4
मगर गोलू है कौन
असल में हमने गोलू के मन की उथल-पुथल और एक सींग वाले पशु को लेकर उसके डर के बारे में इतना सब तो बता दिया, पर...बीच में कहीं कुछ छूट रहा है।
गोलू है कौन...? कहाँ रहता है? उसके मम्मी-पापा, आशीष भैया और सुजाता दीदी कैसी हैं? थोड़ा उसके घर-परिवार का हालचाल भी तो हमें लिखना चाहिए था। पर याद ही नहीं रहा।
तो भई, अब यहाँ लिख देते हैं। गोलू का जन्म एक छोटे से कस्बे मक्खनपुर में हुआ था। वह पैदा हुआ था 1 मई, सन् 1988 को। यानी जब वह भागा, तो उसकी उम्र कोई चौदह साल की थी।...लेकिन भई, वह मक्खनपुर कहाँ है जहाँ गोलू का जन्म हुआ था? तो इसके बारे में इतना बताए देते हें कि यह वही मक्खनपुर है, जो फिरोजाबाद का नजदीकी कस्बा है, फिरोजाबाद और शिकोहाबाद के बीच स्थित है।
गोलू का मकान जिसे गोलू के पापा ने उसके जन्म से भी कोई बीस बरस पहले बनवाया था, मक्खनपुर की रहट गली में है। पहले तो यह गली कच्ची ही थी, पर अभी दस-बारह बर्षों से इस पर देखते ही देखते ईंटों का खड़ंजा पड़ गया है। आसपास की सड़क भी कुछ ठीक-ठाक हो गई है जिस पर रोज शाम को बेनागा गोलू की साइकिल खूब मजे में दौड़ती है।
अब गोलू के स्कूल की बात करें। गोलू मक्खनपुर के प्रसिद्ध अंग्रेजी स्कूल लखमादेई मॉडल स्कूल में कक्षा नौ का छात्र है। गोलू का स्कूल उसके घर से कोई डेढ़-दो किलोमीटर दूर पड़ता है और अब तो स्कूल के रिक्शे भी चलने लगे हैं। पर गोलू को पैदल स्कूल जाना ही पसंद है। पैदल चलते हुए मजे में आसपास की चीजें देखते हुए, गोलू लगातार कुछ-न-कुछ सोचता जाता है। ओर कुछ नहीं तो अपनी पढ़ी हुई किताबों के बारे में ही सही। यह मजा भला रिक्शा या बस से स्कूल जाने में कहाँ!
अब मक्खनपुर के बहुत से लड़के फिरोजाबाद जाकर पढ़ने लगे हैं। फिरोजाबाद ज्यादा दूर भी नहीं है और स्कूल की बसें मक्खनपुर तक आ जाती हैं, लेकिन गोलू के पापा देवकीनंदन जी को यह पसंद नहीं है। देवकीनंदन मक्खनपुर के मशहूर गल्ला व्यापारी हैं और उनकी गिनती ऐसे व्यापारियों में होती हे जो पुरानी लीक पर चलते हैं और ईमानदारी से व्यापार करते हैं। पैसा उनके पास है, लेकिन फिजूलखर्ची के लिए बिल्कुल नहीं। जब गोलू के फिरोजाबाद जाकर पढ़ने की बात आई थी, तो उन्होंने साफ कहा कि, “अरे भई, यह तो समय और पैसे की बरबादी है!...और फिर हमारा बेटा आशीष यहीं मक्खनपुर में पढ़कर इंजीनियरी की लाइन में जा सकता है, तो गोलू डॉक्टर क्यों नहीं बन सकता!”
खुद गोलू को लखमादेई मॉडल स्कूल कुछ बुरा नहीं लगता। पर ये जो गणित के मैथ्यू सर हैं न, थोड़े खुर्राट हैं...सैल्फिश भी! ट्यूशन की कुछ ऐसी सनक है कि बच्चे चाहे परेशान हों, उनकी जिंदगी और कैरियर बरबाद हो, लेकिन मैथ्यू सर को हल हाल में ट्यूशन मिलने चाहिए। इसी चीज के लिए इतने बखेड़े वे करते हैं कि राम बचाए!
अभी उस दिन पिंटू ही बोल रहा था कि अपने टट्यूशन वाले बच्चों से मैथ्यू सर कह रहे थे, “यहाँ अच्छी तरह समझ लो, स्कूल में तो मैं यह सब बताने से रहा। वहाँ तो मैं गाड़ी ऐसे तेज भगाऊँगा कि...”
सुनकर गोलू को इतना भारी दुख हुआ था कि कुछ न पूछो। उसे लगा था, ये मैथ्यू सर जैसे मास्टर भी क्या अध्यापक कहलाने लायक हैं? ये तो व्यापारियों से भी गए बीते हैं—एकदम बेईमान।...पैसे के लालची!
गोलू काफी देर तक सोचता रहा था। क्या वह घर पर कहे? अगर उसके पापा स्कूल के प्रिंसिपल के पास जाकर यह बात कह दें, तो जरूर उनकी अक्ल ठिकान आ जाएगी।
पर क्या पापा कहेंगे यह बात? वे तो झट गोलू से ही कह देंगे कि देख गोलू, जब आशीष बगैर ट्यूशन के ही पढ़कर फर्स्ट आ सकता है और इलाहाबाद के मोतीलाल नेहरू रीजनल इंजीनियरिंग कॉलेज में उसका दाखिला हो सकता है, तो तू क्यों नहीं आप-से-आप पढ़ सकता? मैथ्यू सर नहीं पढ़ाते तो छोड़ उन्हें। गणित की किताब तो तेरे पास है, खुद ही समझ-समझकर हल कर ले सवाल!
सोचकर गोलू निराश हो जाता। क्या सचमुच कोई नहीं है जो उसकी समस्या को समझ सके?...कोई नहीं! कोई भी नहीं?
*
ओह! फिर जरा-सी गड़बड़ हो गई। हम तो गोलू का पारिवारिक परिचय देने जा रहे थे, मगर भटके तो भटकते चले गए।
चलिए, अब सीधे-सीधे ही बता देते हैं। गोलू के पापा देवकीनंदन आर्य हैं, जिनका कई पीढ़ियों से मक्खनपुर में ही अनाज का पुश्तैनी कारोबार चला आता है। गोलू की माँ कमला देवी हाईस्कूल तक पढ़ी हैं लेकिन बड़ी समझदार, सुरुचिसंपन्न महिला हैं और गोलू को बहुत प्यार करती हैं। गोलू की बड़ी दीदी कुसुम की शादी आगरा के रावतपाड़ा मोहल्ले में हुई है। जब शादी हुई थी तो गोलू छह-सात बरस का था, इसलिए इस शादी की उसे बड़ी अच्छी तरह याद है। गोलू के जीजा जी नवीनचंद्र का रावतपाड़े में ही स्टेशनरी का काम है। गोलू की छोटी दीदी सुजाता ने हिंदी में एम.ए. किया है और अब आगरा यूनिवर्सिटी से रिसर्च कर रही है। गोलू के आशीष भैया की इंजीनियरिंग की पढ़ाई के बारे में तो हम बता ही चुके हैं। इतना और बताना बाकी है कि ये सुजाता से एक-डेढ़ साल छोटे हैं और गोलू से कोई छह-सात साल बड़े हैं।
यों तो घर में सभी गोलू से प्यार करते हैं और उसे किसी चीज की कोई कमी नहीं। पर गोलू आशीष भैया की तरह नहीं है। यही शायद उसका सबसे बड़ा कसूर है।
पर ऐसा तो नहीं कि गोलू में कोई खासियत है ही नहीं। आखिर हर आदमी में अपनी कोई न कोई खासियत तो होती ही है, उसी को देखना चाहिए। भला कोई आदमी किसी दूसरे का पिछलग्गू या नकलची क्यों बने? ऐसी उम्मीद भी नहीं करनी चाहिए। अब गोलू को ही लो। उसे इसी साल जिले के सभी स्कूलों की कहानी प्रतियोगिता में दूसरा इनाम मिला। वाद-विवाद और कविता प्रतियोगिता में तो हर साल दो-तीन इनाम लेकर आता ही है। मन्नू अंकल जब भी मिलते हैं, कहते हैं, “गोलू, तेरा कविता सुनाने का ढंग नायाब है!” क्या ये सब बेकार चीजें हैं? क्या जरूरी है कि हर आदमी खाली किताबी कीड़ा ही हो? आखिर हर आदमी एक जैसा तो नहीं हो सकता न!
कोई जरूरी तो नहीं कि आशीष भैया भी वैसी कहानी बना लें, जैसी गोलू ने भीख माँगने वाले बसई बाबा पर लिखी थी। जाने कब बसई बाबा ने खुद आँख में आँसू भरकर उसे अपनी पूरी कहानी सुनाई थी। सुनकर गोलू रो दिया था। उसने बसई बाबा की जितनी मदद हो सकी, की। फिर कहा, “बाबा, मैं तुम पर एक कहानी लिखूँगा।” गोलू ने वह कहानी लिखी। बड़ी मार्मिक कहानी। जो भी सुनता, उसकी आँख में आँसू आ जाते। उसी कहानी को तो जिले के सभी स्कूलों में दूसरा इनाम मिला। क्या यह मजाक है!...कोई और तो लिखकर दिखाए। मन्नू अंकल ने इस कहानी की इतनी तारीफ की थी, इतनी कि मारे खुशी के गोलू की आँखों में आँसू छलछला आए।
‘कुछ और नहीं, तो मैं बड़ा होकर लेखक या पत्रकार ही बन जाऊँगा।’ गोलू सोचता, ‘कोई जरूरी तो नहीं कि हर किसी को साइंस या गणित ही आए। क्या दुनिया का मतलब सिर्फ गणित ही है. कुछ और नहीं...?’
तो यह था सारा चक्कर, जो गोलू के सिर के चारों ओर गोल-गोल घूम रहा था। उसका मन होता था, वह सारा दिन चित्र बनाए। उसका मन होता था, वह सारा दिन अच्छी-अच्छी कहानियों की किताबें पढ़ता रहे। उसका मन होता था कि वह लीक से हटब्कर कोई काम करे और सिर्फ कोर्स की किताबें न पढ़े। वह सपनों की दुनिया में दूर तक घूमकर आना चाहता था!
मगर वह रोज-रोज देखता था कि उसकी इच्छाओं का तो कोई मतलब ही नहीं। उसे तो वही करना है, जो सब करते हैं। तब दुख के मारे उसकी आँख में आँसू आ जाते।
यही चक्कर पर चक्कर आखिर इतना बड़ा घनचक्कर हो गया कि गोलू एक चक्रव्यूह में घिर गया। उसने इस चक्रव्यूह से लड़ने की लाख कोशिशें कीं, नहीं लड़ पाया। तो आखिर वह सब कुछ छोड़-छाड़कर भाग गया।
नहीं, भागा नहीं, अभी भागने की तैयारी में है।