.. पता है, कुछ लोगों के ब्रेकअप का एक कारण पहली बारिश भी होती है। और जिस दिन हमारा ब्रेकअप हुआ था, उस दिन पहली बारिश हुई थी।"

"बहुत खाली टाइम है आजकल तुम्हारे पास.. लगता है, तुम्हे और काम देना पड़ेगा, ये बारिश वारिश..", हंसते हुए दीवेश बोल ही रहा था की इतने में हल्की हल्की बारिश आ गई।

"दीवेश.. ", पास ही के पेड़ के नीचे भागते हुए नीतू ने बोला। "आपने तो बारिश को याद किया, और वो हो गई!!"

वो लोग अभी पार्क से निकले ही थे बस, और उसकी एक ओर नीतू की सोसायटी थी, और दूसरी ओर दीवेश की।

दोनों ने तय कर के वहीं से एक दूसरे को अलविदा कह दिया और अपने अपने रास्ते चल दिए।

***********************

"हाय.. कैसा है?"

"मैं ठीक हूं.. तू बता.. आज कैसे याद कर लिया तूने मुझे।", ध्रुव ने फोन पे जवाब देते हुए कहा।

"याद इसलिए किया है, की तुझे बता सकू की आ रहा हूं मैं।"

"हहह!! कब कहां?"

"कहां क्या, पुने आ रहा हूं.. मेरा घर साफ करा दियो, नहीं तो तू बहुत पिटेगा मुझसे। दो दिन बाद की फ्लाइट है मेरी।"

"थोड़ा जल्दी नहीं बता सकता था तू.. अब मैं वीकडेज में कहां जाऊ?"

"बाय..", ये बोलते हुए शुभम ने फोन काट दिया।

ध्रुव का लटका चेहरा देख, साथ बैठी काम करती हुई निया ने पूछा।

"क्या हुआ?"

"कुछ नहीं, मेरे भाई का फोन था, वो वापस आ रहा है।"

"वाह.. सही है फिर तो।"

"हां.. जनाब के आने से पहले, उसका कमरा साफ़ कराके आना तो सही ही है।"

***********************

"सुनो इस सैटरडे को ही वो दिन है..", ध्रुव कॉफी पीती हुई निया से आकर बोला।

"कौन सा दिन?"

"पहली बारिश का दिन.., हमे इस बार कुछ करना ही होगा, इसके बाद तो बारिश का मौसम भी चला जाएगा, तो कुछ नहीं हो पाएगा।"

"हहमम.." निया ने आधी नींद में बोला।

"लेकिन ये होता, कैसे है?", पीछे से आई चंचल ने पूछा।

"हह.. हाय मै’म.. क्या होता है?.."

"ये पहली बारिश वाला।"

"अअअ.. मै’म वो.. फोन आ रहा है मेरा", ध्रुव का फोन बजा तो वो अपनी बात अधूरी छोड़ कर चला गया।

"तुम बताओगी, की ये क्या है?", चंचल ने निया से पूछा।

"ह.. हाँ", निया ने थोड़ा असहज होते हुए बोला।

"बताओ फिर..", चंचल के ये बोलते ही, निया को जो पता है, उसने चंचल को बताया।
"बढ़िया.. चलो काम खत्म करते है।", निया की सारी बातें सुन कर चंचल बोली।

चंचल की बातों से परेशान निया, घर पहुंच कर रिया से बोली।

"ओए पता है.. ध्रुव के साथ कंपटीशन में मैं जानबूझ के हारी थी..."

उसकी बातों को सुन कर नजरंदाज करते हुए रिया, अपने कमरे में चली गई।

"तू पूछेगी भी नहीं, की ऐसा क्या हुआ था, जो मैंने ये किया।"

"नहीं, मैं पूछूंगी तो नहीं.. तूने बताना है तो बता दे।", रिया ने रूखे अंदाज में बोला।

"क्योंकि मुझे सिमरन के साथ जा कर रहना था।"

"अच्छा.. ठीक है। सो जा अब जाकर।", रिया अपने कमरे की ओर बढ़ते हुए बोली।

"तुझे गुस्सा नहीं आया, ये सुन कर।"

"आया.."

"तो फिर तो कुछ कर क्यों नहीं रही।"

"मैंने क्या करना है, तेरा प्लान अपने आप ही फेल हो गया।"

"हां.. पर तू मुझे घर से बाहर निकाल सकती है, कह दे की जा पहले तुझे नहीं रहना था, अब मुझे नहीं।"

"पर क्यों.. मुझे तेरे साथ रहना पसंद है। अगर तुझे नहीं रहना, तो तू जा सकती है.. मैं क्या कर सकती हूं उसमें।"

"अ.अ.. शुक्रिया.. पर लोग अक्सर ऐसे में बहुत गुस्सा होते है।"

"तुझे जाना है तो जा ना.. मुझे परेशान ना कर।", रिया ने अब की बार थोड़े गुस्से में बोला।

"यार.. नहीं, सॉरी, सुन ना एक बार.. वो क्या हुआ ना...", निया कुछ समझाते हुए बोली।

***********************

चंचल और सुनील अभी डिनर कर रहे होते है, की इतने उनके घर की घंटी बजती है।

एक दूसरे को दो मिनट घूरने के बाद, तीसरी बार घंटी बजते ही सुनील उठता है।

"हाय सर.. कैसे हो आप?"

"तुम?", दरवाज़ा खोलते ही, अपने सामने बैग लिए खड़ी निया को देखते हुए उसने पूछा।

"हां.. वो चंचल ने कहा था की मुझे कोई भी दिक्कत हो, तो मैं उन्हें बता सकती हूं।"

"ठीक है, अंदर आ जाओ।"

अंदर आ कर बैठी निया के पास फटाफट खाना कर आती हुई चंचल बैग की तरफ इशारा करते हुए बोली।

"लैपटॉप तो खोलो।"

"नहीं नहीं.. ये लैपटॉप नहीं है , मैं ऑफिस के बाद ऑफिस का काम करने में कोई दिलचस्पी नहीं रखती।", निया ने हाथ और गर्दन दोनों से ना में इशारा करते हुए बोला।

"तो फिर क्या है?"

***********************

अपने डेस्क पे काम करती हुई नीतू के पास आते हुए दीवेश बोला।

"ये लो.. तुम्हारे दूसरे डिपार्टमेंट में ट्रांसफर की अर्जी को मंजूरी मिल गई है।", दीवेश ने हाथ का कागज़ नीतू की ओर फेंका।

"अ.. अ.. अच्छा वो!", नीतू ने धीरे से कागज़ उठाते हर बोला।

चंचल के गुस्से को देखते हुए निया धीरे से बोली।
“वो आपने कहा था ना कि कोई भी दिक्कत हो तो आपको बताऊ?”

“हाँ,कहा तो था.. बताओ फिर क्या दिक्कत है तुम्हें?”

“मुझे मेरे फ्लैट से बाहर निकाल दिया गया है।”

“तो फिर?”

“तो मुझे आप लोग अपने यहाँ रख लो।”

“अपने यहाँ रख लो?”

"हाँ.. आपने ही तो कहा था की कोई भी दिक्कत होगी तो, आप मदद करोगी।"

"निया.. बार बार एक ही बात बोलने का कोई तुक नहीं है। मुझे याद है, की मैंने क्या कहा था।"

"फिर?"

"फिर, ये की तुम ऐसे ही किसी और के घर आकर नहीं रह सकती।"

"पर मैं किसी और के घर आ कर थोड़ी रुकी हूँ, में तो आप लोगों के घर रुकूंगी। और तो और ये कोई पहली बार थोड़ी होगा, इससे पहले भी मैं आपके यहाँ कम्पटीशन के टाइम पे रुकी तो थी। तो अगर तब कोई दिक्कत नहीं थी, तो अब कैसी हो सकती है।

"तब और अब में बहुत फर्क है।"

"कैसा फर्क, उस समय आप बिना मांगे मदद दे सकते थे, और इस समय आप मांग के भी नहीं दे रहे।"

"उस समय सुनील भी तो ध्रुव के घर रह रहे थे ना।"

"कोई नहीं, वो अभी यहीं रह ले.. मुझे कोई दिक्कत नहीं, वैसे भी आपके पास एक कमरा खाली है, मैं वहां रुक जाउंगी।"

"निया..?", निया के मुंह से इस तरह की बात सुनते हुए चंचल ने फट बोला और सुनील की तरफ मुड़ती हुई बोली, "और तुम्हें लगता है की मैं ज्यादा ही सख्त हूँ।"
"निया.. देखो ये तो नहीं हो पाएगा। पर क्यों ना मैं तुम्हारी कोई और कमरा ढूंढने में मदद करूं।"

"इतनी रात को?"

"हाँ.. कोई तो होगा। अ.अ.. हाँ... जैसे की ध्रुव, तुम उसके यहाँ क्यों नहीं रुक जाती।"

"चंचल, आप कैसी बातें कर रहे हो? मेरी मम्मी को पता लग गया की मैं ऐसे किसी लड़के के यहाँ रह रही हूँ, तो उसी टाइम मेरा बोरिया बिस्तरा पैक हो जाएगा।"

"हाँ.. ये तो हो सकता है, फिर क्यों ना ऐसा करे, की मैं तुम्हारी रूममेट से बात करके देखूं?"

"हाँ.. देख सकते हो, पर उसने माननी ही होती तो वो मेरी बात ही मान जाती।"

"कोई नहीं.. एक कोशिश करने में क्या ही हर्ज है, वैसे भी बहुत अच्छी लड़की है वो.. लाओ नंबर दो उसका।"

"मैं मिला देती हूँ, एक मिनट।"

अपने फ़ोन से फ़ोन मिलाते हुए निया ने चंचल को फ़ोन पकड़ाया।

"हाय रिया, मैं चंचल बोल रही हूँ.. हम कुछ दिन पहले ही मिले थे, तुम्हें याद होगा।"

"हाय चंचल.. हांजी, मुझे याद है।"

"निया, मेरे यहाँ आई हुई थी, वो बता रही है की तुम दोनों की कोई लड़ाई हो गयी, और तुमने उसे फ्लैट से निकाल दिया।"

"उसने ऐसा कहा?"

"हाँ।"

"यकीनन उसने आपको ये नहीं बताया होगा की उसने क्या किया है?"

"जो भी किया हो, इतना बड़ा थोड़ी की तुम उसे फ्लैट से ही निकाल दो।"

"वैसे.. एक मिनट, तुम किराया नहीं देती क्या? तुम्हें ऐसे कैसे, कोई भी बहार निकाल सकता है?", चंचल ने निया की तरफ़ मुड़ते हुए उससे पूछा।

"चंचल... आप मुद्दे से मत भटकिये, मेरा तो फ्लैट वैसे ही छूट गया था ना, तो मैं ज्यादा कुछ कह नहीं पाई।", निया ने चंचल को फ़ोन पे बात करते रहने का इशारा करते हुए कहा।

"हह्म्म", चंचल ने फिर से फ़ोन की तरफ ध्यान दिया, "लेकिन तुम्हें सचमुच उसे यूं घर से निकाल देने थोड़ा ज्यादा नहीं लगता?"

"आपको पता भी है, की इसने क्या किया है, जो मैंने ये किया।"

"नहीं.. बताओ, आखिर बात क्या है?"

"वो जो आपके पास खड़ी है ना, उससे ही पूछ लीजिये.. बात आप लोगों के उस कम्पटीशन से रिलेटेड है, और मुझे लगता है, की आपका भी उसे जानने का पूरा अधिकार है।"

"हह?"

"और जहाँ तक रुकने की बात है, यकीन मनाइये वो यहाँ वैसे भी नहीं रहना चाहती थी, मैंने तो बस उसका काम आसान किया है।", ये बोलते हुए रिया ने फ़ोन काट दिया।

"क्या किया है तुमने?", चंचल निया की तरफ मुड़ते हुए थोड़े गुस्से में बोली।

"क्या हुआ?", सुनील ने चंचल को ऐसे देखकर पूछा।

"वो.. वो.. वो रिजल्ट वाले दिन..", निया ने हिचकी लेते हुए बोलना शुरू किया। " वो रिजल्ट वाले दिन, मैं नीतू और दीवेश के कमरे में गयी थी..."
***********************
नीतू और दीवेश कमरे में बैठे बात कर रहे हुए होते है, जब निया दरवाज़ा खटखाती है।

"हाय नीतू... हाय दीवेश।"

"हाय निया, कुछ काम था?", नीतू ने पूछा।

"हाँ.. वो कम्पटीशन के बारे में, बात करनी थी"

" बोलो, क्या हुआ", नीतू ने पूछा।

"वो मुझे पता लगा की मैंने कल कुछ गड़बड़ करी थी।"

"हाँ.. तुम्हें सही पता लगा, मुझे उम्मीद नहीं थी, की वो तुम ऐसी कोई गलती करोगी।"

"हाँ.. वो मैंने जानबुझ के नहीं करती थी, वो बस एक छोटी से चीज़ थी, जो उस समय मैं भूल गयी थी।"

"निया.. हम कल के मार्क्स पहले ही दे चुके है, हमे पता है की तुमने जानबूझ के नहीं किया होगा, गलती ही होगी पर ये ही तो कम्पटीशन होता है ना, एक की गलती से ही दूसरा जीत सकता है। तो इसलिए तुम कल की बातों को छोड़ कर आज पे फोकस पे करोगी तो ज्यादा अच्छा होगा।"

"हाँ.. मैं आपसे ये नहीं कह रही, की आप मेरे लिए कल के रिजल्ट्स में कुछ बदलाव करे।"

"तो फिर?"

"बल्कि.. में तो आपसे ये बताने आई हूँ की मुझसे ये गलती क्यों हुई थी।"

"अच्छा।"

"दरसल, में कभी यहाँ आना ही नहीं चाहती थी, वो तो किसी निजी कारणों से मुझे आना पड़ा। पर अब उन निजी कारणों का कोई मतलब नहीं रहा, और ऊपर से मेरी सबसे अच्छी सहेली की शादी हो रही है। उस दिन उसने मुझे बोला की मुझे वहां उसके पास होना चाहिए, उसे इस वक़्त मेरी ज़रूरत है। मेरी हर मुश्किल में मदद करने वाली वो, जब मुझसे मदद मांग रही थी, तो मैं यहाँ रहने के लिए लड़ रही थी।"

"साफ़ साफ़ बताओ?", दीवेश ने बोला।

"उसकी बातें सुन कर, कुछ देर के लिए मेरा काम करने का मन उतर गया था, और जो ईमानदारी का वादा मैं सबसे कर रही थी, उस वक़्त कहीं खो गई वो।"

"अब तुम क्या चाहती हो?"

"बस इतना, की मेरी गलती की सज़ा सिर्फ मुझे मिले, चंचल या किसी और को नहीं। मैंने उन सब को इसके लिए बहुत मेहनत करते हुए देखा है। तो..."

"ठीक है। अब तुम जा सकती हो। ", निया की बात काटते हए नीतू ने बोला।